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उत्तराखण्ड (पूर्व नाम उत्तरांचल), उत्तर भारत में स्थित एक राज्य है जिसका निर्माण ९ नवम्बर २००० को कई वर्षों के आन्दोलन के पश्चात[2] भारत गणराज्य के सत्ताईस वें राज्य के रूप में किया गया था। सन २००० से २००६ तक यह उत्तरांचल के नाम से जाना जाता था। जनवरी २००७ में स्थानीय लोगों की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए राज्य का आधिकारिक नाम बदलकर उत्तराखण्ड कर दिया गया।[3] राज्य की सीमाएँ उत्तर में तिब्बत और पूर्व में नेपाल से लगी हैं। पश्चिम में हिमाचल प्रदेश और दक्षिण में उत्तर प्रदेश इसकी सीमा से लगे राज्य हैं। सन २००० में अपने गठन से पूर्व यह उत्तर प्रदेश का एक भाग था। पारम्परिक हिन्दू ग्रन्थों और प्राचीन साहित्य में इस क्षेत्र का उल्लेख उत्तराखण्ड के रूप में किया गया है। हिन्दी और संस्कृत में उत्तराखण्ड का अर्थ उत्तरी क्षेत्र या भाग होता है। राज्य में हिन्दू धर्म की पवित्रतम और भारत की सबसे बड़ी नदियों गंगा और यमुना के उद्गम स्थल क्रमशः गंगोत्री और यमुनोत्री तथा इनके तटों पर बसे वैदिक संस्कृति के कई महत्त्वपूर्ण तीर्थस्थान हैं।
भारत का राज्य | |
राजधानी | देहरादून |
सबसे बड़ा शहर | देहरादून |
जनसंख्या | १०,०८६,२९२ |
- घनत्व | १८९ /किमी² |
क्षेत्रफल | ५३,४८३ किमी² |
- ज़िले | 13 |
राजभाषा | हिन्दी, संस्कृत[1] |
गठन | ९ नवम्बर २००० |
सरकार | उत्तराखण्ड सरकार |
- राज्यपाल | गुरमीत सिंह |
- मुख्यमंत्री | पुष्कर सिंह धामी |
- विधानमण्डल | एकसदनीय विधान सभा (७१ सीटें) |
- भारतीय संसद | राज्य सभा (३ सीटें) लोक सभा (५ सीटें) |
- उच्च न्यायालय | उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय |
डाक सूचक संख्या | २४ और २६ |
वाहन अक्षर | UK |
आइएसओ 3166-2 | IN-UT |
uk |
देहरादून, उत्तराखण्ड की अन्तरिम राजधानी होने के साथ इस राज्य का सबसे बड़ा नगर है। गैरसैण नामक एक छोटे से कस्बे को इसकी भौगोलिक स्थिति को देखते हुए भविष्य की राजधानी के रूप में प्रस्तावित किया गया है किन्तु विवादों और संसाधनों के अभाव के चलते अभी भी देहरादून अस्थाई राजधानी बना हुआ है।[4][5] राज्य का उच्च न्यायालय नैनीताल में है।
राज्य सरकार ने हाल ही में हस्तशिल्प और हथकरघा उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए कुछ पहल की हैं। साथ ही बढ़ते पर्यटन व्यापार तथा उच्च तकनीकी वाले उद्योगों को प्रोत्साहन देने के लिए आकर्षक कर योजनाएँ प्रस्तुत की हैं। राज्य में कुछ विवादास्पद किन्तु वृहत बाँध परियोजनाएँ भी हैं जिनकी पूरे देश में कई बार आलोचनाएँ भी की जाती रही हैं, जिनमें विशेष है भागीरथी-भीलांगना नदियों पर बनने वाली टिहरी बाँध परियोजना। इस परियोजना की कल्पना १९५३ में की गई थी और यह अन्ततः २००७ में बनकर तैयार हुआ। उत्तराखण्ड, चिपको आन्दोलन के जन्मस्थान के नाम से भी जाना जाता है।[6]
यह भी पढ़ें: उत्तराखण्ड राज्य आन्दोलन, रामपुर तिराहा गोली काण्ड, श्रीनगर, गढ़वाल का इतिहास
स्कन्द पुराण में हिमालय को पाँच भौगोलिक क्षेत्रों में विभक्त किया गया है:-
खण्डाः पंच हिमालयस्य कथिताः नैपालकूमाँचंलौ।
केदारोऽथ जालन्धरोऽथ रूचिर काश्मीर संज्ञोऽन्तिमः॥
अर्थात् हिमालय क्षेत्र में नेपाल, कुर्मांचल (कुमाऊँ), केदारखण्ड (गढ़वाल), जालन्धर (हिमाचल प्रदेश) और सुरम्य कश्मीर पाँच खण्ड है।[7]
