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लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर
विश्व की सबसे बड़ी कण त्वरक मशीन,जो ब्रह्मांड के रहस्यों को सुलझाने में सहायक है / From Wikipedia, the free encyclopedia
लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर या वृहद हैड्रॉन संघट्टक (अंग्रेज़ी: Large Hadron Collider; संक्षेप में LHC) जिनेवा में स्थित एक कण त्वरक है जो विश्व का सबसे विशाल और शक्तिशाली कोलाइडर त्वरक है। इसका निर्माण १९९८ से लेकर २००८ के बीच में हुआ।[1] यह यूरोपीय नाभिकीय अनुसंधान संगठन (सर्न/CERN) की महत्वाकांक्षी परियोजना है जो जेनेवा के समीप फ़्रान्स और स्विट्ज़रलैण्ड की सीमा पर भूमि की सतह से लगभग १०० मीटर नीचे स्थित है। इसकी रचना २७ किलोमीटर परिधि वाली एक वृत्ताकार सुरंग के रूप में हुई है।[2] इसी सुरंग में इस त्वरक के चुम्बक, संसूचक (डिटेक्टर), बीम-लाइनें एवं अन्य उपकरण लगे हैं।
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इसमें सबसे पहला कणॉं का संघट्ट सन २०१० में किया गया था जो ३.५ TeV ऊर्जा वाले दो कण पुंजों (बीमों) का संघट्ट था। कुछ और परिवर्तन-परिवर्धन करने के बाद ६.५ TeV ऊर्जा वाली बीमों का संघट्ट कराया गया, जो अभी विश्व रिकॉर्ड है। २०१८ के बाद, इसे कुछ और परिवर्तन-परिवर्धन के लिए दो वर्ष के लिए अभी बन्द रखा गया है।
सुरंग के अन्दर दो बीम पाइपों में दो विपरीत दिशाओं से आ रही ७ TeV (टेरा एले़ट्रान वोल्ट्) की प्रोट्रॉन किरण-पुंजों (बीम) को आपस में संघट्ट (टक्कर) कराने का उद्देश्य यह था कि इससे वही स्थिति उत्पन्न की जाय जो ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के समय बिग बैंग के रूप में हुई थी। ज्ञातव्य है कि ७ TeV उर्जा वाले प्रोटॉन का वेग प्रकाश के वेग के लगभग बराबर होता है। एल एच सी की सहायता से किये जाने वाले प्रयोगों का मुख्य उद्देश्य स्टैन्डर्ड मॉडेल की सीमाओं एवं वैधता की जाँच करना है। स्टैन्डर्ड मॉडेल इस समय कण-भौतिकी का सबसे आधुनिक सैद्धान्तिक व्याख्या या मॉडल है। १० सितंबर २००८ को पहली बार इसमें सफलता पूर्वक प्रोटान धारा प्रवाहित की गई।[3] इस परियोजना में विश्व के ८५ से अधिक देशों नें अपना योगदान किया है। परियोजना में ८००० भौतिक वैज्ञानिक कार्य कर रहे हैं जो विभिन्न देशों, या विश्वविद्यालयों से आए हैं। प्रोटॉन बीम को त्वरित (accelerate) करने के लिये इसके कुछ अवयवों (जैसे द्विध्रुव (डाइपोल) चुम्बक, चतुर्ध्रुव (quadrupole) चुमबक आदि) का तापमान लगभग 1.90केल्विन या -२७१.२५0सेन्टीग्रेड तक ठंडा करना आवश्यक होता है ताकि जिन चालकों (conductors) में धारा बहती है वे अतिचालकता (superconductivity) की अवस्था में आ जांय और ये चुम्बक आवश्यक चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न कर सकें।[4][5] इस प्रयोग में बोसोन कण के के प्रकट होने तथा पहचाने जाने की उम्मीद है जिसके अस्तित्व की कल्पना अब तक सिर्फ गणनाओं द्वारा ही की जाती रही है।[6] इसके द्वारा द्रव्य एंव उर्जा के संबधों को जानने की कोशिश का जा रही है। इससे ब्रह्मांड के उत्पत्ति से जुड़े कई रहस्यो पर से भी पर्दा उठने की आशा है।