वृन्दावन

मथुरा, उत्तर प्रदेश,भारत में स्थित एक शहर विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश

वृन्दावनmap

वृन्दावन, भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के मथुरा ज़िले में स्थित एक महत्वपूर्ण धार्मिक व ऐतिहासिक नगर है। वृन्दावन भगवान श्रीकृष्ण की लीला से जुडा हुआ है। यह स्थान श्री कृष्ण की कुछ अलौकिक बाल लीलाओं का केन्द्र माना जाता है। यहाँ विशाल संख्या में श्री कृष्ण और राधा रानी के मन्दिर हैं । बांके विहारी जी का मंदिर, श्री गरुड़ गोविंद जी का मंदिर व राधावल्लभ लाल जी का, ठा.श्री पर्यावरण बिहारी जी का मंदिर बड़े प्राचीन हैं । इसके अतिरिक्त यहाँ श्री राधारमण, श्री राधा दामोदर, राधा श्याम सुंदर, गोपीनाथ, गोकुलेश, श्री कृष्ण बलराम मन्दिर, पागलबाबा का मंदिर, रंगनाथ जी का मंदिर, प्रेम मंदिर, श्री कृष्ण प्रणामी मन्दिर, अक्षय पात्र, वैष्णो देवी मंदिर। निधि वन ,श्री रामबाग मन्दिर आदि भी दर्शनीय स्थान है।[1][2]

सामान्य तथ्य वृन्दावन, देश ...
वृन्दावन
नगर
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ऊपर से नीचे: कृष्ण बलराम मंदिर, प्रेम मंदिर
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वृन्दावन
वृन्दावन
उत्तर प्रदेश में स्थिति
निर्देशांक: 27.58°N 77.70°E / 27.58; 77.70
देश भारत
राज्यउत्तर प्रदेश
ज़िलामथुरा ज़िला
जनसंख्या (2011)
  कुल63,005
भाषाएँ
  राजकीयहिंदी
  उपभाषाबृजभाषा
समय मण्डलभारतीय मानक समय (यूटीसी+5:30)
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यह कृष्ण की लीलास्थली है। हरिवंशपुराण, श्रीमद्भागवत, विष्णु पुराण आदि में वृन्दावन की महिमा का वर्णन किया गया है। कालिदास ने इसका उल्लेख रघुवंश में इंदुमती-स्वयंवर के प्रसंग में शूरसेनाधिपति सुषेण का परिचय देते हुए किया है इससे कालिदास के समय में वृन्दावन के मनोहारी उद्यानों के अस्तित्व का भान होता है। श्रीमद्भागवत के अनुसार गोकुल से कंस के अत्याचार से बचने के लिए नंदजी कुटुंबियों और सजातीयों के साथ वृन्दावन में निवास के लिए आये थे। विष्णु पुराण में इसी प्रसंग का उल्लेख है। विष्णुपुराण में भी वृन्दावन में कृष्ण की लीलाओं का वर्णन है।

वर्तमान में टटिया स्थान, निधिवन, सेवाकुंज, मदनटेर, बिहारी जी की बगीची, रामबाग, लता भवन (प्राचीन नाम टेहरी वाला बगीचा) आरक्षित वनी के रूप में दर्शनीय हैं। निधि वन श्री बांके बिहारी जी मन्दिर से करीब में ही है। यहां की मान्यता है कि यहीं भगवान कृष्ण गोपियों संग रास रचाते थे।लोक किंवदंती है कि आज भी रात में रास रचाते हैं।

वृंदावन का जन्म

द्वापरयुग के आरम्भ में जब पृथ्वी पर बहुत पाप बढ़ने लगा तो सभी देवता भगवान के पूर्णावतार वामन रूप के बाये चरण के अंगूठे के नख से फटे ब्रह्माण्ड के ऊपर हुए छिद्र से बाहर निकल कर ( नासा और विज्ञान जिसे ब्लैक होल कहता है) जब ऊपर स्थित गोलोक (गेलेक्सी) में गये तो वहाँ पर उन्हें बहुत आश्चर्य हुआ।

