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ग्रेट ब्रिटेन के दक्षिणी भाग में स्थित एक देश विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
इंग्लैंड या इंगलिस्तान (अंग्रेज़ी: England), ग्रेट ब्रिटेन नामक द्वीप के दक्षिणी भाग में स्थित एक देश है। इसका क्षेत्रफल 50,331 वर्ग मील है। यह यूनाइटेड किंगडम का सबसे बड़ा निर्वाचक देश है। इंग्लैंड के अलावा स्कॉटलैंड, वेल्स और उत्तर आयरलैंड भी यूनाइटेड किंगडम में शामिल हैं। यह यूरोप के उत्तर पश्चिम में अवस्थित है जो मुख्य भूमि से इंग्लिश चैनल द्वारा पृथकीकृत द्वीप का अंग है। इसकी राजभाषा अंग्रेज़ी है और यह विश्व के सबसे संपन्न तथा शक्तिशाली देशों में से एक है
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इंग्लैंड England |
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राष्ट्रगान: आधिकारिक रूप से कोई नहीं; युनाइडेड किंगडम का राष्ट्रगान God Save the King है। | ||||
इंग्लैण्ड (हरा) की अवस्थिति यूनाइटेड किंगडम (हल्का हरा) में |
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राजधानी और सबसे बड़ा नगर | लंदन 51°30′N 0°7′W | |||
निवासी | अंग्रेज़ | |||
सरकार | यूनाईटेड किंगडम की सरकार | |||
- | शासक | चार्ल्स तृतीय | ||
एकीकरण | ||||
- | एंगलों, सैक्सनों और दैनों का एकीकरण | 12 जुलाई 927 | ||
- | विलय के अधिनियम | 1 मई 1707 | ||
क्षेत्रफल | ||||
- | कुल | 1,32,932 km2 | ||
जनसंख्या | ||||
- | 2022 जनगणना | 5,71,06,398 | ||
- | 2021 जनगणना | 5,64,90,048 | ||
सकल घरेलू उत्पाद (सांकेतिक) | 2022 प्राक्कलन | |||
- | कुल | £21.62 खरब | ||
- | प्रति व्यक्ति | £37,852 | ||
मुद्रा | पाउण्ड स्टर्लिंग (GBP) | |||
समय मण्डल | GMT (यू॰टी॰सी॰+0) | |||
यातायात चालन दिशा | बाएं | |||
दूरभाष कूट | +44 | |||
ISO 3166 code | GB-ENG | |||
इंटरनेट टीएलडी | .uk3 | |||
1. | English is established by de facto usage. Cornish is officially recognised as a Regional or Minority language under the European Charter for Regional or Minority Languages. | |||
2. | National population projections (PDF) from the Office for National Statistics. | |||
3. | Also .eu, as part of the European Union. ISO 3166-1 is GB, but .gb is unused. |
इंग्लैंड के इतिहास में सबसे स्वर्णिम काल उसका औपनिवेशिक युग है। अठारहवीं सदी से लेकर बीसवीं सदी के मध्य तक ब्रिटिश साम्राज्य विश्व का सबसे बड़ा और शकितशाली साम्राज्य हुआ करता था जो कई महाद्वीपों में फैला हुआ था और कहा जाता था कि ब्रिटिश साम्राज्य में सूर्य कभी अस्त नहीं होता। उसी समय पूरे विश्व में अंग्रेज़ी भाषा ने अपनी छाप छोड़ी जिसकी वज़ह से यह आज भी विश्व के सबसे अधिक लोगों द्वारा बोले व समझे जाने वाली भाषा है।
इंग्लैंड के धरातल की संरचना का इतिहास बड़ी ही उलझन का है। यहाँ मध्यनूतन (मायोसीन) युग को छोड़कर प्रत्येक युग की चट्टानें मिलती हैं जिनसे स्पष्ट है कि इस भाग ने बड़े भूवैज्ञानिक उथल पुथल देखें हैं। आयरलैंड का ग्रेट ब्रिटेन से अलग होना अपेक्षाकृत नवीन घटना है। इग्लैंड का डोवर जलडमरूमध्य द्वारा महाद्वीप से अलग होना और भी नई बात है, जो मानव-जीवन-काल में घटित कही जाती है।
