श्रीरंगपट्टण
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श्रीरंगपट्टण (Srirangapatna) भारत के कर्नाटक राज्य के मांडया ज़िले में स्थित एक नगर है। यह मैसूर के पास स्थित है और कावेरी नदी की शाखाओं के बीच भौगोलिक रूप से एक द्वीप पर बसा हुआ है।[1][2]
श्रीरंगपट्टण Srirangapatna / Shrirangapattana ಶ್ರೀರಂಗಪಟ್ಟಣ | |
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श्रीरंगपट्टण गुम्बद | |
निर्देशांक: 12.425°N 76.681°E | |
देश | भारत |
प्रान्त | कर्नाटक |
ज़िला | मांडया ज़िला |
जनसंख्या (2011) | |
• कुल | 25,061 |
भाषा | |
• प्रचलित | कन्नड़ |
समय मण्डल | भारतीय मानक समय (यूटीसी+5:30) |
पिनकोड | 571 438 |
दूरभाष कोड | 08236 |
वाहन पंजीकरण | KA-11 |
वेबसाइट | http://www.srirangapatnatown.mrc.gov.in/ |
हालाँकि यह मैसूर शहर से मात्र 19 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस पूरे शहर पर कावेरी नदी छाई हुई है जिससे यह एक नदी का टापू बनता है। इसके उत्तर का आधा भाग चित्र में दिखाया गया है। जहाँ मुख्य नदी टापू की पूर्वी दिशा में बह्ती है, इस नदी की पश्चिम वाहिनी पश्चिम की ओर बहती है। इस शहर को बंगलोर और मैसूर से ट्रेन से पहुँचा जा सकता है। इसके सड़क यातायात से भी जोड़ दिया गया है। यहाँ के राजमार्ग के सम्बंध में स्मार्कों को होने हानिकारक प्रभावों को कम से कम करने के प्रयास किए गए।
यह शहर अपना नाम प्रसिद्ध श्री रंगानाथस्वामी मन्दिर के नाम से लेता है जो इस शहर पर छाया हुआ है। इससे श्रीरंगपट्टण दक्षिण भारत का एक प्रमुख वैष्णव तीर्थस्थल बनता। इस मन्दिर का निर्माण पश्चिमी गंग वंश ने इस क्षेत्र में नौवीं शताब्दी में किया था। इस ढाँचे को तीन सदियों के पश्चात मज़बूत और बहतर बनाया गया था। इस मन्दिर की निर्माण कला होयसल राजवंश और विजयनगर साम्राज्य की हिन्दू मंदिर स्थापत्य का मिश्रण है।
परम्पराओं के अनुसार कावेरी नदी में बने सारे टापू श्री रंगानाथस्वामी को समर्पित हैं, और प्राचीन काल में तीन सबसे बड़े टापुओं में इस देवता के मन्दिर थे। यह तीनों नगर जहाँ रंगानाथस्वामी को समर्पित तीर्थस्थल मौजूद हैं इस तरह हैं:
कावेरी नदी की मौजूदगी अपने आप में पावन और पवित्र करने वाली मानी गई है। श्रीरंगपट्टण में इसका पशिच्म वाहिनी भाग विशेष रूप पवित्र माना गया है; श्रद्धालु यहाँ पर दूर-दूर से आकर अपने स्वर्गीय परिजनों की अस्थियाँ बहाने के लिए आते हैं और इसी पानी में अपने पूर्खों का स्मरण करते हैं।
भारत की जनगणना 2001 के अनुसार [update] [3] श्रीरंगपट्टण की जनसंख्या 23,448 थी। इसमें पुरुष 51% और महिलाएँ 49% थे। श्रीरंगपट्टण की औसत साक्षरता 68% है जो साक्षरता की राष्ट्रीय दर 59.5% से अधिक है: पुरुष साक्षरता 74% है, और महिला साक्षरता 63% है। श्रीरंगपट्टण में जनसंख्या का 10% 6 वर्ष की आयु से कम है।
श्रीरंगपट्टण 12.41°N 76.7°E पर स्थित है। इसकी औसत ऊँचाई 679 मीटर / 2227 फ़ीट है।
श्रीरंगपट्टण प्राचीन काल से एक नगरीय केन्द्र और तीर्थ स्थल है। विजयनगर साम्राज्य में यह राजप्रतिनिधित्व का के मुख्य केन्द्र बन चुका था, यहाँ से आसपास के रजवाड़ों जैसे कि मैसूर और तालकाड़ पर नज़र रखी जाती थी। जब विजयनगर साम्राज्य के पतन को भाँप लिया गया, तब मैसूर के रजवाड़ों ने स्वाधीनता की ओर क़दम बढ़ाया और श्रीरंगपट्टण को अपना पहला नशाना बनाया। वाडियार राजा ने रंगराया को परास्त किया,[4] जो श्रीरंगपट्टण में 1610 तक प्रतिनिधि-शासक थे। इसके बाद राजा ने नगर में नवरात्रि पर्व को शहर में धूम-धाम से मनाया। उस समय यह मान्यता प्रचलित थी कि दो बातों से नियंत्र प्रदर्शित होता है और मैसूर राज्य के तख्त के किसी भी दावेदार की स्वाधीनता का इशारा मिलता है:
