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कृत्तिवास ओझा
भारतीय लेखक और मध्यकालीन काल के कवि / From Wikipedia, the free encyclopedia
महाकवि कृत्तिवास ओझा (बांग्ला: কৄত্তিবাস ওঝা) या 'कीर्तिवास ओझा'[1] (1381–1461) मध्यकाल में जन्मे बांग्ला भाषा के अत्यंत लोकप्रिय कवि थे जिन्होंने बंगला भाषा में वाल्मीकि रामायण का सर्वप्रथम पद्यानुवाद किया। उनका यह अनुवाद अविकल अनुवाद नहीं है। उन्होंने अपनी कल्पनाशक्ति एवं काव्यशक्ति द्वारा चरित्रों एवं घटनाओं का चित्रण कहीं-कहीं पर भिन्न रूप में किया है। इनके काव्य में पात्रों के भीतर कुछ अधिक कोमलता दिखाई गई है। करुण रस की भी अधिक गहरी अनुभूति है। बाल्मीकि के राम क्षत्रिय वीर हैं; जो वीरत्व, शौर्य एवं बल में अद्वितीय हैं, परंतु कृत्तिवास ने राम की कुसुमकोमल मूर्ति ही देख पाई है। उनके राम का तन नवनी जिनिया अति सुकोमल है और वे हाथ में फूल धनु लेकर वन जाते हैं। परंतु जहाँ तक बाल्मीकि रामायण के उच्च आदर्शों का प्रश्न हैं, कृत्तिवास ने उन सबको अपनी रचना में अक्षुण रखा है। पितृभक्ति, सत्यनिष्ठा, त्याग, प्रजानुरंजन, पातिव्रत्य इत्यादि सब आदर्शों का सफलतापूर्वक प्रतिपादन किया गया है।
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कवि ने इसमें कहीं नए आख्यान देकर, कहीं बंगाल की रीति नीति, कहीं आमोद प्रमोद, कहीं आचार अनुष्ठान और कहीं नारीरूप दिखाकर इस रचना को अपने प्रदेश के निवासियों की वस्तु बना दिया है। इन्होंने वाल्मीकि रामायण के गूढ़ दार्शनिक अंशों, विचारों के विश्लेषणात्मक भागों एवं आलंकारिकता को अपनी रचना में स्थान नहीं दिया है। रचनासौष्ठव और काव्यगुण से युक्त यह रचना बंगाल की निजस्व बन गई है।
बंगाल में कृत्तिवास की रामायण अत्यंत लोकप्रिय है। धनी, दरिद्र सबके बीच इसका आदर और प्रचार है। लोग अत्यंत प्रेम और भक्ति से इसका पाठ करते हैं। प्राय: इसका पाठ गाकर ही किया जाता है।