धरातल की विभिन्नता के विचार से इंग्लैंड को दो मुख्य भागों में विभाजित किया जा सकता है :
ऊँचे पठारी भाग इंग्लैंड के उत्तर पश्चिमी भाग में मिलते हैं, जो प्राचीन चट्टानों द्वारा निर्मित हैं। हिमयुग में हिम से ढके रहने के फलस्वरूप यहाँ के पठार घिसकर चिकने हो गए हैं। दूसरी ओर मैदानी भाग नर्म चट्टानों, बलुआ पत्थर, चूना पत्थर तथा चिकनी मिट्टी (क्ले) के बने हैं। चूना पत्थर के नीचे गोलाकार पहाड़ियाँ निर्मित हो गई हैं, खड़िया (चाक) के पर्वतीय ढाल। नीचे के मैदानी भाग प्राय: दोमट मिट्टी के बने हैं।
इंग्लैंड उत्तर-पश्चिमी यूरोपीय प्रदेश के समशीतोष्ण एवं आर्द्र जलीवयु के क्षेत्र में पड़ता है। इस का वार्षिक औसत ताप 50 डिग्री फा. है, जो क्रमश: दक्षिण पश्चिम से उत्तर पूर्व की ओर घटता जाता है। शीतकाल में इंग्लैंड के सभी भागों का औसत ताप 40 डिग्री फा. से ऊपर रहता है, पश्चिम से पूर्व की ओर घटता जाता है। पश्चिमी भाग गल्फस्ट्रीम नामक गर्म जलधारा के प्रभाव से प्रत्येक ऋतु में पूर्वी भाग की अपेक्षा अधिक गर्म रहता है। वर्षा उत्तर पश्चिमी भागों तथा ऊँचे पठारों पर 30फ़फ़ से 60फ़फ़ तथा पूर्वी मैदानी भागों में 30फ़फ़ से भी कम होती है। लंदन की औसत वार्षिक वर्षा 25.1फ़फ़ है। वर्ष भर पछुवाँ हवा की पेटी में पड़ने के साथ कारण वर्षा बारहों मास होती है। आकाश साधारणतया बादलों से छाया रहता है, जाड़े में बहुधा कुहरा पड़ता है तथा कभी-कभी बर्फ भी पड़ती है।
भौगोलिक दृष्टि से इंग्लैंड को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है :
(1) उत्तरी इंग्लैंड, (2) मध्य के देश (3) दक्षिण पूर्वी इंग्लैंड।
पेनाइन तथा उसके आस पास के नीचे मैदान इस प्रदेश में सम्मिलित हैं। पेनाइन कटा फटा पठार है जो समुद्र के धरातल से 2,000 से 3,000 फुट तक ऊँचा है। यह पठार इंग्लैंड के उत्तरी भाग के मध्य में रीढ़ की भाँति उत्तर से दक्षिण 150 मील लंबाई तथा 50 मील की चौड़ाई में फैला हुआ है। यह पठारी क्रम कार्बनप्रद (कार्बोनिफेरस) युग में चट्टानों के मुड़ने से निर्मित हुआ, परंतु इसकी ऊपरी चट्टानें कटकर बह गई हैं, जिसके फलस्वरूप कोयले की तहें भी जाती रहीं। अब कोयले की खदानें इसके पूर्वी तथा पश्चिमी सिरों पर ही मिलती हैं। कृषि एवं पशुपालन के विचार से यह भाग अधिक उपयोगी नहीं है।
पेनाइन के पूर्व नार्थंबरलैंड तथा डरहम की कोयले की खदानें हैं। यहाँ दो प्रकार की खदानें पाई जाती हैं : (1) प्रकट (छिछली) खदानें तथा (2) (अप्रकट (गहरी) खदानें। प्रथम प्रकार की खदानें दक्षिण में टाइन नदी के मुहाने से उत्तर में कॉक्वेट नदी के मुहाने तक पेनाइन तथा समुद्रतट के बीच फैली हुई हैं। अप्रकट खदानें दक्षिण की ओर चूने के पत्थर के नीचे मिलती हैं। टीज़ नदी के निचले भाग में नमक की भी खदानें हैं। उसके दक्षिण लोहा प्राप्त होता है।
अत: इन प्रदेशों में लोहे तथा रासायनिक वस्तुओं के निर्माण के बहुत से कारखाने बन गए हैं। यहाँ के बने लोहे एवं इस्पात के अधिकांश की खपत यहाँ के पोतनिर्माण (शिप बिल्डिंग) उद्योग में हो जाती है। टाइन तथा वियन नदियों की घाटियाँ पोतनिर्माण के लिए जगत्प्रसिद्ध हैं। टाइन के दोनों किनारों पर न्यू कैसिल से 14 मील की दूरी तक लगातार पोत-निर्माण-प्रांगण (शिप बिल्डिंग यार्ड) हैं। न्यू कैसिल यहाँ का मुख्य नगर है। पोतनिर्माण के अतिरिक्त यहाँ पर काँच, कागज, चीनी तथा अनेक रासायनिक वस्तुओं के कारखाने हैं।