पौराणिक ग्रन्थों में कुर्मांचल क्षेत्र मानसखण्ड के नाम से प्रसिद्व था। पौराणिक ग्रन्थों में उत्तरी हिमालय में सिद्ध गन्धर्व, यक्ष, किन्नर जातियों की सृष्टि और इस सृष्टि का राजा कुबेर बताया गया हैं। कुबेर की राजधानी अलकापुरी (बद्रीनाथ से ऊपर) बतायी जाती है। पुराणों के अनुसार राजा कुबेर के राज्य में आश्रम में ऋषि-मुनि तप व साधना करते थे। अंग्रेज़ इतिहासकारों के अनुसार हूण, शक, नाग, खस आदि जातियाँ भी हिमालय क्षेत्र में निवास करती थी। पौराणिक ग्रन्थों में केदार खण्ड व मानस खण्ड के नाम से इस क्षेत्र का व्यापक उल्लेख है। इस क्षेत्र को देवभूमि व तपोभूमि माना गया है।
मानस खण्ड का कुर्मांचल व कुमाऊँ नाम चन्द राजाओं के शासन काल में प्रचलित हुआ। कुर्मांचल पर चन्द राजाओं का शासन कत्यूरियों के बाद प्रारम्भ होकर सन् १७९० तक रहा। सन् १७९० में नेपाल की गोरखा सेना ने कुमाऊँ पर आक्रमण कर कुमाऊँ राज्य को अपने अधीन कर लिया। गोरखाओं का कुमाऊँ पर सन् १७९० से १८१५ तक शासन रहा। सन् १८१५ में अंग्रेंजो से अन्तिम बार परास्त होने के उपरान्त गोरखा सेना नेपाल वापस चली गयी किन्तु अंग्रेजों ने कुमाऊँ का शासन चन्द राजाओं को न देकर ईस्ट इण्डिया कम्पनी के अधीन कर दिया। इस प्रकार कुमाऊँ पर अंग्रेजो का शासन १८१५ से आरम्भ हुआ।
ऐतिहासिक विवरणों के अनुसार केदार खण्ड कई गढ़ों (किले) में विभक्त था। इन गढ़ों के अलग-अलग राजा थे जिनका अपना-अपना आधिपत्य क्षेत्र था। इतिहासकारों के अनुसार पँवार वंश के राजा ने इन गढ़ों को अपने अधीन कर एकीकृत गढ़वाल राज्य की स्थापना की और श्रीनगर को अपनी राजधानी बनाया। केदार खण्ड का गढ़वाल नाम तभी प्रचलित हुआ। सन् १८०३ में नेपाल की गोरखा सेना ने गढ़वाल राज्य पर आक्रमण कर अपने अधीन कर लिया। यह आक्रमण लोकजन में गोरखाली के नाम से प्रसिद्ध है। महाराजा गढ़वाल ने नेपाल की गोरखा सेना के अधिपत्य से राज्य को मुक्त कराने के लिए अंग्रेजों से सहायता मांगी। अंग्रेज़ सेना ने नेपाल की गोरखा सेना को देहरादून के समीप सन् १८१५ में अन्तिम रूप से परास्त कर दिया। किन्तु गढ़वाल के तत्कालीन महाराजा द्वारा युद्ध व्यय की निर्धारित धनराशि का भुगतान करने में असमर्थता व्यक्त करने के कारण अंग्रेजों ने सम्पूर्ण गढ़वाल राज्य राजा गढ़वाल को न सौंप कर अलकनन्दा-मन्दाकिनी के पूर्व का भाग ईस्ट इण्डिया कम्पनी के शासन में सम्मिलित कर गढ़वाल के महाराजा को केवल टिहरी जिले (वर्तमान उत्तरकाशी सहित) का भू-भाग वापस किया। गढ़वाल के तत्कालीन महाराजा सुदर्शन शाह ने २८ दिसम्बर १८१५ को टिहरी नाम के स्थान पर जो भागीरथी और भिलंगना नदियों के संगम पर छोटा-सा गाँव था, अपनी राजधानी स्थापित की। कुछ वर्षों के उपरान्त उनके उत्तराधिकारी महाराजा नरेन्द्र शाह ने ओड़ाथली नामक स्थान पर नरेन्द्रनगर नाम से दूसरी राजधानी स्थापित की। सन् १८१५ से देहरादून व पौड़ी गढ़वाल (वर्तमान चमोली जिला और रुद्रप्रयाग जिले का अगस्त्यमुनि व ऊखीमठ विकास खण्ड सहित) अंग्रेजों के अधीन व टिहरी गढ़वाल महाराजा टिहरी के अधीन हुआ।[8][9]
भारतीय गणतन्त्र में टिहरी राज्य का विलय अगस्त १९४९ में हुआ और टिहरी को तत्कालीन संयुक्त प्रान्त (उत्तर प्रदेश) का एक जिला घोषित किया गया। १९६२ के भारत-चीन युद्ध की पृष्ठभूमि में सीमान्त क्षेत्रों के विकास की दृष्टि से सन् १९६० में तीन सीमान्त जिले उत्तरकाशी, चमोली व पिथौरागढ़ का गठन किया गया। एक नये राज्य के रूप में उत्तर प्रदेश के पुनर्गठन के फलस्वरुप (उत्तर प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम, २०००) उत्तराखण्ड की स्थापना ९ नवम्बर २००० को हुई। अत: इस दिन को उत्तराखण्ड में स्थापना दिवस के रूप में मनाया जाता है।
