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भारत के नियन्त्रक एवं महालेखापरीक्षक
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भारत के नियन्त्रक एवं महालेखापरीक्षक (अंग्रेज़ी: Controller and Auditor General of India; संक्षिप्त नाम: CAG कैग), भारतीय संविधान के अध्याय ५[4] द्वारा स्थापित एक प्राधिकारी है जो भारत सरकार तथा सभी प्रादेशिक सरकारों के सभी तरह के लेखों का अंकेक्षण करता है। वह सरकार के स्वामित्व वाली कम्पनियों का भी अंकेक्षण करता है। उसकी रिपोर्ट पर सार्वजनिक लेखा समितियाँ ध्यान देती है। भारत के नियंत्रक और महालेखापरीक्षक स्वतंत्र संस्था के रूप में कार्य करते हैं और इस पर सरकार का नियंत्रण नहीं होता| भारत के नियंत्रण और महालेखापरीक्षक की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती हैं|[5] नियन्त्रक एवं महालेखापरीक्षक ही भारतीय लेखा परीक्षा और लेखा सेवा का भी मुखिया होता है। इस समय पूरे भारत की इस सार्वजनिक संस्था में ५८ हजार से अधिक कर्मचारी काम करते हैं।
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नामांकनकर्ता | भारत के प्रधानमंत्री |
नियुक्तिकर्ता | भारत के राष्ट्रपति |
अवधि काल | 6 वर्ष या 65 वर्ष की आयु तक (जो भी पहले आये) |
उद्घाटक धारक | वी नरहरि राव |
उपाधिकारी | उप नियन्त्रक एवं महालेखापरीक्षक |
वेतन | ₹2,50,000 (US$3,650) प्रति माह[1][2][3] |
वेबसाइट | Official Website |
भारत के नियन्त्रक एवं महालेखापरीक्षक का कार्यालय 10 बहादुर शाह जफर मार्ग पर नई दिल्ली में स्थित है। वर्तमान समय में इस संस्थान के प्रमुख गिरीश चंद्र मूर्मू हैं।[6] वे भारत के 14वें नियन्त्रक एवं महालेखापरीक्षक हैं। किसी भी कैग प्रमुख का कार्यकाल 6 वर्ष या 65 वर्ष की उम्र, जो भी पहले होगा, की अवधि के लिए राष्टपति द्वारा नियुक्त किया जाता है। संस्था केन्द्र अथवा राज्य सरकार के अनुरोध पर किसी भी सरकारी विभाग की जाँच कर सकती है। अनुच्छेद 148 के अनुसार भारत का एक नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक होगा। यह भारत सरकार की रिपोर्ट राष्ट्रपति को और राज्य सरकार की रिपोर्ट राज्य के राज्यपाल को देता है।
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक के कार्य
(1) वह भारत की संचित निधि , प्रत्येक राज्य की संचित और प्रत्येक संघ शाषित प्रदेश, जहाँ विधानसभा हो, से सभी व्यय सम्बन्धी लेखाओं की लेखा परीक्षा करता है।
इसका वेतन संसद द्वारा निर्धारित होता हैं।
अनु.148(4) के अनुसार नियंत्रक महालेखा परीक्षक अपने पद पर न रह जाने के पश्चात, भारत सरकार के या किसी राज्य सरकार के अधीन किसी और पद का पात्र नहीं होगा। संसद के दोनों सदनों द्वारा विशेष बहुमत के साथ उसके दुर्व्योहर या अयोग्यता पर प्रस्ताव पारित कर इसे पद से हटाया जा सकता हैं।
इसे लोक लेखा समिति का 'आंख व कान' कहा जाता हैं। आखिरकार विपक्ष ऑर कैग के मध्य सामंजस्य यह होता है अगर किसी लेन देन में गलती हो तो उसे विपक्ष को बताना