फफूंद
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Fjkhbk bang tahekana ho baing ih कवक एक प्रकार के जीव हैं जो अपना भोजन सड़े गले मृत कार्बनिक पदार्थों से प्राप्त करते हैं। ये संसार के प्रारम्भ से ही जगत में उपस्थित हैं। इनका सबसे बड़ा लाभ इनका संसार में अपमार्जक के रूप में कार्य करना है। इनके द्वारा जगत में से कचरा हटा दिया जाता है।[1]
कवक जीवों का एक विशाल समुदाय है जिसे साधारणतया वनस्पतियों में वर्गीकृत किया जाता है। इस वर्ग के सदस्य पर्णहरित रहित होते हैं और इनमें प्रजनन बीजाण्वों द्वारा होता है। ये सभी सूकाय वनस्पतियाँ हैं, अर्थात् इनके शरीर के ऊतकों में कोई भेदकरण नहीं होता; दूसरे शब्दों में, इनमें जड़, तना और पत्तियाँ नहीं होतीं तथा इनमें अधिक प्रगतिशील पौधों की भाँति संवहनीयतंत्र नहीं होता। पहले इस प्रकार के सभी जीव एक ही वर्ग कवक के अंतर्गत परिगाणित होते थे, किन्तु अब वनस्पति विज्ञानविदों ने कवक वर्ग के अतिरिक्त दो अन्य वर्गों की स्थापना की है जिनमें क्रमानुसार जीवाणु और श्लेष्मोर्णिका हैं। जीवाणु एककोशीय होते हैं जिनमें प्रारूपिक नाभिक नहीं होता तथा श्लेष्मोर्णिक की बनावट और पोषाहार जन्त्वों की भाँति होता है। कवक अध्ययन के विज्ञान को कवक विज्ञान कहते हैं।
कुछ लोगों का मत है कि कवक की उत्पत्ति शैवाल में पर्णहरित की हानि होने से हुई है। यदि वास्तव में ऐसा हुआ है तो कवक को पादप सृष्टि में रखना उचित ही है। दूसरे लोगों का विश्वास है कि इनकी उत्पत्ति रंगहीन कशाभ या प्रजीवा से हुई है जो सदा से ही पर्णहरित रहित थे। इस विचारधारा के अनुसार इन्हें वानस्पतिक सृष्टि में न रखकर एक पृथक सृष्टि में वर्गीकृत किया जाना चाहिए।
वास्तविक कवक के अंतर्गत कुछ ऐसी परिचित वस्तुएँ आती हैं, जैसे गुँधे हुए आटे से पावरोटी बनाने में सहायक एककोशीय खमीर, बासी रोटियों पर रूई की भाँति उगा फफूँद, चर्म को मलिन करनेवाले दाद के कीटाणु, फसल के नाशकारी रतुआ तथा कंडुवा और खाने योग्य एव विषैली कुकुरमुत्ते या खुंभियाँ को मलिन करनेवाले दाद के कीटाणु, फसल के नाशकारी रतुआ तथा कंडुवा और खाने योग्य एव विषैली कुकुरमुत्ते या खुंभियाँ