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हेपाटाइटिस या यकृत शोथ यकृत को हानि पहुंचाने वाला एक गंभीर और खतरनाक रोग होता है। इसका शाब्दिक अर्थ ही यकृत को आघात पहुंचना है। यह नाम प्राचीन ग्रीक शब्द हेपार (ἧπαρ), मूल शब्द हेपैट - (ἡπατ-) जिसका अर्थ यकृत और प्रत्यय -आइटिस जिसका अर्थ सूज़न है, से व्युत्पन्न है।[1] इसके प्रमुख लक्षणों में अंगो के उत्तकों में सूजी हुई कोशिकाओं की उपस्थिति आता है, जो आगे चलकर पीलिया का रूप ले लेता है। यह स्थिति स्वतः नियंत्रण वाली हो सकती है, यह स्वयं ठीक हो सकता है, या यकृत में घाव के चिह्न रूप में विकसित हो सकता है। हैपेटाइटिस अतिपाती हो सकता है, यदि यह छः महीने से कम समय में ठीक हो जाये। अधिक समय तक जारी रहने पर चिरकालिक हो जाता है और बढ़ने पर प्राणघातक भी हो सकता है।[2] हेपाटाइटिस विषाणुओं के रूप में जाना जाने वाला विषाणुओं का एक समूह विश्व भर में यकृत को आघात पहुंचने के अधिकांश मामलों के लिए उत्तरदायी होता है। हेपाटाइटिस जीवविषों (विशेष रूप से शराब (एल्कोहोल)), अन्य संक्रमणों या स्व-प्रतिरक्षी प्रक्रिया से भी हो सकता है। जब प्रभावित व्यक्ति बीमार महसूस नहीं करता है तो यह उप-नैदानिक क्रम विकसित कर सकता है। यकृत यानी लिवर शरीर का एक महत्वपूर्ण अंग है। वह भोजन पचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। शरीर में जो भी रासायनिक क्रियाएं एवं परिवर्तन यानि उपापचय होते हैं, उनमें यकृत विशेष सहायता करता है। यदि यकृत सही ढंग से अपना काम नहीं करता या किसी कारण वे काम करना बंद कर देता है तो व्यक्ति को विभिन्न प्रकार के रोग हो सकते हैं। जब रोग अन्य लक्षणों के साथ-साथ यकृत से हानिकारक पदार्थों के निष्कासन, रक्त की संरचना के नियंत्रण और पाचन-सहायक पित्त के निर्माण में संलग्न यकृत के कार्यों में व्यवधान पहुंचाता है तो रोगी की तबीयत ख़राब हो जाती है और वह रोगसूचक हो जाता है। ये बढ़ने पर पीलिया का रूफ लेता है और अंतिम चरण में पहुंचने पर हेपेटाइटिस लिवर सिरोसिस और यकृत कैंसर का कारण भी बन सकता है। समय पर उपचार न होने पर इससे रोगी की मृत्यु तक हो सकती है।
यकृत शोथ | |
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अल्कोहलिक हैपेटाइटिस as seen with a microscope, showing fatty changes (white circles), remnants of dead liver cells, and Mallory bodies (twisted-rope shaped inclusions within some liver cells). (H&E stain) | |
विशेषज्ञता क्षेत्र | Infectious disease, gastroenterology, hepatology |
लक्षण | पीलिया, मन्दाग्नि, पेट दर्द |
जटिलता | लिवर सिरोसिस, लिवर फेल, लिवर कैंसर |
अवधि | अल्पकालिक अथवा दीर्घकालिक |
कारण | वायरस, मदिरापान, विषाक्त भोजन, ऑटोइम्यून |
निवारण | टीकाकरण (वायरल हेपाटाइटिस के लिए) |
चिकित्सा | दवा, लिवर ट्रांसप्लांट |
आवृत्ति | > 500 मिलियन केस |
मृत्यु संख्या | > एक मिलियन प्रतिवर्ष |
अवस्था के आधार पर वर्गीकृत करें तो हेपेटाइटिस की मुख्यतः दो अवस्थाएं होती हैं:
प्रारंभिक अवस्था रोग आरंभ होने के आरंभिक तीन माह तक रहती है। किंतु छः माह तक भी इसका उचित उपचार न होने पर यह दीर्घकालिक रोग में बदल जाती है। प्रारंभिक अवस्था में हेपेटाइटिस के साथ ही पीलिया भी हो जाने पर और फिर इसका पर्याप्त उपचार न किये जाने पर यह दीर्घकालिक बी या सी में बदल जाती है। इतने पर भी उचित उपचार न होने पर यह लिवर सिरोसिस में परिवर्तित हो जाती है जिसके परिणामस्वरूप पूरा यकृत ही क्षतिग्रस्त हो जाता है और आगे चलकर यकृत कैंसर भी होने की संभावना होती है। अतएव उपचार आरंभ करने से पहले इसकी अवस्था का ज्ञान होना अत्यावश्यक होता है, क्योंकि दोनों का उपचार अलग होता है।[3] इन दोनों की ही तरह हेपेटाइटिस का उपचा यदि आरंभ में ही हो जाये तो पूरी तरह से स्वस्थ होने की संभावना अधिक रहती है, किन्तु अधिक विलंब होने पर यकृत क्षतिग्रस्त होता जाता है और फिर उपचार के बहुत अच्छे परिणाम नहीं मिल पाते। इनमें २० से २५ प्रतिशत रोगी औषधि के साथ परहेज करने से ठीक हो जाते हैं, लेकिन ८० प्रतिशत में यह रोग दीर्घकालिक हो जाता है।
यकृत शोध मूलत: पांच प्रकार का होता है हैपेटाइटिस ए, बी, सी, डी, व ई। भारत में आंकड़ों के अनुसार देखें तो ए, बी, सी और ई का संक्रमण है किन्तु हैपेटाइटिस डी का संक्रमण यहां नहीं है।
अतिपाती हैपेटाइटिस के अधिकांश मामले विषाणुजनित संक्रमण से होते हैं। विषाणुजनित यकृत शोथ में निम्न प्रकार आते हैं:
हैपेटाइटिस-ए रोग प्रमुखतया जलजनित रोग होता है। आंकड़ो के अनुसार हर वर्ष भारत में जलजनित रोग पीलिया के रोगियों की संख्या बहुत अधिक हैं। यह बीमारी दूषित खाने व जल के सेवन से होती है। जब नालियों व मल-निकासी का गंदा पानी या किसी अन्य तरह से प्रदूषित जल आपूर्ति के माध्यम में मिल जाता है जिससे बड़ी संख्या में लोग इससे प्रभावित होते हैं। आमतौर पर यह बीमारी तीन-चार हफ्तों के मात्र परहेज से ठीक हो जाती है किंतु गर्भवती महिलाओं को पीलिया होने से अधिक समस्या होती है। ऐसे में माँ और बच्चा दोनों की जान को खतरा होता है। यकृत में कुछ ऐसे पदार्थ होते हैं जिनके कारण रक्त के बहाव में अवरोध उत्पन्न होता है। इन्हें थ्रॉम्बोसाइट कहते हैं। इस कारण बहते खून को रोकने की क्षमता आती है। यकृत के क्षतिग्रस्त होने पर इन पदार्थो का अभाव हो जाता है। ऐसे में शरीर के किसी भाग से रक्त बहने पर प्राणघातक हो सकता है। हेपेटाइटिस बी और सी से भिन्न, हेपेटाइटिस ए संक्रमण चिरकालिक रोग उत्पन्न नहीं करता और अपेक्षाकृत कम घातक होता है, किन्तु ये दुर्बलता ला सकता है।
आंकड़ों पर आधारित अनुमान के अनुसार विश्व भर में दो अरब लोग हेपेटाइटिस बी विषाणु से संक्रमित हैं और ३५ करोड़ से अधिक लोगों में चिरकालिक यकृत संक्रमण होता है, जिसका मुख्य कारण मद्यपान है। हेपेटाइटिस-बी में त्वचा और आँखों का पीलापन (पीलिया), गहरे रंग का मूत्र, अत्यधिक थकान, उल्टी और पेट दर्द प्रमुख लक्षण हैं। इन लक्षणों से बचाव पाने में कुछ महीनों से लेकर एक वर्ष तक का समय लग सकता है। हेपेटाइटिस बी दीरअकालिक यकृत संक्रमण भी पैदा कर सकता है जो बाद में लिवर सिरोसिस या लिवर कैंसर में परिवर्तित हो सकता है। नियमित टीकाकरण के एक भाग के तहत तीन या चार अलग-अलग मात्रा में हेपेटाइटिस बी का टीका दिया जा सकता है। नवजात बच्चों, छह माह और एक वर्ष की आयु के समय में यह टीका दिया जाता है। ये कम से कम २५ वर्ष की आयु तक सुरक्षा प्रदान करते हैं।
