मधुबनी
भारतीय राज्य के बिहार में एक शहर विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
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मधुबनी भारत के बिहार प्रान्त में दरभंगा प्रमंडल अंतर्गत एक जिला है। दरभंगा एवं मधुबनी को मिथिला संस्कृति का द्विध्रुव माना जाता है। मैथिली यहाँ की प्रमुख भाषा है। विश्वप्रसिद्ध मिथिला पेंटिंग एवं मखाना के पैदावार की वजह से मधुबनी को विश्वभर में जाना जाता है। इस जिला का गठन 1972 में दरभंगा जिले के विभाजन के उपरांत हुआ था।मधुबनी चित्रकला मिथिलांचल क्षेत्र जैसे बिहार के दरभंगा, मधुबनी एवं नेपाल के कुछ क्षेत्रों की प्रमुख चित्रकला है। प्रारम्भ में रंगोली के रूप में रहने के बाद यह कला धीरे-धीरे आधुनिक रूप में कपड़ो, दीवारों एवं कागज पर उतर आई है। मिथिला की औरतों द्वारा शुरू की गई इस घरेलू चित्रकला को पुरुषों ने भी अपना लिया है। वर्तमान में मिथिला पेंटिंग के कलाकारों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मधुबनी व मिथिला पेंटिंग के सम्मान को और बढ़ाये जाने को लेकर तकरीबन 10,000 sq/ft में मधुबनी रेलवे स्टेशन के दीवारों को मिथिला पेंटिंग की कलाकृतियों से सरोबार किया। उनकी ये पहल निःशुल्क अर्थात श्रमदान के रूप में की गई थी। श्रमदान स्वरूप किये गए इस अदभुत कलाकृतियों को विदेशी पर्यटकों व सैनानियों द्वारा खूब पसंद किया जा रहा है।
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मधुबनी | |||||||
— जिला — | |||||||
समय मंडल: आईएसटी (यूटीसी+५:३०) | |||||||
देश | भारत | ||||||
राज्य | बिहार | ||||||
जिलाधिकारी | |||||||
जनसंख्या • घनत्व |
66,285 (2011
कुल जनसंख्या= 4,487,379 पुरुष = 2,329,313 महिला = 2,158,066 के अनुसार [update]) | ||||||
क्षेत्रफल | 3,501.0 km² (1,352 sq mi) | ||||||
विभिन्न कोड
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आधिकारिक जालस्थल: [http:// ] |
उत्तर बिहार के पूर्णिया जिले में स्थित है मधुरौट शाखा के मधुवंशी यादव क्षत्रियों का नज़रगंज राजघराना जिसका पूरे बंगाल प्रेसिडेंसी में एक अलग रूतबा था।इन यदुवंशियों इतिहास मथुरा से शुरू होने के कारण ही मधुरौट वंश कहलाया, महाराज मधु के नाम से ये मधुवंशी या माधव वंशी भी कहलाते हैं, द्वारकाधीश के पूर्वज और महराज यदु के पीढ़ी में जन्मे महाराज मधु बहुत ही प्रतापी राजा थे। उन्होंने हीं मथुरा शहर की स्थापना की थी तथा इनके प्रताप के कारण हीं द्वारकाधीश भगवान् श्रीकृष्णचंद्र को माधव भी कहा जाता है। कालांतर में यादव राजस्थान तथा मथुरा से विस्थापित होते हुए बिहार में प्रवेश किया अपने पूर्वज महाराज मधु के नाम पर मधुबनी तथा मधेपुरा जैसे इलाके आबाद करते हुए पूर्णियां के नज़रगंज राजघराना का स्थापना कर वहीं बस गए।
