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विश्व के 7 महाद्वीपो में से एक विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
अफ़्रीका एशिया के बाद विश्व का सबसे बड़ा महाद्वीप है। यह 37°14' उत्तरी अक्षांश से 34°50' दक्षिणी अक्षांश एवं 17°33' पश्चिमी देशांतर(देशान्तर) से 51°23' पूर्वी देशांतर (देशान्तर) के मध्य स्थित है।[2] अफ्रीका के उत्तर में भूमध्यसागर एवं यूरोप महाद्वीप, पश्चिम में अंध महासागर, दक्षिण में दक्षिण महासागर तथा पूर्व में अरब सागर एवं हिंद महासागर(हिन्द महासागर) हैं। पूर्व में स्वेज भूडमरूमध्य इसे एशिया से जोड़ता है तथा स्वेज नहर इसे एशिया से अलग करती है। जिब्राल्टर जलडमरूमध्य इसे उत्तर में यूरोप महाद्वीप से अलग करता है। इस महाद्वीप में विशाल मरुस्थल, अत्यन्त घने वन, विस्तृत घास के मैदान, बड़ी-बड़ी नदियाँ व झीलें तथा विचित्र जंगली जानवर हैं। मुख्य मध्याह्न रेखा (0°) अफ्रीका महाद्वीप के घाना देश की राजधानी अक्रा शहर से होकर गुजरती है। यहाँ सेरेनगेती और क्रुजर राष्ट्रीय उद्यान है तो जलप्रपात और वर्षावन भी हैं। एक ओर सहारा मरुस्थल है तो दूसरी ओर किलिमंजारो पर्वत भी है और सुषुप्त ज्वालामुखी भी है। युगांडा, तंजानिया और केन्या की सीमा पर स्थित विक्टोरिया झील अफ्रीका की सबसे बड़ी तथा सम्पूर्ण पृथ्वी पर मीठे पानी की दूसरी सबसे बड़ी झीलहै। यह झील दुनिया की सबसे लम्बी नदी नील के पानी का स्रोत भी है।
क्षेत्रफल | 3,02,21,532 किमी2 (1,16,68,598.7 वर्ग मील) |
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जनसंख्या | 92,20,11,000[1] |
जनसंख्या घनत्व | 30.51/किमी2 (लगभग 70/वर्ग मील) |
देश | 54 (देशों की सूची) |
अधीनस्थ क्षेत्र |
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भाषा (एँ) | भाषाओं की सूची |
समय क्षेत्र | यूटीसी−०१:०० से यूटीसी+०४:०० |
बड़े नगर | य4 तू 6 |
कुछ इतिहासकारों का मानना है कि इसी महाद्वीप में सबसे पहले मानव का जन्म व विकास हुआ और यहीं से जाकर वे दूसरे महाद्वीपों में बसे, इसलिए इसे मानव सभ्यता की जन्मभूमि माना जाता है। यहाँ विश्व की दो प्राचीन सभ्यताओं (मिस्र एवं कार्थेज) का भी विकास हुआ था। अफ्रीका के बहुत से देश द्वितीय विश्व युद्ध के बाद स्वतंत्र हुए हैं एवं सभी अपने आर्थिक विकास में लगे हुए हैं। अफ़्रीका अपनी बहुरंगी संस्कृति और जमीन से जुड़े साहित्य के कारण भी विश्व में जाना जाता है।
अफ्रीका महाद्वीप के नाम के पीछे कई कहानियाँ एवं धारणाएँ हैं। 1981 में प्रकाशित एक शोध के अनुसार अफ्रीका शब्द की उत्पत्ति बरबर भाषा के शब्द इफ्री या इफ्रान से हुई है जिसका अर्थ गुफा होता है जो गुफा में रहने वाली जातियों के लिए प्रयोग किया जाता था।[3].एक और धारणा के अनुसार अफ्री उन लोगों को कहा जाता था जो उत्तरी अफ्रीका में प्राचीन नगर कार्थेज के निकट रहा करते थे। कार्थेज में प्रचलित फोनेसियन भाषा के अनुसार अफ्री शब्द का अर्थ है धूल। कालान्तर में कार्थेज रोमन साम्राज्य के अधीन हो गया और लोकप्रिय रोमन प्रत्यय -का (-ca जो किसी नगर या देश को जताने के लिए उपयोग में लिया जाता है) को अफ्री के साथ जोड़ कर अफ्रीका शब्द की उत्पत्ति हुई।[4]
अफ्रीका के इतिहास को मानव विकास का इतिहास भी कहा जा सकता है। अफ़्रीका में 17 लाख 50 हजार वर्ष पहले पाए जाने वाले आदि मानव का नामकरण होमो इरेक्टस अर्थात् उर्ध्व मेरूदण्डी मानव हुआ है।[5] होमो सेपियेंस या प्रथम आधुनिक मानव का आविर्भाव लगभग 30 से 40 हजार वर्ष पहले हुआ।[6] लिखित इतिहास में सबसे पहले वर्णन मिस्र की सभ्यता का मिलता है जो नील नदी की घाटी में ईसा से 4000 वर्ष पूर्व प्रारम्भ हुई। इस सभ्यता के बाद विभिन्न सभ्यताएँ नील नदी की घाटी के निकट आरम्भ हुई और सभी दिशाओं में फैली। आरम्भिक काल से ही इन सभ्यताओं ने उत्तर एवं पूर्व की यूरोपीय एवं एशियाई सभ्यताओं एवं जातियों से परस्पर सम्बन्ध बनाने आरम्भ किये जिसके फलस्वरूप महाद्वीप नयी संस्कृति और धर्म से अवगत हुआ। ईसा से एक शताब्दी पूर्व तक रोमन साम्राज्य ने उत्तरी अफ्रीका में अपने उपनिवेश बना लिए थे। ईसाई धर्म बाद में इसी रास्ते से होकर अफ्रीका पहुँचा। 7 वीं शताब्दी पश्चात इस्लाम धर्म अफ्रीका में व्यापक रूप से फैलना शुरू किया और नयी संस्कृतियों जैसे पूर्वी अफ्रीका की स्वाहिली और उप-सहारा क्षेत्र के सोंघाई साम्राज्य को जन्म दिया। इस्लाम और इसाई धर्म के प्रचार-प्रसार से दक्षिणी अफ़्रीका के कुछ साम्राज्य जैसे घाना, ओयो और बेनिन अछूते रहे एवं उन्होंने अपनी एक विशिष्ट पहचान बनायी। इस्लाम के प्रचार के साथ ही 'अरब दास व्यापार' की भी शुरुआत हुई जिसने यूरोपीय देशों को अफ्रीका की तरफ आकर्षित किया और अफ्रीका को एक यूरोपीय उपनिवेश बनाने का मार्ग प्रशस्त किया।