वामपादां गुष्ठनखभिन्न ब्रह्मांडमस्तके ॥श्रीवामनस्यविवरे ब्रह्मद्रवसमाकुले ॥ १० ॥ [3]( श्रीमद्गर्गसंहिता २०१८, मुद्रक खेमराज श्रीकृष्णदास, मुंबई श्लोक स॰ १०, गोलोकखंड १ )

उसी गोलोक में गोवर्धन पर्वत के संग वृंदावन भी शोभित था, ये सभी ने देखा।

अथदेवगणाः सर्वगोलोकंददृशुः परम् ।। तत्रगोवर्द्धनोनामगिरिराजोविराजते ॥ ३२ ॥ वृन्दावनंभ्राजमानंदिष्यद्रुमलताकुलम् ॥ चित्र- पक्षिमधुत्रातैर्वेशीवटविराजितम् ॥३५

आगे वर्णन आता है कि वही से श्री राधा जी के कहने पर भगवान श्री कृष्ण ने अपने उस धाम से चौरासी कोस की वृजभूमि, गोवर्धन पर्वत और यमुना नदी, इन सब को नीचे पृथ्वी लोक में लीला करने हेतु भेजा। यह वृंदावन वही से आया हुआ वृंदावन है। तभी तो इसकी रज बहुत अमूल्य है। आगे श्रीकृष्ण आगे कहते हैं कि कभी भी वृंदावन की कण नहीं लानी चाहिए और अगर कोई लाना चाहता है तो उसे उस रज के बराबर का स्वर्ण वहीं पर दान करना चाहिए। वृंदावन के कण-कण में राधामाधव निवास करते हैं, ये यूँही ही नहीं कहा जाता।

वृंदावन का उल्लेख ऋषि श्रीपराशर दारा रचित श्रीविष्णुपुराण में भी बहुत बार किया गया है। इसके अनुसार वहाँ की भूमि काक तथा भास इत्यादि पक्षियों से व्याप्त थी। बगुलों की पंक्तियाँ वहाँ सुशोभित रहती थी। श्रीकृष्ण और बलराम के संग वहाँ पर मयूर और चातकगण सुशोभित रहते थे। गोप और गोपियाँ कदम्ब पुष्पाों से स्वयं का श्रृंगार करते थे।

वृन्दावनमितः स्थानात्तस्माद्गच्छाम मा चिरम् । यावद्भौममहोत्पातदोषो नाभिभवेद्वजम् ॥ २४ [4] ( श्रीविष्णुपुराण, पंचम अंश, अ॰६, श्रीपराशर उचाव, श्लोक स॰२४-५१, मुद्रित गीताप्रेस, गोरखपुर १९९० )

वहाँ पर रह कर भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन-धारण (ग्यारहवाँ अध्याय) इत्यादि बहुत सी लीलाओं को पूर्ण किया। यमुना नदी वहीं पास में ही बहती थी। प्रसिद्ध कालियानाग की लीला भी वहीं यमुना में हुई थी। यही वर्णन श्रीहरिवंशपुराण के विष्णुपर्व के पंचम अध्याय में भी आया है। (श्लोक संख्या १६-२८)[5]

श्री मद् भागवत महापुराण के ग्यारहवें अध्याय में श्री शुकदेव राजा परीक्षित को बताते हैं कि जब श्रीकृष्ण के बाबा नंद ने देखा कि मथुरा में बहुत उत्पात होने लगे हैं तो वे सबको साथ लेकर वृंदावन महावन जाने का फ़ैसला करते हैं। उन्होंने सुना भी था कि वृंदावन के पास में एक बहुत बड़ा पर्वत भी है। वहाँ प्रत्येक ऋतु में सुख ही सुख रहता है। गायों के लिए वहाँ चारा भी बहुत है। तो सब लोग नंद बाबा के संग वृंदावन में आ कर रहने लगे। जहां पर आगे चल कर भगवान श्रीकृष्ण बहुत सी लीलाओं को करते हैं। श्री मद् भागवतमहापुराण-१०.११-२५ (सुखसागर म॰भा॰म॰पुराण, बारह स्कंध खण्डों में, मनोज पब्लिकेशन, 11 संस्करण-2022)

