समुद्र
खारे पानी का विशाल जलस्त्रोत / From Wikipedia, the free encyclopedia
समुद्र या सागर पृथ्वी की सतह के 70 प्रतिशत से अधिक क्षेत्र में विस्तृत, लवणीय जल का एक सतत निकाय है। पृथ्वी पर जलवायु को संयमित करने, भोजन और ऑक्सीजन प्रदान करने, जैव विविधता को बनाए रखने और परिवहन के क्षेत्र में सागर अत्यावश्यक भूमिका निभाते हैं। प्राचीन काल से लोग सागर की यात्रा करने और इसके रहस्यों को जानने की चेष्टा में लगे रहे हैं, परन्तु माना जाता है कि सागर के वैज्ञानिक अध्ययन, जिसे समुद्र विज्ञान कहते हैं, का आरम्भ कप्तान जेम्स कुक द्वारा 1768 और 1779 के बीच प्रशान्त महासागर के अन्वेषण के लिए की गई समुद्री यात्राओं से हुई।
समुद्री जल की विशेषता इसका लवणीय होना है। जल को यह लवणता मुख्य रूप से ठोस सोडियम ख्लोराइड द्वारा मिलता है, लेकिन पानी में पोटासियम और मैग्नीसियम के ख्लोराइडों के अतिरिक्त विभिन्न रासायनिक तत्व भी होते हैं जिनका संघटन पूरे विश्व मे फैले विभिन्न सागरों में बमुश्किल बदलता है। यद्यपि जल की लवणता में भीषण परिवर्तन आते हैं, जहाँ यह जल की ऊपरी सतह और नदियों के मुहानों पर कम होती है वहीं यह जल की शीतल गहराइयों में अधिक होती है। सागर की सतह पर उठती तरंगें इनकी सतह पर समीर के कारण बनती है। भूमि के निकट पर यह तरंग मन्द पड़ती हैं और इनकी उच्चता में वृद्धि होती है, जिसके कारण यह अधिक उच्च और अस्थिर हो जाती हैं और अन्ततः: सागर तट पर फेन के रूप में टूटती हैं। त्सूनामी नामक तरंगें समुद्री तल पर आए भूकम्प या भूस्खलन के कारण उत्पन्न होती है और सागर के बाहर बमुश्किल दिखाई देती हैं, लेकिन किनारे पर पहुँचने पर यह लहरें प्रचंड और विनाशकारी प्रमाणित हो सकती हैं।
समीर सागर की सतह पर घर्षण के द्वारा धाराओं का निर्माण करती हैं जिसकी वजह से पूरे सागर के पानी एक धीमा परन्तु स्थिर परिसंचरण स्थापित होता है। इस परिसंचरण की दिशा कई कारकों पर निर्भर करती है जिनमें महाद्वीपों का आकार और पृथ्वी का घूर्णन शामिल हैं। गहरे सागर की जटिल धाराएँ जिन्हें वैश्विक वाहक पट्टे के नाम से भी जाना जाता है ध्रुवों के शीतल सागरीय जल को हर महासागर तक ले जाती हैं। सागरीय जल का वृहत् स्तर पर संचलन ज्वार के कारण होता है, दैनिक रूप से दो बार घटने वाली यह घटना चन्द्रमा द्वारा पृथ्वी पर लगाए जाने वाला गुरुत्व बल के कारण घटित होती है, यद्यपि पृथ्वी, सूर्य द्वारा लगाए जाने वाला गुरुत्व बल से भी प्रभावित होती है पर चंद्रमा की तुलना में यह बहुत कम होता है। उन खाड़ियों और ज्वारनदमुखों में इन ज्वारों का स्तर बहुत अधिक हो सकता है जहां ज्वारीय प्रवाह संकीर्ण वाहिकों में बहता है।
सागर में जीवित प्राणियों के सभी प्रमुख समूह जैसे कि जीवाणु, प्रजीव, शैवाल, कवक, पादप और जीव पाए जाते हैं। माना जाता है कि जीवन की उत्पत्ति सागर में ही हुई थी, साथ ही यहाँ पर ही जीवों के बड़े समूहों मे से कइयों का विकास हुआ। सागरों में पर्यावास और पारितन्त्रों की एक विस्तृत शृंखला समाहित है।
सागर विश्व भर के लोगों के लिए भोजन, मुख्य रूप से मछली उपलब्ध कराता है किन्तु इसके साथ ही यह सीपों, सागरीय स्तनधारी जीवों और सागरीय शैवाल की भी पर्याप्त आपूर्ति करता है। इनमें से कुछ को मत्स्यजीवियों द्वारा पकड़ा जाता है तो कुछ की कृषि जल के भीतर की जाती है। सागर के अन्य मानव उपयोगों में व्यापार, यात्रा, खनिज दोहन, विद्युदुत्पादन और नौसैनिक युद्ध शामिल हैं, वहीं आनंद के लिए की गई गतिविधियों जैसे कि तैराकी, नौकायन और स्कूबा डाइविंग के लिए भी सागर एक आधार प्रदान करता है। इन गतिविधियों मे से कई गतिविधियाँ सागरीय प्रदूषण का कारण बनती हैं। मानव संस्कृति में सागर महत्वपूर्ण है और इसका प्रयोग चलच्चित्र, शास्त्रीय संगीत, साहित्य, रंगमंच और कलाओं में बहुतायत से किया जाता है। हिन्दू संस्कृति में सागर को एक देव के रूप में वर्णित किया गया है। विश्व के कई भागों में प्रचलित पौराणिक कथाओं में सागर को विभिन्न रूपों में दर्शाया गया है। हिन्दी भाषा में सागर के कई पर्यायवाची शब्द हैं जिनमें जलधि, जलनिधि, नीरनिधि, उदधि, पयोधि, नदीश, तोयनिधि, कम्पती, वारीश, अर्णव आदि प्रमुख हैं।