अफ्रीका ऊँचे पठारों का महाद्वीप है,[7] इसका निर्माण अत्यन्त प्राचीन एवं कठोर चट्टानों से हुआ है। जर्मनी के प्रसिद्ध जलवायुवेत्ता तथा भूशास्त्रवेत्ता अल्फ्रेड वेगनर ने पूर्व जलवायु शास्त्र, पूर्व वनस्पति शास्त्र, भूशास्त्र तथा भूगर्भशास्त्र के प्रमाणों के आधार पर यह प्रमाणित किया कि एक अरब वर्ष पहलें समस्त स्थल भाग एक स्थल भाग के रूप में संलग्न था एवं इस स्थलपिण्ड का नामकरण पैंजिया किया।[8] कार्बन युग में पैंजिया के दो टुकड़े हो गये जिनमें से एक उत्तर तथा दूसरा दक्षिण में चला गया। पैंजिया का उत्तरी भाग लारेशिया तथा दक्षिणी भाग गोंडवाना लैंड को प्रदर्शित करता था।[9] अफ्रीका महादेश का धरातल प्राचीन गोंडवाना लैंड का ही एक भाग है। बड़े पठारों के बीच अनेक छोटे-छोटे पठार विभिन्न ढाल वाले हैं। इसके उत्तर में विश्व का बृहत्तम शुष्क मरुस्थल सहारा स्थित है।[10] इसके नदी बेसिनों का मानव सभ्यता के विकास में उल्लेखनीय योगदान रहा है, जिसमें नील नदी बेसिन का विशेष स्थान है। समुद्रतटीय मैदानों को छोड़कर किसी भी भाग की ऊँचाई 324 मीटर से कम नहीं है। अफ्रीका के उत्तर-पश्चिम में एटलस पर्वत की श्रेणियाँ हैं, जो यूरोप के मोड़दार पर्वत आल्प्स पर्वतमाला की ही एक शाखा है। ये पर्वत दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व दिशा में फैले हुए हैं और उत्तर की अपेक्षा दक्षिण में अधिक ऊँचे हैं। इसकी सबसे ऊँची चोटी जेबेल टूबकल है जिसकी ऊँचाई 4,167 मीटर है। यहाँ खारे पानी की कई झीलें हैं जिन्हें शॉट कहते हैं। मध्य का निम्न पठार भूमध्य रेखा के उत्तर पश्चिम में अन्ध महासागर तट से पूर्व में नील नदी की घाटी तक फैला हुआ है। इसकी ऊँचाई 300 से 600 मीटर है। यह एक पठार केवल मरुस्थल है जो सहारा तथा लीबिया के नाम से प्रसिद्ध है। यह प्राचीन पठार नाइजर, कांगो (जायरे), बहर एल गजल तथा चाड नदियों की घाटियों द्वारा कट-फट गया है। इस पठार के मध्य भाग में अहगर एवं टिबेस्टी के उच्च भाग हैं जबकि पूर्वी भाग में कैमरून, निम्बा एवं फूटा जालौन के उच्च भाग हैं। कैमरून के पठार पर स्थित कैमरून (4,069 मीटर) पश्चिमी अफ्रीका की सबसे ऊँचा चोटी है। कैमरून गिनि खाड़ी के समानान्तर स्थित एक शांत ज्वालामुखी है। पठार के पूर्वी किनारे पर ड्रेकेन्सबर्ग पर्वत है जो समुद्र तट की ओर एक दीवार की भाँति खड़ा है। दक्षिणी-पश्चिमी भाग में कालाहारी का मरूस्थल है।
पूर्व एवं दक्षिण का उच्च पठार भूमध्य रेखा के पूर्व तथा दक्षिण में स्थित है तथा अपेक्षाकृत अधिक ऊँचा है। प्राचीन समय में यह पठार दक्षिण भारत के पठार से मिला था। बाद में बीच की भूमि के धँसने के कारण यह हिन्द महासागर द्वारा अलग हो गया। इस पठार का एक भाग अबीसिनिया में लाल सागर के तटीय भाग से होकर मिस्र देश तक पहुँचता है। इसमें इथोपिया, पूर्वी अफ्रीका एवं दक्षिणी अफ्रीका के पठार सम्मिलित हैं। अफ्रीका के उत्तर-पश्चिम में इथोपिया का पठार है। 2,400 मीटर ऊँचे इस पठार का निर्माण प्राचीनकालीन ज्वालामुखी के उद्गार से निकले हुए लावा हुआ है।[11] नील नदी की कई सहायक नदियों ने इस पठार को काट कर घाटियाँ बना दी हैं। इथोपिया की पर्वतीय गाँठ से कई उच्च श्रेणियाँ निकलकर पूर्वी अफ्रीका के झील प्रदेश से होती हुई दक्षिण की ओर जाती हैं। इथोपिया की उच्च भूमि के दक्षिण में पूर्वी अफ्रीका की उच्च भूमि है। इस पठार का निर्माण भी ज्वालामुखी की क्रिया द्वारा हुआ है। इस श्रेणी में किलिमांजारो (5,895 मीटर), रोबेनजारो (5,180 मीटर) और केनिया (5,490 मीटर) की बर्फीली चोटियाँ भूमध्यरेखा के समीप पायी जाती हैं। ये तीनों ज्वालामुखी पर्वत हैं। किलिमंजारो अफ्रीका की सबसे ऊँचा पर्वत एवं चोटी है।
अफ्रीका महाद्वीप की एक मुख्य भौतिक विशेषता पृथ्वी की आन्तरिक हलचलों के कारण अफ्रीका के पठार के पूर्वी भाग में भ्रंश घाटियों की उपस्थिति है। यह दरार घाटी पूर्वी अफ्रीका की महान दरार घाटी के नाम से प्रसिद्ध है तथा उत्तर से दक्षिण फैली है। यह विश्व की सबसे लम्बी दरार घाटी है तथा 4,800 किलोमीटर लम्बी है। अफ्रीका की महान दरार घाटी की दो शाखाएँ हैं- पूर्वी एवं पश्चिमी। पूर्वी शाखा दक्षिण में मलावी झील से रूडाल्फ झील तथा लाल सागर होती हुई सहारा तक फैली हुई है तथा पश्चिमी शाखा मलावी झील से न्यासा झील एवं टांगानिका झील होती हुई एलबर्ट झील तक चली गयी है। भ्रंश घाटियों में अनेक गहरी झीलें हैं। रुकवा, कियू, एडवर्ड, अलबर्ट, टाना व न्यासा झीलें भ्रंश घाटी में स्थित हैं। अफ्रीका महाद्वीप के चारों ओर संकरे तटीय मैदान हैं जिनकी ऊँचाई 180 मीटर से भी कम है। भूमध्य सागर एवं अन्ध महासागर के तटों के समीप अपेक्षाकृत चौड़े मैदान हैं। अफ्रीका महाद्वीप में तटवर्ती प्रदेश सीमित एवं अनुपयोगी हैं क्योंकि अधिकांश भागों में पठारी कगार तट तक आ गये हैं और शेष में तट में दलदली एवं प्रवाल भित्ति से प्रभावित हैं। मॉरीतानिया और सेनेगल का तटवर्ती प्रदेश काफी विस्तृत है, गिनी की खाड़ी का तट दलदली एवं अनूप झीलों से प्रभावित है। जगह-जगह पर रेतीले टीले हैं तथा अच्छे पोताश्रयों का अभाव है। पश्चिमी अफ्रीका का तट की सामान्यतः गिनी तट के समान है जिसमें लैगून एवं दलदलों की अधिकता है। दक्षिणी अफ्रीका में पठार एवं तट में बहुत ही कम अन्तर है। पूर्वी अफ्रीका में प्रवालभित्तियों की अधिकता है। अफ्रीका में निम्न मैदानों का अभाव है। केवल कांगो, जेम्बेजी, ओरेंज, नाइजर तथा नील नदियों के सँकरे बेसिन हैं।
