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दीपावली
भारतीय त्यौहार (कार्तिक मास की अमावस्या) विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
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दीपावली अथवा दीवाली (संस्कृत: दीपावलिः, उत्तरी गोलार्ध की शरद् ऋतु में प्रतिवर्ष मनाया जाने वाला एक पौराणिक उत्सव है।[4][5] यह कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता है और भारत के सबसे बड़े और सर्वाधिक महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। आध्यात्मिक रूप से यह 'अन्धकार पर प्रकाश की विजय' को दर्शाता है।[6][7][8]
दिसम्बर २०२५ में यूनेस्को ने दीपावली को अपनी अमूर्त सांस्कृतिक विरासत सूची में शामिल कर लिया है।[9][10]

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शब्द उत्पत्ति
सारांश
परिप्रेक्ष्य
दीपावली शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के दो शब्दों 'दीप' अर्थात 'दिया' व 'आवली' अर्थात 'लाइन' या 'श्रृंखला' के मिश्रण से हुई है। इस उत्सव में घरों के द्वारों, घरों व मंदिरों पर लाखों प्रकाशकों को प्रज्वलित किया जाता है।
अन्य नाम
दीपावली, जिसे दिवाली भी कहा जाता है, विभिन्न भाषाओं में भिन्न-भिन्न नामों से जानी जाती है, जैसे:
- दीवाली, दीपावली
- 'ଦୀପାବଳୀ' (Dīpābaḷī) — उड़िया भाषा
- 'দীপাবলি' (Dīpāboli) — बंगाली भाषा
- 'দীপাৱলী' (Dīpāwoli) — असमीया भाषा
- 'ದೀಪಾವಳಿ' (Dīpāvalli) — कन्नड़ भाषा
- 'ദീപാവലി' (Dīpāvali) — मलयालम भाषा
- 'தீபாவளி' (Tīpāvaḷi) — तमिल भाषा
- 'దీపావళి' (Dīpāvaḷi) — तेलुगू भाषा
- 'દિવાળી' (Divāḷī) — गुजराती भाषा
- 'दिवाळी' (Divāḷī) — मराठी भाषा
- 'दिवाळी' (Divāḷī) — कोंकणी भाषा
- 'ਦਿਵਾਲੀ' (Divālī) — पंजाबी भाषा
- 'دِياڙي' (Diyāṛī) — सिंधी भाषा
- 'دیوالی' (Dīwālī) — उर्दू भाषा
- 'तिहार' (Tihār) — नेपाली भाषा
- 'दियाळी' (Diyāḷī) — मारवाड़ी भाषा
- 'ديوالي' (Dīwālī) — अरबी भाषा
- '排灯节' (Páidēngjié) — चीनी (सरल लिपि)
- '排燈節' (Páidēngjié) — चीनी (पारंपरिक लिपि)
- 'ディーワーリー' (Diwārī) — जापानी भाषा
- '디왈리' (Diwalli) — कोरियाई भाषा
- 'เทศกาลแห่งแสงสว่าง' (Thētsakān haeng sāengsawāng) — थाई भाषा
- 'Lichterfest' — जर्मन भाषा
- 'ဒီယို' (Diyo) — बर्मी भाषा
- 'Diwari' — थारू भाषा
- 'Sohrai' — संथाली भाषा
- 'Perayaan Cahaya' — मलय भाषा
- 'Lhochhar' — तमांग भाषा
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इतिहास
सारांश
परिप्रेक्ष्य
भारत में प्राचीन काल से दीपावली को विक्रम संवत् के कार्तिक माह में ग्रीष्म की फ़सल के बाद के एक त्योहार के रूप में दर्शाया गया।
पुराण
पद्म पुराण और स्कन्द पुराण में दीपावली का उल्लेख मिलता है। माना जाता है कि ये ग्रन्थ पहली सहस्त्राब्दी के दूसरे भाग में किन्हीं केंद्रीय पाठ को विस्तृत कर लिखे गए थे। दीये (दीपक) को स्कन्द पुराण में सूर्य के हिस्सों का प्रतिनिधित्व करने वाला माना गया है, सूर्य जो जीवन के लिए प्रकाश और ऊर्जा का लौकिक दाता है और जो हिन्दू कैलंडर अनुसार कार्तिक माह में अपनी स्तिथि बदलता है।[11][12]
उपनिषद्
कुछ क्षेत्रों में हिन्दू दीपावली को यम और नचिकेता की कथा के साथ भी जोड़ते हैं।[13] नचिकेता की कथा जो सही बनाम गलत, ज्ञान बनाम अज्ञान, सच्चा धन बनाम क्षणिक धन आदि के बारे में बताती है; पहली सहस्त्राब्दी ईसा पूर्व उपनिषद में लिखित है।[14]
रामायण
दिपावली का इतिहास रामायण से भी जुड़ा हुआ है, ऐसा माना जाता है कि श्री राम चन्द्र जी ने माता सीता को रावण की कैद से छुड़ाया तथा उनकी अग्नि परीक्षा के उपरान्त, १४ वर्ष का वनवास व्यतीत कर अयोध्या वापस लोटे थे। अयोध्या वासियों ने श्री राम चन्द्र जी, माता सीता, तथा अनुज लक्षमण के स्वागत हेतु सम्पूर्ण अयोध्या को दीप जलाकर रोशन किया था, तभी से दीपावली अर्थात दीपों का त्यौहार मनाया जाता है।
