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मसूर
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मसूर एक दलहन है। इसका वानस्पतिक नाम 'लेन्स एस्क्युलेन्टा' (Lens esculenta) है। इसकी प्रकृति गर्म, शुष्क, रक्तवर्द्धक एवं रक्त में गाढ़ापन लाने वाली होती है। दस्त, बहुमूत्र, प्रदर, कब्ज व अनियमित पाचन क्रिया में मसूर की दाल का सेवन लाभकारी होता है।
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Lentils, raw (Dry Weight) पोषक मूल्य प्रति 100 ग्रा.(3.5 ओंस) | ||||||||||||||
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उर्जा 350 किलो कैलोरी 1480 kJ | ||||||||||||||
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प्रतिशत एक वयस्क हेतु अमेरिकी सिफारिशों के सापेक्ष हैं. स्रोत: USDA Nutrient database |
मसूर दाल | |
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तीन प्रकार की मसूर, साबुत या काली, धुली या मलका और हरी मसूर | |
वैज्ञानिक वर्गीकरण | |
जगत: | पादप |
विभाग: | मैग्नोलियोफाइटा |
वर्ग: | मैग्नोलियोप्सीडा |
गण: | Fabales |
कुल: | Fabaceae |
उपकुल: | Faboideae |
वंश समूह: | Vicieae |
वंश: | Lens |
जाति: | L. culinaris |
द्विपद नाम | |
Lens culinaris Medikus | |
दलहनी फसलों में मसूर का एक महत्वपूर्ण स्थान है। मसूर की दाल को 'लाल दाल' के नाम से भी जाना जाता है। मसूर उत्पादन में भारत का विश्व में दूसरा स्थान है। मध्य प्रदेश में लगभग 39.56 प्रतिशत (5.85 लाख हेक्टेयर) में इस की बोआई होती है जो भारत में क्षेत्रफल की दृष्टि से पहले स्थान पर आता है। इस के बाद उत्तर प्रदेश व बिहार में 34.36 प्रतिशत व 12.40 प्रतिशत है। उत्पादन के अनुसार उत्तर प्रदेश में 36.65 प्रतिशत (3.80 लाख टन) व मध्य प्रदेश 28.82 प्रतिशत मसूर उत्पादन होता है। अधिकतम उत्पादकता बिहार राज्य (1124 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर) है। मिश्रित फसल के रूप में मसूर की खेती करना काफी लाभप्रद सिद्ध हो सकता है। मसूर के साथ सरसों, मसूर, जौमसूर की खेती सफलतापूर्वक करके काफी अच्छा लाभ कमाया जा सकता है।