गोरखनाथ
नाथ पंथ के संस्थापक / From Wikipedia, the free encyclopedia
हिंदू धर्म के अनुसार गुरु गोरखनाथ जी अजर और अमर है गुरु गोरखनाथ जी भगवान शिव के अवतार थे अपने कालखंड के अंदर गुरु गोरखनाथ जी ने कई राजाओं को दीक्षा दी और उन्हें नाथ संप्रदाय में दीक्षा दी भगवान परशुराम सभी क्षत्रियों का नरसंहार करके उनके पश्चाताप का मार्ग पूछा तो भगवान गोरखनाथ जी ने उन्हें कई सालों तक कठोर तप करने काो आदेश दिया । नाथ सप्रदाय नाथ संप्रदाय सभी धर्म से ऊपर है यह उच्च नीच भेदभाव में नहीं जानते हैं यह भगवान गुरु गोरखनाथ जी के बताए हुए मार्ग पर चलते हैं
गोरखनाथ महाराज प्रथम शताब्दी के पूर्व नाथ योगी ( जोगी )थे ( प्रमाण है राजा विक्रमादित्य के द्वारा बनाया गया पञ्चाङ्ग जिन्होंने विक्रम संवत की शुरुआत प्रथम शताब्दी से की थी जब कि गुरु गोरक्ष नाथ जी राजा भर्तृहरि एवं इनके छोटे भाई राजा विक्रमादित्य के समय मे थे ) [1][2] गुरु गोरक्ष जी ने पूरे भारत का भ्रमण किया और अनेकों ग्रन्थों की रचना की। उनका मन्दिर उत्तर प्रदेश के गोरखपुर नगर में स्थित है।[3] गोरक्ष के नाम पर इस जिले का नाम गोरखपुर पड़ा है। गोरखनाथ के शिष्य का नाम भैरोनाथ था जिनका उद्धार माता वैष्णोदेवी ने किया था। पुराणों के अनुसार भगवान शिव के अवतार थे।
नेपाल के गोरखा लोगों का 'गोरखा' नाम गुरु गोरक्ष जी के नाम से ही सम्बन्ध रखता है। नेपाल में एक जिला है गोरखा, उस जिले का नाम गोरखा भी इन्ही के नाम से पड़ा। माना जाता है कि गुरु गोरक्ष सबसे पहले यहीं दिखे थे। गोरखा जिला में एक गुफा है जहाँ गोरक्ष का पग चिन्ह है और उनकी एक मूर्ति भी है। यहाँ हर साल वैशाख पूर्णिमा को एक उत्सव मनाया जाता है जिसे 'रोट महोत्सव' कहते हैं और यहाँ मेला भी लगता है। गुरू गोरक्ष नाथ जी का एक इस्थान उच्चे टीले गोगा मेड़ी,राजस्थान हनुमानगढ़ जिले में भी है।इनकी मढ़ी सोमनाथ ज्योतिर्लिंग के नजदीक वेरावल में है। इनके साढ़े बारह पंथ होते हैं। और गोरक्षनाथ जी गायों की रक्षा भी करते थे ,,इनका जन्म एक नाथ (जोगी) कुल में बाबा मच्छेंद्र नाथ जी के आशीर्वाद से हुआ था। नाथ सम्प्रदाय के लोगो को जोगी योगी नाथ गोस्वामी आदि नामों से जाना जाता है और अलग अलग क्षेत्रों मे अलग अलग नामों से जाना जाता है। इनका जन्म _ एक बार मत्स्यन्द्रनाथ ब्रमन करते हुए गोदावरी नदी के केनारे चंद्रगिरी नामक स्थान पर पहुँचे ओर सरस्वती नाम की इस्त्री के द्वार पर भीक्षा मागने लगे नी:संतान भीक्षा लेकर बाहर आई वह उदास थी गुरु मत्स्यन्द्र नाथ ने उसे विबुती देकर कहा इसे खा लेना लेकिन भय के डर से उसने उस बबुती क़ो गोबर के ढेर मे फेक दिया 12 साल बाद फिर गुरु मत्स्यन्द्र नाथ सरस्वती के द्वार पर पहुँचे तो उन्होने सरस्वती ने बबुती क़ो गोबर के ढेर मे फेकने की बात मत्स्यन्द्र नाथ क़ो बता दी तो इस पर मत्स्यन्द्र नाथ ने कहा `अरे माई;वह वबूती तो अभीमंत्रीत थी - नीअसफल हो ही नहीं सकती तुम चलो वह स्थान दिखओं उन्हों ने अलख नीरजन की आवाज़ लगाई गोबर के ढेर से 12 साल का बालक निकालकर बाहर आया गोबर मे रक्षसित होने के कारण उसका नाम गोरखनाथ रखा ओर अपनआँ चेला बना लिया