७वीं शताब्दी
७वीं शताब्दी के संस्कृत नाटक नागनंद में राजा हर्ष ने इसे दीपप्रतिपादुत्सवः कहा है जिसमें दीये जलाये जाते थे और नव वर-बधू को उपहार दिए जाते थे।[15][16]
९वीं शताब्दी
९ वीं शताब्दी में राजशेखर ने काव्यमीमांसा में इसे दीपमालिका कहा है जिसमें घरों की पुताई की जाती थी और तेल के दीयों से रात में घरों, सड़कों और बाजारों सजाया जाता था।[15]
११वीं शताब्दी
फ़ारसी यात्री और इतिहासकार अल बेरुनी, ने भारत पर अपने ११ वीं सदी के संस्मरण में, दीपावली को कार्तिक महीने में नये चन्द्रमा के दिन पर हिन्दुओं द्वारा मनाया जाने वाला त्यौहार कहा है।[17]
नर्क चतुर्दशी की रात्रि पर घर के अंदर दिये से की गयी सजावट | दीपावली(तिहार) के लिये रोशन एक नेपाली मन्दिर |
अमृतसर में दीपावली उत्सव | दीपावली की रात में चेन्नई के ऊपर आतिशबाज़ी |
ग्रामीण उत्सव – गंगा नदी में तैरता दिया | दीपावली "मिठाई" |

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महत्त्व
सारांश
परिप्रेक्ष्य
भारतवर्ष में मनाए जाने वाले सभी पर्वों में दीपावली का व्यवहारिक, सामाजिक और धार्मिक दृष्टियों से अत्यधिक महत्त्व है। इसे दीपोत्सव भी कहते हैं। ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ अर्थात अन्धकार की ओर नही, प्रकाश की ओर जाओ। यह उपनिषदों की आज्ञा है। इसे सिख, बौद्ध तथा जैन धर्म के लोग भी मनाते हैं। जैन धर्म के लोग इसे महावीर के मोक्ष दिवस के रूप में मनाते हैं[18][19] तथा सिख समुदाय इसे बन्दी छोड़ दिवस के रूप में मनाता है।
व्यवहारिक
सूर्य के भूमध्य रेखा के दक्षिण की ओर प्रस्थान करने पर शरद ऋतु की पहली अमावस्या होने के कारण कार्तिक मास की अमावस्या की रात बहुत अंधेरी व ठंडी होती है, जिसे रोशन व ऊष्मा युक्त करने के लिए दीपक जलाए जाते हैं।

स्वच्छता
दीपावली स्वच्छता व प्रकाश का पर्व है। कई सप्ताह पूर्व ही दीपावली की तैयारियाँ आरंभ हो जाती हैं। लोग अपने घरों, दुकानों आदि की सफाई का कार्य आरंभ कर देते हैं। घरों में मरम्मत, रंग-रोगन, सफ़ेदी आदि का कार्य होने लगता है। लोग दुकानों को भी स्वच्छ कर सजाते हैं। बाजारों में गलियों को भी स्वर्णिम झंडियों से सजाया जाता है। दीपावली से पहले ही घर-मोहल्ले, बाजार सब स्वच्छ और सजे दिखते हैं।
अवकाश
दीपावली के दिन नेपाल, भारत,[20] श्रीलंका, म्यांमार, मारीशस, गुयाना, त्रिनिदाद और टोबैगो, सूरीनाम, मलेशिया, सिंगापुर, फ़िजी, पाकिस्तान और औस्ट्रेलिया की बाहरी सीमा पर क्रिसमस द्वीप पर एक सरकारी अवकाश होता है।
नव वर्ष
इस दिन से नेपाल संवत् में नया वर्ष शुरू होता है।[21] भारत के कुछ पश्चिम और उत्तरी भागों में भी दीपावली का त्योहार एक नये हिन्दू वर्ष की शुरुआत का प्रतीक हैं।
मिठाईयाँ
लोगों अपने परिवार के सदस्यों और मित्रों को उपहार स्वरुप आम तौर पर मिठाइयाँ व सूखे मेवे देते हैं। परिवार के सदस्य और आमंत्रित मित्रगण भोजन और मिठायों के साथ रात को दीपावली मनाते हैं।[22][23]
कहानियाँ
इस दिन बच्चे अपने माता-पिता और बड़ों से अच्छाई और बुराई या प्रकाश और अंधेरे के बीच लड़ाई के बारे में प्राचीन कहानियों, कथाओं, मिथकों के बारे में सुनते हैं।
रंगोली
इस दौरान लड़कियाँ और महिलाएँ फर्श, दरवाज़े के पास और रास्तों पर रंगोली और अन्य रचनात्मक पैटर्न बनाती हैं।
प्रकाश व्यवस्था
युवा और वयस्क प्रकाश व्यवस्था में एक दूसरे की सहायता करते हैं।[22][23]
पूजा पाठ
धन और समृद्धि की देवी - लक्ष्मी या एक से अधिक देवताओं की पूजा की जाती है।
विधि
