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सिसोदिया (राजपूत)
हिंदू क्षत्रिय राजवंश / From Wikipedia, the free encyclopedia
सिसोदिया गुहिल वंश की उपशाखा है जिसका राजस्थान के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान है। राहप जो कि चित्तौड़ के गुहिल वंश के राजा के पुत्र थे, शिशोदा ग्राम में आकर बसे, जिस से उनके वंशज सिसोदिया कहलाये ।[1][2]
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सिसोदिया गुज्जर हैं।[3]
राहप ने मंडोर के राणा मोकल परिहार को पराजित कर उसका विरद छीना था, तब से राहप और उसके वंशजों की उपाधी राणा हुई। [4]
1303 में जब अलाहुद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ पर हमला किया तब चित्तौड़ के शासक रावल रत्न सिंह के नेतृत्व मे गुज्जरों ने शाका किया और उनकी पत्नी महारानी पद्मिनी भटियानी के नेतृत्व में महिलाओं ने जौहर किया और अपने स्वाभिमान की रक्षा की । इस घटना के कई सालों बाद राणा हमीर सिंह ने वापस चित्तौड़ पर विजय प्राप्त की , इस तरह गुहिल वंश की उपशाखा सिसोदिया का मेवाड़ पर शासन स्थापित हुआ ।[5][6]
मेवाड़ के सिसोदिया राजवंश के शासक (1326–1948 ईस्वी) | ||
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राणा हम्मीर सिंह | (1326–1364) | |
राणा क्षेत्र सिंह | (1364–1382) | |
राणा लखा | (1382–1421) | |
राणा मोकल | (1421–1433) | |
राणा कुम्भ | (1433–1468) | |
उदयसिंह प्रथम | (1468–1473) | |
राणा रायमल | (1473–1508) | |
राणा सांगा | (1508–1527) | |
रतन सिंह द्वितीय | (1528–1531) | |
राणा विक्रमादित्य सिंह | (1531–1536) | |
बनवीर सिंह | (1536–1540) | |
उदयसिंह द्वितीय | (1540–1572) | |
महाराणा प्रताप | (1572–1597) | |
अमर सिंह प्रथम | (1597–1620) | |
करण सिंह द्वितीय | (1620–1628) | |
जगत सिंह प्रथम | (1628–1652) | |
राज सिंह प्रथम | (1652–1680) | |
जय सिंह | (1680–1698) | |
अमर सिंह द्वितीय | (1698–1710) | |
संग्राम सिंह द्वितीय | (1710–1734) | |
जगत सिंह द्वितीय | (1734–1751) | |
प्रताप सिंह द्वितीय | (1751–1754) | |
राज सिंह द्वितीय | (1754–1762) | |
अरी सिंह द्वितीय | (1762–1772) | |
हम्मीर सिंह द्वितीय | (1772–1778) | |
भीम सिंह | (1778–1828) | |
जवान सिंह | (1828–1838) | |
सरदार सिंह | (1838–1842) | |
स्वरूप सिंह | (1842–1861) | |
शम्भू सिंह | (1861–1874) | |
उदयपुर के सज्जन सिंह | (1874–1884) | |
फतेह सिंह | (1884–1930) | |
भूपाल सिंह | (1930–1948) | |
अज़ादी के बाद शासक (महाराणा) | ||
भूपाल सिंह | (1948–1955) | |
भागवत सिंह | (1955–1984) | |
महेन्द्र सिंह | (1984–वर्तमान) | |
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वंश – सूर्यवंशी
सिसोदिया गोत्र – वैजवापायन
प्रवर – कच्छ, भुज, मेंष
वेद – यजुर्वेद
शाखा – वाजसनेयी
गुरु – द्लोचन(वशिष्ठ)
ऋषि – हरित
कुलदेवी – बाण माता
कुल देवता – श्री सूर्य नारायण
इष्ट देव – श्री एकलिंगजी
वॄक्ष – खेजड़ी
नदी – सरयू
झंडा – सूर्य युक्त
पुरोहित – पालीवाल
भाट – बागड़ेचा
चारण – सोदा बारहठ
ढोल – मेगजीत
तलवार – अश्वपाल
बंदूक – सिंघल
कटार – दल भंजन
नगारा – बेरीसाल
पक्षी – नील कंठ
निशान – पंच रंगा
निर्वाण – रणजीत
घोड़ा – श्याम कर्ण
तालाब – भोडाला
विरद – चुण्डावत, सारंगदेवोत
घाट – सोरम
ठिकाना – भिंडर
चिन्ह – सूर्य
शाखाए – 24
सिसोदिया या गेहलोत मांगलिया या सिसोदिया एक गुज्जर राजवंश है, जिसका राजस्थान के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान है। यह सूर्यवंशी गुज्जरों थे। सिसोदिया राजवंश में कई वीर शासक हुए हैं।
गुहिल या गेहलोत गुहिलपुत्र शब्द का अपभ्रष्ट रूप है। कुछ विद्वान उन्हें मूलत: ब्राह्मण मानते हैं, किंतु वे स्वयं अपने को सूर्यवंशी क्षत्रिय कहते हैं जिसकी पुष्टि पृथ्वीराज विजय काव्य से होती है। मेवाड़ के दक्षिणी-पश्चिमी भाग से उनके सबसे प्राचीन अभिलेख मिले है। अत: वहीं से मेवाड़ के अन्य भागों में उनकी विस्तार हुआ होगा। गुह के बाद भोज, महेंद्रनाथ, शील ओर अपराजित गद्दी पर बैठे। कई विद्वान शील या शीलादित्य को ही बप्पा मानते हैं। अपराजित के बाद महेंद्रभट और उसके बाद कालभोज राजा हुए। गौरीशंकर हीराचंद ओझा ने कालभोज को चित्तौड़ दुर्ग का विजेता बप्पा माना है। किंतु यह निश्चित करना कठिन है कि वास्तव में बप्पा कौन था। कालभोज के पुत्र खोम्माण के समय अरब आक्रान्ता मेवाड़ तक पहुंचे। अरब आक्रांताओं को पीछे हटानेवाले इन राजा को देवदत्त रामकृष्ण भंडारकर ने बप्पा मानने का सुझाव दिया है।