उपर्युक्त प्रदेश के दक्षिण में इंग्लैंड की सबसे बड़ी कोयले की खदानें यार्क, डरबी एवं नाटिंघम की खदानें हैं। ये उत्तर में आयर नदी की घाटी से दक्षिण में ट्रेंट की घाटी तक 70 मील की लंबाई में तथा 10 से 20 मील की चौड़ाई में फैली हुई हैं। इस प्रदेश के निकट ही, लिंकन तथा समीपवर्ती भागों में, लोहा भी निकलता है। अत: यहाँ के कोयले के व्यवसाय पर आश्रित तीन व्यावसायिक प्रदेश हैं : (1) कोयले की खदानों के उत्तर में पश्चिमी रेडिंग के ऊनी वस्त्रोद्योग के क्षेत्र, (2) मध्य में लोहे तथा इस्पात के प्रदेश तथा (3) डरबी और नाटिंघम प्रदेश के विभिन्न व्यवसायवाले प्रदेश। ऊनी वस्त्रोद्योग मुख्यतया आयर नदी की घाटी में विकसित हैं। लीड्स (जनसंख्या 1971 में 4,94,971) यहाँ का मुख्य नगर है जो सिले हुए कपड़ों का मुख्य केंद्र है। डफर्ड इस क्षेत्र का दूसरा महत्वपूर्ण नगर है। हैलीफैक्स कालीन बुनने का प्रधान केंद्र है। लोहे एवं इस्पात के व्यवसाय शेफील्ड (जनसंख्या 1971 में 5,19,703) में प्राचीन काल से होते आ रहे हैं। चाकू, कैंची बनाना यहाँ का प्राचीन व्यवसाय है। आज शेफील्ड तथा डानकैस्टर के बीच की डान की घाटी इस्पात का मुख्य प्रदेश बन गई है। यार्क-डरबी एवं नाटिंघम की कोयले की खदानों के दक्षिणी सिरे की ओर विभिन्न प्रकार के व्यवसाय होते हैं जिनमें सूती, ऊनी, रेशमी तथा नकली रेशम का उद्योग मुख्य हैं।
पेनाइन के पूर्व में उत्तरी सागर के तट तक नीचा मैदान है जिसमें यार्क, यार्कशायर एवं लिंकनशायर के पठार तथा घाटियाँ भी सम्मिलित हैं। यार्कशायर घाटी इंग्लैंड का एक बहुत उपजाऊ प्रदेश है जिसमें गेहूँ की अच्छी खेती होती है। यार्कशायर के पठारों एवं घाटीवाले प्रदेशों में पशुपालन तथा खेती होती है। गेहूँ, जौ तथा चुकंदर यहाँ की मुख्य फसलें हैं। हल इस प्रदेश का महत्वपूर्ण नगर तथा इंग्लैंड का तीसरा बड़ा बंदरगाह है। यहाँ के आयात में दूध, मक्खन, तेलहन, बाल्टिक सागरी प्रदेशों से लकड़ी के लट्ठे और स्वीडन से लोहा मुख्य हैं। निर्यात की जानेवाली वस्तुओं में ऊनी वस्त्र और लोहे तथा इस्पात के सामान मुख्य हैं। लिंकनशायर के पठारों पर भेड़ चराने का कार्य और घाटी में खेती तथा पशुपालन दोनों होते हैं। चुकंदर की खेती पर आश्रित चीनी की कई मिलें भी यहाँ स्थापित हो गई हैं। लिंकन इस प्रदेश का मुख्य नगर है, जो कृषियंत्रों के निर्माण का मुख्य केंद्र है।
दक्षिणी पूर्वी लंकाशायर की कोयले की खदानों पर आश्रित लंकाशायर का विश्वविख्यात वस्त्रोद्योग है। यह व्यवसाय लंकाशायर की सीमा पार कर डरबीशायर, चेशायर तथा यार्कशायर प्रदेशों तक फैला हुआ है। यहाँ पर सूती वस्त्रोद्योग के दो प्रकार के नगर हैं : एक प्रेस्टन, ब्लैकबर्न, एकिं्रग्टन तथा बर्नले जैसे नगर हैं जिनमें अधिकतर कपड़े बुनने का कार्य होता है और दूसरे बोल्टनबरी, राचडेल, ओल्ढम, ऐश्टन, स्टैलीब्रिज, हाइड तथा स्टाकपोर्ट जैसे वे नगर हैं जिनमें सूत कातने का कार्य मुख्य रूप से होता है। सूती वस्त्रोद्योग के प्रधान केंद्र मैंचेस्टर (जनसंख्या 1971 में 5,41,468) की ये नगर विभिन्न दिशाओं में घेरे हुए हैं। मैंचेस्टर—शिप--कनाल द्वारा लिवरपुल (जनसंख्या 1971 में 6,06,834) बंदरगाह से संबंधित होने के कारण विदेशों में रुई मँगाकर अन्य नगरों को भेजता है तथा उनके तैयार माल का निर्यात करता है। लंकाशायर के अन्य उद्योगों में कागज, रासायनिक पदार्थ तथा रबर की वस्तुओं का निर्माण मुख्य है।