मधुबनी जिले के प्राचीनतम ज्ञात निवासियों में किरात, भार, थारु जैसी जनजातियाँ शामिल है। वैदिक स्रोतों के मुताबिक आर्यों की विदेह शाखा ने अग्नि के संरक्षण में सरस्वती तट से पूरब में सदानीरा (गंडक) की ओर कूच किया और इस क्षेत्र में विदेह राज्य की स्थापना की। विदेह के राजा मिथि के नाम पर यह प्रदेश मिथिला कहलाने लगा। रामायणकाल में मिथिला के राजा सिरध्वज जनक की पुत्री सीता का जन्म मधुबनी की सीमा पर स्थित सीतामढी में हुआ था। विदेह की राजधानी जनकपुर, जो आधुनिक नेपाल में पड़ता है, मधुबनी के उत्तर-पश्चिमी सीमा के पास है। बेनीपट्टी के पास स्थित फुलहर के बारे में ऐसी मान्यता है कि यहाँ फुलों का बाग था जहाँ से सीता फुल लेकर गिरिजा देवी मंदिर में पूजा किया करती थी। पंडौल के बारे में यह प्रसिद्ध है कि यहाँ पांडवों ने अपने अज्ञातवाश के कुछ दिन बिताए थे। विदेह राज्य का अंत होने पर यह प्रदेश वैशाली गणराज्य का अंग बना। इसके पश्चात यह मगध के मौर्य, शुंग, कण्व और गुप्त शासकों के महान साम्राज्य का हिस्सा रहा। १३ वीं सदी में पश्चिम बंगाल के मुसलमान शासक हाजी शम्सुद्दीन इलियास के समय मिथिला एवं तिरहुत क्षेत्रों का बँटवारा हो गया। उत्तरी भाग जिसके अंतर्गत मधुबनी, दरभंगा एवं समस्तीपुर का उत्तरी हिस्सा आता था, ओईनवार राजा कामेश्वर सिंह के अधीन रहा। ओईनवार राजाओं ने मधुबनी के निकट सुगौना को अपनी पहली राजधानी बनायी। १६ वीं सदी में उन्होंने दरभंगा को अपनी राजधानी बना ली। ओईनवार शासकों को इस क्षेत्र में कला, संस्कृति और साहित्य का बढावा देने के लिए जाना जाता है। MP Board 12th Blueprint 2023 Archived 2022-12-09 at the वेबैक मशीन Bihar Board 12th Model Paper 2023 Archived 2022-12-09 at the वेबैक मशीन MP Board 10th Blueprint 2023 Archived 2022-12-09 at the वेबैक मशीन १८४६ इस्वी में ब्रिटिस सरकार ने मधुबनी को तिरहुत के अधीन अनुमंडल बनाया। १८७५ में दरभंगा के स्वतंत्र जिला बनने पर यह इसका अनुमंडल बना। स्वतंत्रता संग्राम में महात्मा गाँधी के खादी आन्दोलन में मधुबनी ने अपना विशेष पहचान कायम की और १९४२ में भारत छोड़ो आन्दोलन में जिले के सेनानियों ने जी जान से शिरकत की। स्वतंत्रता के पश्चात १९७२ में मधुबनी को स्वतंत्र जिला बना दिया गया।
मधुबनी के उत्तर में नेपाल, दक्षिण में दरभंगा, पुरब में सुपौल तथा पश्चिम में सीतामढी जिला है। कुल क्षेत्रफल ३५०१ वर्ग किलोमीटर है जो भूकंप क्षेत्र ५ में पड़ता है। नदियों का यहाँ जाल बिछा है जो बरसात के दिनों में हर साल लोगों के तबाही का कारण बनती है। वर्ष २००७ में आए भीषण बाढ में 331 पंचायत (110 पूर्ण रूप से तथा 221 आंशिक रूप से) तथा 836 गाँवों के 372599 परिवार बुरी तरह से प्रभावित हुए थे।[1] समूचा जिला एक समतल एवं उपजाऊ क्षेत्र है। औसत सालाना १२७३ मिमी वर्षा का अधिकांश मॉनसून से प्राप्त होता है।
