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उत्तरी मित्रपक्ष
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अफ़ग़ान उत्तरी मित्रपक्ष (Afghan Northern Allaince), जिसे औपचारिक रूप से अफ़ग़ानिस्तान की मुक्ति के लिए संयुक्त इस्लामी मोर्चा (United Islamic Front for the Salvation of Afghanistan, جبهه متحد اسلامی ملی برای نجات افغانستان, जबहा-ए-मुत्तहिद-ए-इस्लामी-ए-मिल्ली बरा-ए-निजात-ए-अफ़ग़ानिस्तान), अफ़ग़ानिस्तान में एक सैनिक मोर्चा था जो १९९६ में काबुल पर तालिबान कट्टरपंथी गुट का क़ब्ज़ा हो जाने के बाद उस का बलपूर्वक विरोध करने के लिए बना था। इसे तालिबान-विरोधी विस्थापित अफ़ग़ान राष्ट्रीय सरकार के राष्ट्रपति बुरहानुद्दीन रब्बानी और भूतपूर्व रक्षामंत्री अहमद शाह मसूद ने स्थापित किया था। शुरू में इसमें अधिकतर ताजिक समुदाय के लोग थे लेकिन सन् २००० तक अन्य जातीय गुट भी इससे जुड़ चुके थे। इसके नेताओं में उज़बेक समुदाय के अब्दुल रशीद दोस्तुम, पश्तून समुदाय के अब्दुल क़ादिर और हज़ारा समुदाय के मुहम्मद मोहक़िक़ और सय्यद हुसैन अनवरी शामिल थे।
उत्तरी मित्रपक्ष | |
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अफ़ग़ान गृहयुद्ध (१९९६-२००१), अफ़ग़ान गृहयुद्ध (२००१ से जारी) में पक्ष | |
![]() संयुक्त इस्लामी मोर्चे द्वारा इस्तेमाल ध्वज | |
सक्रीय | सितम्बर १९९६ – दिसम्बर २००१ |
विचारधारा | इस्लामी लोकतंत्र |
नेता | अहमद शाह मसूद अब्दुल रशीद दोस्तुम सय्यद हुसैन अनवरी मुहम्मद मोहक़िक़ हाजी अब्दुल क़ादिर |
युद्धक्षेत्र | अफ़ग़ानिस्तान |
मित्र/सहायक | ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() |
प्रतिद्वंदी | तालिबान अल-क़ायदा |
उत्तरी मित्रपक्ष को तालिबान के ख़िलाफ़ लड़ने में ईरान, रूस, भारत व ताजिकिस्तान से मदद मिली, जबकि तालिबान को पाकिस्तान और अल-क़ायदा सहायता दी।[1] तालिबान सरकार में अधिकतर लोग पश्तून थे जबकि उत्तरी मित्रपक्ष में ताजिक सबसे आगे थे लेकिन उज़बेक, हज़ारा और पश्तून भी बाद में शामिल हो गए।[2] २००१ में जब अफ़ग़ानिस्तान में अमेरिकी हस्तक्षेप के बाद तालिबान गिरी और हामिद करज़ई की नई सरकार बन गई तो उत्तरी मित्रपक्ष टूट गया और बहुत सी राजनैतिक पार्टियाँ बन गई।