सन् १९६९ तक देहरादून को छोड़कर उत्तराखण्ड के सभी जिले कुमाऊँ मण्डल के अधीन थे। सन् १९६९ में गढ़वाल मण्डल की स्थापना की गयी जिसका मुख्यालय पौड़ी बनाया गया। सन् १९७५ में देहरादून जिले को जो मेरठ प्रमण्डल में सम्मिलित था, गढ़वाल मण्डल में सम्मिलित कर लिया गया। इससे गढ़वाल मण्डल में जिलों की संख्या पाँच हो गयी। कुमाऊँ मण्डल में नैनीताल, अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, तीन जिले सम्मिलित थे। सन् १९९४ में उधमसिंह नगर और सन् १९९७ में रुद्रप्रयाग, चम्पावत व बागेश्वर जिलों का गठन होने पर उत्तराखण्ड राज्य गठन से पूर्व गढ़वाल और कुमाऊँ मण्डलों में छः-छः जिले सम्मिलित थे। उत्तराखण्ड राज्य में हरिद्वार जनपद के सम्मिलित किये जाने के पश्चात गढ़वाल मण्डल में सात और कुमाऊँ मण्डल में छः जिले सम्मिलित हैं। १ जनवरी २००७ से राज्य का नाम "उत्तरांचल" से बदलकर "उत्तराखण्ड" कर दिया गया है।
उत्तराखण्ड[10] का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल २८° ४३’ उ. से ३१°२७’ उ. और रेखांश ७७°३४’ पू से ८१°०२’ पू के बीच में ५३,४८३ वर्ग किमी है, जिसमें से ४३,०३५ कि.मी.२ पर्वतीय है और ७,४४८ कि.मी.२ मैदानी है, तथा ३४,६५१ कि.मी.२ भूभाग वनाच्छादित है।[11] राज्य का अधिकांश उत्तरी भाग वृहद्तर हिमालय शृंखला का भाग है, जो ऊँची हिमालयी चोटियों और हिमनदियों से ढका हुआ है, जबकि निम्न तलहटियाँ सघन वनों से ढकी हुई हैं जिनका पहले अंग्रेज़ लकड़ी व्यापारियों और स्वतन्त्रता के बाद वन अनुबन्धकों द्वारा दोहन किया गया। हाल ही के वनीकरण के प्रयासों के कारण स्थिति प्रत्यावर्तन करने में सफलता मिली है। हिमालय के विशिष्ट पारिस्थितिक तन्त्र बड़ी संख्या में पशुओं (जैसे भड़ल, हिम तेंदुआ, तेंदुआ और बाघ), पौंधो और दुर्लभ जड़ी-बूटियों का घर है। भारत की दो सबसे महत्वपूर्ण नदियाँ गंगा और यमुना इसी राज्य में जन्म लेतीं हैं और मैदानी क्षेत्रों तक पहुँचते-२ मार्ग में बहुत से तालाबों, झीलों, हिमनदियों की पिघली बर्फ से जल ग्रहण करती हैं।
उत्तराखण्ड, हिमालय शृंखला की दक्षिणी ढलान पर स्थित है और यहाँ मौसम और वनस्पति में ऊँचाई के साथ-२ बहुत परिवर्तन होता है, जहाँ सबसे ऊँचाई पर हिमनद से लेकर निचले स्थानों पर उपोष्णकटिबंधीय वन हैं। सबसे ऊँचे उठे स्थल हिम और पत्थरों से ढके हुए हैं। उनसे नीचे, ५,००० से ३,००० मीटर तक घासभूमि और झाड़ीभूमि है। समशीतोष्ण शंकुधारी वन, पश्चिम हिमालयी उपअल्पाइन शंकुधर वन, वृक्षरेखा से कुछ नीचे उगते हैं। ३,००० से २,६०० मीटर की ऊँचाई पर समशीतोष्ण पश्चिम हिमालयी चौड़ी पत्तियों वाले वन हैं जो २,६०० से १,५०० मीटर की उँचाई पर हैं। १,५०० मीटर से नीचे हिमालयी उपोष्णकटिबंधीय पाइन वन हैं। उचले गंगा के मैदानों में नम पतझड़ी वन हैं और सुखाने वाले तराई-दुआर सवाना और घासभूमि उत्तर प्रदेश से लगती हुई निचली भूमि को ढके हुए है। इसे स्थानीय क्षेत्रों में भाभर के नाम से जाना जाता है। निचली भूमि के अधिकांश भाग को खेती के लिए साफ़ कर दिया गया है।
भारत के निम्नलिखित राष्ट्रीय उद्यान इस राज्य में हैं, जैसे जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान (भारत का सबसे पुराना राष्ट्रीय उद्यान) रामनगर, नैनीताल जिले में, फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान और नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान, चमोली जिले में हैं और दोनों मिलकर यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल हैं, राजाजी राष्ट्रीय अभयारण्य हरिद्वार जिले में और गोविंद पशु विहार और गंगोत्री राष्ट्रीय उद्यान उत्तरकाशी जिले में हैं।