अफ़्रीका की अधिकांश नदियाँ मध्य अफ़्रीका के उच्च पठारी भाग से निकलती हैं यहाँ खूब वर्षा होती है। अफ़्रीका के उच्च पठार इस महाद्वीप में जल विभाजक का कार्य करते हैं। नील, नाइजर, जेम्बेजी, कांगो, लिम्पोपो एवं ओरंज इस महाद्वीप की बड़ी नदियाँ हैं। महाद्वीप के आधे से अधिक भाग इन्हीं नदियों के प्रवाह क्षेत्र के अन्तर्गत हैं। शेष का अधिकांश आन्तरिक प्रवाह-क्षेत्र में पड़ता है; जैसे- चाड झील का क्षेत्र, उत्तरी सहारा-क्षेत्र, कालाहारी-क्षेत्र इत्यादि। पठारी भाग से मैदानी भाग में उतरते समय ये नदियाँ जलप्रपात एवं क्षिप्रिका (द्रुतवाह) बनाती हैं अतः इनमें अपार सम्भावित जलशक्ति है। संसार की सम्भावित जलशक्ति का एक-तिहाई भाग अफ़्रीका में ही आँका गया है। इन नदियों के उल्लेखनीय जलप्रपात विक्टोरिया (जाम्बेजी में), स्टैनली (कांगो में) और लिविंग्स्टोन (कांगो में) हैं। नील, नाइजर, कांगो और जम्बेजी को छोड़कर अधिकांश नदियाँ नाव चलाने योग्य (नौगम्य) नहीं हैं। भूमध्यसागरीय जल अपवाह प्रणाली अफ़्रीका के उत्तरी भाग में विस्तृत है। नील इस क्षेत्र की प्रमुख नदी है जो अफ्रीका की सबसे बड़ी झील विक्टोरिया से निकलकर विस्तृत सहारा मरुस्थल के पूर्वी भाग को पार करती हुई उत्तर में भूमध्यसागर में उतर पड़ती है। सफेद नील और नीली नील दो प्रमुख धाराओं से नील नदी निर्मित होती है। सफेद और नीली नील सूडान के खारतूम के पास मिलती है।[12] इसका स्रोत वर्षाबहुल भूमध्यरेखीय क्षेत्र है, अतः इसमें जल का अभाव नहीं होता। इस नदी ने सूडान और मिस्र की मरुभूमि को अपने शीतल जल से सींचकर हरा-भरा बना दिया है। इसीलिए मिस्र को नील नदी का बरदान कहा जाता है।[उद्धरण चाहिए] नीली नील, असबास और सोबात इसकी सहायक नदियां हैं।
कांगो, नाइजर, सेनेगल, किनाने और ओरेंज अटलांटिक महासागरीय जल अपवाह प्रणाली की प्रमुख नदियां हैं। कांगो अफ़्रीका की दूसरी सबसे बड़ी नदी है। इसे ज़ायरे नदी भी कहा जाता है। यह नदी टैगानिक झील से निकलती है। 4,376 किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद यह अटलांटिक महासागर में गिरती है। नाइजर गिनी तट की पहाड़ियों से निकलकर 4,100 किलोमीटर की यात्रा करने के बाद अटलांटिक महासागर में अपनी यात्रा समाप्त करती है। इसमें पानी की कमी रहती है क्योंकि यह शुष्क क्षेत्र से निकलती है तथा शुष्क क्षेत्र से ही बहती है। इसका प्रवाह मार्ग धनुषाकार है। नाइजर अफ़्रीका की तीसरी सबसे बड़ी नदी है। ओरेंज ड्रेकिन्सवर्ग पर्वत से निकलकर पश्चिम की ओर बहती है। यह गर्मियों में सूख जाती है। हिन्द महासागरीय जल अपवाह प्रणाली अफ़्रीका के पूर्वी भाग में विस्तृत है। इस क्षेत्र की प्रमुख नदियाँ हैं- जैम्बेजी, जूना, रुबमा, लिम्पोपो तथा शिबेली। जैम्बेजी (2,655 किलोमीटर) इस क्षेत्र की सबसे प्रमुख नदी है। यह दक्षिणी अफ़्रीका के मध्य पठारी भाग से निकलकर पूर्व की ओर बहते हुए हिन्द महासागर में गिरती है। जैम्बेजी अफ़्रीका की चौथी सबसे लम्बी नदी है। इस नदी पर अनेक जल-प्रपात हैं अतः इस नदी का कुछ भाग ही नौगम्य है। विश्वप्रसिद्ध विक्टोरिया जल-प्रपात इसी नदी पर है। लिम्पोपो नदी भी दक्षिण अफ़्रीका में पश्चिम से पूर्व बहती हुई हिन्द महासागर में गिरती है। इसे घड़ियाल नदी भी कहते हैं। चाड झील के पास का क्षेत्र आंतरिक जल अपवाह का क्षेत्र माना जाता है क्योंकि इस क्षेत्र की नदियाँ झीलों में गिरती हैं। यह क्षेत्र सहारा के मरुस्थल में स्थित होने के बाद भी शुष्क नहीं है।
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भूमध्य रेखा अफ़्रीका महाद्वीप के लगभग मध्य से होकर गुजरती है। इसके उत्तर में कर्क रेखा तथा दक्षिण में मकर रेखा हैं। इस प्रकार अफ़्रीका महाद्वीप का अधिकांश भाग उष्ण कटिबन्ध में पड़ता है। उत्तर एवं दक्षिण के बहुत कम भाग समशीतोष्ण कटिबन्ध में पड़ते हैं। अतः यहाँ वर्ष भर ऊँचा तापक्रम रहता है। अफ़्रीका में ऊँचे पठार एवं पर्वतीय भागों में साधारण तापक्रम रहता है। अफ़्रीका एक विशाल महाद्वीप है अतः इस महाद्वीप के मध्यवर्ती भाग में जलवायु कुछ विषम है। अफ़्रीका महाद्वीप का अधिकांश भाग पूर्वी या व्यापारिक हवाओं के प्रभाव में रहता है जिनसे महाद्वीप के पूर्वी भाग में तो वर्षा होती है परन्तु पश्चिमी भाग में आते आते ये हवाएँ शुष्क हो जाती हैं और उनसे वहाँ वर्षा नहीं होती। अफ़्रीका महाद्वीप के पश्चिमी तट पर उत्तर में कैनेरी की शीतल धारा तथा दक्षिण में बेंगुला की शीतल धारा बहती है जिनके प्रभाव से अफ़्रीका के पश्चिमी भागों का तापक्रम कम रहता है। इन धाराओं के ऊपर बहने वाली पवनें अधिक नमी नहीं ग्रहण कर पातीं तथा वहाँ वर्षा नहीं होने से मरुस्थल मिलते हैं। इसके विपरीत पूर्वी तट पर उत्तर में मानसून की उष्ण धारा तथा दक्षिण में मोजम्बिक की उष्ण धारा के कारण पूर्वी भाग की जलवायु अपेक्षाकृत गर्म एवं नम होती है।[13]
