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मोलस्का
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मृदुकवची द्वितीय सबसे बड़ा प्राणी संघ है। ये प्राणी स्थलीय अथवा जलीय (लवणीय एवं मीठा) तथा अंगतन्त्र स्तर के संगठन वाले होते हैं। ये द्विपार्श्विक सममिति त्रिकोरकी तथा प्रगुही हैं। शरीर कोमल परन्तु कठोर कैल्सियम के कवच से ढका रहता है। इसका शरीर अखण्डित है जिसमें शिर, पेशीय पाद तथा एक अन्तरंग ककुद् होता है। त्वचा की नरम तथा स्पंजी परत ककुद् के ऊपर प्रावार बनाती है। ककुद् तथा प्रावार के बीच के स्थान को प्रावार गुहा कहते हैं, जिसमें पंख के समान क्लोम पाए जाते हैं, जो श्वसन एवं उत्सर्जन दोनों में सहायक हैं। शिर पर संवेदी स्पर्शक पाए जाते हैं। मुख में भोजन हेतु घर्षित्र के समान घिसने का अंग होता है। इसे घर्षित्र-जिह्वा कहते हैं। प्रायः नर और मादा पृथक होते हैं तथा अण्डप्रजक होते हैं। परिवर्धन सामान्यतः डिम्भ के द्वारा होता है। उदाहरण: सेब घोंघा, मुक्ता शुक्ति, समुद्रफेनी, विद्रूप, अष्टबाहु, समुद्री शशक, रद कवचर, खाइटन।[1]
मृदुकवची | |
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मृदुकवची वैविध्य | |
वैज्ञानिक वर्गीकरण | |
जगत: | प्राणी |
संघ: | मृदुकवची |