इस प्रदेश की नदियाँ भारतीय संस्कृति में सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं। उत्तराखण्ड अनेक नदियों का उद्गम स्थल है। यहाँ की नदियाँ सिंचाई व जल विद्युत उत्पादन का प्रमुख संसाधन है। इन नदियों के किनारे अनेक धार्मिक व सांस्कृतिक केन्द्र स्थापित हैं। हिन्दुओं की पवित्र नदी गंगा का उद्गम स्थल मुख्य हिमालय की दक्षिणी श्रेणियाँ हैं। गंगा का प्रारम्भ अलकनन्दा व भागीरथी नदियों से होता है। अलकनन्दा की सहायक नदी धौली, विष्णु गंगा तथा मंदाकिनी है। गंगा नदी, भागीरथी के रूप में गौमुख स्थान से २५ कि॰मी॰ लम्बे गंगोत्री हिमनद से निकलती है। भागीरथी व अलकनन्दा देव प्रयाग संगम करती है जिसके पश्चात वह गंगा के रूप में पहचानी जाती है। यमुना नदी का उद्गम क्षेत्र बन्दरपूँछ के पश्चिमी यमनोत्री हिमनद से है। इस नदी में होन्स, गिरी व आसन मुख्य सहायक हैं। राम गंगा का उद्गम स्थल तकलाकोट के उत्तर पश्चिम में माकचा चुंग हिमनद में मिल जाती है। सोंग नदी देहरादून के दक्षिण पूर्वी भाग में बहती हुई वीरभद्र के पास गंगा नदी में मिल जाती है। इनके अलावा राज्य में काली, रामगंगा, कोसी, गोमती, टोंस, धौली गंगा, गौरीगंगा, पिंडर, नयार (पूर्व), नयार (पश्चिम) आदि प्रमुख नदियाँ हैं।
राज्य के प्रमुख हिमशिखरों में गंगोत्री (६६१४ मी.), दूनगिरि (७०६६), बन्दरपूँछ (६३१५), केदारनाथ (६४९०), चौखम्बा (७१३८), कामेट (७७५६), सतोपन्थ (७०७५), नीलकण्ठ (५६९६), नन्दा देवी (७८१८), गोरी पर्वत (६२५०), हाथी पर्वत (६७२७), नंदा धुंटी (६३०९), नन्दा कोट (६८६१) देव वन (६८५३), माना (७२७३), मृगथनी (६८५५), पंचाचूली (६९०५), गुनी (६१७९), यूंगटागट (६९४५) हैं।
राज्य के प्रमुख हिमनदों में गंगोत्री, यमुनोत्री, पिण्डारी ग्लेशियर, खतलिगं, मिलम, जौलिंकांग, सुन्दर ढूंगा इत्यादि आते हैं।
राज्य के प्रमुख तालों व झीलों में गौरीकुण्ड, रूपकुण्ड, नन्दीकुण्ड, डूयोढ़ी ताल, जराल ताल, शहस्त्रा ताल, मासर ताल, नैनीताल, भीमताल, सात ताल, नौकुचिया ताल, सूखा ताल, श्यामला ताल, सुरपा ताल, गरूड़ी ताल, हरीश ताल, लोखम ताल, पार्वती ताल, तड़ाग ताल (कुमाऊँ क्षेत्र) इत्यादि आते हैं।
उत्तराचंल के प्रमुख दर्रों में बरास- ५३६५ मी., (उत्तरकाशी), माना - ६६०८ मी.(चमोली), नोती-५३००मी. (चमोली), बोल्छाधुरा- ५३५३मी., (पिथौरागड़), कुरंगी-वुरंगी-५५६४ मी.(पिथौरागड़), लोवेपुरा-५५६४ मी. (पिथौरागड़), लमप्याधुरा-५५५३ मी. (पिथौरागढ़), लिपुलेश-५१२९ मी. (पिथौरागड़), उंटाबुरा, थांगला, ट्रेलपास, मलारीपास, रालमपास, सोग चोग ला पुलिग ला, तुनजुनला, मरहीला, चिरीचुन दर्रा आते हैं।
उत्तराखण्ड का मौसम दो भागों में विभाजित किया जा सकता है: पर्वतीय और कम पर्वतीय या समतलीय। उत्तर और उत्तरपूर्व में मौसम हिमालयी उच्च भूमियों का प्रतीकात्मक है, जहाँ पर मॉनसून का वर्ष पर बहुत प्रभाव है। राज्य में वार्षिक औसत वर्षा वर्ष २००८ के आंकड़ों के अनुसार १६०६ मि.मी. हुई थी। अधिकतम तापमान पंतनगर में ४०.२ डिग्री से. (२००८) अंकित एवं न्यूनतम तापमान -५.४ डिग्री से. मुक्तेश्वर में अंकित है।[11]
हिन्दी एवं संस्कृत उत्तराखण्ड की राजभाषाएँ हैं। इसके अतिरिक्त उत्तराखण्ड में बोलचाल की प्रमुख भाषाएँ गढ़वाली, कुमाँऊनी हैं।
उत्तराखण्ड सरकार में वर्तमान राज्यपाल गुरमीत सिंह एवं मुख्यमन्त्री पुष्कर सिंह धामी हैं। वर्तमान समय में उत्तराखण्ड में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है।[12]
राज्य की स्थापना से अब तक यहाँ ग्यारह मुख्यमन्त्री हुए हैं। पुष्कर सिंह धामी राज्य के वर्तमान मुख्यमन्त्री हैं:
राज्य स्थापना से लेकर अब तक यहाँ छह राज्यपाल हुए है। गुरमीत सिंह (लेफ्टिनेंट जनरल) राज्य के वर्तमान राज्यपाल हैं:
उत्तराखण्ड में १३ जिले हैं जो दो मण्डलों में समूहित हैं: कुमाऊँ मण्डल और गढ़वाल मण्डल ।
कुमाऊँ मण्डल के छः जिले हैं[13]:
गढ़वाल मण्डल के सात जिले हैं[13]:
२०११ की जनगणना के अनुसार, उत्तराखण्ड की जनसंख्या १,०१,१६,७५२ है[15] २००१ की जनगणना के अनुसार, उत्तराखण्ड की जनसंख्या ८४,८९,३४९ थी, जिसमें ४३,२५,९२४ पुरुष और ९१,६३,८२५ स्त्रियाँ थीं। इसमें सर्वाधिक जनसंख्या राजधानी देहरादून की ५,३०,२६३ है।[16] २०११ की जनगणना तक जनसंख्या का १ करोड़ तक हो जाने का अनुमान है। मैदानी क्षेत्रों के जिले पर्वतीय जिलों की अपेक्षा अधिक जनसंख्या घनत्व वाले हैं। राज्य के मात्र चार सर्वाधिक जनसंख्या वाले जिलों में राज्य की आधे से अधिक जनसंख्या निवास करती हैं। जिलों में जनसंख्या का आकार २ लाख से लेकर अधिकतम १४ लाख तक है। राज्य की दशकवार वृद्धि दर १९९१-२००१ में १९.२ प्रतिशत रही। उत्तराखण्ड के मूल निवासियों को कुमाऊँनी या गढ़वाली कहा जाता है जो प्रदेश के दो मण्डलों कुमाऊँ और गढ़वाल में रहते हैं। एक अन्य श्रेणी हैं गुज्जर, जो एक प्रकार के चरवाहे हैं और दक्षिण-पश्चिमी तराई क्षेत्र में रहते हैं।
मध्य पहाड़ी की दो बोलियाँ कुमाऊँनी और गढ़वाली, क्रमशः कुमाऊँ और गढ़वाल में बोली जाती हैं। जौनसारी और भोटिया दो अन्य बोलियाँ, जनजाति समुदायों द्वारा क्रमशः पश्चिम और उत्तर में बोली जाती हैं। लेकिन हिन्दी पूरे प्रदेश में बोली और समझी जाती है और नगरीय जनसंख्या अधिकतर हिन्दी ही बोलती है।
उत्तराखण्ड में धार्मिक समूह | ||||
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धार्मिक समूह | प्रतिशत[17] | |||
हिन्दू | 85.00% | |||
मुसलमान | 11.92% | |||
सिख | 2.49% | |||
ईसाई | 0.32% | |||
बौद्ध | 0.15% | |||
जैन | 0.11% | |||
अन्य | 0.01% |
शेष भारत के समान ही उत्तराखण्ड में हिन्दू बहुमत में हैं और कुल जनसंख्या का ८५% हैं, इसके बाद मुसलमान १२%, सिख २.५% और अन्य धर्मावलम्बी ०.५% हैं। यहाँ लिंगानुपात प्रति १००० पुरुषों पर ९६४ और साक्षरता दर ७२.२८%[18] है। राज्य के बड़े नगर हैं देहरादून (५,३०,२६३), हरिद्वार (२,२०,७६७), हल्द्वानी (१,५८,८९६), रुड़की (१,१५,२७८) और रुद्रपुर (८८,७२०)। राज्य सरकार द्वारा १५,६२० ग्रामों और ८१ नगरीय क्षेत्रों की पहचान की गई है।
कुमाऊँ और गढ़वाल के इतिहासकारों का कहना है कि आरम्भ में यहाँ केवल तीन जातियाँ थी राजपूत, ब्राह्मण और शिल्पकार। राजपूतों का मुख्य व्यवसाय ज़मीदारी और कानून-व्यस्था बनाए रखना था। ब्राह्मणों का मुख्य व्यवसाय था मन्दिरों और धार्मिक अवसरों पर धार्मिक अनुष्ठानों को कराना। शिल्प्कार मुख्यतः राजपूतों के लिए काम किया करते थे और हथशिल्पी में दक्ष थे।
# | नगर | जिला | जनसंख्या | # | नगर | जिला | जनसंख्या | |||
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१ | देहरादून | देहरादून जिला | ४,२६,६७४ | १२ | नैनीताल | नैनीताल जिला | ४१,३७७ | |||
२ | हरिद्वार | हरिद्वार जिला | २,२८,८३२ | १३ | अल्मोड़ा | अल्मोड़ा जिला | ३४,१२२ | |||
३ | हल्द्वानी | नैनीताल जिला | २,०१,४६१ | १४ | कोटद्वार | पौड़ी जिला | ३३,०३५ | |||
४ | रुद्रपुर | उधमसिंहनगर जिला | १,५४,५५४ | १५ | मसूरी | देहरादून जिला | २६,०७५ | |||
५ | काशीपुर | उधमसिंहनगर जिला | १,२१,६२३ | १६ | पौड़ी | पौड़ी जिला | २५,४४० | |||
६ | रुड़की | हरिद्वार जिला | १,१८,२०० | १७ | गोपेश्वर | चमोली जिला | २१,४४७ | |||
७ | ऋषिकेश | देहरादून जिला | ६६,१८९ | १८ | श्रीनगर | पौड़ी जिला | २०,११५ | |||
८ | रामनगर | नैनीताल जिला | ५४,७८७ | १९ | रानीखेत | अल्मोड़ा जिला | १८,८८६ | |||