नदियाँ: कमला, करेह, बलान, भूतही बलान, गेहुंआ, सुपेन, त्रिशुला, जीवछ, कोशी और अधवारा समूह। अधिकांश नदियाँ बरसात के दिनों में उग्र रूप धारण कर लेती है। कोशी नदी जिले की पूर्वी सीमा तथा अधवारा या छोटी बागमती पश्चिमी सीमा बनाती है।
यह जिला 5 अनुमंडल, 21 प्रखंडों, 399 पंचायतों तथा 1111 गाँवों में बँटा है। विधि व्यवस्था संचालन के लिए 18 थाने एवं 2 जेल है। पूर्ण एवं आंशिक रूप से मधुबनी जिला 2 संसदीय क्षेत्र एवं 11 विधान सभा क्षेत्र में विभाजित है।
मधुबनी मूलतः एक कृषि प्रधान जिला है। यहाँ की मुख्य फसलें धान, गेहूं, मक्का, मखाना आदि है। भारत में मखाना के कुल उत्पादन का 80% मधुबनी में होता है।[2] आधारभूत संरचना का अभाव एवं निम्न शहरीकरण (मात्र 3.65%) उद्योगों के विकाश में बाधा है। अभी मधुबनी पेंटिंग की 76 पंजीकृत इकाईयाँ, फर्नीचर उद्योग की 13 पंजीकृत इकाईयाँ, 3 स्टील उद्योग, 03 प्रिंटिंग प्रेस, 03 चूरा मिल, 01 चावल मिल तथा 3000 के आसपास लघु उद्योग इकाईयाँ जिले में कार्यरत है। पशुपालन एवं डेयरी को आधार बनाकर इनपर आधारित उद्योग लगाया जा सकता है लेकिन अभी तक मात्र ३० दुग्ध समीतियाँ ही कार्यरत है। मछली, मखाना, आम, लीची तथा गन्ना जैसे कृषि उत्पाद के अलावे मधुबनी से पीतल की बरतन एवं हैंडलूम कपड़े का राज्य में तथा बाहर निर्यात किया जाता है।
शिक्षा के प्रसार के मामले में मधुबनी एक पिछड़ा जिला है। साक्षरता मात्र 58.62% है जिसमें स्त्रियों की साक्षरता दर महज 26.54% है। आधारभूत संरचना के अभाव को शिक्षा क्षेत्र में पिछड़ेपन का मुख्य कारण माना जाता है। जिले में शिक्षण संस्थानों की कुल संख्या इस प्रकार है:
स्थिति में सुधार हेतु बिहार शिक्षा परियोजना के अधीन अभी 98 प्राथमिक विद्यालय खोले गए हैं तथा 83 प्राथमिक विद्यालयों को मध्य विद्यालय में उत्क्रमित किया जा रहा है। मधुबनी जिले के तमाम कॉलेज ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय दरभंगा से संवद्ध हैं जबकि आबादी को देखते हुए जिले में एक विश्वविद्यालय की सख्त आवश्यकता है। इसके अलावा यहां मेडिकल कॉलेज और अन्य इंजीनियरिंग कॉलेज भी नहीं है। मधुबनी के लोग पढ़ाई लिखाई में काफी जहीन माने जाते हैं और उन्होंने राज्य और देश के अंदर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है। कम साक्षरता के बावजूद यहां के लोग बड़ी संख्या में आईएएस, आईपीएस और अन्य सेवाओं में चुनकर जाते रहे हैं। लेकिन पढ़ वहीं पाते हैं जो आर्थिक रूप से संपन्न हैं और जुनूनी है साथ ही जिनका जागरुक समाजिक परिवेश है। मधुबनी में वैसे तो एक नवोदय विद्यालय है लेकिन उसकी गुणवत्ता प्रभावित हुई है। मधुबनी को कम से कम ५ डिग्री कॉलेज, एक मेडिकल कॉलेज और पांच इंजिनयरींग कॉलेजों की सख्त आवश्यकता है। यहां के बच्चे जमीन बेचकर कर्नाटक, महाराष्ट्र और अन्य सूबों में डिग्री पाने जाते हैं जिसकी गुणवत्ता भी संदिग्ध होती है साथ ही राज्य का राजस्व भी दूसरे राज्य में चला जाता है। लेकिन दुर्भाग्य की बात यह है कि इस जिले से इतने कद्दावर नेताओं के संसद और विधानसभा पहुंचने के बाद भी जनता को ठगने का सिलसिला जारी है और शिक्षा अभी तक राजनीतिक एजेंडे पर नहीं आ पाई है। शायद देश के अन्य हिस्सों का भी कमोवेश यहीं हाल है।
