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चन्द्रमा
पृथ्वी का एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
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चन्द्रमा (प्रतीक:
) पृथ्वी का एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह है।[8] यह सौर मंडल का पाँचवां,सबसे विशाल प्राकृतिक उपग्रह है। इसका आकार क्रिकेट बॉल की तरह गोल है। और यह खुद से नहीं चमकता बल्कि यह तो सूर्य के प्रकाश से प्रकाशित होता है। पृथ्वी से चन्द्रमा की दूरी Archived 2024-07-19 at the वेबैक मशीन 384000 किलोमीटर है। यह दूरी पृथ्वी के व्यास का 30 गुना है। चन्द्रमा पर गुरुत्वाकर्षण पृथ्वी से 1/6 है। यह पृथ्वी कि परिक्रमा 27 दिन 6 घंटे में पूरा करता है और अपने अक्ष के चारो ओर एक पूरा चक्कर भी 27.3 दिन में लगाता है। यही कारण है कि चन्द्रमा का एक ही हिस्सा या फेस हमेशा पृथ्वी की ओर होता है। यदि चन्द्रमा पर खड़े होकर पृथ्वी को देखे तो पृथ्वी साफ़ साफ़ अपने अक्ष पर घूर्णन करती हुई नजर आएगी लेकिन आसमान में उसकी स्थिति सदा स्थिर बनी रहेगी अर्थात पृथ्वी को कई वर्षो तक निहारते रहो वह अपनी जगह से टस से मस नहीं होगी। पृथ्वी- चन्द्रमा-सूर्य ज्यामिति के कारण "चन्द्र दशा" हर 29.5 दिनों में बदलती है। आकार के हिसाब से अपने स्वामी ग्रह के सापेक्ष यह सौरमंडल में सबसे बड़ा प्राकृतिक उपग्रह है जिसका व्यास पृथ्वी का एक चौथाई तथा द्रव्यमान 1/81 है। बृहस्पति के उपग्रह lo के बाद चन्द्रमा दूसरा सबसे अधिक घनत्व वाला उपग्रह है। सूर्य के बाद आसमान में सबसे अधिक चमकदार निकाय चन्द्रमा है। समुद्री ज्वार और भाटा चन्द्रमा की गुरुत्वाकर्षण शक्ति के कारण आते हैं। चन्द्रमा की तात्कालिक कक्षीय दूरी, पृथ्वी के व्यास का 30 गुना है इसीलिए आसमान में सूर्य और चन्द्रमा का आकार हमेशा सामान नजर आता है। वह पथ्वी से चंद्रमा का 59 % भाग दिखता है जब चन्द्रमा अपनी कक्षा में घूमता हुआ सूर्य और पृथ्वी के बीच से होकर गुजरता है और सूर्य को पूरी तरह ढक लेता है तो उसे सूर्यग्रहण कहते हैं।

अन्तरिक्ष में मानव सिर्फ चन्द्रमा पर ही कदम रख सका है। सोवियत राष्ट् का लूना- पहला अन्तरिक्ष यान था जो चन्द्रमा के पास से गुजरा था लेकिन लूना-2 पहला यान था जो चन्द्रमा की धरती पर उतरा था। सन् 1968 में केवल नासा अपोलो कार्यक्रम ने उस समय मानव मिशन भेजने की उपलब्धि हासिल की थी और पहली मानवयुक्त ' चंद्र परिक्रमा मिशन ' की शुरुआत अपोलो -8 के साथ की गई। सन् 1969 से 1972 के बीच छह मानवयुक्त यान ने चन्द्रमा की धरती पर कदम रखा जिसमे से अपोलो-11 ने सबसे पहले कदम रखा। इन मिशनों ने वापसी के दौरान 380 कि. ग्रा. से ज्यादा चंद्र चट्टानों को साथ लेकर लौटे जिसका इस्तेमाल चंद्रमा की उत्पत्ति, उसकी आंतरिक संरचना के गठन और उसके बाद के इतिहास की विस्तृत भूवैज्ञानिक समझ विकसित करने के लिए किया गया। ऐसा माना जाता है कि करीब 4.5 अरब वर्ष पहले पृथ्वी के साथ विशाल टक्कर की घटना ने इसका गठन किया है।
