कृष्ण
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श्रीकृष्ण, हिन्दू धर्म में भगवान हैं। वे विष्णु के 8वें अवतार माने गए हैं। कन्हैया, माधव, श्याम, गोपाल, यदुनंदन, केशव, द्वारकेश या द्वारकाधीश, वासुदेव आदि नामों से भी उनको जाना जाता है। कृष्ण निष्काम कर्मयोगी, आदर्श दार्शनिक, स्थितप्रज्ञ एवं दैवी संपदाओं से सुसज्जित महान पुरुष थे। उनका जन्म द्वापरयुग में हुआ था। उनको इस युग के सर्वश्रेष्ठ पुरुष, युगपुरुष या युगावतार का स्थान दिया गया है। कृष्ण के समकालीन महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित श्रीमद्भागवत और महाभारत में कृष्ण का चरित्र विस्तृत रूप से लिखा गया है। भगवद्गीता कृष्ण और अर्जुन का संवाद है जो ग्रंथ आज भी पूरे विश्व में लोकप्रिय है। इस उपदेश के लिए कृष्ण को जगद्गुरु का सम्मान भी दिया जाता है।
यह सुझाव दिया जाता है कि वासुदेव का इस लेख में विलय कर दिया जाए। (वार्ता) मई 2023 से प्रस्तावित |
श्री कृष्ण | |
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करुणा, ज्ञान और प्रेम के ईश्वर [1][2] | |
श्री मारिमान मंदिर, सिंगापुर में यदुवंशी श्री कृष्ण प्रतिमा | |
देवनागरी | कृष्ण |
संस्कृत लिप्यंतरण | कृष्णः |
तमिल लिपि | கிருஷ்ணா |
तमिल लिप्यंतरण | Kiruṣṇā |
कन्नड़ लिपि | ಕೃಷ್ಣ |
कन्नड़ लिप्यंतरण | Kr̥ṣṇa |
संबंध | स्वयं भगवान्, परमात्मन, गोप, विष्णु, राधा कृष्ण[3][4] |
निवासस्थान | गोलोक, वृंदावन, द्वारका, गोकुल, वैकुंठ |
अस्त्र | सुदर्शन चक्र |
युद्ध | कुरुक्षेत्र युद्ध |
जीवनसाथी | रुक्मिणी, सत्यभामा, जांबवती, नग्नजित्ती, लक्ष्मणा, कालिंदी, भद्रा [5][note 1] |
माता-पिता | देवकी (माँ) और वसुदेव (पिता), यशोदा (पालक मां) और नंद बाबा (पालक पिता) |
भाई-बहन | बलराम, सुभद्रा |
शास्त्र | भागवत पुराण, ब्रह्मवैवर्त पुराण, विष्णु पुराण, महाभारत, भगवद् गीता, गीत गोविंद, गर्ग संहिता, हरिवंश |
त्यौहार | जन्माष्टमी, होली |
वसुदेवसुतं देवं कंसचाणूरमर्दनम्।
देवकीपरमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्।।
कृष्ण वसुदेव और देवकी की 8वीं संतान थे। देवकी कंस की बहन थी। कंस एक अत्याचारी राजा था। उसने आकाशवाणी सुनी थी कि देवकी के आठवें पुत्र द्वारा वह मारा जाएगा। इससे बचने के लिए कंस ने देवकी और वसुदेव को मथुरा के कारागार में डाल दिया। मथुरा के कारागार में ही भादो मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को उनका जन्म हुआ। कंस के डर से वसुदेव ने नवजात बालक को रात में ही यमुना पार गोकुल में यशोदा के यहाँ पहुँचा दिया। गोकुल में उनका लालन-पालन हुआ था। यशोदा और नन्द उनके पालक माता-पिता थे।
बाल्यावस्था में ही उन्होंने बड़े-बड़े कार्य किए जो किसी सामान्य मनुष्य के लिए सम्भव नहीं थे। अपने जन्म के कुछ समय बाद ही कंस द्वारा भेजी गई राक्षसी पूतना का वध किया , उसके बाद शकटासुर, तृणावर्त आदि राक्षस का वध किया। बाद में गोकुल छोड़कर नंद गाँव आ गए वहां पर भी उन्होंने कई लीलाएं की जिसमे गोचारण लीला, गोवर्धन लीला, रास लीला आदि मुख्य है। इसके बाद मथुरा में मामा कंस का वध किया। सौराष्ट्र में द्वारका नगरी की स्थापना की और वहाँ अपना राज्य बसाया। पांडवों की मदद की और विभिन्न संकटों से उनकी रक्षा की। महाभारत के युद्ध में उन्होंने अर्जुन के सारथी की भूमिका निभाई और रणक्षेत्र में ही उन्हें उपदेश दिया। 124 वर्षों के जीवनकाल के बाद उन्होंने अपनी लीला समाप्त की। उनके अवतार समाप्ति के तुरंत बाद परीक्षित के राज्य का कालखंड आता है। राजा परीक्षित, जो अभिमन्यु और उत्तरा के पुत्र तथा अर्जुन के पौत्र थे, के समय से ही कलियुग का आरंभ माना जाता है।