सबसे पहले चौकी पर लाल कपड़ा बिछाये लाल कपडे के बीच में गणेश जी और लक्ष्मी माता की मूर्तियां रखे। लक्ष्मी जी को ध्यान से गणेश जी के दाहिने तरफ ही बिढाये और दोनों मूर्तियों का चेहरा पूरब ौ पश्चिम दिशा की तरफ रखे। अब दोनों मूर्तियों के आगे थोड़े रुपए इच्छा अनुसार सोने चांदी के आभुश्ण और चांदी के ५ सिक्के भी रख दे। यह चांदी के सिक्के ही कुबेर जी का रूप है। लक्ष्मी जी की मूर्ति के दाहिनी ओर अछत से अष्टदल बनाएं यानी कि आठ दिशाएं उंगली से बनाए बीच से बाहर की ओर फिर जल से भरे कलश को उस पर रख दे। कलश के अंदर थोड़ा चंदन दुर्व पंचरत्न सुपारी आम के या केले के पत्ते डालकर मौली से बंधा हुआ नारियल उसमें रखें। पानी के बर्तन यानि जल पात्र में साफ पानी भरकर उसमें मौली बांधे और थोड़ा सा गंगाजल उसमें मिलाएं। इसके बाद चौकी के सामने बाकी पूजा सामग्री कि थालीया रखे। दो बडे दिये मे देसी घी डालकर और ग्यारह छोटे दिये मे सरसो का तेल भर तैयार करके रखे। घर के सभी लोगों के बैठ्ने के लिए चौकी के बगल आसन बना ले। ध्यान रखें ये सभी काम शुभ मुहुरत शुरू होने से पहले ही करने होंगे।
आध्यात्मिक
दीपावली को विभिन्न ऐतिहासिक घटनाओं, कहानियों या मिथकों को चिह्नित करने के लिए हिन्दू, जैन और सिखों द्वारा मनायी जाती है लेकिन वे सब बुराई पर अच्छाई, अंधकार पर प्रकाश, अज्ञान पर ज्ञान और निराशा पर आशा की विजय के दर्शाते हैं।[6][24]
हिन्दुओं के योग, वेदान्त, और सांख्य दर्शन में यह विश्वास है कि इस भौतिक शरीर और मन से परे वहां कुछ है जो शुद्ध, अनन्त, और शाश्वत है जिसे आत्मन् या आत्मा कहा गया है। दीपावली, आध्यात्मिक अन्धकार पर आन्तरिक प्रकाश, अज्ञान पर ज्ञान, असत्य पर सत्य और बुराई पर अच्छाई का उत्सव है।[25][26][27][28]
धार्मिक

दीपावली का धार्मिक महत्व हिन्दू दर्शन, क्षेत्रीय मिथकों, किंवदंतियों, और मान्यताओं पर निर्भर करता है।
रामायण
प्राचीन हिन्दू ग्रन्थ रामायण में बताया गया है कि, कई लोग दीपावली को १४ साल के वनवास पश्चात भगवान राम व पत्नी सीता और उनके भाई लक्ष्मण की वापसी के सम्मान के रूप में मानते हैं।[29]
महाभारत
अन्य प्राचीन हिन्दू महाकाव्य महाभारत अनुसार कुछ दीपावली को १२ वर्षों के वनवास व १ वर्ष के अज्ञातवास के बाद पांडवों की वापसी के प्रतीक रूप में मानते हैं।
लक्ष्मी
एक पौराणिक कथा के अनुसार विंष्णु ने नरसिंह रूप धारणकर हिरण्यकश्यप का वध किया था[30] तथा इसी दिन समुद्रमंथन के पश्चात लक्ष्मी व धन्वंतरि प्रकट हुए। कई लोग दीपावली को भगवान विष्णु की पत्नी तथा उत्सव, धन और समृद्धि की देवी लक्ष्मी से जुड़ा हुआ मानते हैं। दीपावली का पांच दिवसीय महोत्सव देवताओं और राक्षसों द्वारा दूध के लौकिक सागर के मंथन से पैदा हुई लक्ष्मी के जन्म दिवस से शुरू होता है। दीपावली की रात वह दिन है जब लक्ष्मी ने अपने पति के रूप में विष्णु को चुना और फिर उनसे शादी की।[11][31]
भारत के पूर्वी क्षेत्र उड़ीसा और पश्चिम बंगाल में हिन्दू लक्ष्मी की जगह काली की पूजा करते हैं, और इस त्योहार को काली पूजा कहते हैं।[32][33]
देवी-देवता
लक्ष्मी के साथ-साथ भक्त बाधाओं को दूर करने के प्रतीक गणेश; संगीत, साहित्य की प्रतीक सरस्वती; और धन प्रबंधक कुबेर को प्रसाद अर्पित करते हैं[11] कुछ दीपावली को विष्णु की वैकुण्ठ में वापसी के दिन के रूप में मनाते है। मान्यता है कि इस दिन लक्ष्मी प्रसन्न रहती हैं और जो लोग उस दिन उनकी पूजा करते है वे आगे के वर्ष के दौरान मानसिक, शारीरिक दुखों से दूर सुखी रहते हैं। [34]
कृष्ण
मथुरा और उत्तर मध्य क्षेत्रों में इसे भगवान कृष्ण से जुड़ा मानते हैं। अन्य क्षेत्रों में, गोवर्धन पूजा (या अन्नकूट) की दावत में कृष्ण के लिए ५६ या १०८ विभिन्न व्यंजनों का भोग लगाया जाता है और सांझे रूप से स्थानीय समुदाय द्वारा मनाया जाता है। कृष्ण भक्तिधारा के लोगों का मत है कि इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने अत्याचारी राजा नरकासुर का वध किया था।[35][36][30] इस नृशंस राक्षस के वध से जनता में अपार हर्ष फैल गया और प्रसन्नता से भरे लोगों ने घी के दीए जलाए।

जैन