९ | पिथौरागढ़ | पिथौरागढ़ जिला | ५६,०४४ | २० | खटीमा | उधमसिंहनगर जिला | १५,०९३ | |||
१० | जसपुर | उधमसिंहनगर जिला | ५०,५२३ | २१ | जोशीमठ | चमोली जिला | १६,७०९ | |||
११ | किच्छा | उधमसिंहनगर जिला | ४१,९६५ | २२ | बागेश्वर | बागेश्वर जिला | ९,२२९ | |||
जनसंख्या २०११ की जनगणना के आधार पर[19] |
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उत्तराखण्ड का सकल घरेलू उत्पाद वर्ष २००४ के लिए वर्तमान मूल्यों के आधार पर अनुमानित २८०.३२ अरब रुपए (६ अरब डॉलर) था। उत्तर प्रदेश से अलग होकर बना यह राज्य, पुराने उत्तर प्रदेश के कुल उत्पादन का ८% उत्पन्न करता है। २००३ की औद्योगिक नीति के कारण, जिसमें यहाँ निवेश करने वाले निवेशकों को कर राहत दी गई है, यहाँ पूँजी निवेश में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। सिडकुल यानि स्टेट इन्फ़्रास्ट्रक्चर एण्ड इण्डस्ट्रियल डिवेलपमण्ट कार्पोरेशन ऑफ उत्तराखण्ड लि. ने उत्तराखण्ड राज्य के औद्योगिक विकास के लिये राज्य के दक्षिणी छोर पर सात औद्योगिक भूसंपत्तियों की स्थापना की है[20], जबकि ऊचले स्थानों पर दर्जनों पनबिजली बाँधों का निर्माण चल रहा है। फिर भी, पहाड़ी क्षेत्रों का विकास अभी भी एक चुनौती बना हुआ है क्योंकि लोगों का पहाड़ी क्षेत्रों से मैदानी क्षेत्रों की ओर पलायन जारी है।
उत्तराखण्ड में चूना पत्थर, राक फास्फेट, डोलोमाइट, मैग्नेसाइट, तांबा, ग्रेफाइट, जिप्सम आदि के भण्डार हैं। राज्य में ४१,२१६ लघु औद्योगिक इकाइया स्थापित हैं, जिनमें लगभग ३०५.५८ करोड़ की परिसम्पत्ति का निवेश हुआ है और ६३,५९९ लोगों को रोजगार प्राप्त है। इसके अतिरिक्त १९१ भारी उद्योग स्थापित हैं, जिनमें २,६९४.६६ करोड़ रुपयों का निवेश हुआ है। १,८०२ उद्योगों में ५ लाख लोगों को कार्य मिला हुआ है। वर्ष २००३ में एक नयी औद्योगिक नीति बनायी गई जिसके अन्तर्गत्त निवेशकों को कर में राहत दी गई थी, जिसके कारण राज्य में पूंजी निवेश की एक लहर दौड़ गयी।
राज्य की अर्थ-व्यवस्था मुख्यतः कृषि और संबंधित उद्योगों पर आधारित है। उत्तराखण्ड की लगभग ९०% जनसंख्या कृषि पर निर्भर है। राज्य में कुल खेती योग्य क्षेत्र ७,८४,११७ हेक्टेयर (७,८४१ किमी²) है। इसके अलावा राज्य में बहती नदियों के बाहुल्य के कारण पनविद्युत परियोजनाओं का भी अच्छा योगदान है। राज्य में बहुत सी पनविद्युत परियोजनाएं हैं जिनक राज्य के लगभग कुल ५,९१,४१८ हेक्टेयर कृषि भूमि में सिंचाई में भी योगदान है। राज्य में पनबिजली उत्पादन की भरपूर क्षमता है। यमुना, भागीरथी, भीलांगना, अलकनन्दा, मन्दाकिनी, सरयू, गौरी, कोसी और काली नदियों पर अनेक पनबिजली संयन्त्र लगे हुए हैं, जिनसे बिजली का उत्पादन हो रहा है। राज्य के १५,६६७ गाँवों में से १४,४४७ (लगभग ९२.२२%) गाँवों में बिजली है। इसके अलावा उद्योग का एक बड़ा भाग वन सम्पदा पर आधारित हैं। राज्य में कुल ५४,०४७ हस्तशिल्प उद्योग क्रियाशील हैं।[21]
उत्तराखण्ड रेल, वायु और सड़क मार्गों से अच्छे से जुड़ा हुआ है। उत्तराखण्ड में पक्की सड़कों की कुल लंबाई २१,४९० किलोमीटर है। लोक निर्माण विभाग द्वारा निर्मित सड़कों की लंबाई १७,७७२ कि॰मी॰ और स्थानीय निकायों द्वारा बनाई गई सड़कों की लंबाई ३,९२५ कि॰मी॰ हैं।
जौली ग्रांट (देहरादून) और पंतनगर (ऊधमसिंह नगर) में हवाई पट्टियां हैं। नैनी-सैनी (पिथौरागढ़), गौचर (चमोली) और चिनयालिसौर (उत्तरकाशी) में हवाई पट्टियों को बनाने का कार्य निर्माणाधीन है। 'पवनहंस लि.' ने 'रूद्र प्रयाग' से 'केदारनाथ' तक तीर्थ यात्रियों के लिए हेलीकॉप्टर की सेवा आरम्भ की है।
राज्य के कुछ हवाई क्षेत्र हैं:
राज्य के रेलवे स्टेशन हैं:
राज्य के प्रमुख बस अड्डे हैं:
छोटा चार धामकेदारनाथ • बद्रीनाथ गंगोत्री • यमुनोत्री |
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फुरसती, साहसिक और धार्मिक पर्यटन उत्तराखण्ड की अर्थव्यस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जैसे जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान और बाघ संरक्षण-क्षेत्र और नैनीताल, अल्मोड़ा, कसौनी, भीमताल, रानीखेत और मसूरी जैसे निकट के पहाड़ी पर्यटन स्थल जो भारत के सर्वाधिक पधारे जाने वाले पर्यटन स्थलों में हैं। पर्वतारोहियों के लिए राज्य में कई चोटियाँ हैं, जिनमें से नंदा देवी, सबसे ऊँची चोटी है और १९८२ से अबाध्य है। अन्य राष्टीय आश्चर्य हैं फूलों की घाटी, जो नंदा देवी के साथ मिलकर यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है।
उत्तराखण्ड में, जिसे "देवभूमि" भी कहा जाता है, हिन्दू धर्म के कुछ सबसे पवित्र तीर्थस्थान है और हज़ार वर्षों से भी अधिक समय से तीर्थयात्री मोक्ष और पाप शुद्धिकरण की खोज में यहाँ आ रहे हैं। गंगोत्री और यमुनोत्री, को क्रमशः गंगा और यमुना नदियों के उदग्म स्थल हैं, केदारनाथ (भगवान शिव को समर्पित) और बद्रीनाथ (भगवान विष्णु को समर्पित) के साथ मिलकर उत्तराखण्ड के छोटा चार धाम बनाते हैं, जो हिन्दू धर्म के पवित्रतम परिपथ में से एक है। हरिद्वार के निकट स्थित ऋषिकेश भारत में योग क एक प्रमुख स्थल है और जो हरिद्वार के साथ मिलकर एक पवित्र हिन्दू तीर्थ स्थल है।
हरिद्वार में प्रति बारह वर्षों में कुम्भ मेले का आयोजन किया जाता है जिसमें देश-विदेश से आए करोड़ो श्रद्धालू भाग लेते हैं। राज्य में मंदिरों और तीर्थस्थानों की बहुतायत है, जो स्थानीय देवताओं या शिवजी या दुर्गाजी के अवतारों को समर्पित हैं और जिनका सन्दर्भ हिन्दू धर्मग्रन्थों और गाथाओं में मिलता है। इन मन्दिरों का वास्तुशिल्प स्थानीय प्रतीकात्मक है और शेष भारत से थोड़ा भिन्न है। जागेश्वर में स्थित प्राचीन मन्दिर (देवदार वृक्षों से घिरा हुआ १२४ मन्दिरों का प्राणंग) एतिहासिक रूप से अपनी वास्तुशिल्प विशिष्टता के कारण सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं। तथापि, उत्तराखण्ड केवल हिन्दुओं के लिए ही तीर्थाटन स्थल नहीं है। हिमालय की गोद में स्थित हेमकुण्ड साहिब, सिखों का तीर्थ स्थल है। मिंद्रोलिंग मठ और उसके बौद्ध स्तूप से यहाँ तिब्बती बौद्ध धर्म की भी उपस्थिति है।
उत्तराखण्ड में बहुत से पर्यटन स्थल है जहाँ पर भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया से पर्यटक आते हैं, जैसे नैनीताल और मसूरी। राज्य के प्रमुख पर्यटन स्थल हैं:
उत्तराखण्ड के शैक्षणिक संस्थान भारत और विश्वभर में एक महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। ये एशिया के सबसे कुछ सबसे पुराने अभियान्त्रिकी संस्थानों का गृहस्थान रहा है, जैसे रुड़की का भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (पूर्व रुड़की विश्वविद्यालय) और पन्तनगर का गोविन्द बल्लभ पंत कृषि एवँ प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय। इनके अलावा विशेष महत्त्व के अन्य संस्थानों में, देहरादून स्थित भारतीय सैन्य अकादमी, इक्फ़ाई विश्वविद्यालय, भारतीय वानिकी संस्थान; पौड़ी स्थित गोविन्द बल्लभ पन्त अभियान्त्रिकी महाविद्यालय और द्वाराहाट स्थित कुमाऊँ अभियान्त्रिकी महाविद्यालय भी हैं।
इन सार्वजनिक संस्थानों के अलावा उत्तराखण्ड में बहुत से निजी संस्थान भी हैं, जैसे ग्राफ़िक एरा संस्थान, देहरादून प्रौद्योगिकी संस्थान, भारतीय एयर हॉस्टेस अकादमी इत्यादि।