प्राचीन वृन्दावन

कहते है कि वर्तमान वृन्दावन असली या प्राचीन वृन्दावन नहीं है। श्रीमद्भागवत के वर्णन तथा अन्य उल्लेखों से जान पड़ता है कि प्राचीन वृन्दावन तो गोवर्धन के निकट कहीं था। यह तब गोवर्धन-धारण की प्रसिद्ध कथा की स्थली वृन्दावन पारसौली (परम रासस्थली) के निकट था। अष्टछाप कवि महाकवि सूरदास इसी ग्राम में दीर्घकाल तक रहे थे। सूरदास जी ने वृन्दावन रज की महिमा के वशीभूत होकर गाया है-हम ना भई वृन्दावन रेणु।[6]

ब्रज का हृदय

मथुरा को 'ब्रज का हृदय' कहते है जहाँ श्री राधाकृष्ण ने अपनी दिव्य लीलाएँ की हैं। इस पावन भूमि को पृथ्वी का अति उत्तम तथा परम गुप्त भाग कहा गया है। पद्म पुराण में वृंदावन को भगवान का साक्षात शरीर, पूर्ण ब्रह्म से सम्पर्क का स्थान तथा सुख का आश्रय बताया गया है। इसी कारण से यह अनादि काल से भक्तों की श्रद्धा का केन्द्र बना हुआ है। चैतन्य महाप्रभु, स्वामी हरिदास, श्री हितहरिवंश, महाप्रभु वल्लभाचार्य आदि अनेक गोस्वामी भक्तों ने इसके वैभव को सजाने और संसार को अनश्वर सम्पति के रूप में प्रस्तुत करने में जीवन लगाया है। ब्रज में आए गोस्वामी भक्तो ने अपनी यात्रा की शुरूआत मथुरा में स्थित विश्राम घाट से की है यही श्री कृष्ण के कुंडल और मुकुट आज भी विराजमान है यहाँ आनन्दप्रद युगलकिशोर श्रीकृष्ण एवं श्रीराधा की अद्भुत नित्य विहार लीला होती रहती है।

महाप्रभु चैतन्य का प्रवास

15वीं शती में चैतन्य महाप्रभु ने अपनी ब्रजयात्रा के समय वृन्दावन तथा कृष्ण कथा से संबंधित अन्य स्थानों को अपने अंतर्ज्ञान द्वारा पहचाना था। रासस्थली, वंशीवट से युक्त वृन्दावन सघन वनों में लुप्त हो गया था। कुछ वर्षों के पश्चात शाण्डिल्य एवं भागुरी ऋषि आदि की सहायता से श्री कृष्ण के पौत्र वज्रनाभ ने कहीं श्रीमन्दिर, कहीं सरोवर, कहीं कुण्ड आदि की स्थापनाकर लीला-स्थलियों का प्रकाश किया। किन्तु लगभग साढ़े चार हज़ार वर्षों के बाद ये सारी लीला-स्थलियाँ पुन: लुप्त हो गईं, महाप्रभु चैतन्य ने तथा श्री रूप-सनातन आदि अपने परिकारों के द्वारा लुप्त श्रीवृन्दावन और ब्रजमंडल की लीला-स्थलियों को पुन: प्रकाशित किया। श्री चैतन्य महाप्रभु के पश्चात उन्हीं की विशेष आज्ञा से श्री लोकनाथ और श्री भूगर्भ गोस्वामी, श्री सनातन गोस्वामी, श्री रूप गोस्वामी, श्री गोपालभट्ट गोस्वामी, श्री रघुनाथ भट्ट गोस्वामी, श्री रघुनाथदास गोस्वामी, श्री जीव गोस्वामी आदि गौड़ीय वैष्णवाचार्यों ने विभिन्न शास्त्रों की सहायता से, अपने अथक परिश्रम द्वारा ब्रज की लीला-स्थलियों को प्रकाशित किया है। वर्तमान वृन्दावन में प्राचीनतम मंदिर मुग़ल सम्राट अकबर के शासनकाल में राजा मानसिंह का बनवाया हुआ है। यह था। मूलत: यह मंदिर सात मंजिलों का था। ऊपर के दो खंड औरंगज़ेब ने तुड़वा दिए थे। किम्वदंती है इस मंदिर के सर्वोच्च शिखर पर जलने वाले दीप मथुरा से दिखाई पड़ते थे। यहाँ का अन्य विशाल मंदिर दाक्षिणत्य शैली में बना हुआ रंगजी के नाम से प्रसिद्ध है। इसके गोपुर बड़े विशाल एवं भव्य हैं। यह मंदिर दक्षिण भारत के श्रीरंगम के मंदिर की अनुकृति जान पड़ता है। वृन्दावन के दर्शनीय स्थल हैं- निधिवन (हरिदास का निवास कुंज), कालियादह, सेवाकुंज आदि।