जगदीश नंदन सिंह महाविद्यालय
देवनारायण यादव महाविद्यालय
मिथिला चित्रकला संस्थान
रमा प्रसाद दत्त जनता उच्च विद्यालय
मधुबनी मिथिला संस्कृति का अंग एवं केंद्र विंदु रहा है। राजा जनक और सीता का वास स्थल होने से हिंदुओं के लिए यह क्षेत्र अति पवित्र एवं महत्वपूर्ण है। मिथिला पेंटिंग के अलावे मैथिली और संस्कृत के विद्वानों ने इसे दुनिया भर में खास पहचान दी है। प्रसिद्ध लोककलाओं में सुजनी (कपडे की कई तहों पर रंगीन धागों से डिजाईन बनाना), सिक्की-मौनी (खर एवं घास से बनाई गई कलात्मक डिजाईन वाली उपयोगी वस्तु) तथा लकड़ी पर नक्काशी का काम शामिल है। सामा चकेवा एवं झिझिया मधुबनी का लोक नृत्य है। मैथिली, हिंदी तथा उर्दू यहाँ की मुख्य भाषा है। यह जिला महाकवि कालीदास, मैथिली कवि विद्यापति तथा वाचस्पति जैसे विद्वानों की जन्मभूमि रही है।
पर्व त्योहारों या विशेष उत्सव पर यहाँ घर में पूजागृह एवं भित्ति चित्र का प्रचलन पुराना है। १७वीं शताब्दी के आस-पास आधुनिक मधुबनी कला शैली का विकास माना जाता है। मधुबनी शैली मुख्य रूप से जितवारपुर (ब्राह्मण बहुल) और रतनी (कायस्थ बहुल) गाँव में सर्वप्रथम एक व्यवसाय के रूप में विकसित हुआ था। यहाँ विकसित हुए पेंटिंग को इस जगह के नाम पर ही मधुबनी शैली का पेंटिग कहा जाता है। इस पेंटिग में पौधों की पत्तियों, फलों तथा फूलों से रंग निकालकर कपड़े या कागज के कैनवस पर भरा जाता है। मधुबनी पेंटिंग शैली की मुख्य खासियत इसके निर्माण में महिला कलाकारों की मुख्य भूमिका है। इन लोक कलाकारों के द्वारा तैयार किया हुआ कोहबर, शिव-पार्वती विवाह, राम-जानकी स्वयंवर, कृष्ण लीला जैसे विषयों पर बनायी गयी पेंटिंग में मिथिला संस्कृति की पहचान छिपी है। पर्यटकों के लिए यहाँ की कला और संस्कृति खासकर पेंटिंग कौतुहल का मुख्य विषय रहता है। मैथिली कला का व्यावसायिक दोहन सही मायने में १९६२ में शुरू हुआ जब एक कलाकार ने इन गाँवों का दौरा किया। इस कलाकार ने यहां की महिला कलाकारों को अपनी पेंटिंग कागज पर उतारने के लिए प्रेरित किया। यह प्रयोग व्यावसायिक रूप से काफी कारगर साबित हुई। आज मधुबनी कला शैली में अनेकों उत्पाद बनाए जा रहे हैं जिनका बाजार फैलता ही जा रहा है। वर्तमान में इन पेंटिग्स का उपयोग बैग और परिधानों पर किया जा रहा है। इस कला की मांग न केवल भारत के घरेलू बाजार में बढ़ रही है वरन विदेशों में भी इसकी लोकप्रियता बढ़ती जा रही है। अन्य उत्पादों में कार्ड, परिधान, बैग, दरी आदि शामिल है।