भूमध्य रेखा के समीप उसके दोनों ओर 5° उत्तरी एवं 5° दक्षिणी अक्षांशों के मध्य मुख्यतः कांगो नदी (ज़ायर) के बेसिन एवं गिनी तट में भूमध्यरेखीय जलवायु पाई जाती है। भूमध्य रेखा की समीपता के कारण यहाँ वर्ष भर गर्म व नम जलवायु पाई जाती है। वर्ष भर प्रतिदिन दिन के तीसरे पहर बादलों की गरज एवं बिजली की चमक के साथ मूसलाधार संवहनीय वर्षा होती है। इसे चार बजे वाली वर्षा भी कहते हैं। वार्षिक वर्षा का औसत 200 से 250 सेंटीमीटर है। सवाना या सूडान तुल्य जलवायु प्रदेश भूमध्यरेखीय प्रदेश के दोनों ओर उष्ण मरुस्थलीय प्रदेशों के बीच 5° से 30° अक्षांशों के बीच महाद्वीप के मध्य एवं पश्चिमी भाग में पाई जाती है। इस भाग में गर्मी की ऋतु लम्बी एवं नम होती है परन्तु जाड़े में साधारण ठंड पड़ती है। वर्षा केवल ग्रीष्म ऋतु में होती है। वर्षा साधारण (लगभग 75 सेंटीमीटर) ही होती है। जाड़े की ऋतु शुष्क होती है। अफ़्रीका के उत्तर एवं दक्षिण दोनों ओर विस्तृत उष्ण मरुस्थलीय जलवायु प्रदेश पाए जाते हैं। यहाँ वर्ष भर वर्षा होती ही नहीं है। यदि कभी होती भी है तो नाम मात्र की ही होती है। उत्तरी मरुस्थल का नाम सहारा मरुस्थल है जो संसार का सबसे बड़ा मरुस्थल है। दक्षिण के मरुस्थल का नाम कालाहारी है। गर्मी में कड़ाके की गर्मी पड़ती है परन्तु जाड़े में साधारण ठंड पड़ती है। विश्व के सबसे ऊँचे तापक्रम इन्हीं मरुस्थलों में अंकित किये गए हैं। वार्षिक एवं दैनिक तापान्तर अधिक होते हैं। वार्षिक वर्षा का औसत 25 सेंटीमीटर या उससे भी कम है। मध्य अफ़्रीका के पूर्वी भाग में मानसून जलवायु पाई जाती है जहाँ केवल गर्मी में वर्षा होती है और जाड़े की ऋतु शुष्क होती है। यहाँ गर्मी में अधिक गर्मी तथा जाड़े में साधारण जाड़ा पड़ता है। अफ़्रीका के उत्तर एवं दक्षिणी-पश्चिमी तटीय भागों में भूमध्यसागरीय जलवायु पाई जाती है। इस जलवायु की सबसे मुख्य विशेषता यह है कि यहाँ पछुआ हवाओं से केवल जाड़े में वर्षा होती है और गर्मी की ऋतु शुष्क रहती है। इस प्रदेश में न तो गर्मी में अधिक गर्मी पड़ती है और न तो जाड़े में अधिक जाड़ा हीं। वर्ष भर-मुख्यतः गर्मी में चमकीली धूप मिलती है। दक्षिण अफ़्रीका के पठारी भाग में उष्ण शीतोष्ण महाद्वीपीय जलवायु पाई जाती है। समुद्र से दूर होने से यहाँ की जलवायु विषम तथा अत्यन्त शुष्क है। अफ़्रीका के दक्षिणी एवं पूर्वी उच्च भागों में अधिक ऊँचाई के कारण पर्वतीय जलवायु पाई जाती है। यहाँ तापक्रम काफी कम रहता है तथा वर्षा अत्यन्त कम होती है।
प्राकृतिक वनस्पति जलवायु का अनुसरण करती है। अफ़्रीका में जलवायु की विभिन्नता के आधार पर विभिन्न प्रकार की प्राकृतिक वनस्पति पायी जाती है। भूममध्य-रेखीय क्षेत्र में अधिक गर्मी एवं वर्षा के कारण घने वन पाये जाते हैं। बड़े-बड़े वृक्षों के बीच छोटे वृक्ष, लताएँ तथा झाड़ियाँ पायी जाती हैं। वृक्ष पास-पास उगते हैं। वृक्षों की ऊपरी टहनियां इस प्रकार फैल जाती हैं कि सूर्य का प्रकाश भी छनकर भूमि पर नहीं पहुँच पाता और अंधकार छाया रहता है। वर्ष भर वर्षा होने के कारण वृक्ष किसी खास समय में अपनी पत्तियाँ नहीं गिराते हैं। इन वृक्षों की पत्तियाँ चौड़ी होती हैं, अतः इन वनों को चौड़ी पत्ती वाले सदाबहार वन कहा जाता है। इन वनों के प्रमुख वृक्षों में महोगनी, रबड़, ताड़, आबनूस, गटापार्चा, बांस, सिनकोना और रोजवुड हैं। इन घने जंगलों में विभिन्न प्रकार के बन्दर, हाथी, दरियाई घोड़ा (हिप्पो), चिम्पैंजी, गोरिल्ला, चीता, भैंसा, साँप, अजगर आदि जंगली जानवर पाए जाते हैं। यहाँ सीसी (TseTse) नामक मक्खी पाई जाती है। नदियों में मगर पाये जाते हैं। यहाँ पर चमकीले रंग की विभिन्न प्रकर की चिड़ियां पायी जाती हैं। भूमध्यरेखीय वनों के दोनों ओर, जहाँ वर्षा काफी कम होती है, पेड़ नहीं उग सकते। वहाँ मुख्यतः लम्बी-लम्बी (2 से 4 मीटर ऊँची) घास उगती है। इन उष्ण कटिबन्धीय घास के मैदानों को सवाना कहते हैं। बीच-बीच में कहीं-कहीं पत्तों से रहित कुछ पेड़ भी पाए जाते हैं। यह प्रदेश विभिन्न प्रकार के तृणभक्षी पशुओं का घर है। इन पशुओं में हिरण, बारहसिंगा, जेब्रा, जिराफ़ तथा हाथी मुख्य हैं। जिराफ़ विश्व का सबसे ऊँचा जानवर माना जाता है। यह पशु 24 घंटे में औसतन दो घंटे से भी कम समय सोता है।[14] यहाँ कुछ हिंसक पशु भी रहते हैं जो इन तृणभक्षी पशुओं का शिकार करते हैं। इनमें शेर, चीता एवं गीदड़ मुख्य हैं। दक्षिणी अफ़्रीका के शेर बहुत लम्बे होते हैं।