हेपेटाइटिस सी शांत मृत्यु या खामोश मौत की संज्ञा दी जाती है। आरंभ में इसका कोई प्रभाव नहीं दिखाई देता और जब तक दिखना आरंभ होता है, यह फैल चुका होता यह रोग रक्त संक्रमण से फैलता है। हाथ पर टैटू गुदवाने, संक्रमित खून चढ़वाने, दूसरे का रेजर उपयोग करने आदि की वजह से हेपेटाइटिस सी होने की संभावना रहती है। हेपेटाइटिस सी के अंतिम चरण में सिरोसिस और लिवर कैंसर होते हैं। हेपेटाइटिस के अन्य रूपों की तरह हेपेटाइटिस सी, यकृत में सूजन पैदा करता है। हेपेटाइटिस सी वायरस मुख्य रूप से रक्त के माध्यम से स्थानांतरित होता है और हेपेटाइटिस ए या बी की तुलना में अधिक स्थायी होता है।[4] सौंदर्य चिकित्सा में कई पदार्थो से मृत कोशिकाओं को हटाया जाता है। यहां तक कि जहां मृत त्वचा कोशिकाएं गिरी होती हैं, उसकी सतह पर कई दिनों तक हेपेटाइटिस सी का वायरस पनपता रहता है। यदि स्पा या सैलून स्ट्रिंजेंट स्टरलाइजेशन तकनीकों का प्रयोग नहीं करते हैं तो उनके ग्राहक विषाणुओं के संपर्क में आ सकते हैं। इसएक अलावा औषधि इंजेक्ट करने वाले सांझे उपकरणों, किसी संक्रमित व्यक्ति के साथ असुरक्षित संभोग, कभी-कभार प्रसव के दौरान संक्रमित माता से उसके बच्चे में हो सकता है।
यह रोग तभी होता है जब रोगी को बी या सी का संक्रमण पहले ही हो चुका हो। हेपेटाइटिस डी विषाणु इसके बी विषाणुओं पर जीवित रह सकते हैं। इसलिए जो लोग हेपेटाइटिस से संक्रमित हो चुके हों, उनके हेपेटाइटिस डी से भी संक्रमित होने की संभावना रहती है। जब कोई व्यक्ति डी से संक्रमित होता है तो सिर्फ बी से संक्रमित व्यक्ति की तुलना में उसके यकृत की हानि की आशंका अधिक होती है। हेपेटाइटिस बी के लिये दी गई प्रतिरक्षा प्रणाली कुछ हद तक हेपेटाइटिस डी से भी सुरक्षा कर सकती है। इसके मुख्य लक्षणों में थकान, उल्टी, हल्का बुखार, दस्त, गहरे रंग का मूत्र होते हैं।
हेपेटाइटिस ई एक जलजनित रोग है और इसके व्यापक प्रकोप का कारण दूषित पानी या भोजन की आपूर्ति है। प्रदूषित जल इस महामारी के प्रसार में अच्छा सहयोग देता है और कई स्थानीय क्षेत्रों में कुछ मामलों के स्रोत कच्चे या अधपके शेलफिश का सेवन भी होता है। इससे विषाणु के प्रसार की संभावना अधिक होती है। हालांकि अन्य देशों की तुलना में भारत के लोगों में हेपेटाइटिस ई न के बराबर होता है। बंदर, सूअर, गाय, भेड़, बकरी और चूहे इस संक्रमण के प्रति संवेदनशील हैं।
हेपेटाइटिस ए, दूषित भोजन, जल इस बीमारी से ग्रस्त व्यक्ति के संपर्क में आने के कारण फैलती है। लक्षण प्रकट होने से पहले और बीमारी के प्रथम सप्ताह में अंडे तैयार होने के 15 से 45 दिन के दौरान ग्रस्त व्यक्ति के मल से हेपेटाइटिस ए वायरस फैलता है। रक्त एवं शरीर के अन्य द्रव्य भी संक्रामक हो सकते हैं। संक्रमण समाप्त होने के बाद शरीर में वाइरस नहीं रहता है और न ही वाहक ही रहता है। (कोई व्यक्ति या पशु, जो बीमारी को एक से दूसरे में फैलाते हैं पर स्वयं बीमार नहीं पड़ते)। हेपेटाइटिस ए के लक्षण फ्लू जैसे ही होते हैं, किंतु त्वचा तथा आंखे पीली (पीलिया) हो जाती हैं क्योंकि जिगर रक्त से बिलीरूबिन को छान नहीं पाता है। अन्य सामान्य हेपेटाइटिस वायरस, हेपेटाइटिस बी और हेपेटाइटिस सी है, किंतु हेपेटाइटिस ए सबसे कम गंभीर है और इन बीमारियों में सबसे मामूली है। अन्य दोनों बीमारियां लंबी बीमारियों में परिवर्तित हो सकती है। किंतु हेपेटाइटिस ए नहीं।
== लक्षण == iske lakshan me twacha aur aakho ka peelapan our taral padartho ka JAMA hone se pet ka badhna Shamil h , Thakan lgna . Bhukh na lgna. Ovr aakho our twacha ka peelapan hona
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