उत्तराखण्ड बहुत से जाने-माने दिनी और बोर्डिंग विद्यालयों का घर भी है जैसे दून विद्यालय (देहरादून) सेण्ट जोसफ़ कॉलेज, (नैनीताल), वेल्हम गर्ल्स स्कूल (देहरादून), वेलहम ब्यॉज स्कूल (देहरादून), सेण्ट थॉमस कॉलेज (देहरादून), सेण्ट जोसफ़ अकादमी (देहरादून), वुडस्टॉक स्कूल (मसूरी), बिरला विद्या निकेतन (नैनीताल), भोवाली के निकट सैनिक स्कूल घोड़ाखाल, राष्ट्रीय भारतीय सैन्य महाविद्यालय (देहरादून), द एशियन स्कूल (देहरादून), द हेरिटैज स्कूल (देहरादून), जी डी बिरला मैमोरियल स्कूल (रानीखेत), सेलाकुइ वर्ल्ड स्कूल (देहरादून), वेदारम्भ मॉण्टेसरी स्कूल (देहरादून) और शेरवुड कॉलेज (नैनीताल)। बहुत से विदुषकों ने इन विद्यालयों से शिक्षा ग्रहण की जिनमें बहुत से भूतपूर्व प्रधानमन्त्री और अभिनेता इत्यादि भी हैं।
हाल ही के वर्षों में बहुत से निजी संस्थान भी यहाँ खुले हैं जिनके कारण उत्तराखण्ड तकनीकी, प्रबन्धन और अध्यापन-शिक्षा के एक प्रमुख केन्द्र के रूप में उभरा है। कुछ उल्लेखनीय संस्थान हैं देहरादून प्रौद्योगिकी संस्थान (देहरादून), अम्रपाली अभियांत्रिकी एवँ प्रौद्योगिकी संस्थान (हल्द्वानी), सरस्वती प्रबन्धन एवँ प्रौद्योगिकी संस्थान (रुद्रपुर) और पाल प्रबन्धन एवँ प्रौद्योगिकी संस्थान (हल्द्वानी)।
एतिहासिक रूप से यह माना जाता है कि उत्तराखण्ड वह भूमि है जहाँ पर शास्त्रों और वेदों की रचना की गई थी और महाकाव्य, महाभारत लिखा गया था। ऋषिकेश को व्यापक रूप से विश्व की योग राजधानी माना जाता है।
क्षेत्रीय भावनाओं को ध्यान में रखते हुए जो बाद में उत्तराखण्ड राज्य के रूप में परिणीत हुआ, गढ़वाल और कुमाऊँ विश्वविद्यालय १९७३ में स्थापित किए गए थे। उत्तराखण्ड के सर्वाधिक प्रसिद्ध विश्वविद्यालय हैं:
नाम | प्रकार | स्थिति |
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भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान रुड़की | केन्द्रीय विश्वविद्यालय | रुड़की |
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान २०१२ से | केन्द्रीय विश्वविद्यालय | ऋषिकेश |
भारतीय प्रबन्धन संस्थान २०१२ से | केन्द्रीय विश्वविद्यालय | काशीपुर |
गोविन्द बल्लभ पन्त कृषि एवँ प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय | राज्य विश्वविद्यालय | पंतनगर |
हेमवती नन्दन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय | केन्द्रीय विश्वविद्यालय | श्रीनगर व पौड़ी |
कुमाऊँ विश्वविद्यालय | राज्य विश्वविद्यालय | नैनीताल और अल्मोड़ा |
उत्तराखण्ड प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय | राज्य विश्वविद्यालय | देहरादून |
दून विश्वविद्यालय | राज्य विश्वविद्यालय | देहरादून |
पेट्रोलियम और ऊर्जा शिक्षा विश्वविद्यालय | निजि विश्वविद्यालय | देहरादून |
हिमगिरि नभ विश्वविद्यालय | निजि विश्वविद्यालय | देहरादून |
भारतीय चार्टर्ड वित्तीय विश्लेषक संस्थान (आइसीएफ़एआइ) | निजि विश्वविद्यालय | देहरादून |
भारतीय वानिकी संस्थान | डीम्ड विश्वविद्यालय | देहरादून |
हिमालयन इंस्टीट्यूट ऑफ़ हॉस्पिटल ट्रस्ट | डीम्ड विश्वविद्यालय | देहरादून |
ग्राफ़िक एरा विश्वविद्यालय | डीम्ड विश्वविद्यालय | देहरादून |
गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय | डीम्ड विश्वविद्यालय | हरिद्वार |
पतंजलि योगपीठ विश्वविद्यालय | निजि विश्वविद्यालय | हरिद्वार |
देव संस्कृति विश्वविद्यालय | निजि विश्वविद्यालय | हरिद्वार |
उत्तराखण्ड मुक्त विश्वविद्यालय | राज्य विश्वविद्यालय | हल्द्वानी |
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