जैन मतावलंबियों के अनुसार चौबीसवें तीर्थंकर, महावीर स्वामी को इस दिन मोक्ष की प्राप्ति हुई थी।[30] इसी दिन उनके प्रथम शिष्य, गौतम गणधर को केवल ज्ञान प्राप्त हुआ था।
जैन समाज द्वारा दीपावली, महावीर स्वामी के निर्वाण दिवस के रूप में मनाई जाती है। महावीर स्वामी (वर्तमान अवसर्पिणी काल के अंतिम तीर्थंकर) को इसी दिन (कार्तिक अमावस्या) को मोक्ष की प्राप्ति हुई थी। इसी दिन संध्याकाल में उनके प्रथम शिष्य गौतम गणधर को केवल ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। अतः अन्य सम्प्रदायों से जैन दीपावली की पूजन विधि पूर्णतः भिन्न है।

सिख
सिक्खों के लिए भी दीपावली महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इसी दिन ही अमृतसर में १५७७ में स्वर्ण मन्दिर का शिलान्यास हुआ था।[30] और इसके अलावा १६१९ में दीपावली के दिन सिक्खों के छठे गुरु हरगोबिन्द सिंह जी को जेल से रिहा किया गया था।
अन्य महापुरुष
स्वामी रामतीर्थ
पंजाब में जन्मे स्वामी रामतीर्थ का जन्म व महाप्रयाण दोनों दीपावली के दिन ही हुआ। इन्होंने दीपावली के दिन गंगातट पर स्नान करते समय 'ओम' कहते हुए समाधि ले ली।
दयानंद सरस्वती
दयानंद सरस्वती ने भारतीय संस्कृति के महान जननायक बनकर दीपावली के दिन अजमेर के निकट अवसान लिया। इन्होंने आर्य समाज की स्थापना की।
मुस्लिम
दीन-ए-इलाही के प्रवर्तक मुगल सम्राट अकबर के शासनकाल में दौलतखाने के सामने ४० गज ऊँचे बाँस पर एक बड़ा आकाशदीप दीपावली के दिन लटकाया जाता था। बादशाह जहाँगीर भी दीपावली धूमधाम से मनाते थे। मुगल वंश के अंतिम सम्राट बहादुर शाह जफर दीपावली को त्योहार के रूप में मनाते थे और इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रमों में वे भाग लेते थे। शाह आलम द्वितीय के समय में समूचे शाही महल को दीपों से सजाया जाता था एवं लालकिले में आयोजित कार्यक्रमों में हिन्दू-मुसलमान दोनों भाग लेते थे।
आर्थिक
आर्थिक गतिविधियों के संदर्भ में दीपावली, पश्चिम में क्रिसमस के बराबर है। दीपावली नेपाल और भारत में सबसे बड़े शॉपिंग सीजन में से एक है; इस दौरान लोग कारें और सोने के गहने आदि महंगी वस्तुएँ तथा स्वयं और अपने परिवारों के लिए कपड़े, उपहार, उपकरण, रसोई के बर्तन आदि खरीदते हैं।[37] यह पर्व नए कपड़े, घर के सामान, उपहार, सोने और अन्य बड़ी ख़रीददारी का समय होता है। इस त्योहार पर खर्च और ख़रीद को शुभ माना जाता है क्योंकि लक्ष्मी को, धन, समृद्धि, और निवेश की देवी माना जाता है।[38][39] दीपावली भारत में सोने और गहने की ख़रीद का सबसे बड़ा सीज़न है।[40][41] मिठाई, 'कैंडी' और आतिशबाज़ी की ख़रीद भी इस दौरान अपने चरम सीमा पर रहती है। प्रत्येक वर्ष दीपावली के दौरान पांच हज़ार करोड़ रुपए के पटाखों आदि की खपत होती है।[42]
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संसार के अन्य भागों में
सारांश
परिप्रेक्ष्य
दीपावली को विशेष रूप से हिन्दू, जैन और सिख समुदाय के साथ विशेष रूप से विश्व भर में मनाया जाता है। ये, श्रीलंका, पाकिस्तान, म्यांमार, थाईलैण्ड, मलेशिया, सिंगापुर, इंडोनेशिया, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैण्ड, फ़िजी, मॉरीशस, केन्या, तंज़ानिया, दक्षिण अफ़्रीका, गुयाना, सूरीनाम, त्रिनिदाद और टोबैगो, नीदरलैण्ड, कनाडा, ब्रिटेन शामिल संयुक्त अरब अमीरात, और संयुक्त राज्य अमेरिका। भारतीय संस्कृति की समझ और भारतीय मूल के लोगों के वैश्विक प्रवास के कारण दीपावली मनाने वाले देशों की संख्या धीरे-धीरे बढ़ रही है। कुछ देशों में यह भारतीय प्रवासियों द्वारा मुख्य रूप से मनाया जाता है, अन्य दूसरे स्थानों में यह सामान्य स्थानीय संस्कृति का हिस्सा बनता जा रहा है। इन देशों में अधिकांशतः दीपावली को कुछ मामूली बदलाव के साथ इस लेख में वर्णित रूप में उसी तर्ज पर मनाया जाता है पर कुछ महत्वपूर्ण विविधताएँ उल्लेख के लायक हैं।
एशिया
नेपाल

