कण-त्वरक वह युक्ति है जिसके द्वारा आवेशित कणों की गतिज ऊर्जा बढाई जाती हैं। यह एक ऐसी युक्ति है, जो किसी आवेशित कण (जैसे इलेक्ट्रान, प्रोटान, अल्फा कण आदि) का वेग बढ़ाने (या त्वरित करने) के काम में आती हैं। वेग बढ़ाने (और इस प्रकार ऊर्जा बढाने) के लिये वैद्युत क्षेत्र का प्रयोग किया जाता है, जबकि आवेशित कणों को मोड़ने एवं फोकस करने के लिये चुम्बकीय क्षेत्र का प्रयोग किया जाता है। त्वरित किये जाने वाले आवेशित कणों के समूह या किरण-पुंज (बीम) धातु या सिरैमिक के एक पाइप से होकर गुजरती है, जिसमे निर्वात बनाकर रखना पड़ता है ताकि आवेशित कण किसी अन्य अणु से टकराकर नष्ट न हो जायें।
उच्च उर्जा वाली आवेशित किरण पुंज कई कार्यों के लिये उपयोगी है। इसका सबसे महत्वपूर्ण उपयोग परमाणु के अन्दर झांकने और इस बात का पता लगाने के लिये किया जाता है परमाणु का सबसे मौलिक कण क्या है।
प्रत्येक टीवी के कैथोड-किरण ट्यूब में १० कजार एलेक्ट्रॉन-वोल्ट से लेकर २५ हजार एलेक्ट्रान-वोल्ट का छोटा सा डीसी त्वरक होता है।
उच्च-ऊर्जा भौतिकी के प्रयोग करने के लिये -- नाभिक की संरचना के बारे में अधिकांश जानकारी उच्च ऊर्जा के कणों के उपयोग से ही मिली है।
दवाओं का विकास -- एक्स-किरण क्रिस्टलिकी का उपयोग दवा निर्माण में हो रहा है। एक्स-किरण क्रिस्टलिकी के लिये कण त्वरक आवश्यक हैं।
आवेशित कणों को त्वरित करने के लिए (अर्थात उनकी उर्जा बढाने के लिये) उन्हें एक वैद्युत क्षेत्र से होकर गुजारा जाता है जिसकी दिशा आवेश के गति की दिशा में होती है।
जब किसी q आवेश को V वोल्ट विभवान्तर वाले दो बिन्दुओं के बीच से गुजारा जाता है तो उसकी उर्जा में qV जूल की वृद्धि हो जाती है। उदाहरण के लिये किसी एलेक्ट्रान को 1 वोल्ट विभवान्तर से होकर गुजारा जाय तो उसकी उर्जा में 1 eV (1 electron-volt) की वृद्धि हो जाती है। ज्ञातव्य है कि एलेक्ट्रॉन का आवेश e = 1.6×10^-19 कूलॉम्ब होता है।
त्वरण की विधियाँ
आवेशों को बहुत अधिक उर्जा प्रदान करने के लिये साधारणतः कई चरणों में त्वरित किया जाता है।
प्रथम चरण में प्रायः आवेशित कण को एक विद्युतस्थैतिक क्षेत्र (एलेक्ट्रोस्टैटिक फिल्ड) से होकर गुजारना पड़ता है।
चक्रीय त्वरकों में त्वरण के लिये रेडियो आवृत्ति की कैविटी (आर एफ् कैविटी) का प्रयोग किया जाता है।
अधिक उर्जा के आवेशित कणों के मार्ग में उच्च निर्वात की व्यवस्था होती है ताकि ये कण किसी द्रव्य से टक्कर करके अपनी उर्जा नष्ट न कर दें। इसके लिये इन कणों का मार्ग बीम पाइप से होकर जाता है। बीम पाइप में निर्वात पैदा करने के लिये तरह-तरह के पम्प प्रयोग किये जाते हैं।
जब कोई आवेशित कण किसी विद्युत क्षेत्र में (स्थिर या गतिमान) हो तो उस पर विद्युत क्षेत्र के समानान्तर वैद्युत बल लगता है। यदि कण इस क्षेत्र में गति करने के लिये स्वतन्त्र हो तो उसकी गतिज उर्जा बढ जाती है। यही सिद्धान्त आवेशित कणों की उर्जा बढाने में तरह-तरह से प्रयुक्त किया जाता है।
जब कोई आवेशित कण किसी चुम्बकीय क्षेत्र में गतिमान हो तो उस पर चुम्बकीय बल लगता है। यह बल चुम्बकीय क्षेत्र एवं आवेश के वेग दोनो के लम्बवत लगता है तथा इस बल का मान आवेश के मान, चुम्बकीय क्षेत्र के मान एवं वेग के मान के गुणनफल के समानुपाती होता है। इस सिद्धान्त का उपयोग आवेशित कणों को मोड़ने तथा उन्हे फोकस करने में होता है।
जब कोई आवेशित कण प्रकाश के वेग के लगभग बराबर वेग से गति कर रहा होता है और उसका संवेग परिवर्तित किया जाय (जैसे उसे मोड़कर या किसी अन्य विधि से) तो वह विकिरण छोड़ता है। इसे सिंक्रोट्रान विकिरण कहते हैं। यह विकिरण कई कार्यों के लिये बहुत उपयोगी होता है।
