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यह भारत का एक राजनैतिक दल है। विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
मिज़ो नेशनल फ्रंट (लघुरूप:MNF या एमएनएफ़) मिज़ोरम, भारत में एक क्षेत्रीय राजनैतिक दल है। एमएनएफ मिज़ो राष्ट्रीय अकाल मोर्चा से उभरा, जिसका गठन 1959 में असम राज्य के मिज़ो क्षेत्रों में अकाल की स्थिति के प्रति भारत सरकार की निष्क्रियता के विरोध में पु लालडेंगा द्वारा किया गया था। इसने 1966 में एक बड़ा विद्रोह किया, जिसके बाद वर्षों की भूमिगत गतिविधियाँ कीं। 1986 में, इसने अलगाव और हिंसा को त्यागकर भारत सरकार के साथ मिज़ोरम समझौते पर हस्ताक्षर किए। इसके बाद एमएनएफ ने चुनाव लड़ना शुरू किया और मिजोरम में तीन बार राज्य सरकार बनाई। यह वर्तमान में राज्य की सत्तारूढ़ पार्टी है, जिसके अध्यक्ष ज़ोरामथंगा मिज़ोरम के मुख्यमंत्री हैं।
मिज़ो नेशनल फ़्रंट | |
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संक्षेपाक्षर | MNF या एमएनएफ़ |
नेता लोकसभा | सी. लालरोसांगा |
नेता राज्यसभा | के. वनलालवेना |
गठन | 1961 |
मुख्यालय | Zarkawt, आइजोल, मिज़ोरम |
लोकसभा मे सीटों की संख्या |
1 / 543 |
राज्यसभा मे सीटों की संख्या |
1 / 245 |
राज्य विधानसभा में सीटों की संख्या |
27 / 40 |
विचारधारा |
Mizo nationalism[1] Conservative Christianity[2] Zo Unification[3] Anti-CAA[4] |
रंग | |
युवा शाखा Mulayam Singh youth brigade | मिज़ो नेशनल यूथ फ़्रंट |
महिला शाखा | मिज़ो नेशनल महिला फ़्रंट |
जालस्थल |
mnfparty |
Election symbol | |
भारत की राजनीति राजनैतिक दल चुनाव |
सन् 1959 की बात है. उस साल पूर्वोत्तर के बांस के जंगलों में फूल खिले थे जो लगभग 48 साल में एक बार खिलते हैं.और उन फूलों को चूहे बहुत पसंद करते हैं।और हुआ ये कि चूहों की संख्या बेतहाशा बढ़ गई थी और उन्होंने पूरे इलाके के घरों-गोदामों के अनाज चट कर दिए. दिल्ली की सरकार जब तक जागती, भ्रष्ट अधिकारियों-व्यापारियों ने अनाज की कालाबाजारी कर ली और लोग दाने-दाने को मोहताज हो गए. असम सरकार के एक पूर्व अकाउंटेंट ने इसके खिलाफ लोगों को गोलबंद करना और अपने स्तर पर राहत कार्य करना शुरू कर दिया. उसने नेशनल मिजो फेमिन फ्रंट बनाया (बाद में उसी का नाम मिजो नेशनल फ्रंट हो गया) और आंदोलन जल्दी ही भारत विरोधी हो गया. नतीजतन, भारत सरकार ने इलाके में फौज का जमावड़ा कर दिया.ऐसा ही नगालैंड में भी हुआ था जब पिजो वहां अलगाववादी आन्दोलन चला रहे थे. मिजोरम में करीब दो दशक तक चले उस खूनी संघर्ष में हजारों लोग मारे गए, लापता हुए और बेघर हो गए. उस अलगाववादी आंदोलन को पाकिस्तान से भी धन और हथियारों की मदद मिली और अलगाववादी संगठन के नेता अक्सर पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) जाते-आते रहते थे. जब अलगाववादियों ने मिजोरम के मुख्य शहर लुंगलेह पर कब्जा कर क्षेत्र को भारतीय संघ से आजाद करने की घोषणा कर दी तो भारत सरकार को पहली बार अपनी ही जनता के खिलाफ वायुसेना के इस्तेमाल के लिए मजबूर होना पड़ा. इससे अलगाववादियों को जंगल में शरण लेनी पड़ी और जान-माल का काफी नुक्सान हुआ. सन् 1986 में राजीव गांधी के कार्यकाल में एक शांति समझौता हुआ जिसमें जी पार्थसारथी जैसे नौकरशाहों ने अहम भूमिका निभाई थी और उस आतंकवादी ने हथियार रख दिया. राज्य में चुनाव हुए और वो पूर्व आतंकवादी अब प्रदेश का मुख्यमंत्री बन गया. उस व्यक्ति का नाम था लालडेंगा और गोरिल्ला संगठन था वही मिजो नेशनल फ्रंट. जुलाई, 1990 में लालडेंगा की मृत्यु फेफड़े के कैंसर से हो गई और उसके बाद उनके कभी लेफ्टिनेंट और सचिव रहे जोरामथंगा पार्टी के अध्यक्ष बने. ये वहीं जोरामथंगा हैं जो, मिजो नेशनल फ्रंट के अलगाववादी स्वरूप के दौरान और मिजोरम की सन् 1966 में ‘आजादी’ की घोषणा के वक्त, लालडेंगा के विश्वस्त थे.लेकिन वक्त ने ऐसी पलटी मारी कि लालडेंगा और जोरामथंगा को शांति की अहमियत समझ में आ गई और मिजोरम आज पूर्वोत्तर के राज्यों में सबसे तरक्की करता हुआ राज्य है और विकास के कई मानकों पर एक मॉडल स्टेट है. पिछली बार सन् 2008 में मिजोरम में बांस के जंगलों में फूल खिले थे और बांस की खेती के लिए बजट का प्रावधान उस समय सोशल मीडिया हास्य बन गया था जब वित्तमंत्री अरुण जेटली ने सन् 2018-19 के बजट में ‘राष्ट्रीय बांस मिशन’ की घोषणा की! लेकिन छह दशक पहले कौन जानता था कि बांस के फूल की वजह से एक राजनीतिक दल का गठन हो जाएगा?[5]
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