प्राकृतिक छटा

वृन्दावन की प्राकृतिक छटा देखने योग्य है। यमुना नदी ने इसको तीन ओर से घेर रखा है। किसी समय यहाँ के सघन कुंजो में भाँति-भाँति के पुष्पों से शोभित लता तथा ऊँचे-ऊँचे घने वृक्ष मन में उल्लास भरते थे । बसंत ॠतु के आगमन पर यहाँ की छटा और सावन-भादों की हरियाली आँखों को शीतलता प्रदान करती है।

राजा नरवाहन भील

राजा नरवाहन भील  वृन्दावन के एक प्रसिद्ध राजा हुए उनके पास कई सैनिक की फौज थी, ये यमुना तटपर स्थित भैगाँव के निवासी थे । लोदी वंश का शासन सं 1573 मे समाप्त हो जाने के बाद दिल्ली के आस पास इस काल मे नरवाहन ने अपनी शक्ति बहुत बढा ली थी और सम्पूर्ण ब्रज मण्डल पर अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया था । आसपास के नरेश तो इनसे डरने ही लगे थे, दिल्लीपति बादशाह भी उससे भय खाते थे अतः इस क्षेत्र में कोई नही आता था[7] [8]

वृन्दावन में यमुना के घाट

वृन्दावन में श्रीयमुना के तट पर अनेक घाट हैं। उनमें से कुछ प्रसिद्ध घाट हैं -

  • श्रीवराहघाट- वृन्दावन के दक्षिण-पश्चिम दिशा में प्राचीन यमुनाजी के तट पर श्रीवराहघाट अवस्थित है। तट के ऊपर भी श्रीवराहदेव विराजमान हैं। पास ही श्रीगौतम मुनि का आश्रम है।
  • कालीयदमनघाट- इसका नामान्तर कालीयदह है। यह वराहघाट से लगभग आधे मील उत्तर में प्राचीन यमुना के तट पर अवस्थित है। यहाँ के प्रसंग के सम्बन्ध में पहले उल्लेख किया जा चुका है। कालीय को दमन कर तट भूमि में पहुँच ने पर श्रीकृष्ण को ब्रजराज नन्द और ब्रजेश्वरी श्री यशोदा ने अपने आसुँओं से तर-बतरकर दिया तथा उनके सारे अंगो में इस प्रकार देखने लगे कि 'मेरे लाला को कहीं कोई चोट तो नहीं पहुँची है।' महाराज नन्द ने कृष्ण की मंगल कामना से ब्राह्मणों को अनेकानेक गायों का यहीं पर दान किया था।
  • सूर्यघाट- इसका नामान्तर आदित्यघाट भी है। गोपालघाट के उत्तर में यह घाट अवस्थित है। घाट के ऊपर वाले टीले को आदित्य टीला कहते हैं। इसी टीले के ऊपर श्रीसनातन गोस्वामी के प्राणदेवता श्री मदन मोहन जी का मन्दिर है। उसके सम्बन्ध में हम पहले ही वर्णन कर चुके हैं। यहीं पर प्रस्कन्दन तीर्थ भी है।
  • युगलघाट- सूर्य घाट के उत्तर में युगलघाट अवस्थित है। इस घाट के ऊपर श्री युगलबिहारी का प्राचीन मन्दिर शिखरविहीन अवस्था में पड़ा हुआ है। केशी घाट के निकट एक और भी जुगल किशोर का मन्दिर है। वह भी इसी प्रकार शिखरविहीन अवस्था में पड़ा हुआ है।
  • श्रीबिहारघाट- युगलघाट के उत्तर में श्रीबिहारघाट अवस्थित है। इस घाट पर श्रीराधाकृष्ण युगल स्नान, जल विहार आदि क्रीड़ाएँ करते थे।
  • श्रीआंधेरघाट- युगलघाट के उत्तर में यह घाट अवस्थित हैं। इस घाट के उपवन में कृष्ण और गोपियाँ आँखमुदौवल की लीला करते थे। अर्थात् गोपियों के अपने करपल्लवों से अपने नेत्रों को ढक लेने पर श्रीकृष्ण आस-पास कहीं छिप जाते और गोपियाँ उन्हें ढूँढ़ती थीं। कभी श्रीकिशोरी जी इसी प्रकार छिप जातीं और सभी उनको ढूँढ़ते थे।