उत्तरी स्टैफर्डशायर की कोयले की खदानों तथा प्रादेशिक मिट्टी पर आश्रित चीनी मिट्टी के व्यवसाय लांगटन, फेंटन तथा स्टोक में स्थापित हैं। लंकाशायर के निचले मैदान हिमपर्वतों की रगड़ एवं जमाव के कारण बने हुए हैं, अत: वे कृषि की अपेक्षा गोपालन के लिए अधिक उपयुक्त हैं।
इंग्लैंड के मध्य में एक त्रिभुजाकार नीचा मैदान है जिसकी तीन भुजाओं के समांतर तीन मुख्य नदियाँ, उत्तर में ट्रेंट, पूर्व में ऐवान तथा पश्चिम में सेवर्न बहती हैं। भौतिक दृष्टि से यह मैदान लाल बलुए पत्थर तथा चिकनी मिट्टी (क्ले) का बना है। भूमि के अधिकतर भाग का यहाँ स्थायी चारागाह के रूप में उपयोग किया जाता है, फलत: गोपालन मुख्य उद्यम है। परंतु यह प्रदेश उद्योग धंधे के लिए अधिक प्रसिद्ध है। मध्यदेशीय कोयले की खदानों, पूर्वी शापशायर, दक्षिणी स्टैफर्डशायर तथा वारविकशायर की खदानों पर आश्रित अनेक उद्योग धंधे इस प्रदेश में होते हैं। दक्षिणी स्टैफर्डशायर की कोयले की खदानों के निकट व्यावसायिक नगरों का एक जाल सा बिछ गया है जिसकी सम्मिलित जनंसख्या 40 लाख से भी अधिक है। इस प्रदेश के मुख्य नगर बरमिंघम की जनंसख्या ही 10 लाख से अधिक (1971 में 10,13,366) है। कल कारखानों की अधिकता, कोयले के अधिक उपयोग, नगरों के लगातार क्रम तथा खुले स्थलों की न्यूनता के कारण इस प्रदेश को प्राय: "काला प्रदेश" की संज्ञा दी जाती है। प्रारंभ में इस प्रदेश में लोहे का ही कार्य अधिक होता था, परंतु अब यहाँ ताँबा, सीसा, जस्ता, ऐल्यूमीनियम तथा पीतल आदि की भी वस्तुएँ बनने लगी हैं। समुद्रतट से दूर स्थित होने के कारण इस प्रदेश ने उन वस्तुओं के निर्माण में विशेष ध्यान दिया है जिनमें कच्चे माल की अपेक्षा कला की विशेष आवश्यकता पड़ती है, उदाहरणस्वरूप, घड़ियाँ, बंदूकें, सिलाई की मशीनें, वैज्ञानिक यंत्र आदि। मोटरकार के उद्योग के साथ-साथ रबर का उद्योग भी यहाँ स्थापित हो गया है।
अन्य उद्योग धंधों में पशुपालन पर आश्रित चमड़े का उद्योग, बिजली की वस्तुओं का निर्माण और कांच उद्योग मुख्य हैं।
मध्य के मैदान के पूर्व में चूने के पत्थर के पठार तथा फेन का मैदानी भाग है। पठारों पर पशुपालन तथा नदियों की घाटियों में खेती होती है। परंतु विलिंगबरो की लोहे की खदान के कारण यहाँ पर कई नगर बस गए हैं। फेन के मैदान में गेहूँ का उत्पादन मुख्य है, परंतु कुछ समय से यहाँ आलू तथा चुकंदर की खेती विशेष होने लगी है। फेन के दक्षिण "चाक" प्रदेश में गोपालन मुख्य पेशा है और यह भाग लंदन की दूध की माँग की पूर्ति करनेवाले प्रदेशों में प्रधान है।
पूर्वी ऐंग्लिया इंग्लैंड का मुख्य कृषिप्रधान क्षेत्र है। यहाँ गेहूँ, जौ तथा चुकंदर अधिक उत्पन्न होता है। यहाँ के उद्योग धंधे यहाँ की उत्पन्न वस्तुओं पर आश्रित है। कैंटले तथा ईप्सविक में चुकंदर की चीनी मिलें वारविक में कृषियंत्र तथा शराब बनाने के कारखाने स्थापित हैं।