दीपावली को "तिहार" या "स्वन्ति" के रूप में जाना जाता है। यह भारत में दीपावली के साथ ही पांच दिन की अवधि तक मनाया जाता है। परन्तु परम्पराओं में भारत से भिन्नता पायी जाती है। पहले दिन 'काग तिहार' पर, कौए को परमात्मा का दूत होने की मान्यता के कारण प्रसाद दिया जाता है। दूसरे दिन 'कुकुर तिहार' पर, कुत्तों को अपनी ईमानदारी के लिए भोजन दिया जाता है। काग और कुकुर तिहार के बाद 'गाय तिहार' और 'गोरु तिहार' में, गाय और बैल को सजाया जाता है। तीसरे दिन लक्ष्मी पूजा की जाती है। इस नेपाल संवत्् अनुसार यह साल का आखिरी दिन है, इस दिन व्यापारी अपने सारे खातों को साफ कर उन्हें समाप्त कर देते हैं। लक्ष्मी पूजा से पहले, मकान साफ किया और सजाया जाता है; लक्ष्मी पूजा के दिन, तेल के दीयों को दरवाज़े और खिड़कियों के पास जलाया जाता है। चौथे दिन को नए वर्ष के रूप में मनाया जाता है। सांस्कृतिक जुलूस और अन्य समारोहों को भी इसी दिन मनाया जाता है।पांचवे और अंतिम दिन को "भाई टीका" (भाई दूज देखें) कहा जाता, भाई बहनों से मिलते हैं, एक दूसरे को माला पहनाते व भलाई के लिए प्रार्थना करते हैं। माथे पर टीका लगाया जाता है। भाई अपनी बहनों को उपहार देते हैं और बहने उन्हें भोजन करवाती हैं। [44]
मलेशिया
दीपावली मलेशिया में एक संघीय सार्वजनिक अवकाश है। यहां भी यह काफी हद तक भारतीय उपमहाद्वीप की परंपराओं के साथ ही मनाया जाता है। 'ओपन हाउसेस' मलेशियाई हिन्दू (तमिल,तेलुगू और मलयाली)द्वारा आयोजित किये जाते हैं जिसमें भोजन के लिए अपने घर में अलग अलग जातियों और धर्मों के साथी मलेशियाई लोगों का स्वागत किया जाता है। मलेशिया में दीपावली का त्यौहार धार्मिक सद्भावना और मलेशिया के धार्मिक और जातीय समूहों के बीच मैत्रीपूर्ण संबंधों के लिए एक अवसर बन गया है।
सिंगापुर

दीपावली एक राजपत्रित सार्वजनिक अवकाश है। अल्पसंख्यक भारतीय समुदाय (तमिल) द्वारा इसे मुख्य रूप से मनाया जाता है, यह आम तौर पर छोटे भारतीय जिलों में, भारतीय समुदाय द्वारा लाइट-अप द्वारा चिह्नित किया जाता है। इसके अलावा बाजारों, प्रदर्शनियों, परेड और संगीत के रूप में अन्य गतिविधियों को भी लिटिल इंडिया के इलाके में इस दौरान शामिल किया जाता है। सिंगापुर की सरकार के साथ-साथ सिंगापुर के हिन्दू बंदोबस्ती बोर्ड इस उत्सव के दौरान कई सांस्कृतिक कार्यक्रमों के आयोजन करता है।[46]
श्री लंका
यह त्यौहार इस द्वीप देश में एक सार्वजनिक अवकाश के रूप में तमिल समुदाय द्वारा मनाया जाता है। इस दिन पर लोग द्वारा सामान्यतः सुबह के समय तेल से स्नान करा जाता है , नए कपड़े पहने जाते हैं, उपहार दिए जाते है, पुसै (पूजा) के लिए कोइल (हिन्दू मंदिर) जाते हैं। त्योहार की शाम को पटाखे जलना एक आम बात है। हिन्दुओं द्वारा आशीर्वाद के लिए व घर से सभी बुराइयों को सदा के लिए दूर करने के लिए धन की देवी लक्ष्मी को तेल के दिए जलाकर आमंत्रित किया जाता है। श्रीलंका में जश्न के अलावा खेल, आतिशबाज़ी, गायन और नृत्य, व भोज आदि का अयोजन किया जाता है।
एशिया के परे

ऑस्ट्रेलिया
ऑस्ट्रेलिया के मेलबॉर्न में, दीपावली को भारतीय मूल के लोगों और स्थानीय लोगों के बीच सार्वजनिक रूप से मनाया जाता है। फ़ेडरेशन स्क्वायर पर दीपावली को विक्टोरियन आबादी और मुख्यधारा द्वारा गर्मजोशी से अपनाया गया है। सेलिब्रेट इंडिया इंकॉर्पोरेशन ने २००६ में मेलबोर्न में प्रतिष्ठित फेडरेशन स्क्वायर पर दीपावली समारोह शुरू किया था। अब यह समारोह मेलबॉर्न के कला कैलेंडर का हिस्सा बन गया है और शहर में इस समारोह को एक सप्ताह से अधिक तक मनाया जाता है।
पिछले वर्ष ५६,००० से अधिक लोगों ने समारोह के अंतिम दिन पर फ़ेडरेशन स्क्वायर का दौरा किया था और मनोरंजक लाइव संगीत, पारंपरिक कला, शिल्प और नृत्य और यारा नदी पर शानदार आतिशबाज़ीे के साथ ही भारतीय व्यंजनों की विविधता का आनंद लिया।