कण त्वरक एक बहुत जटिल तन्त्र है जो कई तन्त्रों से मिलकर बना होता है। इसके मुख्य घटक इस प्रकार हैं:
आवेश का स्रोत - प्रायः एलेक्ट्रॉन्, प्रोटॉन एवं अल्फा कण ही त्वरित किये जाते हैं क्योंकि ये स्थिर (स्टेबल) कण हैं। दूसरे कण क्षणभंगुर (कम अर्धआयु के) होते हैं जिन्हे उनके अत्यन्त लघु जीवनकाल (कुछ मिलीसेकेण्ड) में त्वरित करना लगभग असम्भव है।
कणों की उर्जा बढाने का उपकरण: रेडियो आवृति कैविटी (आरएफ् कैविटी) आदि
चुम्बक: आवेशित कणों को मोड़ने एवं फोकस करने के लिये
द्विध्रुव चुम्बक (डाइपोल मैग्नेट) - कणोंको मोड़ने के लिये
चतुर्ध्रुवी चुम्बक (क्वाड्रूपोल मैग्नेट) - कणों के पुंज को फोकस करने हेतु
अन्य - षटध्रुवी, अष्टध्रुवी, किकर चुम्बक, विग्लर आदि
चुम्बकों में आवश्यक विद्युत धारा प्रदान करने के शक्ति आपूर्ति ताकि चुम्बक आवश्यक चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न कर सकें।
बीम पाइप: जिसमें से आवेशित कण गमन करते हैं। बीम पाइप में निर्वात पैदा करने के लिये तरह-तरह के निर्वात-पम्प प्रयोग किये जाते हैं।
जाँच एवं निदान से सम्बन्धित उपकरण (डायग्नोस्टिक डिवाइसेस) - जैसे बीम-धारा का मापन, बीम प्रोफाइल (आकार) का मापन, बीम पाइप के अन्दर बीम की स्थिति का मापन आदि
नियन्त्रण तन्त्र तथा नियन्त्रण कक्ष - विभिन्न अवयवों (जैसे शक्ति आपूर्ति) को उचित मान पर सेट करना, बीम एवं अन्य तन्त्रों के महत्वपूर्ण राशियों के बारे में जानकारी एकत्र करके कन्ट्रोल रूम में प्रदर्शित करना व कम्प्यूटर पर उसका भण्डारण करना।
विकिरण सुरक्षा के लिये कांक्रीट, शीशा (लेड) आदि के द्वारा शिल्डिंग; विकिरण के मापन के लिये उपकरण आदि।
1930 — पहला कण त्वरक
1931 — 'वान डी ग्राफ' (Van de Graaff) नामक त्वरक का प्रादुर्भाव
1931 — रैखिक त्वरक (Linac), बीटाट्रान (Betatron), एवं साइक्लोट्रॉन (Cyclotron)
1931 — An American Linac
1931 — A Close Second: The First Cyclotron
1932-1940 — The Decade of the Cyclotron
1940 — The Betatron
1945 — New Ideas: Synchronous Acceleration Leads to the Microtron
1947 — More Synchronicity: The Electron Synchrotron
1947 — The Synchrocyclotron
1952 — Even Higher Energies: The Proton Synchrotron
1952 — A Strong Leap Ahead: Focusing the Beam
1953 — Synchrotrons Become Stronger
1946-1954 — The Linac Grows Up: An Electron and Proton Linac
1966 — Stanford Gets Serious About the Linac: SLAC
1960 — The Storage Ring Collider
1969 — CERN Enters the Collider Age T
1970 — Germany Joins the Collider Age
1981 — The First Proton-Antiproton Colliders: CERN and FNAL
1981 — CERN Gets Into the Electron-Positron Business
1983 — Illinois Builds a Big Collider: The Tevatron
1993 — Everything is Bigger in Texas-The SSC
2000 — Heavy Ion Colliders: RHIC and the LHC
2010 — The LHC collides two 3.5 TeV beams of protons resulting in a 7 TeV centre of mass energy collision. LHC collides lead ions.
2011 — Quark - gluon plasma is created at the LHC
2012 — The LHC collides two 4 TeV beams resulting in a 8 TeV centre of mass energy collision. A new particle which could be the Higgs boson is discovered at the LHC.
विश्व के सभी प्रमुख देशों में कण त्वरक बनाये गये हैं। इस समय विश्व के विभिन्न देशों में विभिन्न प्रकार के, विभिन्न उर्जा वाले एवं विभिन्न उपयोग के लिये निर्मित कई हजार कण त्वरक हैं। जेनेवा स्थित सर्न (CERN) लार्ज हैड्रान कोलाइडर विश्व का सबसे विशाल और शक्तिशाली कण त्वरक है।