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सेवा मन्दिर उदयपुर में 1969 में डॉ॰ मोहन सिंह मेहता द्वारा स्थापित एक स्वैच्छिक संस्था (ट्रस्ट)[1] है, जो ग्रामीण विकास, महिला सशक्तिकरण, स्वास्थ्य, बाल-विकास, प्रौढ़-साक्षरता, पेयजल, रोज़गार-विकास, पर्यावरण-संरक्षण, ग्राम्य-स्वच्छता आदि कई क्षेत्रों में उदयपुर और राजसमन्द जिलों में स्वयंसेवकों के माध्यम से समाज-कार्य गतिविधियों का संचालन कर रहा है|[2]
(मेवाड़ के गौरव : जीवनी: डॉ॰ मोहनसिंह मेहता – लेखक : अब्दुल अहद-पृ. 186) का उद्धरण:
"......लगभग 18 वर्ष उदयपुर से बाहर रहने के पश्चात् डॉ॰ मोहनसिंह मेहता सन् 1967 ई. में उदयपुर आ गये। इसी वर्ष आपने सेवा मंदिर की स्थापना[3] की। "
"सेवा मन्दिर की कल्पना और विद्या भवन का विचार एक ही वक्त के उठाये गये दो कदम थे। सन् 1931 में ही सेवा मन्दिर के लिये जमीन खरीद ली गई थी जिसकी कुल लागत 600/- रू. थी। यही वह जमीन है, जहाँँ आज सेवा मन्दिर है। सेवा मन्दिर के कार्य में किसी प्रकार की बाधा न आये इसलिये उन्होंने एक ट्रस्ट सेवा मन्दिर ट्रस्ट बनाया। उस समय उनके पास इतना धन नहीं था कि भवन निर्माण करायें, अत: अपनी मर्सिडीज़ गाड़ी, जो वह हौलेंड (नीदरलैण्ड) से लाये थे, 37000/- रू. में बेच कर वहां सेवा मंदिर का भवन बनाया और स्वयं का आवास भी वहीं रखा। सबसे पहले निरक्षरता उन्मूलन का कार्य प्रारम्भ किया गया और पास ही के गाँव बड़गांव में 22 फ़रवरी 1969 को लिटरेसी हाउस, लखनऊ की सहायता से इस कार्य का श्रीगणेश किया। उस समय कनाडा की वेल्दी फिशर इसकी अध्यक्ष थीं | दयाल चन्द सोनी इसके पहले उपनिदेशक नियुक्त किये गये। पास ही के लखावली गांव में इस परियोजना का उद्घाटन हुआ। इसी वर्ष भारत सरकार ने डॉ॰ मेहता को `पद्म विभूषण’ से भी सम्मानित किया।"[4]
"सेवा मन्दिर का काम प्रौढ शिक्षा के माध्यम से शुरू हुआ। डॉ॰ मेहता का मूल सोच यही था कि लोगों की अज्ञान ही गरीबी का मूल कारण है। इस आधार पर जब डॉ॰ मेहता ने साक्षरता, नाट्य-दल के माध्यम से प्रचार, शैक्षिक वार्ताएँँ आदि के माध्यम से अपना काम शुरू किया, तो आगे का रास्ता अपने आप दिखता चला गया। इससे उन्हें नई दिशा मिली कि साक्षरता के साथ-साथ लोगों की रोटी-रोजी के लिये उनकी दक्षता का भी विकास किया जाय। गाँँवों की जनता किसान है, अत: पाठ्यपुस्तक `किसान प्रवेशिका’ के माध्यम से यह कार्य करने का निर्णय लिया गया, जिसके परिणाम सुखद रहे। 'किसान प्रवेशिका' जो पहले हिन्दी में थी, उसे मेवाड़ी एवं वागड़ी की स्थानीय बोली में भी नए सिरे से बनाना पड़ा, जिसे राजस्थान की अन्य संस्थाओं ने भी अपने कार्यक्रमों के लिये चुना।" (वही-पृ.186)
"सेवामन्दिर के कार्य की प्रतिष्ठा के कारण सरकार ने विकास के कई कार्य भी सेवा मन्दिर को दिये। इसमें `जल विकास’ का कार्य अपने हाथ में लिया। सरकार के सहयोग से 'हमजोली' विकास की योजना उन्होंने क्रियान्वित की, जिसमें कृषि, अभियांत्रिकी एवं सहकारिता पर विशेष जोर दिया गया। सेवा मन्दिर के इतिहास का पहला एनीकट निर्माण इसी काल में हुआ।
इसी प्रकार महिला सशक्तिकरण का कार्य भी राजस्थान में सर्वप्रथम इसी संस्था ने प्रारम्भ किया। इसी प्रकार सेवा मन्दिर में ही ग्रामीण विकास का प्रकाशन एवं शिक्षा के कार्य को प्रभावी ढंग से करने की दिशा में अलग-अलग प्रकोष्ठों का निर्माण किया गया। (नाटककार रिजवान ज़हीर उस्मान, लेखक अशोक आत्रेय, समाजकर्मी कमला भसीन आदि लोग संस्था से इसी काल में जुड़े) चित्तौड़ और जयसमन्द के वार्षिक कैम्प में यह निश्चय किया गया कि सेवा मन्दिर का अपना प्रशिक्षण केन्द्र भी होना चाहिये, जहाँँ ग्रामवासियों को उनकी आवश्यकतानुसार प्रशिक्षित या दक्ष किया जाय।" (वही-पृष्ठ 187)
"सेवा मन्दिर ने 80 के दशक के प्रारम्भ में `सामुदायिक विकास के लिये विकास योजना’ पर चर्चा कर यह निर्णय लिया कि सेवा मन्दिर, लोक-माँग और लोक-आवश्यकता के आधार पर जहाँँ लोग विकास की जिम्मेदारी भविष्य में लेने को तैयार हों, वहीं संस्था कार्य की जरूरत के मुताबिक कार्य करे, लोगों में क्षमता का विकास करे तथा विकास के नये विकल्प लोगों के समक्ष रखे।" (वही-पृ.188)
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