विक्टोरियन संसद, मेलबोर्न संग्रहालय, फेडरेशन स्क्वायर, मेलबोर्न हवाई अड्डे और भारतीय वाणिज्य दूतावास सहित कई प्रतिष्ठित इमारतों को इस सप्ताह अधिक सजाया जाता है। इसके साथ ही, कई बाहरी नृत्य का प्रदर्शन होता हैं। दीपावली की यह घटना नियमित रूप से राष्ट्रीय संगठनों एएफएल, क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया, व्हाइट रिबन, मेलबोर्न हवाई अड्डे जैसे संगठनों और कलाकारों को आकर्षित करती है। स्वयंसेवकों की एक टीम व उनकी भागीदारी और योगदान से यह एक विशाल आयोजन के रूप में भारतीय समुदाय को प्रदर्शित करता है।
अकेले इस त्योहार के दौरान एक सप्ताह की अवधि में भाग लेने आये लोगों की संख्या के कारण फेडरेशन स्क्वायर पर दिवाली को ऑस्ट्रेलिया में सबसे बड़े उत्सव के रूप में पहचाना जाता है।
ऑस्ट्रेलियाई बाहरी राज्य क्षेत्र, क्रिसमस द्वीप पर, दीपावली के अवसर पर ऑस्ट्रेलिया और मलेशिया के कई द्वीपों में आम अन्य स्थानीय समारोहों के साथ, एक सार्वजनिक अवकाश के रूप में मान्यता प्राप्त है।[48][49]
संयुक्त राज्य अमेरिका

२००३ में दीपावली को व्हाइट हाउस में पहली बार मनाया गया और पूर्व राष्ट्रपति जॉर्ज वॉकर बुश द्वारा २००७ में संयुक्त राज्य अमेरिका कांग्रेस द्वारा इसे आधिकारिक दर्जा दिया गया।[51][52] २००९ में बराक ओबामा, व्हाइट हाउस में व्यक्तिगत रूप से दीपावली में भाग लेने वाले पहले राष्ट्रपति बने। संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति के रूप में भारत की अपनी पहली यात्रा की पूर्व संध्या पर, ओबामा ने दीपावली की शुभकामनाएं बांटने के लिए एक आधिकारिक बयान जारी किया।[53]
२००९ में काउबॉय स्टेडियम में, दीपावली मेला में १००,००० लोगों की उपस्थिति का दावा किया था। २००९ में, सैन एन्टोनियो आतिशबाज़ी प्रदर्शन सहित एक अधिकारिक दीपावली उत्सव को प्रायोजित करने वाला पहला अमेरिकी शहर बन गया; जिसमे २०१२ में, १५,००० से अधिक लोगों ने भाग लिया था।[54] वर्ष २०११ में न्यूयॉर्क शहर, पियरे में, जोकि अब टाटा समूह के ताज होटल द्वारा संचालित हैं, ने अपनी पहली दीपावली उत्सव का आयोजन किया।[55] संयुक्त राज्य अमेरिका में लगभग ३ लाख हिन्दू हैं।[56]
ब्रिटेन

ब्रिटेन में भारतीय लोग बड़े उत्साह के साथ दिपावली मनाते हैं। लोग अपने घरों को दीपक और मोमबत्तियों के साथ सजाते और स्वच्छ करते हैं। दीया एक प्रकार का प्रसिद्ध मोमबत्ति हैं। लोग लड्डू और बर्फी जैसी मिठाइयो को भी एक दूसरे में बाटते है, और विभिन्न समुदायों के लोग एक धार्मिक समारोह के लिए इकट्ठा होते है और उसमे भाग लेते हैं। भारत में परिवार से संपर्क करने और संभवतः उपहार के आदान प्रदान के लिए भी यह एक बहुत अच्छा अवसर है।
व्यापक ब्रिटिश के अधिक गैर-हिन्दु नागरिकों को सराहना चेतना के रूप में दीपावली के त्योहार की स्वीकृति मिलना शुरू हो गया है और इस अवसर पर वो हिन्दू धर्म का जश्न मानते है। हिन्दुओ के इस त्यौहार को पूरे ब्रिटेन भर में मनाना समुदाय के बाकी लोगों के लिए विभिन्न संस्कृतियों को समझने का अवसर लाता है।[58][59] पिछले दशक के दौरान प्रिंस चार्ल्स जैसे राष्ट्रीय और नागरिक नेताओं ने ब्रिटेन के Neasden में स्थित स्वामीनारायण मंदिर जैसे कुछ प्रमुख हिन्दू मंदिरों में दीपावली समारोह में भाग लिया है, और ब्रिटिश जीवन के लिए हिन्दू समुदाय के योगदान की प्रशंसा करने के लिए इस अवसर का उपयोग किया।[60][61][62] वर्ष २०१३ में प्रधानमंत्री डेविड कैमरन और उनकी पत्नी, दीपावली और हिन्दू नववर्ष अंकन Annakut त्योहार मनाने के लिए Neasden में बीएपीएस स्वामीनारायण मंदिर में हजारों भक्तों के साथ शामिल हो गए।[63] २००९ के बाद से, दीपावली हर साल ब्रिटिश प्रधानमंत्री के निवास स्थान, १० डाउनिंग स्ट्रीट, पर मनाया जा रहा है। [64] वार्षिक उत्सव, गॉर्डन ब्राउन द्वारा शुरू करना और डेविड कैमरन द्वारा जारी रखना, ब्रिटिश प्रधानमंत्री द्वारा की मेजबानी की सबसे प्रत्याशित घटनाओं में से एक है।[58]