मधुबनी चित्रकला मिथिलांचल क्षेत्र जैसे बिहार के दरभंगा, मधुबनी एवं नेपाल के कुछ क्षेत्रों की प्रमुख चित्रकला है। प्रारम्भ में रंगोली के रूप में रहने के बाद यह कला धीरे-धीरे आधुनिक रूप में कपड़ो, दीवारों एवं कागज पर उतर आई है। मिथिला की औरतों द्वारा शुरू की गई इस घरेलू चित्रकला को पुरुषों ने भी अपना लिया है। वर्तमान में मिथिला पेंटिंग के कलाकारों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मधुबनी व मिथिला पेंटिंग के सम्मान को और बढ़ाये जाने को लेकर तकरीबन 10,000 sq/ft में मधुबनी रेलवे स्टेशन के दीवारों को मिथिला पेंटिंग की कलाकृतियों से सरोबार किया। उनकी ये पहल निःशुल्क अर्थात श्रमदान के रूप में किया गया। श्रमदान स्वरूप किये गए इस अदभुत कलाकृतियों को विदेशी पर्यटकों व सैनानियों द्वारा खूब पसंद किया जा रहा है।
माना जाता है ये चित्र राजा जनक ने राम-सीता के विवाह के दौरान महिला कलाकारों से बनवाए थे। पहले तो सिर्फ ऊंची जाति की महिलाओं (जैसे ब्राह्मणों) को ही इस कला को बनाने की इजाजत थी लेकिन वक्त के साथ ये सीमाएँ भी खत्म हो गईं। आज मिथिलांचल के कई गांवों की महिलाएँ इस कला में दक्ष हैं। अपने असली रूप में तो ये पेंटिंग गांवों की मिट्टी से लीपी गई झोपड़ियों में देखने को मिलती थी, लेकिन इसे अब कपड़े या फिर पेपर के कैनवास पर खूब बनाया जाता है। समय के साथ साथ चित्रकार कि इस विधा में पासवान जाति के समुदाय के लोगों द्वारा राजा शैलेश के जीवन वृतान्त का चित्रण भी किया जाने लगा। इस समुदाय के लोग राजा सैलेश को अपने देवता के रूप में पूजते भी हैं।
इस चित्र में खासतौर पर कुल देवता का भी चित्रण होता है। हिन्दू देव-देवताओं की तस्वीर, प्राकृतिक नजारे जैसे- सूर्य व चंद्रमा, धार्मिक पेड़-पौधे जैसे- तुलसी और विवाह के दृश्य देखने को मिलेंगे। मधुबनी पेंटिंग दो तरह की होतीं हैं- भित्ति चित्र और अरिपन या अल्पना।
चटख रंगों का इस्तेमाल खूब किया जाता है। जैसे गहरा लाल रंग, हरा, नीला और काला। कुछ हल्के रंगों से भी चित्र में निखार लाया जाता है, जैसे- पीला, गुलाबी और नींबू रंग। यह जानकर हैरानी होगी की इन रंगों को घरेलू चीजों से ही बनाया जाता है, जैसे- हल्दी, केले के पत्ते, लाल रंग के लिऐ पीपल की छाल प्रयोग किया जाता है। और दूध। भित्ति चित्रों के अलावा अल्पना का भी बिहार में काफी चलन है। इसे बैठक या फिर दरवाजे के बाहर बनाया जाता है। पहले इसे इसलिए बनाया जाता था ताकि खेतों में फसल की पैदावार अच्छी हो लेकिन आजकल इसे घर के शुभ कामों में बनाया जाता है। चित्र बनाने के लिए माचिस की तीली व बाँस की कलम को प्रयोग में लाया जाता है। रंग की पकड़ बनाने के लिए बबूल के वृक्ष की गोंद को मिलाया जाता है।
समय के साथ मधुबनी चित्र को बनाने के पीछे के मायने भी बदल चुके हैं, लेकिन ये कला अपने आप में इतना कुछ समेटे हुए हैं कि यह आज भी कला के कद्रदानों की चुनिन्दा पसंद में से है।