सन् 1972 में अपोलो-17 मिशन के बाद से चंद्रमा का दौरा केवल मानवरहित अंतरिक्ष यान के द्वारा ही किया गया जिसमें से विशेषकर अंतिम सोवियत लुनोखोद रोवर द्वारा किया गया है। सन् 2004 के बाद से जापान, चीन, भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी में से प्रत्येक ने चंद्र परिक्रमा के लिए यान भेजा है। इन अंतरिक्ष अभियानों ने चंद्रमा पर जल-बर्फ की खोज की पुष्टि के लिए विशिष्ठ योगदान दिया है। चंद्रमा के लिए भविष्य की मानवयुक्त मिशन योजना सरकार के साथ साथ निजी वित्त पोषित प्रयासों से बनाई गई है। चंद्रमा ' बाह्य अंतरिक्ष संधि ' के तहत रहता है जिससे यह शांतिपूर्ण उद्देश्यों की खोज के लिए सभी राष्ट्रों के लिए मुक्त है।
- चन्द्रयान (अथवा चंद्रयान-1) भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के चंद्र अन्वेषण कार्यक्रम के अंतर्गत द्वारा चंद्रमा की तरफ कूच करने वाला भारत का पहला[9] अंतरिक्ष यान था।
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चंद्र का अल्बेडो और वास्तविक रंग
सारांश
परिप्रेक्ष्य
चंद्र का स्वरूप उसकी परावर्तन क्षमता और सतह की संरचना पर निर्भर करता है। चंद्र का अल्बेडो लगभग 0.12[10] है, जो घिसी हुई डामर सड़क के समान है। इसलिए वह रात के आकाश में उज्ज्वल दिखाई देता है, लेकिन वास्तव में अपेक्षाकृत गहरा है। यह कम अल्बेडो चंद्र की रेगोलिथ परत के कारण है, जो उल्कापिंडों की टक्करों से बने सूक्ष्म पत्थरों के कणों से बनी है। रेगोलिथ में प्रकाश के प्रकीर्णन से "ऑपोज़िशन सर्ज" नामक प्रभाव उत्पन्न होता है, जिसके कारण पूर्णिमा के समय चंद्र, अर्धचंद्र की तुलना में कहीं अधिक चमकीला दिखाई देता है।
वायुमंडलीय प्रभावों के बिना चंद्र का वास्तविक रंग फीका भूरा-धूसर[11] होता है। यह रंग रेगोलिथ में उपस्थित सिलिकेट खनिजों के कारण बनता है। चंद्र की गहरी सतह (मारे) प्राचीन ज्वालामुखीय प्रवाहों से बनी है, जिनमें लोहे और टाइटेनियम की मात्रा अधिक होती है, जिससे उनका रंग गहरा दिखाई देता है। जबकि ऊँचे क्षेत्र (हाइलैंड्स) फेल्डस्पार से भरपूर होते हैं और अपेक्षाकृत हल्के रंग के दिखाई देते हैं। पृथ्वी से देखने पर वायुमंडल के प्रभाव के कारण चंद्र का रंग बदल सकता है। चंद्र ग्रहण के समय वह लाल दिखाई देता है, जबकि कभी-कभी ज्वालामुखीय कणों के कारण वह नीला भी दिखाई दे सकता है।
चंद्र में "रेट्रो-रिफ्लेक्शन"[12] की विशेषता भी पाई जाती है, जिससे वह प्रकाश को उसी दिशा में वापस परावर्तित करता है जहाँ से वह आया था। इस कारण उसके पूरे चंद्रपृष्ठ पर लगभग समान चमक दिखाई देती है और किनारों पर अंधकार स्पष्ट नहीं होता। चंद्र का आकार और चमक उसकी दीर्घवृत्ताकार कक्षा के कारण बदलते रहते हैं। जब वह पृथ्वी के सबसे नजदीक होता है (पेरिजी), तब वह लगभग 30% अधिक चमकीला और 14% बड़ा दिखाई देता है। इस घटना को "सुपरमून" कहा जाता है।

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नाम और व्युत्पत्ति
आतंरिक संरचना
चंद्रमा एक विभेदित निकाय है जिसका भूरसायानिक रूप से तीन भाग क्रष्ट, मेंटल और कोर है। चंद्रमा का २४० किलोमीटर त्रिज्या का लोहे की बहुलता युक्त एक ठोस भीतरी कोर है और इस भीतरी कोर का बाहरी भाग मुख्य रूप से लगभग ३०० किलोमीटर की त्रिज्या के साथ तरल लोहे से बना हुआ है। कोर के चारों ओर ५०० किलोमीटर की त्रिज्या के साथ एक आंशिक रूप से पिघली हुई सीमा परत है।

संघात खड्ड
