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हसन इब्न अली
शिया के दूसरे इमाम / From Wikipedia, the free encyclopedia
हसन इब्न अली या अल-हसन बिन अली (अरबी: الحسن بن علي بن أﺑﻲ طالب यानि हसन, पिता का नाम अली सन् 625-671) खलीफ़ा अली अ० के बड़े बेटे थे। आप अली अ० के बाद कुछ समय के लिये खलीफ़ा रहे थे। माविया, जो कि खुद खलीफा बनना चाहता था, आप से संघर्ष करना चाहता था पर आपने इस्लाम में गृहयुद्ध (फ़ितना) छिड़ने की आशंका से ऐसा होने नहीं दिया। इमाम हसन उस समय के बहुत बड़े विद्वान थे। हुसैन का भाई। मुसलमान उन्हें इस्लामी पैगंबर मुहम्मद के प में सम्मान करते हैं। शिया मुसलमानों में, हसन दूसरे इमाम के रूप में पूजनीय हैं। हसन ने अपने पिता की मृत्यु के बाद खिलाफत का दावा किया, लेकिन पहली फितना को समाप्त करने के लिए उमैयद वंश के संस्थापक [6][7] मुवियाह प्रथम के छह या सात महीने के बाद उसे छोड़ दिया गया। अल-हसन को गरीबों के लिए दान करने, गरीबों और बंधुआ लोगों के लिए उनकी दया और उनके ज्ञान, सहिष्णुता और बहादुरी के लिए जाना जाता था। [8] शेष जीवन के लिए, हसन मदीना में रहे, जब तक कि उनकी मृत्यु ४५ साल की उम्र में नहीं हुई और उन्हें मदीना में जन्नत अल-बाकी कब्रिस्तान में दफनाया गया। उसकी पत्नी, जैदा बिंट अल-अश्अत पर आमतौर पर उसे जहर देने का आरोप लगाया जाता है। [6][7][9][10][11][12]
अल-हसन इब्न अली इब्न अबी तालिब
ख़लीफ़ा - कूफ़ा | |||||
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al-Mujtaba[1] | |||||
![]() अरबी सुलेख में हसन इब्न अली का नाम | |||||
शासनावधि | 661-661 | ||||
पूर्ववर्ती | अली | ||||
द्वितीय इमाम - शिया इस्लाम (इसना अशरी और ज़ैदी दृष्टिकोण) | |||||
पूर्ववर्ती | अली इब्न अबू तालिब | ||||
उत्तरवर्ती | हुसैन इब्न अली | ||||
प्रथम इमाम - शिया इस्लाम (मुस्तअली इस्माईली दृष्टिकोण) | |||||
उत्तरवर्ती | हुसैन इब्न अली | ||||
जन्म | 1 दिसम्बर 624 ई (15 रमज़ान हिजरी 3 [2][3] मदीना, हिजाज़ | ||||
निधन | 1 अप्रैल 670(670-04-01) (उम्र 45) (28 सफ़र हि 50)[4][5] मदीना, उमय्यद ख़िलाफ़त | ||||
समाधि | अल-बक़ी, मदीना, सऊदी अरब | ||||
पत्नियां | सूची
Um Kulthum bint Alfadhl bin Al-Abbas bin Abdulmuttalib bin Hashim Khawla bint Mandhoor bin Zaban bin Syar bin Amro Um Basheer bint Abi Mas'ud Ju'da bint Al-Ash'ath bin Qays Ma'di Karb Alkindi | ||||
संतान | सूची
Qāsim Muhammad ibn Hasan Fātimah Abu'l-Ḥasan Zayd Abdullah Talha Maymūnah Al-Hasan al-Muthana Umm al-Husayn[5] | ||||
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जाती | क़ुरैश (बनू हाशिम) | ||||
पिता | अली | ||||
माता | फ़ातिमा | ||||
धर्म | इस्लाम |
इमाम हसन ने उसको सन्धि करने के लिये मजबूर कर दिया। जिसके अनुसार वो सिर्फ़ इस्लामी देशों पर शासन कर सकता है, पर इस्लाम के कानूनो में हस्तक्षेप नहीं कर सकता। उसका शासन केवल उसकी मौत तक ही होगा उस्को किसी को ख़लीफा बनाने का अधिकार नहीं होगा। उस्को इसलाम के सभी नियमो का पालन करना होगा। उसके मरने के बाद ख़लीफा फिर हसन अ० होगे। यदि हसन अ० कि मर्त्यु हो जाय तो इमाम हुसेन को ख़लीफा माना जायगा।