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उत्तर-दक्षिण स्थिति निर्दिष्ट करने वाले भौगोलिक निर्देशांक विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
भूगोल में किसी स्थान की स्थिति को बताने के लिए उस स्थान का अक्षांश (latitude) तथा देशांतर (longitude) बताया जाता है। किसी स्थान का अक्षांश, धरातल पर उस स्थान की 'उत्तर-दक्षिण स्थिति' को बताता है। अक्षांश रेखायें पूर्व से पश्चिम की ओर चलती है।उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों का अक्षांश क्रमशः ९० डिग्री उत्तर तथा ९० डिग्री दक्षिण होता है।
इस प्रकार, विषुवत वृत्त के सभी बिन्दुओं का अक्षांश शून्य होता है। अर्थात् भूमध्य रेखा, शून्य डिग्री अक्षांश से होकर जाने वाली रेखा है। विषुवत वृत्त की उत्तरी एवं दक्षिणी दिशा में 1 डिग्री के अंतराल से खींचे जाने पर नंबर 90 अक्षांश वृत्त होते हैं यानी कि किसी भी स्थान का अक्षांश 90 डिग्री से अधिक नहीं हो सकता। विषुवत वृत्त के उत्तरी भाग को उत्तरी गोलार्ध और दक्षिणी भाग को दक्षिणी गोलार्ध कहा जाता है।
अक्षांश रेखाएँ काल्पनिक रेखाएँ है, इनकी संख्या अनन्त है। एक अंश (डिग्री) के अंतराल पर कल्पित किये जाने पर अक्षांश रेखाओं की कुल संख्या = ९० + ९० + १ = १८१ और यदि दोनों ध्रुवों को रेखा न माना जाय क्योंकि ये बिंदु हैं, तो 179 बतायी जाती है। 1° के अन्तराल पर खींचे जाने पर किन्हीं दो क्रमागत अक्षांश रेखाओं के बीच की लम्बाई 111 किलोमीटर होती है ।
अक्षांश रेखा से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य:-
1)0°अक्षांश रेखा, भूमध्य वृत्त (रेखा)कहलाती है।
2)23.5 N अक्षांश रेखा,कर्क रेखा कहलाती है।
3)23.5 S अक्षांश रेखा, मकर रेखा कहलाती है।
4)66.5 N अक्षांश रेखा, आर्कटिक वृत्त कहलाती है।
5)66.5 S अक्षांश रेखा,अंटार्कटिक वृत्त कहलाती है।
धरती की कुछ अक्षांश रेखाएँ, जिनके विशेष नाम हैं, भूमध्य रेखा के अतिरिक्त ऐसी चार और अक्षांश रेखाएँ हैं जो विशेष हैं:
उत्तरध्रुवीय वृत्त (आर्कटिक सर्कल) | 66° 34′ (66.57°) N |
कर्क रेखा | 23° 26′ (23.43°) N |
मकर रेखा | 23° 26′ (23.43°) S |
दक्षिणध्रुवीय वृत्त (अन्टार्कटिक सर्कल) | 66° 34′ (66.57°) S |
अक्षांश, भूमध्यरेखा से किसी भी स्थान की उत्तरी अथवा दक्षिणी ध्रुव की ओर की कोणीय दूरी का नाम है। भूमध्यरेखा को 0°' की अक्षांश रेखा माना गया है। भूमध्यरेखा से उत्तरी ध्रुव की ओर की सभी दूरियाँ उत्तरी अक्षांश और दक्षिणी ध्रुव की ओर की सभी दूरियाँ दक्षिणी अक्षांश में मापी जाती है। ध्रुवों की ओर बढ़ने पर भूमध्यरेखा से अक्षांश का मान बढ़ता जाता है और ध्रुवों का अक्षांश मान 90° है। सभी अक्षांश रेखाएँ परस्पर समानान्तर और पूर्ण वृत्त होती हैं। ध्रुवों की ओर जाने से वृत्त छोटे होने लगते हैं।
दो अक्षांश रेखाएँ के बीच में जो स्थान पाया जाता है उस स्थान को जोन कहते हैं।
पृथ्वी के किसी स्थान से सूर्य की ऊँचाई उस स्थान के अक्षांश पर निर्भर करती है। न्यून अक्षांशों पर दोपहर के समय सूर्य ठीक सिर के ऊपर रहता है। पृथ्वी के तल पर पड़ने वाली सूर्य की किरणों की गरमी विभिन्न अक्षांशों पर अलग अलग होती हैं। पृथ्वी के तल पर के किसी भी देश अथवा नगर की स्थिति का निर्धारण उस स्थान के अक्षांश और देशांतर के द्वारा ही किया जाता है।
किसी स्थान के अक्षांश को मापने के लिए अब तक खगोलकीय अथवा त्रिभुजीकरण नाम की दो विधियाँ प्रयोग में लाई जाती रही हैं।
पृथ्वी का नक्शा | |
रेखांश (λ) | |
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रेखांश की रेखाएं इस प्रक्षेप में वक्रीय प्रतीत होती हैं, परंतु ध्रुववृत्तों की आधी होती हैं। | |
अक्षांश (φ) | |
अक्षांश की रेखाएं इस प्रक्षेप में क्षैतिज एवं सीधी प्रतीत होती हैं, परंतु वे भिन्न अर्धव्यासों सहित वृत्तीय होती हैं। एक अक्षांश पर दी गईं सभी स्थान एकसाथ जुड़कर अक्षांश का वृत्त बनाते हैं। | |
भूमध्य रेखा पृथ्वी को उत्तरी गोलार्ध और दक्षिणी गोलार्ध में बांटती है, और इसका अक्षांश शून्य अंश यानि 0° होता है। | |
1.सभी अक्षांश रेखाऐं एक दूसरे के समाना्तर खाने हुए पूर्ण वृत के रूप में होती हैं। अत: इन्हें Parallels भी कहा जाता है।
2.सभी अक्षांश रेखाऐं ग्लोब पर शुद्ध पूर्व-पश्चिम दिशा में खींची हुई होती हैं।
3.सभी अक्षांश रेखाओं में केवल भूमध्य रेखा ही वृहत वृत (Great Circle) होती है।
4.भूमध्य रेखा एवं ध्रुवों को छोड़कर शेष सभी अक्षांश रेखाएं लघु वृत होती हैं।
5.भूमध्य रेखा के दोनों ओर अक्षांशीय वृत्त छोटे होते जाते हैं।
6.उत्तरी व दक्षिणी ध्रुव बिन्दु मात्र होते हैं।
7.अक्षांश रेखाओं का अधिकतम मान 90° उत्तर अथवा 90° दक्षिण तक होता है।
8.सभी अक्षांश रेखाऐं समान दूरी (1° के अन्तराल पर लगभग 111 कि.मी.) पर खींची जाती हैं ।
9.1° के अन्तराल पर कुल 181 अक्षांश (90+90= 180 + भूमध्य रेखा =181) होते हैं।
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