सवाना घास के मैदान के दोनों ओर जहाँ की जलवायु अत्यन्त गर्म व शुष्क है, वहाँ उष्ण मरुस्थलीय वनस्पति पाई जाती है। यहाँ केवल कँटीली झाड़ियाँ हीं उगती हैं। मरुद्यानों में खजूर के पेड़ पाए जाते हैं। यहाँ का मुख्य पशु ऊँट है जिसे मरुस्थल का जहाज कहते हैं। यहाँ बड़े आकार तथा घोड़े के समान तेज दौड़ने वाले शुतुरमुर्ग नामक पक्षी पाए जाते हैं। अफ़्रीका के उत्तरी एवं दक्षिणी-पश्चिमी तटीय भूमध्यसागरीय क्षेत्रों में जाड़े में वर्षा होती है एवं यहाँ चौड़ी पत्ती वाले सदाबहार वृक्ष पाए जाते हैं। यहाँ जैतून, कार्क, लारेल एवं ओक के वृक्ष पाए जाते हैं। यहाँ की जलवायु फलों की खेती के लिए काफी उपयुक्त है। यहाँ नींबू, सन्तरा, अंगूर, सेव, अंजीर आदि रस वाले फलों की खेती की जाती है। यहाँ जंगली पशुओं का अभाव है। प्रायः पालतू पशु ही पाए जाते हैं। अफ़्रीका के दक्षिणी-पूर्वी भागों में भी वर्षा की कमी के कारण शुष्क घास के मैदान पाए जाते हैं। यहाँ पर उगने वाली घासें छोटी-छोटी मुलायम तथा गुच्छेदार होती हैं, इन घास के मैदानों को वेल्ड कहते हैं। घास के इन मैदानों में वृक्षों का एकदम अभाव होता है एवं यहाँ पशुचारण का कार्य किया जाता है। अफ़्रीका के दक्षिणी एवं पूर्वी भागों में, जहाँ अधिक ऊँचाई के कारण हिमपात होता है, नुकीली पत्ती वाले सदाबहार वन पाए जाते हैं। इस कोणधारी वन के प्रमुख वृक्ष सीडर, पाइन, हेमलाक तथा साइप्रस हैं। इस प्रकार के वन केनिया, इथोपिया एवं तंजानिया के उच्च पर्वतीय भागों में पाये जाते हैं। मेडागास्कर द्वीप पर बोबाब नामक एक विचित्र वृक्ष पाया जाता है जो जमीन के नीचे से नमी खींचकर अपने अन्दर जल का संचय करता है।[15] पतझड़ के वन अफ़्रीका के दक्षिण पूर्व में उत्तरी मोजम्बिक, तंजानिया तथा दक्षिणी केनिया में पायी जाती है। वर्षा की विभिन्नता के कारण विभिन्न प्रकार के बिखरे वन इस क्षेत्र में मिलते हैं। इन वनों के प्रमुख वृक्ष सागौन, बांस, क्वीब्राको एवं साल जाति के हैं।
प्राकृतिक संसाधनों से परिपूर्ण होते हुए भी अफ्रीका विश्व का सबसे दरिद्र और सबसे अविकसित भू-भाग है। यातायात एवं तकनीकी का विकास न होने के कारण इन संसाधनों का समुचित उपयोग नहीं हो पाया है। महाद्वीप की अधिकांश जनसंख्या आज भी अशिक्षित है, इसी से इस महाद्वीप को अन्ध महादेश भी कहते हैं। औद्योगिक क्रांति के कारण यूरोप वालों को कच्चा माल प्राप्त करने तथा निर्मित माल बेचने के लिए अफ़्रीका की खोज करने की आवश्यकता पड़ी। शीघ्र ही पता चला कि यह हीरा, सोना, ताँबा, एवं यूरेनियम का भण्डार-गृह है अतः इसके संसाधनों का दोहन आरम्भ हुआ। प्रायः सभी अफ़्रीकी देश यूरोपीय शक्तियों द्वारा अपने अधीन कर लिये गए। पारम्परिक उद्योगों को अपार क्षति हुई एवं अफ़्रीका की अर्थ व्यवस्था यूरोप केन्द्रित हो गई। किसानों को यूरोपीय उद्योगों के लिए कच्चा माल उगाने के लिए बाध्य कर दिया गया। घरेलू उद्योगों की अवनति होती गई। जलवायु एवं मिट्टी की भिन्नता के कारण अफ्रीका में भिन्न-भिन्न प्रकार की फसलों की खेती की जाती है। ज्वार-बाजरा, गेहूँ, कैसावा, कपास, मूँगफली, कोको, विभिन्न प्रकार के फल तथा कुछ मसाले जैसे- लौंग आदि अफ्रीका की मुख्य फसलें हैं। उष्णकटिबंध के निम्न भाग की मुख्य उपज चावल है। अफ्रीका का इतिहास भयंकर महामारियों जैसे मलेरिया, एच. आई. वी., सैनिक विद्रोह, जातीय हिंसा आदि घटनाओं से भरा हुआ है ये भी इसकी वर्तमान स्थिति के लिए जिम्मेदार हैं।[16]
सन 2008 के तथ्य[17] | |
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जनसंख्या | 98.7 करोड़ |
क्षेत्रफल | 2.93 करोड़ वर्ग किलोमीटर |
जनसंख्या घनत्व | 85 |
सकल घरेलू उत्पाद (पीपीपी वैल्युएशन, मिलियन अमरीकी डालर) |
26,75,993 |
संयुक्त राष्ट्र द्वारा सन 2003 में प्रकाशित मानव विकास रिपोर्ट में अफ्रीका ने 25 देशों की सूची में सबसे निचला स्थान प्राप्त किया है।[18] सन् 1994 से 2005 तक अफ्रीका की अर्थव्यवस्था में सुधार आया और वर्ष 2005 के लिए यह औसतन 5 प्रतिशत रही। कुछ देश जैसे अंगोला, सूडान और ईक्वीटोरियल गिनी जिन्होंने अपने पेट्रोलियम भंडारों अथवा पेट्रोलियम वितरण प्रणाली का विस्तार किया ने औसत से अधिक विकास दर दर्ज की। विगत कुछ वर्षों में चीन ने अफ्रीकी देशों में काफी निवेश किया है। सन 2007 में चीनी उपक्रमों ने अफ्रीकी देशों में कुल 1 बिलियन डॉलर का निवेश किया।[19] दक्षिण अफ़्रीका भारत की तरह तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में गिना जाता है पर यहाँ भी ग़रीबी, शिक्षा का अभाव और एचआईवी एड्स जैसी समस्याएँ हैं।[20] इस सबके बावजूद अफ्रीका अपनी अमूल्य प्राकृतिक संपदा, पशु-पक्षियों की विविधता और विकसित होते नए नगरों के कारण पर्यटन का प्रमुख आकर्षण बना हुआ है।[21] फोटोग्राफ़ी तथा जंगली पशुओं के शौकीनों का यह स्वर्ग है।[22] पूरी दुनिया से दक्षिण अफ्रीका जाने वाले पर्यटकों में 20 प्रतिशत से अधिक भारत से आते हैं। यहाँ से भारत जाने वालों की संख्या भी लगभग बराबर ही है। बॉलीवुड के निर्माताओं को भी जोहान्सबर्ग, केपटाउन और डरबन का सौंदर्य काफी रास आ रहा है। गांधी और क्रिकेट ऐसे दो बिंदु हैं, जो दोनों देशों को आपस में जोड़ते हैं।[23]
अफ़्रीका को संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रयोग की जा रही भौगोलिक उपक्षेत्रों की योजना के अनुसार वर्गीकृत किया गया है।
उत्तरी अफ्रीका में सात प्रमुख देश हैं इसमें अल्जीरिया की राजधानी अल्जीयर्स, मिस्र की काहिरा, लीबिया की त्रिपोली, मोरक्को की रबात, सूडान की खार्तूम, ट्यूनीशिया की ट्यूनिस और पश्चिमी सहारा की राजधानी एल आइउन है।
