चैतन्य महाप्रभु
भारतीय संत / From Wikipedia, the free encyclopedia
चैतन्य महाप्रभु (१८ फरवरी, १४८६-१५३४) वैष्णव धर्म के भक्ति योग के परम प्रचारक एवं भक्तिकाल के प्रमुख कवियों में से एक हैं। इन्होंने वैष्णवों के गौड़ीय संप्रदाय की आधारशिला रखी, भजन गायकी की एक नयी शैली को जन्म दिया तथा राजनैतिक अस्थिरता के दिनों में हिंदू-मुस्लिम एकता की सद्भावना को बल दिया, जाति-पांत, ऊंच-नीच की भावना को दूर करने की शिक्षा दी तथा विलुप्त वृंदावन को फिर से बसाया और अपने जीवन का अंतिम भाग वहीं व्यतीत किया। उनके द्वारा प्रारंभ किए गए महामंत्र नाम संकीर्तन का अत्यंत व्यापक व सकारात्मक प्रभाव आज पश्चिमी जगत तक में है। यह भी कहा जाता है, कि यदि गौरांग ना होते तो वृंदावन आज तक एक मिथक ही होता।[1] वैष्णव लोग तो इन्हें श्रीकृष्ण का राधा रानी के संयोग का अवतार मानते हैं।[2][3][4] गौरांग के ऊपर बहुत से ग्रंथ लिखे गए हैं, जिनमें से प्रमुख है श्री कृष्णदास कविराज गोस्वामी विरचित चैतन्य चरितामृत। इसके अलावा श्री वृंदावन दास ठाकुर रचित चैतन्य भागवत[5] तथा लोचनदास ठाकुर का चैतन्य मंगल भी हैं।[6]
व्यक्तिगत जानकारी | |
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अन्य नाम | विश्वम्भर मिश्र,निमाई पण्डित, गौराङ्ग महाप्रभु, गौरहरि, गौरसुंदर, श्रीकृष्ण चैतन्य भारती आदि |
जन्म | फाल्गुनी पुर्णिमा तिथि 1486 फ़रवरी 18 नवद्वीप (नादिया ज़िला), पश्चिम बंगालਬਿਜਲੀ ਰਾਜਭਰ |
मृत्यु | १५३४ (आयु ४६-४७) पुरी, उड़ीसाਬਿਜਲੀ ਰਾਜਭਰ |
जीवनसाथी(याँ) | श्रीमती लक्ष्मीप्रिया देवी और श्रीमती विष्णुप्रिया देवी |
वृत्तिक जानकारी | |
मुख्य कृतीयाँ | चैतन्य सगुण भक्ति को महत्त्व देते थे। भगवान का वह सगुण रूप, जो अपरिमेय शक्तियों और गुणों से पूर्ण है। |
युग | १५वीं शताब्दी |
क्षेत्र | भारत |
उल्लेखनीय छात्र | रूप गोस्वामी, सनातन गोस्वामी, गोपाल भट्ट गोस्वामी, रघुनाथ भट्ट गोस्वामी, रघुनाथ दास गोस्वामी, जीव गोस्वामी और अन्य |
राष्ट्रीयता | भारतीय |