श्रीरंगपट्टण मैसूर राज्य का भाग 1610 से लेकर 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद तक रहा; चूँकि दुर्ग राजधानी मैसूर से निकटतम दूरी पर थी, इसलिए उसे किसी भी प्रहार की स्थिति में बचाव के अंतिम गढ़ के रूप में देखा गया है।
हैदर अली और टीपू सुलतान के नेतृत्व में श्रीरंगपट्टण मैसूर की वस्तुतः राजधानी बन गया।[6]
जब टीपू ने अंततः विधि द्वारा स्थापित वाडियार महाराज से सत्ता अपने हाथ में ली और उन्हें अपना बंदी बनाते हुए अपनी "खुदादाद सलतनत" की घोषणा की, श्रीरंगपट्टण वास्तुत: इस अल्प-अवधि अस्तित्व की राजधानी बना। इस तूफ़ानी दौर में टीपू के राज्य की सीमाएँ हर दिशा में फैलने लगी थी, जिसमें दक्षिण भारत का एक बड़ा भाग सम्मिलित हो गया था। श्रीरंगपट्टण के मज़बूत राज्य की संयुक्त राजधानी के तौर पर विकसित हुआ। विभिन्न भारतीय-इस्लामी स्मार्क इस नगर में फैले हैं, जैसे कि टीपू के महलम "दरिया दौलत" और "जुमा मस्जिद", जो इस दौर से सम्बंधित हैं।
श्रीरंगपट्टण टीपू सुलतान और 50,000 लोगों के गठजोड़ वाली हैदराबाद के निज़ाम और ब्रिटिश सेनाओं के बीच युद्ध जनरल जॉर्ज हैरिस के नेतृत्व में लड़ा गया। यह चतुर्थ ऐंगलो-मैसूर युद्ध की अंतिम कड़ी थी। श्रीरंगपट्टण की लड़ाई 1799 में वास्तव में एक निर्णायक युद्ध थी और इसके ऐतिहासिक प्रभाव देखे गए।
बहरहाल टीपू सुलतान को श्रीरंगपट्टण दुर्ग में ही अपनी विश्वासपात्र के धोके के कारण मौत का शिकार होना पड़ा; वह जगह जहाँ वह वीर गति को प्राप्त किए थे, एक स्मारक बन चुका है। इतिहास में अंतिम बार श्रीरंगपट्टण मैसूर सलतनत के राजनीतिक सत्ता पलट का केन्द्र बना। विजयी सेना की संयुक्त सेना ने सेरिंगापट्टनम को बर्बाद करने और टीपू के महल को लूटने के लिए आगे बढ़ी। आम सोने और नक़द के अलावा कई बहुमूल्य कलाकृतियाँ जिनमें कुछ टीपू की ओर विशेष रूप से निर्मित थे, उसके क़ीमती कपड़े और जूते, तलवार और बारूद इंगलैंड भेजे गए।
हालाँकि इन में से अधिकाँश को ब्रिटिश राजशाही संग्रह में और विकटोरिया और ऐलबर्ट संग्रहालय में पाया जा सकता है, इन में कुछ वस्तुओं को समय-समय नीलाम भी किया गया है और अपने मूल निवासीय स्थान वापस पहुँचाया जाता गया है। टीपू सुलतान की तलवार को एक नीलाम में विजय माल्या प्राप्त किया था, जो व्यापार जगत में कर्नाटक के शराब के सौदागर रूप में प्रसिद्ध हैं। युद्ध भूमि का अधिकांश हिस्सा ज्यों का त्यों है, जिसमें किले, पानी के द्वार, वह स्थान जहाँ टीपू का शरीर पाया गया, वह जगह जहाँ ब्रिटिश क़ैदियों को रखा जाता था और तबाह किया गया महल। टीपू का शेर जैसाकि स्वचालित रूप में वह चलता था विकटोरिया और ऐलबर्ट संग्रहालय में इस युद्ध के पश्चात रखा गया।
यह नगर आदि प्राचीन मन्दिर श्री रंगानाथस्वामी मन्दिर के लिए प्रसिद्ध है जो कि विष्णु के अवतार माने जाते हैं। अन्य आकर्षणों मे जुमा मस्जिद और दरिया दौलत बाग़ है। श्रीरंगपट्टण के निकट रंगनटिट्ट पक्षीशाला है जिसमें विभिन्न प्रकार के पक्षी हैं। प्रसिद्ध निमिशंबा मंदिर पड़ोस के गंजाम में है। टीपू सुलतान की ग्रीष्मकालीन राजधानी भी दिलचस्प है। इस नगर से 27 किलोमीटर दूर खूबसूरत शिवासनसमुद्र झरने हैं जो भारत में दूसरे स्थान पर दुनिया में सोलहवीं स्थान पर हैं।
गणेश मन्दिर रंगनाथस्वामी मन्दिर के सामने स्थित है। अन्य दार्शनिक स्थलों में गंधारेश्वर स्वामी मन्दिर है।
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