पूर्वी अफ्रीका सबसे बड़ा भाग है और उसमें १९ देश हैं। इसमें बुरुन्डी की राजधानी बुजुम्बुरा, कोमोरोस की मोरोनी, जिबूती की जिबूती, ईरीट्रिया की अस्मारा, इथियोपिया की अदिस अबाबा, केन्या की नैरोबी, मैडागास्कर की एंटानानारिवो, मालावी की लिलोंगवेल, मॉरिशस की पोर्ट लुइस, मायोट्ट की मामोद्ज़ोउ, मोस़ाम्बीक की मापुटो, रीयूनियन की सेंट-डेनिस, रीयूनियन, रवांडा की किगाली, सेशाइल्स की विक्टोरिया, सोमालिया की मोगादिशु, तंजानिया की डोडोमा, युगांडा की कम्पाला, जांबिया की लुसाका तथा जिम्बाब्वे की हरारे है।
मध्य अफ्रीका में नौ देश में हैं जिनमें अंगोला की राजधानी लुआंडा, कैमेरून की याओऊंडे, मध्य अफ्रीकन गणराज्य की बांगुई, चाड की एन जमेना, कांगो की ब्राज़िविले, कांगो जनतांत्रिक गणराज्य की किनशसा, इक्वेटोरियल गिनी की मालाबो, गैबोन की लिब्रेविले तथा साओ टोमे एवं पिंसिपे की साओ टोमे है।
दक्षिणी अफ्रीका पाँच देशों से मिलकर गठित है इसमें बोत्स्वाना की राजधानी गैबोरोन, लेसोथो की मसेरू, नामीबिया की विंडहोएक, स्वाजीलैंड की मबैब्ने तथा दक्षिण अफ्रीका की ब्लोयम्फोन्टेन, केपटाउन एवं प्रिटोरिया है।
पश्चिमी अफ्रीका में सत्रह देश हैं इसमें बेनिन की राजधानी पोर्टो-नोवो, बुर्कीना फासो की ऊगादोगो, केप वेर्दे की प्रेइया, कोटे डी आइवोर की अबीदजन, गैम्बिया की बान्जुल, घाना की अक्रा, गीनिया की कोनैक्री, गीनिया-बिसाउ की बिसाउ, लाइबेरिया की मोनरोविया, माली की बमाको, मौरिशियाना की नौआक्चोट्ट, नाइजर की नियामे, नाइजीरिया की अबुजा, सेंट हेलेना की जेम्सटाउन, सेनेगल की डकार, सियरा लियोन की फ्रीटाउन तथा टोगो की लोमे है।
अफ्रीका की जनसंख्या में पिछले ४० वर्षो में काफी वृद्धि हुई है जिस कारण से जनसंख्या का बड़ा प्रतिशत २५ वर्ष से कम आयु का है।[24] अफ़्रीका में सबसे अधिक जनसंख्या नील नदी की घाटी, भूमध्यसागरीय तट, कीनिया एवं अबीसीनिया के पठार, पश्चिमी सूडान, गिनी तट पर एवं सुदूर दक्षिण में दक्षिणी अफ़्रीका संघ के पूर्वी व दक्षिणी पूर्व तटीय भाग में मिलती है। सबसे अधिक घनत्व नील की निचली घाटी व डेल्टा एवं दक्षिणी नाइजीरिया में ५०० व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर से भी अधिक मिलता है। शेष घने आबाद उपर्युक्त प्रदेशों का घनत्व ५० से १५० व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर के मध्य पाया जाता है।[25] दक्षिणी, मध्य एवं पूर्वी अफ्रीका में बांटू भाषा बोलने वालों की अधिकता है। इनके अलावा इन भू-भाग में कई भाषायी अल्पसंख्यक लोग भी रहते है जैसे पूर्वी अफ्रीका के निलोत जनजाति एवं दक्षिणी एवं मध्य अफ्रीका के स्थानीय खोइसान (जिन्हें सेन या बुश्मैन भी कहा जाता है) और पिग्मी जाति के लोग। सेन लोग अन्य अफ्रीकी जातियों से शारीरिक रूप से भिन्न होते हैं और दक्षिणी अफ्रीका के सर्वप्रथम निवासी हैं। पिग्मी लोग मध्य अफ्रीका में बांटू लोगों से पहले से निवास कर रहे हैं। कांगो प्रदेश के मूल निवासी इन पिग्मी लोगों का कद छोटा, नाक चिपटी तथा केश घुँघराले होते हैं।[26]
उत्तरी अफ्रीका के लोगों को दो वर्गों में बांटा जा सकता है : बरबर और अरबी बोलने वाले पश्चिमी भाग के लोग और पूर्व में इथोपियन बोलने वाले। अरब लोग ७वी शताब्दी में अफ्रीका पहुँचे और इस्लाम एवं अरबी भाषा का प्रचार-प्रसार किया। इन के आलावा फोनेसियन, इरानी अलन और यूरोपीय वन्दाल, यूनानी और रोमन लोग भी उत्तरी अफ्रीका में आ कर बस गए। उत्तरी अफ्रीका के अंदरूनी सहारा क्षेत्र में मुख्य रूप से तुअरेग और दूसरी ख़ानाबदोश जातियाँ निवास करती है। यूरोपीय उपनिवेशवाद के दौर में भारतीय उपमहाद्वीप से भी काफी लोग अफ्रीका आये। यह लोग मुख्यतया दक्षिण अफ्रीका और केन्या में बस गए। उपनिवेशवाद दौर के अन्त के पूर्व अफ्रीका के सभी प्रान्तों में श्वेत लोग बहुतायत थे जो द्वितीय विश्व युद्घ के उपरांत धीरे-धीरे अपने देशों को लौट गए। आज श्वेत समुदाय के लोग दक्षिण अफ्रीका, नामीबिया, ज़िम्बाबवे आदि देशों में अल्पसंख्यकों में गिने जाते हैं। दक्षिण अफ्रीका की कुल आबादी का ११ प्रतिशत लोग श्वेत हैं जो कि किसी भी अफ्रीकी देश से अधिक है।[27]
युनेस्को के अनुसार अफ्रीका में २००० से भी ज्यादा भाषाएँ बोली जाती है।[28] अधिकतर भाषाएं अफ्रीकी मूल की है परन्तु यूरोपीय एवं एशियाई प्रभाव भी देखा जा सकता है। अफ्रीकी भाषाओँ को निम्नलिखित समूहों में बांटा जा सकता है।
उपनिवेशवाद के अन्त होते-होते अधिकतर अफ्रीकी देशों ने यूरोपीय भाषाओं को अपना लिया और उन्हें स्थानीय भाषाओं के साथ राष्ट्रीय भाषा का दर्जा दिया। अंग्रेजी एवं फ्रेंच भाषा अफ्रीका में प्रमुखता से बोली जाती है। इनके अलावा अरबी,पुर्तगाली, अफ्रीकान और मलागासी ऐसी भाषाएँ है जो अफ्रीका में बाहर से आकर काफी प्रचलित हुई। अगर हम भाषाओं की गतिशीलता देखें तो अफ्रीका अधिकतम भाषायी विविधता का महाद्वीप माना जा सकता है, क्योंकि यहाँ पर विस्थापन प्रक्रिया की सबसे कम प्रतिशत पाई जाती है (संसार के 50 प्रतिशत के मुकाबले लगभग 20 प्रतिशत)। एक और ख़ास बात यह है कि जबकि विश्व के बाकि हिस्सों में लुप्त होती हुई भाषाओं की जगह यूरोपीय भाषाओं द्वारा ली जा रही है अफ्रीका में दूसरी अफ्रीकी भाषाएँ (स्वाहिली, वोलोफ, हाउसा, फुल, चिचोना) ही कमज़ोर भाषाओं की जगह ले रही हैं।[29]