संघात खड्ड निर्माण प्रक्रिया एक अन्य प्रमुख भूगर्भिक प्रक्रिया है जिसने चंद्रमा की सतह को प्रभावित किया है, इन खड्डों का निर्माण क्षुद्रग्रहों और धूमकेतुओं के चंद्रमा की सतह से टकराने के साथ हुआ है। चंद्रमा के अकेले नजदीकी पक्ष में ही १ किमी से ज्यादा चौड़ाई के लगभग ३,००,००० खड्डों के होने का अनुमान है। [13] इनमें से कुछ के नाम विद्वानों, वैज्ञानिकों, कलाकारों और खोजकर्ताओं पर हैं। [14] चंद्र भूगर्भिक कालक्रम सबसे प्रमुख संघात घटनाओं पर आधारित है, जिसमें नेक्टारिस, इम्ब्रियम और ओरियेंटेल शामिल है, एकाधिक उभरी सतह के छल्लों द्वारा घिरा होना इन संरचनाओं की ख़ास विशेषता है।
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पानी की उपस्थिति
२००८ में भारत के चंद्रयान अंतरिक्ष यान ने चन्द्रमा की सतह पर जल बर्फ के अस्तित्व की पुष्टि की है। नासा ने इसकी पुष्टि की है।
चुम्बकीय क्षेत्र
चंद्रमा का करीब 1-100 नैनोटेस्ला का एक बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र है। पृथ्वी की तुलना में यह सौवें भाग से भी कम है।
चंद्रमा की उत्पत्ति
चंद्रमा की उत्पत्ति आमतौर पर माने जाते हैं कि एक मंगल ग्रह के शरीर ने धरती पर मारा, एक मलबे की अंगूठी बनाकर अंततः एक प्राकृतिक उपग्रह, चंद्रमा में एकत्र किया, लेकिन इस विशाल प्रभाव परिकल्पना पर कई भिन्नताएं हैं, साथ ही साथ वैकल्पिक स्पष्टीकरण और शोध में चंद्रमा कैसे जारी हुआ। [1] [2] अन्य प्रस्तावित परिस्थितियों में कब्जा निकाय, विखंडन, एक साथ एकत्रित (संक्षेपण सिद्धांत), ग्रहों संबंधी टकराव (क्षुद्रग्रह जैसे शरीर से बने), और टकराव सिद्धांत शामिल हैं। [3] मानक विशाल-प्रभाव परिकल्पना मंगल ग्रह के आकार के शरीर को बताती है, थिआ कहलाता है, पृथ्वी पर असर पड़ता है, जिससे पृथ्वी के चारों ओर एक बड़ी मलबे की अंगूठी पैदा होती है, जिसके बाद चंद्रमा के रूप में प्रवेश किया जाता है। इस टकराव के कारण पृथ्वी के 23.5 डिग्री झुका हुआ धुरी भी उत्पन्न हुई, जिससे मौसम उत्पन्न हो गया। [1] चंद्रमा के ऑक्सीजन समस्थानिक अनुपात पृथ्वी के लिए अनिवार्य रूप से समान दिखते हैं। [4] ऑक्सीजन समस्थानिक अनुपात, जिसे बहुत ठीक मापा जा सकता है, प्रत्येक सौर मंडल निकाय के लिए एक अद्वितीय और विशिष्ट हस्ताक्षर उत्पन्न करता है। [5] अगर थिया एक अलग प्रोटॉपलैनेट था, तो शायद पृथ्वी से एक अलग ऑक्सीजन आइसोटोप हस्ताक्षर होता, जैसा कि अलग-अलग मिश्रित पदार्थ होता। [6] इसके अलावा, चंद्रमा के टाइटेनियम आइसोटोप अनुपात (50Ti / 47Ti) पृथ्वी के करीब (4 पीपीएम के भीतर) प्रतीत होता है, यदि कम से कम किसी भी टकराने वाला शरीर का द्रव्यमान चंद्रमा का हिस्सा हो सकता है। [7]
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हिन्दू ज्योतिष में चन्द्रमा
हिन्दू ज्योतिष में चन्द्रमा का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। इसे मन और भावनाओं का कारक ग्रह माना जाता है। चन्द्रमा जन्म कुंडली में व्यक्ति की मानसिक स्थिति, संवेदनशीलता, माता का संबंध और मनोवैज्ञानिक गुणों को दर्शाता है। बारह राशियों में चन्द्रमा की अपनी एक राशि होती है — कर्क राशि — जिसमें यह उच्च भाव में होता है। इसके अलावा चन्द्रमा का संबंध 27 नक्षत्रों से भी होता है, जिन्हें चन्द्र नक्षत्र कहा जाता है। चन्द्रमा की गति के आधार पर वैदिक पंचांग में तिथि और मुहूर्त तय किए जाते हैं। हिन्दू परंपराओं में सोमव्रत,और करवाचौथ जैसे अनेक पर्व चन्द्रमा की उपासना से जुड़े हुए हैं।[15][16]
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सन्दर्भ
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