  • इमलीतला घाट- आंधेरघाट के उत्तर में इमलीघाट अवस्थित है। यहीं पर श्रीकृष्ण के समसामयिक इमली वृक्ष के नीचे महाप्रभु श्रीचैतन्य देव अपने वृन्दावन वास काल में प्रेमाविष्ट होकर हरिनाम करते थे। इसलिए इसको गौरांगघाट भी कहते हैं।
  • श्रृंगारघाट- इमलीतला घाट से कुछ पूर्व दिशा में यमुना तट पर श्रृंगारघाट अवस्थित है। यहीं बैठकर श्रीकृष्ण ने मानिनी श्रीराधिका का श्रृंगार किया था। वृन्दावन भ्रमण के समय श्रीनित्यानन्द प्रभुने इस घाट में स्नान किया था तथा कुछ दिनों तक इसी घाट के ऊपर श्रृंगारवट पर निवास किया था।
  • श्रीगोविन्दघाट- श्रृंगारघाट के पास ही उत्तर में यह घाट अवस्थित है। श्रीरासमण्डल से अन्तर्धान होने पर श्रीकृष्ण पुन: यहीं पर गोपियों के सामने आविर्भूत हुये थे।
  • चीर घाट - कौतु की श्रीकृष्ण स्नान करती हुईं गोपिकुमारियों के वस्त्रों को लेकर यहीं क़दम्ब वृक्ष के ऊपर चढ़ गये थे। चीर का तात्पर्य वस्त्र से है। पास ही कृष्ण ने केशी दैत्य का वध करने के पश्चात यहीं पर बैठकर विश्राम किया था। इसलिए इस घाटका दूसरा नाम चैन या चयनघाट भी है। इसके निकट ही झाडूमण्डल दर्शनीय है।
  • श्रीभ्रमरघाट- चीरघाट के उत्तर में यह घाट स्थित है। जब किशोर-किशोरी यहाँ क्रीड़ा विलास करते थे, उस समय दोनों के अंग सौरभ से भँवरे उन्मत्त होकर गुंजार करने लगते थे। भ्रमरों के कारण इस घाट का नाम भ्रमरघाट है।
  • श्रीकेशीघाट- श्रीवृन्दावन के उत्तर-पश्चिम दिशा में तथा भ्रमरघाट के उत्तर में यह प्रसिद्ध घाट विराजमान है। इसका हम पहले ही वर्णन कर चुके हैं।
  • धीरसमीरघाट- श्रीचीर घाट वृन्दावन की उत्तर-दिशा में केशीघाट से पूर्व दिशा में पास ही धीरसमीरघाट है। श्रीराधाकृष्ण युगल का विहार देखकर उनकी सेवा के लिए समीर भी सुशीतल होकर धीरे-धीरे प्रवाहित होने लगा था।
  • श्रीराधाबागघाट- वृन्दावन के पूर्व में यह घाट अवस्थित है। इसका भी वर्णन पहले किया जा चुका है।
  • श्रीपानीघाट- इसी घाट से गोपियों ने यमुना को पैदल पारकर महर्षि दुर्वासा को सुस्वादु अन्न भोजन कराया था।
  • आदिबद्रीघाट- पानीघाट से कुछ दक्षिण में यह घाट अवस्थित है। यहाँ श्रीकृष्ण ने गोपियों को आदिबद्री नारायण का दर्शन कराया था।
  • श्रीराजघाट- आदि-बद्रीघाट के दक्षिण में तथा वृन्दावन की दक्षिण-पूर्व दिशा में प्राचीन यमुना के तट पर राजघाट है। यहाँ कृष्ण नाविक बनकर सखियों के साथ श्री राधिका को यमुना पार करात थे। यमुना के बीच में कौतुकी कृष्ण नाना प्रकार के बहाने बनाकर जब विलम्ब करने लगते, उस समय गोपियाँ महाराजा कंस का भय दिखलाकर उन्हें शीघ्र यमुना पार करने के लिए कहती थीं। इसलिए इसका नाम राजघाट प्रसिद्ध है।