चित्रण से पूर्व हस्त नर्मित कागज को तैयार करने के लिऐ कागज पर गाय के गोबर का घोल बनाकर तथा इसमें बबूल का गोंद डाला जाता है। सूती कपड़े से गोबर के घोल को कागज पर लगाया जाता है और धूप में सुखाने के लिए रख दिया जाता है।
मधुबनी चित्रकला दीवार, केन्वास एवं हस्त निर्मित कागज पर वर्तमान समय में चित्रकारों द्वारा बनायी जाती हैं।
मधुबनी भित्ति चित्र में मिट्टी (चिकनी) व गाय के गोबर के मिश्रण में बबूल की गोंद मिलाकर दीवारों पर लिपाई की जाती है। गाय के गोबर में एक खास तरह का रसायन पदार्थ होने के कारण दीवार पर विशेष चमक आ जाती है। इसे घर की तीन खास जगहों पर ही बनाने की परंपरा है, जैसे- पूजास्थान, कोहबर कक्ष (विवाहितों के कमरे में) और शादी या किसी खास उत्सव पर घर की बाहरी दीवारों पर। मधुबनी पेंटिंग में जिन देवी-देवताओं का चित्रण किया जाता है, वे हैं- मां दुर्गा, काली, सीता-राम, राधा-कृष्ण, शिव-पार्वती, गौरी-गणेश और विष्णु के दस अवतार इत्यादि। इन तस्वीरों के अलावा कई प्राकृतिक और रम्य नजारों की भी पेंटिंग बनाई जाती है। पशु-पक्षी, वृक्ष, फूल-पत्ती आदि को स्वस्तिक की निशानी के साथ सजाया-संवारा जाता है।
राजनगर- राजनगर मधुबनी जिले का एक एतिहासिक महत्व जगह है। यह एक जमाने में महाराज दरभंगा की उप-राजधानी हुआ करता था। यह महाराजा रामेश्वर सिंह के द्वारा बसाया गया था। उन्होंने यहां एक भव्य नौलखा महल का निर्माण करवाया लेकिन १९३४ के भूकंप में उस महल को काफी क्षति पहुंची और अभी भी यह भग्नावशेष के रूप में ही है। इस महल में एक प्रसिद्ध और जाग्रत देवी काली का मंदिर है जिसके बारे में इलाके के लोगों में काफी मान्यता और श्रद्धा है। जब इस नगर को रामेश्वर सिंह बसा रहे थे उस वक्त वे महाराजा नहीं, बल्कि परगने के मालिक थे। राजा के छोटे भाई और संबंधियों को परगना दे दिया जाता था जिसके मालिक को बाबूसाहब कहा जाता था। बाद में अपने भाई महाराजा लक्ष्मीश्वर सिंह की मृत्यु के बाद, रामेश्वर सिंह, दरभंगा की गद्दी पर बैठे। लेकिन १९३४ के भूकंप ने राजनगर के गौरव को ध्वस्त कर दिया। हलांकि यहां का भग्नावशेष अवस्था में मौजूद राजमहल और परिसर अभी भी देखने लायक है। राजनगर, मधुबनी जिला मुख्यालय से करीब ७ किलोमीटर उत्तर में है और मधुबनी-जयनगर रेलवे लाईन यहां से होकर गुजरती है। यह मधुबनी-लौकहा रोड पर ही स्थिति है और यातायात के साधनों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। यहां प्रखंड मुख्यालय, कॉलेज, हाईस्कूल, पुलिस स्टेशन, सिनेमा हॉल आदि है। एक जमाने में नदी कमला इसके पूरव से होकर बहती थी। अब उसने अपनी धारा करीब ७ किलोमीटर पूरव खिसका ली है और भटगामा-पिपराघाट से होकर बहती है। राजनगर से उत्तर खजौली, दक्षिण मधुबनी, पूरव बाबूबरही और पश्चिम रहिका ब्लाक है। यहां से बलिराजगढ़ की दूरी २० किलोमीटर है, जो मौर्यकाल से भी पुराना ऐतिहासिक किला माना जाता है।