लीसेस्टर भारत के बाहर कुछ सबसे बड़ी दिपावली समारोह के लिए मेजबान की भूमिका निभाता है।[65]
न्यूज़ीलैण्ड
न्यूजीलैण्ड में, दीपावली दक्षिण एशियाई प्रवासी के सांस्कृतिक समूहों में से कई के बीच सार्वजनिक रूप से मनाया जाता है। न्यूजीलैण्ड में एक बड़े समूह दिपावली मानते हैं जो भारत-फ़ीजी समुदायों के सदस्य हैं जोकि प्रवासित हैं और वहाँ बसे हैं। दिवाली २००३ में, एक अधिकारिक स्वागत के बाद न्यूजीलैण्ड की संसद पर आयोजित किया गया था।[66] दीपावली हिन्दुओं द्वारा मनाया जाता है। त्योहार अंधकार पर प्रकाश, अन्याय पर न्याय, अज्ञान से अधिक बुराई और खुफिया पर अच्छाई, की विजय का प्रतीक हैं। लक्ष्मी माता को पूजा जाता है। लक्ष्मी माता प्रकाश, धन और सौंदर्य की देवी हैं। बर्फी और प्रसाद दिपावली के विशेष खाद्य पदार्थ हैं।
फ़िजी
फ़िजी में, दीपावली एक सार्वजनिक अवकाश है और इस धार्मिक त्यौहार को हिन्दुओं (जो फ़िजी की आबादी का करीब एक तिहाई भाग का गठन करते है) द्वारा एक साथ मनाया जाता है, और सांस्कृतिक रूप से फ़िजी के दौड़ के सदस्यों के बीच हिस्सा लेते है और यह बहुत समय इंतजार करने के बाद साल में एक बार आता है। यह मूल रूप से १९ वीं सदी के दौरान फ़िजी के तत्कालीन कालोनी में ब्रिटिश शासन के दौरान भारतीय उपमहाद्वीप से आयातित गिरमिटिया मजदूरों द्वारा मनाया है, सरकार की कामना के रूप में फ़िजी के तीन सबसे बड़े धर्मों, यानि, ईसाई धर्म, हिन्दू धर्म और इस्लाम के प्रत्येक की एक अलग से धार्मिक सार्वजनिक छुट्टी करने की स्थापना के लिए यह १९७० में स्वतंत्रता पर एक छुट्टी के रूप में स्थापित किया गया था।
फ़िजी में, भारत में दिपावली समारोह से एक बड़े पैमाने पर मनाया जाने के रूप में दीपावली पर अक्सर भारतीय समुदाय के लोगों द्वारा विरोध किया जाता है, आतिशबाज़ी और दीपावली से संबंधित घटनाओं को वास्तविक दिन से कम से कम एक सप्ताह शुरू पहले किया जाता है। इसकी एक और विशेषता है कि दीपावली का सांस्कृतिक उत्सव (अपने पारंपरिक रूप से धार्मिक उत्सव से अलग), जहां फ़िजीवासियों भारतीय मूल या भारत-फ़िजीवासियों, हिन्दू, ईसाई, सिख या अन्य सांस्कृतिक समूहों के साथ मुस्लिम भी फ़िजी में एक समय पर मित्रों और परिवार के साथ मिलने और फ़िजी में छुट्टियों के मौसम की शुरुआत का संकेत के रूप में दीपावली का जश्न मनाते है। व्यावसायिक पक्ष पर, दीपावली कई छोटे बिक्री और मुफ्त विज्ञापन वस्तुएँ के लिए एक सही समय है। फ़िजी में दीपावली समारोह ने, उपमहाद्वीप पर समारोह से स्पष्ट रूप से अलग, अपने खुद के एक स्वभाव पर ले लिया है।
समारोह के लिए कुछ दिन पहले नए और विशेष कपड़े, साथ साड़ी और अन्य भारतीय कपड़ों में ड्रेसिंग के साथ सांस्कृतिक समूहों के बीच खरीदना, और सफाई करना, दीपावली इस समय का प्रतिक होता है। घरों को साफ करते हैं और तेल के लैंप या दीये जलाते हैं। सजावट को रंगीन रोशनी, मोमबत्तियाँ और कागज लालटेन, साथ ही धार्मिक प्रतीकों का उपयोग कर रंग के चावल और चाक से बाहर का एक रंगीन सरणी साथ गठन कर के घर के आसपास बनाते है। परिवार, मित्रों और पड़ोसियों और घरों के लिए बनाए गये निमंत्रण पत्र खुल जाते है। उपहार बनते हैं और प्रार्थना या पूजा हिन्दुओं द्वारा किया जाता है। मिठाई और सब्जियों के व्यंजन अक्सर इस समय के दौरान खाया जाता है और आतिशबाज़ी दिपावली से दो दिन पहले और बाद तक में जलाए जाते है।
अफ़्रीका
मॉरिशस
अफ़्रीकी हिन्दू बहुसंख्यक देश मॉरिशस में यह एक अधिकारिक सार्वजनिक अवकाश है।
रीयूनियन
रियूनियन में, कुल जनसंख्या का एक चौथाई भाग भारतीय मूल का है और हिन्दुओं द्वारा इसे मनाया जाता है।
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पर्वों का समूह दीपावली