इन घाटों के अतिरिक्त 'वृन्दावन-कथा' नामक पुस्तक में और भी 14 घाटों का उल्लेख आता है-

(1) महानतजी घाट (2) नामाओवाला घाट (3) प्रस्कन्दन घाट (4) कडिया घाट (5) धूसर घाट (6) नया घाट (7) श्रीजी घाट (8) विहारी जी घाट (9) धरोयार घाट (10) नागरी घाट (11) भीम घाट (12) हिम्मत बहादुर घाट (13) चीर या चैन घाट (14) हनुमान घाट।

वृन्दावन के पुराने मोहल्लों के नाम

(1) ज्ञानगुदड़ी (2) गोपीश्वर, (3) बंशीवट (4) गोपीनाथबाग, (5) गोपीनाथ बाज़ार, (6) ब्रह्मकुण्ड, (7) राधानिवास, (8) केशीघाट (9) राधारमणघेरा (10) निधिवन (11) पत्थरपुरा (12) नागरगोपीनाथ (13) गोपीनाथघेरा (14) नागरगोपाल (15) चीरघाट (16) मण्डी दरवाज़ा (17) नागरगोविन्द जी (18) टकशाल गली (19) रामजीद्वार (20) कण्ठीवाला बाज़ार (21) सेवाकुंज (22) कुंजगली (23) व्यासघेरा (24) श्रृंगारवट (25) रासमण्डल (26) किशोरपुरा (27) धोबीवाली गली (28) रंगी लाल गली (29) सुखनखाता गली (30) पुराना शहर (31) लारिवाली गली (32) गावधूप गली (33) गोवर्धन दरवाज़ा (34) अहीरपाड़ा (35) दुमाईत पाड़ा (36) वरओयार मोहल्ला (37) मदनमोहन जी का घेरा (38) बिहारी पुरा (39) पुरोहितवाली गली (40) मनीपाड़ा (41) गौतमपाड़ा (42) अठखम्बा (43) गोविन्दबाग़ (44) लोईबाज़ार (45) रेतियाबाज़ार (46) बनखण्डी महादेव (47) छीपी गली (48) रायगली (49) बुन्देलबाग़ (50) मथुरा दरवाज़ा (51) सवाई जयसिंह घेरा (52) धीरसमीर (53) टट्टीया स्थान (54) गहवरवन (55) गोविन्द कुण्ड और (56) राधाबाग। (57) सरस्वती विहार

विधवाओं का आश्रय

वृंदावन को "विधवाओं के आश्रय " के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि बड़ी संख्या में विधवाएं अपने पति को खोने के बाद शहर और आसपास के क्षेत्र में चली जाती हैं। अनुमानित 15,000 से 20,000 विधवाएँ हैं। विधवाएं पश्चिम बंगाल, असम और ओडिशा राज्यों से आती हैं। कई लोग भजनाश्रमों में भजन गाने में समय बिताते हैं । इन वंचित महिलाओं और बच्चों की सहायता के लिए गिल्ड ऑफ सर्विस नामक संस्था का गठन किया गया।

आमतौर पर विधवाओं को उनके परिवार के सदस्यों द्वारा इस स्थान पर भेजा जाता है क्योंकि वे उसका खर्च वहन नहीं करना चाहते हैं। कुछ विधवाएँ स्वेच्छा से यहाँ धार्मिक दायित्व के रूप में या सार्वजनिक अपमान और शर्म से खुद को दूर करने के लिए आती हैं।

इन्हें भी देखें

बाहरी कड़ियाँँ

सन्दर्भ

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