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नजरान प्रान्त, जिसे औपचारिक अरबी में मिन्तक़ाह नजरान (منطقة نجران) कहते हैं, सउदी अरब के दक्षिण में यमन की सरहद के साथ स्थित एक प्रान्त है। यहाँ 'याम' नामक एक शक्तिशाली क़बीला सदियों से बसा हुआ है और प्रांतीय आबादी के २ से ४ लाख के बीच लोग इस्माइली शिया इस्लाम के अनुयायी हैं।[1] यह सुन्नी-बहुसंख्यक सउदी अरब में इस प्रान्त को एक अलग पहचान देती है।[2]
नजरान प्रान्त के तीन मुख्य भाग हैं:
नजरान प्रान्त के बड़े शिया समुदाय के शुरू से ही सख़्त वहाबी सुन्नी विचारधारा रखने वाली केन्द्रीय सउदी सरकार के साथ तनाव रहें हैं। सन् २००० में सरकार ने 'जादू-टोना' करने के इल्ज़ाम पर एक इस्माइली मस्जिद बंद कर दी और उस से सम्बंधित लोगों को हिरासत में ले लिया।[3] २००१ में १६ और १७ साल के दो विद्यार्थियों को अपने एक सुन्नी शिक्षक के साथ झड़पने पर गिरफ़्तार कर लिया गया क्योंकि उसने शिया धर्म के लिए अपमानजनक बाते कहीं थी। उन्हें क़ैद से साथ-साथ कोड़ों की सज़ा सुनाई गई।[4] ऐसे हादसों के कारण यहाँ के शियाओं को शिकायत रही है।[1] २००९ में स्थानीय राज्यपाल को हटाकर सउदी अरब के महराज अब्दुल्लाह के छठे पुत्र मिशाल बिन अब्दुल्लाह को इस प्रान्त की बागडोर सौंपी गई। उन्होंने सरकार और शियाओं के संबंधों में सुधार लाने की कोशिश करी और इसमें कुछ सफलता भी मिली है।[5]
इस्माइलियों के अलावा नजरान में ज़ैदी शाखा के अनुयायी रहते हैं, जिनकी संख्या सन् २००८ में लगभग २,००० थी।[6] यहाँ कभी ईसाई और यहूदी भी रहा करते थे। ७वीं सदी में उन्होंने पैग़म्बर मुहम्मद के साथ ६३१ ईसवी में एक 'नजरान समझौता' (Najran Pact) नामक संधि करी थी। उस समय मुस्लिमों का नजरान पर नया क़ब्ज़ा हुआ था और नजरान समझौते के अंतर्गत ईसाईयों को कहा गया था कि अगर वे मुस्लिम राज स्वीकार करेंगे तो उन्हें 'ज़िम्मी' नाम का दर्जा दिया जाएगा और उन्हें अपना धर्म रखने की स्वतंत्रता मिलेगी।[7] लेकिन अब नजरान में ईसाई सदियों से नहीं रहे हैं। ८९७ ईसवी में स्थानीय ज़ैदी वंश के संस्थापक ने नजरान के यहूदियों के साथ संधि करी थी जिसके अनुसार यहूदियों को नजरान में ज़मीनें ख़रीदने-बेचने का अधिकार दिया गया था।[8] लगभग सभी यहूदी १९४९ में इस्राइल बनने के बाद वहाँ चले गए। अब यहाँ इस्माइलियों की भारी बहुसंख्या है। नजरान शहर में आधुनिक इस्माइली धर्म में की एक मुख्य 'सुलयमानी' नामक शाखा की मुख्य मस्जिद है, जिसे 'मंसूरा मस्जिद' कहा जाता है। नजरान प्रान्त के अधिकतर इस्माइली दो क़बीलों के हैं - याम और हमादान। हालांकि अधिकतर याम इस्माइली शिया हैं फिर भी याम क़बीले में कुछ सुन्नी भी मिलते हैं।[6]
१९३० के दशक तक यहाँ सउदी नियंत्रण पक्का नहीं था। यमन और सउदी अरब की सीमा निर्धारित नहीं थी और उनमें आपसी विवाद थे। यमनी राजा याहया सउदी मामलों में दख़ल करता था और उसने सउदी परिवार के दुश्मनों को भी सहायता पहुँचाई थी। फरवरी १९३४ में सउदी-यमन बातचीत हुई लेकिन समझौता न हो सका। सउदियों ने नजरान पर सउदी अधिकार मानने की, यमन के पहाड़ी इलाक़ों से हट जाने की और अपने दुश्मनों को यमन में शरण न मिलने की शर्ते रखीं। यमन नहीं माना और २० मार्च १९३४ में सउदियों ने यमन पर धावा बोला। सउदी फ़ौजें अधिक प्रशिक्षित थी और उनके पास आधुनिक ब्रिटिश हथियार थे। यमन नजरान और असीर क्षेत्रों पर नियंत्रण खो बैठा और सउदी तिहामाह तटीय क्षेत्र में दूर दक्षिण तक जा पहुँचे जहाँ उन्होंने अल-हुदैदाह की बंदरगाह हथिया ली। उस समय की विश्व शक्तियों (ब्रिटेन, इटली, फ़्रांस) को लगा कि स्थानीय संतुलन बिगड़ रहा है। वे नहीं चाहते थे कि एक शक्ति बहुत बड़ी बनकर उभर आये और आगे चलकर पास के अफ़्रीका क्षेत्र में उनके उपनिवेशों को छीनने की कोशिश करे। उन्होंने अपनी युद्ध नौकाएँ अल-हुदैदाह पहुँचा दी। सउदियों ने जंग रोक दी लेकिन अब वे नजरान और असीर के मालिक बन चुके थे।[9]
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