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जय सिंह द्वितीय
अंबर के महाराजा (1681-1743) / From Wikipedia, the free encyclopedia
सवाई जयसिंहजी' या जयसिंह जी (द्वितीय) (03 नवम्बर 1688 - 21 सितम्बर 1743)[1] अठारहवीं सदी में भारत में राजस्थान के आमेर राज्य के सूर्यवंशी कछवाहा राजवंश के सर्वाधिक प्रतापी शासक थे। सन १७२७ में आमेर से दक्षिण छः मील दूर एक बेहद सुन्दर, सुव्यवस्थित, सुविधापूर्ण और शिल्पशास्त्र के सिद्धांतों के आधार पर आकल्पित नया शहर 'सवाई जयनगर', बाद में (जयपुर) बसाने वाले नगर-नियोजक के बतौर उनकी ख्याति भारतीय-इतिहास में अमर है।
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जय सिंह द्वितीय | |
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जन्म |
विजय सिंह (मूल जन्म नाम) बाद में महाराजा जय सिंह द्वितीय आमेर |
मौत | जयपुर |
मौत की वजह | वृद्धावस्था |
आवास | आमेर, जयपुर, दिल्ली, औरंगाबाद, अहमदनगर, दौलताबाद, उज्जैन आदि |
उपनाम | सवाई जयसिंहजी (द्वितीय) |
जाति | कछवाहा सूर्यवंशी |
शिक्षा | पारम्परिक पद्धति से |
शिक्षा की जगह | संस्कृत, फ़ारसी, अरबी, मराठी, ज्योतिष, खगोलशास्त्र, धर्मशास्त्र, वैदिक-कर्मकांड आदि |
पेशा | महाराजा आमेर/जयपुर |
कार्यकाल | सन 1699 से 1743 ईस्वी |
संगठन | आमेर के परंपरागत उनतीसवे राजा |
गृह-नगर | आमेर/ सवाई जयनगर उर्फ़ जयपुर |
पदवी | सरामद-ए-राजा-ए-हिंदुस्तान श्री राजराजेश्वर राजराजेंद्र महाराजाधिराज |
प्रसिद्धि का कारण | नगर-नियोजन, कूटनीति, राजनीति, हिंदुत्व, परंपरा-अनुरक्षण, शासन-विस्तार, पुस्तक-प्रेम, विज्ञान-प्रेम |
धर्म | हिन्दू (वैष्णव) |
जीवनसाथी |
रानी गौड़जी केसर कँवरजी श्योपुर-बड़ौदा रानी खींचन सुख कँवर राघौगढ़ रानी राणावत चँद्र कँवर उदयपुर-मेवाड़ रानी सिसोदनी फूल कँवर बनेड़ा रानी राठौड़ आनंद कँवर किशनगढ़ रानी चूँडावत अमृत कँवर देवगढ़ रानी जादौन इँद्र कँवर करौली रानी हाड़ीजी उमेद कँवरजी बूंदी रानी राठौड़ चंदन कँवर बांदनवाड़ा-अजमेर रानी तंवर लाड कँवर लक्खासर-बीकानेर रानी राठौड़ सूरज कँवर जोधपुर-मारवाड़ रानी सोलंकिनी गुलाब कँवर अलीगढ़ (रामपुरा)-टोंक रानी राठौड़ बख्त कँवर अमझेरा-मालवा |
बच्चे |
पुत्र :- युवराज शिव सिंह महाराजा सवाई ईश्वरी सिंह महाराजा सवाई माधो सिंह पुत्रियां :- बाईजी लाल विचित्र कँवरजी जोधपुर में विवाह बाईजी लाल किशन कँवरजी बूंदी में विवाह |
ਬਿਜਲੀ ਰਾਜਭਰ |
काशी, दिल्ली, उज्जैन, मथुरा और जयपुर में, अतुलनीय और अपने समय की सर्वाधिक सटीक गणनाओं के लिए जानी गयी वेधशालाओं के निर्माता, सवाई जयसिह एक नीति-कुशल महाराजा और वीर सेनापति ही नहीं, जाने-माने खगोल वैज्ञानिक और विद्याव्यसनी विद्वान भी थे।[2] उनका संस्कृत , मराठी, तुर्की, फ़ारसी, अरबी, आदि कई भाषाओं पर गंभीर अधिकार था। भारतीय ग्रंथों के अलावा गणित, रेखागणित, खगोल और ज्योतिष में उन्होंने अनेकानेक विदेशी ग्रंथों में वर्णित वैज्ञानिक पद्धतियों का विधिपूर्वक अध्ययन किया था और स्वयं परीक्षण के बाद, कुछ को अपनाया भी था। देश-विदेश से उन्होंने बड़े बड़े विद्वानों और खगोलशास्त्र के विषय-विशेषज्ञों को जयपुर बुलाया, सम्मानित किया और यहाँ सम्मान दे कर बसाया। [3]
जयसिंह की गणित, वास्तुकला और खगोल विज्ञान में बहुत रुचि थी। उन्होंने अपनी राजधानी जयपुर सहित भारत के कई स्थानों पर जंतर मंतर वेधशालाओं का निर्माण किया। उनके पास यूक्लिड के "एलीमेंट्स ऑफ़ ज्योमेट्री" का संस्कृत में अनुवाद था [4] [5]