मधुबनी बिहार के सभी मुख्य शहरों से राजमार्गों द्वारा जुड़ा हुआ है। यहाँ से वर्तमान में तीन राष्ट्रीय राजमार्ग तथा दो राजकीय राजमार्ग गुजरती हैं। मुजफ्फरपुर से फारबिसगंज होते हुए पूर्णिया जानेवाला राष्ट्रीय राजमार्ग ५७ मधुबनी जिला होते हुए जाती है। यह सड़क स्वर्णिम चतुर्भुज योजना का अगल चरण है जिसे ईस्ट-वेस्ट कॉरीडोर कहा जाता है। इसकी योजना वाजपेयी सरकार के वक्त बनी थी। इस सड़क के बन जाने से मधुबनी, दरभंगा बल्कि पूरे मिथिला क्षेत्र की ही तकदीर बदल जाएगी। इस सड़क के तहत कोसी पर बनने वाले पुल की लंबाई (संभवत:इसके साथ रेल पुल भी बनाई जाएगी) करीब २२ किलोमीटर होने की संभावना है जिसमें कोसी के पाट के अलावा उसके पूरव और पश्चिम में निचली जमीन के ऊपर कई-कई किलोमीटर तक वो पुल फैली हुई होगी। यह सड़क चार लेन की बन रही है और इसके बनने से मधुबनी का संपर्क सहरसा, सुपौल, पूर्णिया और मिथिला के पूर्वी इलाके से एक बार फिर जुड़ जाएगा जो सन १९३४ के भूंकंप से पहले कायम था। पूरा इलाका समाजिक और आर्थिक रूप से एक इकाई में बदल जाएगा। इस पुल के महज बनने मात्र से इस इलाके की राजनीतिक चेतना किस मोड़ लेगी इसका अंदाज लगाना मुश्किल है। कुछ लोगों की राय में इस पुल के बनने से एक अखिल मिथिला राज्य की मांग जोड़ पकड़ सकती है जिसका आन्दोलन अभी खंडित अवस्था में है।
मधुबनी से गुजरने वाली दूसरी सड़क ५५ किलोमीटर लंबी राष्ट्रीय राजमार्ग १०५ है जो दरभंगा को मधुबनी के जयनगर से जोड़ता है। राजधानी पटना से सड़क मार्ग के माध्यम से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है।
मधुबनी भारतीय रेल के पूर्व मध्य रेलवे क्षेत्र के समस्तीपुर मंडल में पड़ता है। दिल्ली-गुवाहाटी रूट पर स्थित समस्तीपुर जंक्शन से बड़ी गेज की एक लाईन मधुबनी होते हुए नेपाल सीमा पर जयनगर को जोड़ती है। मधुबनी से गुजरने वाली एक अन्य रेल लाईन सकरी से घोघरडिहा होते हुए फॉरबिसगंज को जोड़ती है। १९९६ के बाद रेल अमान परिवर्तन होने से दरभंगा होते हुए दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता, अमृतसर, गुवाहाटी तथा अन्य महत्वपूर्ण शहरों के लिए यहाँ से सीधी ट्रेनें उपलब्ध है। इसके अलावा एक रेललाईन दरभंगा से सकरी और झंझारपुर होते हुए लौकहा तक नेपाल की सीमा को जोड़ती है। जिले में सकरी और झंझारपुर दो रेल के जंक्शन हैं। लौकरा रेलवे लाईन के निर्माण में कांग्रेस के वरिष्ट नेता ललित नारायण मिश्र अहम योगदान है जिनका कार्यक्षेत्र मधुबनी ही था। वे झंझारपुर से सांसद हुआ करते थे।
यहाँ से सबसे नजदीकी नागरिक हवाई अड्डा दरभंगा में स्थित है। दरभंगा हवाई अड्डा( कोड- DBR) से अंतर्देशीय उड़ाने उपलब्ध है। इंडियन, स्पाइस जेट तथा इंडिगो की उडानें दिल्ली, कोलकाता। मुंबई औरके लिए उपलब्ध हैं।
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