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चारण (जाति)
भारतीय उपमहाद्वीप का एक समुदाय / From Wikipedia, the free encyclopedia
चारण (असंलिव: Cāraṇ; संस्कृत: चारण; गुजराती: ચારણ; उर्दू: چاران; अ.ध्व.व: cɑːrəɳə) भारतीय उपमहाद्वीप की एक जाति है जो राजस्थान, सिंध, गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, हरियाणा और बलूचिस्तान के निवासी हैं। ऐतिहासिक रूप से, चारण कवि और इतिहासकार होने के साथ-साथ योद्धा और जागीरदार भी रहे हैं। चारण सैन्य क्षत्रपों , इतिहासकारों, कृषि विशेषज्ञों, व व्यापारियों के रूप में प्रतिष्ठित थे। मध्ययुगीन राजपूत राज्यों में चारण मंत्रियों, मध्यस्थों, प्रशासकों, सलाहकारों और योद्धाओं के रूप में स्थापित थे। शाही दरबारों में कविराजा (राज कवि और इतिहासकार) का पद मुख्यतया चारणों के लिए नियोजित था।[3][4][5][6][7][8][9][10][11]
चारण | |||
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धर्म | हिन्दू धर्म | ||
भाषा | राजस्थानी भाषा • हरियाणवी • मारवाड़ी • मेवाड़ी • गुजराती • सिन्धी • मराठी • हिन्दी | ||
देश | भारत • पाकिस्तान | ||
क्षेत्र | राजस्थान • हरियाणा • गुजरात • मध्य प्रदेश • महाराष्ट्र • सिंध[1] • बलूचिस्तान[2] |
ऐतिहासिक रूप से दैवीय माने जाने के कारण, एक चारण का अलंघ्य व अवध्य होना उनके प्रति पवित्र मान्यता का प्रमाण था;इन्हे हानि पहुँचाना गौहत्या व ब्रह्महत्या के समान एक अपराध माना जाता था।[12][13] संस्थागत और धार्मिक रूप से स्वीकृत सुरक्षा के साथ-साथ, वे व्यवहारस्वरूप निडर होकर शासकों और उनके दुष्कृत्यों की आलोचना करते थे,[14][15] शासकों के बीच राजनीतिक विवादों में मध्यस्थता करते थे,[13] और पश्चिमी भारत के संघर्ष-ग्रस्त क्षेत्रों में व्यापारिक गतिविधियों के संरक्षक के रूप में कार्य करते थे।[16][17]
प्राचीन संस्कृत ग्रंथों में, चारणों को देवताओं की स्तुति हेतु ऋचाओं का पाठ करते हुए और मंदिर में देव-प्रतिमा की उपासना करते हुए चित्रित किया गया है।[18][19]
चारण के संदर्भ ऋग्वेद, रामायण, महाभारत, और श्रीमद भागवद के साथ-साथ जैन प्रबंध में पाए जाते हैं। प्राचीन काल के संस्कृत के महान कवि-नाटककार कालिदास ने भी अपने शास्त्रीय नाटकों में चारण चरित्र प्रमुखता से दर्शाएँ है। चारण परंपरा ऐतिहासिक युग में ऋषि संस्थान के रूप में आरंभ हुई-महान ऋषियों की संस्था जो वनों, हिमालय या अन्य ऊंचे पर्वतों, समुद्र या नदी के किनारे रहते हुए राजकुमारों के लिए आश्रमों का संचालन करते थे।[19]
धार्मिक संस्कृति चारण अपने पूर्वजों की भी पूजा करते हैं। चारण प्रारम्भ से ईश्वर के उपासक एवं प्रकृति पूजक 'वैदिक' सनातन धर्मी रहे है। कई विद्वान वेदों की रचना का श्रेय भी चारणो को देते है जिसके पीछे तर्क यह दिया जाता है कि ऋग्वेद की प्रथम रिचा का आखिरी शब्द 'ल' है जो की डिंगल भाषा के 'ल' के ही ठीक समान है। ये प्रमाणित हो चुका है कि ऋग्वेद की रचना प्राचीन सरस्वती नदी के किनारों पर रहने वाले विद्वानों द्वारा की गई थी। ये विद्वान चारण ही थे क्यों कि सरस्वती वर्तमान राजस्थान में से ही निकलती थी जहां चारण जाति का अस्तित्व ही प्रमुखता से था क्यों कि ब्राहमण आदि दूसरी विद्वान जातियाँ मुख्यतया गंगा और यमुना के निकट के राज्यों की निवासी थीं ।
भारतीय इतिहास मे चारणों का धर्म रक्षक योद्धाओं और इतिहासकारों के रूप में विशिष्ट और प्रमाणित योगदान है। प्राचीन काल से ही चारणों का अपना एक वृहद इतिहास रहा है।