प्राचीन मिस्र साहित्यिक परंपरा वाली सबसे पहली अफ़्रीकी सभ्यताओं में से एक है। इसका कुछ प्राचीन चित्रलिपीय साहित्य आज भी विद्यमान हैं। विद्वान प्राचीन मिस्री धार्मिक मान्यताओं और समारोहों के विषय में जानने के लिए प्राथमिक सन्दर्भ के रूप में सामान्यत: मिस्री मृत व्यक्ति की पुस्तक (बुक ऑफ़ द डेड) जैसे साहित्य का प्रयोग करते हैं। न्यूबीय साहित्य, यद्यपि स्वीकारा गया है, लेकिन अभी तक उसे ठीक से पढ़ा नहीं जा सका है। इसका प्रारंभिक साहित्य चित्रलिपि में और उसके बाद २३ अक्षरों की एक वर्णमाला लिपि में लिखा गया था और इसे समझना आसान नहीं है। अफ्रीका में वाचिक अथवा मौखिक साहित्य की प्राचीन परंपरा रही है। यह साहित्य गद्य अथवा पद्य में दोनों विधाओं में मिलता है। गद्य प्राय: पौराणिक अथवा ऐतिहासिक है और इसमें चतुर चरित्रों की कहानियाँ सम्मिलित हैं। अफ़्रीका में कथावाचक अपनी कहानियाँ सुनाने के लिए प्रश्नोत्तर तकनीकों का प्रयोग करते हैं। पद्य प्राय: गाया जाने वाला है। इन्हें कई भागों में बाँटा जा सकता है। विस्तृत वर्णनवाले महाकाव्य, व्यावसायिक पद्य, पारंपरिक पद्य तथा शासकों और दूसरे प्रमुख लोगों की प्रशंसा में लिखी गई कविताएँ। प्रशंसा में गायक या भाट जो कभी-कभी "ग्रिओट्स" के रूप में जाने जाते हैं, अपनी कहानियाँ संगीत के साथ सुनाते है। गाए जाने वाले काव्यों में प्रमुख हैं: प्रेम गीत, कार्य गीत, शिशुओं के गीत, सूक्तियों, कहावतें और पहेलियाँ।
उपनिवेश-पूर्व अफ़्रीकी साहित्य देखें तो पश्चिम अफ़्रीका के मौखिक साहित्य में मध्यकालीन माली में रचित सुनडिआटा का महाकाव्य और पुराने घाना साम्राज्य में विकसित डिंगा का पुराना महाकाव्य प्रमुख हैं। इथोपिया में, मौलिक रूप से गे'इज लिपि में लिखा हुआ केब्रा नेगास्ट अथवा राजाओं की पुस्तक महत्त्वपूर्ण साहित्यिक ग्रंथ है। पारंपरिक अफ़्रीकी लोककथा का एक लोकप्रिय रूप "चतुर चरित्र" कथाएँ है, जहाँ एक छोटा जानवर अपनी समझ का प्रयोग बड़े जन्तुओं के साथ मुठभेड़ में बचने के लिए करता है। घाना की अशांती जाति की एक लोककथा में अनांसी नामक एक मकड़ी, नाइजीरिया की योरुबा लोककथा में इजापा नाम का एक कछुआ तथा केन्द्रीय-पूर्वी अफ़्रीकी लोककथा में सुन्गुरा नाम का एक खरगोश इस प्रकार की कथाओं के नायक हैं। लिखित साहित्य में उत्तर अफ़्रीका, पश्चिम अफ़्रीका के साहेल क्षेत्र और स्वाहिली समुद्रतट पर प्रचुर साहित्य मिलता है। केवल टिम्बकटू में ही, ३००,००० से भी अधिक पांडुलिपियाँ विभिन्न पुस्तकालयों और निजी संकलनों में संग्रहीत हैं, जिनमें से अधिकांश अरबी में हैं, परन्तु कुछ मूल भाषाओं पियूल और सोन्घाई में भी लिखी गई हैं। इनमें से अधिकतर प्रसिद्ध टिम्बकटू विश्वविद्यालय में लिखी गई थीं। इनकी विषय वस्तु में विभिन्नता हैं। प्रमुख विषयों में खगोलशास्त्र, कविता, विधि, इतिहास, विश्वास, राजनीति और दर्शन है। स्वाहिली साहित्य सामान्य रूप से, इस्लामी शिक्षा से प्रेरित परन्तु स्थानीय परिस्थियों के अन्तर्गत विकसित किया गया था। स्वाहिली साहित्य के सबसे ख्यातिप्राप्त और आरम्भिक लेखनों में से एक उटेण्डी वा टम्बूका अथवा "टम्बूका की कहानी" का नाम लिया जा सकता है। इस्लामी काल में, उत्तर अफ़्रीकियों के प्रतिनिधि साहित्यकार इब्न खल्दून ने अरबी साहित्य में बहुत प्रसिद्धि अर्जित की थी। मध्यकालीन उत्तर अफ़्रीका में विश्वविद्यालय फ़ेज़ और काहिरा में, साहित्य की विपुल मात्राएँ होने के प्रमाण मिलते हैं। अफ्रीका के औपनिवेशिक साहित्य की ओर दृष्टिपात करें तो अधिकतर साहित्य इस बात का प्रतीक है कि किस तरह पराधीनता के शोषण से बाहर निकलने के लिए वहाँ के रचनाकारों ने विद्रोह किया।[30] अश्वेत अफ्रीका की परंपरा, संस्कृति और धार्मिक विश्वास में युगों-युगों से रचे-बसे मिथकों की काव्यात्मकता और उनकी नई रचनात्मक सम्भावनाओं को प्रकट करने वाले आधुनिक कवियों में वोले शोयिंका का नाम उल्लेखनीय है।[31]
अफ्रीकी संस्कृति विश्व की सबसे प्राचीन और सबसे अधिक विविधता वाली संस्कृति है। अफ़्रीका के भोजन और पेय में अपनी स्थानीय पहचान के साथ साथ उपनिवेशीय खाद्य परंपराओं की झलक देखी जा सकती है। कालीमिर्च, मूँगफली और मक्के जैसे खाद्य उत्पादों का प्रयोग यहाँ खूब किया जाता है। अफ़्रीकी भोजन पारंपरिक फलों और तरकारियों, दूध और माँस उत्पादों का सुंदर संयोजन है। अफ़्रीकी गाँवों का आहार प्राय: दूध, दही और छाछ है। शिकार और मछलियाँ भी यहाँ के लोकप्रिय भोजन में शामिल हैं।