दीपावली के दिन भारत में विभिन्न स्थानों पर मेले लगते हैं।[67] दीपावली एक दिन का पर्व नहीं अपितु पर्वों का समूह है। दशहरे के पश्चात ही दीपावली की तैयारियाँ आरंभ हो जाती है। दीपावली से दो दिन पूर्व धनतेरस का त्योहार आता है। इससे अगले दिन नरक चतुर्दशी या छोटी दीपावली होती है। दीपावली से अगले दिन गोवर्धन पर्वत अपनी अँगुली पर उठाकर इंद्र के कोप से डूबते ब्रजवासियों को बनाया था। इसी दिन लोग अपने गाय-बैलों को सजाते हैं तथा गोबर का पर्वत बनाकर गोवर्धन पूजा करते हैं। अगले दिन भाई दूज का पर्व होता है। कृषक वर्ग के लिये इस पर्व का विशेष महत्त्व है। खरीफ़ की फ़सल पक कर तैयार हो जाने से कृषकों के खलिहान समृद्ध हो जाते हैं। कृषक समाज अपनी समृद्धि का यह पर्व उल्लासपूर्वक मनाता हैं।
आर्थिक, सामाजिक, शारीरिक, बौद्धिक लाभ और परम लाभ पहुँचाने की व्यवस्था के उत्सवों का नाम है दीपावली उत्सव, पर्वों का झुमका । धनतेरस, नरक चतुर्दशी, दिवाली, नूतन वर्ष, भाईदूज – इन पाँच पर्वों का पुंज है दीपावली पर्व ।[68]

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आतिशबाज़ी
सारांश
परिप्रेक्ष्य
विश्व के अन्य प्रमुख त्योहारों के साथ ही दीपावली में भी आतिशबाज़ी की जाती है। दीपावली की रात को, आतिशबाज़ी आसमान को रोशन कर देती है। आतिशबाज़ी को खुशियों को दिखाने का एक माध्यम भी माना जाता है, लेकिन इसके कारण पर्यावरण और स्वास्थ्य पर प्रभाव चिंता योग्य है।
वायु प्रदूषण
विद्वानों के अनुसार आतिशबाज़ी के दौरान इतना वायु प्रदूषण नहीं होता जितना आतिशबाज़ी के बाद, जो आतिशबाज़ी के पूर्व स्तर से करीब चार गुना बदतर और सामान्य दिनों के औसत स्तर से दो गुना बुरा पाया जाता है। इस अध्ययन की वजह से पता चलता है कि आतिशबाज़ी के बाद हवा में धूल के महीन कण PM२.५ हवा में उपस्थित रहते हैं। यह प्रदूषण स्तर एक दिन के लिए रहता है, और प्रदूषक सांद्रता २४ घंटे के बाद वास्तविक स्तर पर लौटने लगती है।[69] अत्री एट अल की रिपोर्ट अनुसार नए साल की पूर्व संध्या या संबंधित राष्ट्रीय के स्वतंत्रता दिवस पर विश्व भर आतिशबाज़ी समारोह होते हैं जो ओजोन परत में छेद के कारक हैं। [70]
जलने की घटनाएं
दीपावली की आतिशबाज़ी के दौरान भारत में जलने की चोटों में वृद्धि पायी गयी है। अनार नामक एक आतशबाज़ी को ६५% चोटों का कारण पाया गया है। अधिकांशतः वयस्क इसका शिकार होते हैं। समाचार पत्र, घाव पर समुचित नर्सिंग के साथ प्रभावों को कम करने में मदद करने के लिए जले हुए हिस्से पर तुरंत ठंडे पानी को छिड़कने की सलाह देते हैं अधिकांश चोटें छोटी ही होती हैं जो प्राथमिक उपचार के बाद भर जाती हैं।[71][72]
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दीपावली की प्रार्थनाएं
प्रार्थनाएं क्षेत्र अनुसार प्रार्थनाएं अगला-अलग होती हैं। उदाहरण के लिए बृहदारण्यक उपनिषद की ये प्रार्थना जिसमें प्रकाश उत्सव चित्रित है:[73][74][75][76]
असतो मा सद्गमय।
तमसो मा ज्योतिर्गमय।
मृत्योर्मा अमृतं गमय।
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
मुझे असत्य से सत्य की ओर ले चलो।
मुझे अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो।
मुझे मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो।
ॐ शांति शांति शांति।।
तिथि
दीपावली कार्तिक महीने के अमावस्या को मनाई जाती है।
२०२४
पंचांग के अनुसार वर्ष २०२४ में ३१ अक्टूबर यानी गुरूवार को अमावस्था तिथि दिन में २ बजकर ४० मिनट से लग रही है। इस कारण से दीपावली ३१ अक्टूबर को मनाई जाएगी | दीपावली के त्योहार पर रात्रि में अमावस्या तिथि होनी चाहिए जो कि १ नवंबर २०२४ को शाम के समय नहीं है। ऐसे में दीपावली का त्योहार ३१ अक्टूबर को मनाया जाएगा |[79]
चित्र
इन्हें भी देखें
- कार्तिक दीपम् -- दक्षिण भारत के राज्यों में मनाया जाने वाला एक दीपोत्सव
सन्दर्भ
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