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दौलताबाद महाराष्ट्र के [औरंगाबाद ]] जिले में स्थित है। है। इसका प्राचीन नाम देवगिरि है॥ यह मुहम्म्द बिन तुगलक़ की राजधानी है।
यह शहर हमेशा शक्तिशाली बादशाहों के लिए आकर्षण का केंद्र साबित हुआ है। दौलताबाद की सामरिक स्थिति बहुत ही महत्वपूर्ण थी। यह उत्तर और दक्षिण भारत के मध्य में पड़ता था। यहां से पूरे भारत पर शासन किया जा सकता था। इसी कारणवश बादशाह मुहम्मद बिन तुगलक ने इसे अपनी राजधानी बनाया था। उसने दिल्ली की समस्त जनता को दौलताबाद चलने का आदेश दिया था। लेकिन वहां की खराब स्थिति तथा आम लोगों की तकलीफों के कारण उसे कुछ वर्षों बाद राजधानी पुन: दिल्ली लानी पड़ी।
देवगिरि दक्षिण भारत का प्रसिद्ध ऐतिहासिक नगर जो आजकल दौलताबाद के नाम से पुकारा जाता है। महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में २० डिग्री उत्तर अक्षांश तथा ७५ डिग्री पूर्व देशांतर में स्थित है। भीलम नामक राजा ने इसे ११वीं सदी में बसाया था और उसी काल से दो सौ वर्षों तक हिंदू शासकों ने देवगिरि पर शासन किया। १४वीं सदी से यह नगर मुसलमानों के अधिकार में चला आया। देवगिरि के समीप औरंगजेब के मरने पर यह जिला औरंगाबाद कहा जाने लगा।
मथुरा के यादव कुल से देवगिरि के हिंदू शासक संबंध जोड़ते हैं जिस कारण यहाँ का राजवंश 'यादव' कहलाया। हेमाद्री रचित 'ब्रतखंड' में तथा अभिलेखों के आधार पर दृढ़प्रहार देवगिरि के यादव वंश का प्रथम ऐतिहासिक पुरुष माना जाता है। भीलम शक्तिशाली नरेश था जिसने होयसल, चोल तथा चालुक्य राज्यों पर सफल आक्रमण किया था। उसके उत्तराधिकारी सिंघण ने इसे साम्राज्य का रूप दे दिया। युद्ध के फलस्वरूप देवगिरि राज्य खानदेश से अनंतपुर (मैसूर) तक तथा पश्चिमी घाट से हैदराबाद तक विस्तृत हो गया।
१३वीं सदी के देवगिरि नरेश कृष्ण का नाम अनेक लेखों में मिलता है। इसने वंश की प्रतिष्ठा की अभिवृद्धि की। कृष्ण के पुत्र रामचंद्र के शासन में खिलजी वंश के सुल्तान अलाउद्दीन ने देवगिरि पर चढ़ाई की थी। अलाउद्दीन यहाँ से असंख्य धन लूटकर ले गया और उसके सेनापति काफूर रामचंद्र को बंदी बना लिया। कुछ समय पश्चत् रामचंद्र मुक्त कर दिया गया। यही कारण था कि देवगिरि के राज ने तैलंगाना के युद्ध में काफूर को हथियारों की मदद दी थी। शकंरदेव ने सिंहासन पर बैठने (१३१२ ई.) के बाद मुसलमानों से शत्रुता बढ़ा ली जिसका फल यह हुआ कि शंकरदेव को हराकर काफूर ने देवगिरि पर अधिकार कर लिया।
देवगिरि का नाम मुहम्मद तुगलक के साथ भी संबधित है। उसने राजधानी दिल्ली से हटाकर देवगिरि (दौलताबाद) में स्थापित की और से फिर दिल्ली वापस किया था। देवगिरि का दुर्ग आज भी दक्षिण भारत में प्रसिद्ध है और स्थानीय क्षत्रिय दुर्ग में स्थापित देवीप्रतिमा की पूजा पुराने ही उत्साह से करते हैं।
दौलताबाद किला'-एक उपेक्षित किला! न शोधकर्ताओं की नजर पड़ती है न ही इसे संरक्षित रखने के प्रयाप्त उपाय किए जा रहे हैं। कमजोर दीवारें गिर रही हैं। एक प्राचीन धरोहर भारत खोता जा रहा है। इतिहास गवाह है-यही एक मात्र एक ऐसा किला है जिसे कभी कोई जीत नहीं सका।
कई राजाओं की तरह (अकबर) ने भी इस पर चार बार चढ़ाई की थी, लेकिन सफल नहीं हुआ। इस के अविजित होने में इस की संरचना को श्रेय जाता है। यह किला महाराष्ट्र राज्य में औरंगाबाद से लगभग १३ किलोमीटर पर पहाड़ी की चोटी पर स्थित है।
इस किले को यादव राजवंश के राजा भिल्लम ने ११ वी शताब्दी में बनवाया था|
-यह भारत के सबसे मजबूत किलों में एक मजबूत किला है। यह तीन मंजिला है।
यह शाही निवास जैसा ही था। हालांकि, यहाँ मस्जिद और स्नान जैसी सुविधाओं तक पहुँचने में कठिनाई है,
-यह प्राथमिक मुगल निवास नहीं था, न ही यह एक स्थायी आधार पर एक घर था बल्कि अपने दूरस्थ और दर्शनीय स्थान को सुझाता यह स्थान /किला शाही परिवार और दरबारी सदस्यों द्वारा कभी-कभी उपयोग के लिए था।
दौलताबाद में बहुत सी ऐतिहासिक इमारतें हैं जिन्हें जरुर देखना चाहिए। इन इमारतों में जामा मस्जिद, चांद मीनार तथा चीनी महल शामिल है। औरंगाबाद से दौलताबाद जाने के लिए प्राइवेट तथा सरकारी बसें मिल जाती हैं।
प्रवेश शुल्क: भारतीयों के लिए 25 रु. [?]तथा विदेशियों के लिए 300 ₹। समय: सुबह 9 बजे से शाम 6 बजे तक।'डेक्कन ऑडिसी ट्रेन' ले सकते हैं जो प्रत्येक बुधवार 16.40 बजे मुंबई के छत्रपति शिवाजी टर्मिनस से चलती है।[confirm it] पर्यटकों के लिए ख़ास हिदायत है की इस किले में जा रहे हैं तो पानी की बोतल जरुर साथ रखें क्योंकि वहां ऊपर कहीं भी पीने के पानी की व्यवस्था नहीं है।
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