अफ़्रीकी कला और वास्तुकला अफ़्रीकी संस्कृतियों की विविधता प्रतिबिंबित करते हैं। इसके सबसे पुराने उदाहरण, नासारियस सीपियों से बने ८२,०००-वर्ष-पुरानी मनके (माला के दाने) हैं जो आज भी देखे जा सकते हैं। मिस्र में गीज़ा का पिरामिड ४,००० वर्षों तक, वर्ष १३०० के आसपास लिंकन चर्च के पूरा होने तक, विश्व का सबसे ऊँचा मानव निर्मित ढाँचा था। बड़े ज़िम्बाब्वे के पत्थरों के खंडहर अपनी वास्तुकला के लिए और लालीबेला, इथोपिया के एकल-शिला-निर्मित चर्च, अपनी जटिलता के लिए आज भी सबका ध्यान आकर्षित करते हैं। मिस्र लंबे अरसे तक अरब दुनिया के लिए संस्कृति का केन्द्र बिंदु रहा है, जबकि उप-सहारा अफ़्रीका, विशेषकर पश्चिम अफ़्रीका के संगीत की लोकप्रियता अपनी दमदार ताल के कारण, अंध महासागर (एटलांटिक) से होने वाले गुलामों के व्यापार के माध्यम से आधुनिक साम्बा, ब्ल्यूज़, जॉज़, रेगे, रैप और रॉक एंड रोल तक पहुँच गई। १९५० के दशक से १९७० के दशक ने एफ़्रोबीट और हाईलाइफ़ संगीत और इसकी विभिन्न शैलियों के अनेक रूपों को लोकप्रिय होते देखा। इस महाद्वीप के आधुनिक संगीत में दक्षिणी अफ़्रीका के अति कठिन समझे जानेवाले समूह-गान, कॉन्गो लोकतांत्रिक गणराज्य का संगीत और सौकौस संगीत शैली के नृत्य ताल सम्मिलित हैं। अफ़्रीका की देसी संगीत और नृत्य परंपराएँ वाचिक-परंपराओं द्वारा विकसित हुई हैं। ये उत्तरी अफ़्रीका और दक्षिणी अफ़्रीका की संगीत और नृत्य शैलियों से भिन्न हैं। उत्तरी अफ़्रीकी संगीत और नृत्य पर अरबी प्रभाव दिखाई पड़ते हैं और, दक्षिणी अफ़्रीका में, उपनिवेशीकरण के कारण पश्चिमी प्रभाव।
खेल अफ़्रीकी संस्कृति का प्रमुख अंग है। फ़ुटबॉल परिसंघ (कनफ़ेडरेशन) में ५३ अफ़्रीकी देशों की फ़ुटबॉल (सॉकर) टीमें हैं, जब कि केमेरून, नाइजीरिया, सेनेगल और घाना फ़ीफ़ा (FIFA) विश्व कपों में नॉक-आउट स्थिति तक आगे बढ़ चुके हैं। दक्षिण अफ़्रीका २०१० विश्व कप प्रतियोगिता की मेजबानी करनेवाला है और ऐसा करने वाला पहला अफ़्रीकी देश होगा। कुछ अफ़्रीकी देशों में क्रिकेट लोकप्रिय है। दक्षिण अफ़्रीका और ज़िम्बाबवे टेस्ट मैच खेलने की अवस्था पा चुके हैं, जबकि केन्या एक-दिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय क्रिकेट में अग्रणी गैर-टेस्ट टीम है और स्थायी एक-दिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय स्तर को प्राप्त कर चुकी है। इन तीन देशों ने संयुक्त रूप से २००३ क्रिकेट विश्व कप की मेजबानी की थी। नामीबिया एक और अफ़्रीकी देश है जिसने किसी विश्व कप में खेला है। उत्तरी अफ़्रीका में मोरक्को “२००२ मोरक्को कप” का आयोजक रह चुका है, परन्तु इसकी राष्ट्रीय टीम कभी किसी प्रमुख प्रतियोगिता के लिए नहीं चुनी गई है।
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अफ़्रीकी लोग विभिन्न प्रकार की धार्मिक मान्यताओं को स्वीकार करते हैं[32] और इनके धार्मिक आस्था के आँकड़े एकत्र कर पाना बहुत ही मुश्किल है, क्योंकि ये कई आस्थाओं वाली मिश्रित जनसंख्या की सरकारों के लिए बहुत ही संवेदनशील विषय होता है।[33] वर्ल्ड बुक विश्वकोश के अनुसार अफ़्रीका का सबसे बड़ा मान्य धर्म इस्लाम है। इसके बाद यहाँ ईसाई आते हैं। ब्रिटैनिका विश्वकोश के अनुसार यहाँ की कुल जनसंख्या का ४५% भाग मुस्लिम और ४०% ईसाई लोग हैं। १५% से कम लोग या तो नास्तिक हैं, या अफ़्रीकी धर्मों को मानने वाले हैं।[34] एक बहुत ही छोटा प्रतिशत हिन्दुओं, बहाई लोगों और यहूदियों को जाता है। यहूदियों के क्षेत्र यहाँ बीटा इज़्राइल, लेम्बा लोग और पूर्वी युगांडा के अबयुदय हैं।
अफ्रीकी महाद्वीप में इस्लाम के अनुयायी पूरे महाद्वीप में फैले हुए हैं। इस धर्म की जड़ें पैगम्बर मुहम्मद के समय तक जाती हैं, जब उनके संबंधी एवं अनुयायी एबेसिनिया में पैगन अरब लोगों से अपनी जान बचाने आये थे। इस्लाम धर्म अफ़्रीका में सिनाई प्रायद्वीप एवं मिस्र के रास्ते आया। इसका पूर्ण सहयोग इस्लामिक अरब एवं फारसी व्यापारियों एवं नाविकों ने किया। इस्लाम उत्तरी अफ़्रीका एवं अफ़्रीका के सींग में प्रधान धर्म है। पश्चिमी अफ़्रीका के आंतरिक भागों एवं तटीय क्षेत्रों में और पूर्वी अफ़्रीका के तटीय क्षेत्रों में भी यह ऐतिहासिक एवं प्रधान धर्म है। यहां बहुत से मुस्लिम साम्राज्य रहे हैं। इस्लाम की द्रुत-प्रगति बीसवीं एवं इक्कीसवीं शताब्दियों तक होती आयी है। ईसाई धर्म यहां एक विदेशी धर्म ही रहा है। दूसरे स्थान पर ईसाई धर्म को मानने वाले हैं। ईसाई धर्म यहां राजा एज़ाना के एक्ज़म राज्य का शाही धर्म ३३० ई में घोषित हुआ था। इथियोपिया में प्रथम शताब्दी में आया। यूरोपियाई सेलर, फ़्रुमेन्टियस ४३० ई में इथियोपिया आया, तब उसका स्वागत वहां के शासकों ने किया, जो इसाई नहीं थे। उसके अनुसार दस वर्ष बाद राजा सहित पूरी प्रजा ने ईसाई धर्म ग्रहण किया व राजधर्म घोषित हुआ। इसके अतिरिक्त यहूदी और हिन्दू धर्मों के अनुयायी भी यहाँ निवास करते हैं। यहूदी धर्म का यहाँ प्राचीन एवं समृद्ध इतिहास है। प्रमुख रूप से इथियोपिया के बीटा इज़्रायल, युगांडा के अब्युदय, घाना के हाउस ऑफ़ इज़्राइल, नाइजीरिया के इगबो यहूदी एवं दक्षिणी अफ़्रीका के लेम्बा लोग यहूदी धर्म का पालन करते हैं। हिन्दू धर्म का इतिहास यहां अत्यन्त अपेक्षाकृत नया है। हालाँकि इसके अनुयाइयों की उपस्थिति यहां साम्राज्यवाद-काल से बहुत पहले, मध्यकाल से ही रही है। दक्षिण अफ़्रीका एवं पूर्व अफ़्रीकी तटीय देशों में हिन्दू जनसंख्या अधिक संख्या में निवास करती है।
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