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यंत्र

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यंत्र
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कोई भी युक्ति जो उर्जा लेकर कुछ कार्यकलाप करती है उसे यंत्र या मशीन (machine) कहते हैं। सरल मशीन वह युक्ति है जो लगाये जाने वाले बल का परिमाण या दिशा को बदल दे किन्तु स्वयं कोई उर्जा खपत न करे।

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जेम्स अल्बर्ट बोनसैक द्वारा सन् १८८० में विकसित मशीन ; यह मशीन प्रति घण्टे लगभग २०० सिगरेट बनाती थी।

इतिहास

भारतीय ज्योतिष, रसशास्त्र, आयुर्वेद, गणित आदि में इस शब्द का प्रयोग हुआ है।

भारद्वाज मुनि कृत यंत्रार्णव ग्रन्थ के वैमानिक प्रकरण में दी गई मन्त्र, तंत्र और यंत्र की परिभाषा-

मंत्रज्ञा ब्राह्मणा: पूर्वे जलवाय्वादिस्तम्भने।
शक्तेरुत्पादनं चक्रुस्तन्त्रमिति गद्यते॥
दण्डैश्चचक्रैश्च दन्तैश्च सरणिभ्रमकादिभि:।
शक्तेस्तु वर्धकं यत्तच्चालकं यन्त्रमुच्यते॥
मानवी पाशवीशक्तिकार्य तन्त्रमिति स्मृतं - (यन्त्राणर्व)

राजा भोज द्वारा रचित समरांगणसूत्रधार के 'यन्त्रविधान' नामक ३१वें अध्याय में यंत्रों की विशेषताओं और विभिन्न प्रकार के यन्त्रों का वर्णन है।

सिद्धान्त शिरोमणि तथा ब्राह्मस्फुटसिद्धान्त में यन्त्राध्याय नाम से अलग अध्याय में खगोलिकी में प्रयुक्त यन्त्रों की महत्ता तथा उनका विशद वर्णन है।

आयुर्वेद में नाना प्रकार के रस शोधन करने के यंत्र हैं।

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प्रकार

अधिक जानकारी वर्गीकरण, मशीन/मशीनें ...
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शक्ति के स्रोत

सारांश
परिप्रेक्ष्य

आरम्भिक युग में बने तन्त्रों को चलाने के लिए आवश्यक शक्ति मानव या पशुओं से मिलती थी। किन्तु वर्तमान युग में शक्ति के अनेक साधन आ गे हैं-

जलचक्र

जलचक्र (Waterwheel) विश्व में ३०० ईसापूर्व विकसित किए गे थे। ये बहते हुए जल की ऊर्जा का उपयोग करके घूर्णी गति प्रदान करते थे जिसका उपयोग अनाज पीसने, कपड़े बुनने आदि में किया जाता था। आधुनिक जल टरबाइन भी जल की ऊर्जा को घूर्णी ऊर्जा में बदलती है, जिससे विद्युत जनित्र को घुमाकर विद्युत ऊर्जा प्राप्त की जाती है।

पवन चक्की

प्राचीन काल से ही पवन की शक्ति का उपयोग करके घूर्णी गति उत्पन्न की जाती थी जिसका उपयोग अनाज पीसने आदि के लिए किया जाता था। आजकल भी पवन टरबाइन से विद्युत उत्पादन किया जाता है।

इंजन

भाप का इंजन, अन्तर्दहन इंजन, जेट इंजन, आदि।

विद्युत संयन्त्र

ये कई प्रकार के होते हैं और कोयला, गैस, नाभिकीय ईंधन या ऊँचाई पर स्थित जल की ऊर्जा का उपयोग करके विद्युत उत्पादन करते हैं।

मोटर

विद्युत मोटरें तरह-तरह की होतीं हैं और विद्युत ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में बदलतीं हैं। सर्वोमोटरें आदि कुछ मोटरें नियन्त्रण प्रणालियों में ऐक्चुएटर (actuators) के रूप में भी प्रयुक्त होतीं हैं।

तरल शक्ति

हाइड्रालिक (Hydraulic) तथा दाबीय प्रणालियाँ (pneumatic systems) पम्प का उपयोग करते हुए बेलनों (cylinders) में जल, तेल या हवा को दाबपूर्वक प्रविष्ट कराकर रैखिक गति उत्पन्न करते हैं। उदाहरण के लिए हाइड्रालिक प्रेस आदि।

आद्य चालक

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आधुक काल की एक मोटरगाड़ी का डीजल इंजन, उसका घर्षण-क्लच एवं गीयर ट्रान्समिशन

मूल गति उत्पादक या आद्य चालक (prime movers) ऊष्मा, पवन ऊर्जा, जल ऊर्जा आदि का उपयोग करके यांत्रिक घूर्णन गति उत्पन्न करते हैं। आद्य चालक निम्नलिखित प्रकार के होते हैं-

  • (१) ऊष्मा पर आधारित
  • रेसिप्रोकेटिंग इंजन
  • ओपेन-सायकिल गैस टरबाइन (घूर्णी टरबाइन)
  • भाप का इंजन (रेसिप्रोकेटिंग प्रकार का इंजन)
  • भाप की टरबाइन
  • बन्द चक्र गैस टरबाइन
  • (ख) नाभिकीय ऊर्जा संयन्त्र
  • (ग) भू-तापीय संयन्त्र (जियो-थर्मल प्लान्ट)
  • (घ) बायो-गैस संयन्त्र
  • (ङ) सौर-ऊर्जा संयन्त्र
  • (२) गैर-ऊष्मीय आद्य चालक
  • (क) जल ऊर्जा पर आधारित, जैसे जलचक्र, जल टरबाइन
  • (ख) पवन ऊर्जा पर आधारित, जैसे पवनचक्की
  • (ग) ज्वार-भाटा की शक्ति से चलने वाले टरबाइन आदि
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इन्हें भी देखें

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त्रि-प्रसारी इंजन का एनिमेशन

बाहरी कड़ियाँ

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