इस प्रदेश के दक्षिण पश्चिम में टेम्स द्रोणी (बेसिन) है। टेम्स नदी काट्सवोल्ड की पहाड़ियों से निकलकर आक्सफार्ड की घाटी को पार करती हुई समुद्र में गिरती है। यह घाटी "आक्सफोर्ड क्ले वेल" के नाम से प्रसिद्ध है जहाँ कृषि एवं गोपालन उद्योग अधिक विकसित हैं। विश्वविख्यात प्राचीन आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय इस घाटी के मध्य में स्थित है। आक्सफोर्ड नगर के बाहरी भागों में मोटर निर्माण का कार्य होता है। लंदन की महत्ता के कारण निचली आक्सफोर्ड द्रोणी को लंदन द्रोणी नाम दिया गया है। लंदन के आसपास की भूमि (केंट, सरे तथा ससेक्स) राजधानी की फल तरकारियों तथा दूध आदि की मांग की पूर्ति के लिए अधिक प्रयुक्त होती है। लंदन नगर कदाचित् रोमनकाल में टेम्स नदी के किनारे उस स्थल पर बसाया गया था जहाँ नदी सरलापर्वूक पार की जा सकती थी। बाद में उस स्थल पर पुल बन जाने से नगर का विकास होता गया। आज लंदन संसार के सबसे बड़े नगरों (1971 ई. में जनसंख्या 73,79,014) में है। इसकी उन्नति के मुख्य कारण हैं टेम्स में ज्वार के साथ बड़े-बड़े जलयानों का नगर के भीतरी भाग तक प्रवेश करने की सुविधा, रेल एवं सड़कों का जाल, यूरोपीय महाद्वीप के संमुख टेम्स के मुहाने की स्थिति, जिससे व्यापार में अत्यधिक सुविधा होती है, लंदन का अधिक काल तक देश एवं साम्राज्य की राजधानी बना रहा तथा अनेक व्यवसायों और रोजगारों का यहाँ खुलना।
लंदन द्रोणी के समान ही हैंपशायर द्रोणी है जिसमें साउथैंपटन तथा पोर्ट्स्माउथ नगर स्थित हैं। पहला यात्रियों का महत्वपूर्ण बंदरगाह तथा दूसरा नौसेना का मुख्य केंद्र है।
इंग्लैंड के दक्षिण पूर्व में "आइल ऑव वाइट" नाम का एक छोटा सा द्वीप है (क्षेत्रफल 147 वर्ग मी)। गर्मी की ऋतु में यहाँ पर लोग स्वास्थ्यलाभ और मनोरंजन के लिए आते हैं।
ईसा के आसपास यह रोमन साम्राज्य का अंश बना पर अधिक दिनों तक यह रोमन साम्राज्य के अधीन नहीं रह सका। केल्टिक तथा नार्मनों का अधिपत्य ग्यारहवीं सदी तक रहा। पुनर्जागरण के समय कवि तथा नाटककार शेक्सपियर ने यूरोपीय जनमानस को बहुत प्रभावित किया। सन् १५७८ में एक अंग्रेज़ अधिकारी को लिस्बन की ओर जाते हुए एक पुर्तगाली जहाज को लूटने से भारत आने के मार्ग का पता चला। इसके बाद ब्रिटिश नाविकों में भारत के साथ व्यापार की इच्छा प्रबल हो गई। १६०० में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी का स्थापना हुई। इसके बाद विश्व के कई स्थानों पर ब्रिटिश नाविक व्यापार करने पहुँचे। अठारहवीं सदी के अन्त तक कई जगहों पर वे राजनैतिक रूप से स्थापित हो गए। इसी समय हुई औद्योगिक क्रांति से देश की नौसेना तथा सेना सबल हो गई और अपनी सैनिक सक्ति के बल पर वे विभिन्न स्थानों पर अधिकार करने लगे। बीसवीं सदी के मध्य तक उनके पाँव दुनिया के देशों से उखड़ने लगे और अपने उपनिवेशों को उन्हें स्वतंत्र करना पड़ा।
इंग्लैंड आज एक परमाणु सम्पन्न देश है तथा आर्थिक रूप से समृद्ध है। अमेरिका का सहयोगी होने के नाते और विश्व के कई देशों की राजनीति में औपनिवेशिक काल से संलग्न होने के कारण इसका राजनैतिक वर्चस्व आज भी विद्यमान है।
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