भारत के अलगाववादी आंदोलन
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भारत में अलगाव आम तौर पर एक या एक से अधिक राज्य का भारत से अलग होकर एक अलग देश बनाना संदर्भित करता है।
देश में कई अलगाववादी आंदोलन मौजूद हैं, जिनके हजारों सदस्य हैं- हालांकि, ये स्थानीय लोगों का समर्थन सीमित है, और वे लोकतांत्रिक चुनावों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं। पंजाब में खालिस्तान आंदोलन 1980 और 1990 के दशक में सक्रिय था, लेकिन अब यह भारत के भीतर काफी हद तक दब गया है। पूर्वोत्तर भारत में त्रिपुरा, मेघालय, मिजोरम, मणिपुर, असम और नागालैंड में उग्रवाद रहा है। लेकिन अब, पूर्वोत्तर भारत में अलगाववाद और उग्रवाद अब स्थानीय जनता के समर्थन की कमी के कारण काफी हद तक महत्वहीन हो गया है।
भारत को देश के कुछ हिस्सों में उग्रवाद पर क़ाबू पाने के लिए कई बार सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (AFSPA) लगाना पड़ा है। यह कानून सबसे पहले मणिपुर में लागू किया गया था और बाद में इसे अन्य उग्रवाद-ग्रस्त पूर्वोत्तर के राज्यों में लागू किया गया था। 1989 में एक सशस्त्र विद्रोह के फैलने के बाद से 1990 में इसे भारत के राज्य जम्मू और कश्मीर के अधिकांश हिस्सों में लगाया गया। प्रत्येक अधिनियम निर्दिष्ट क्षेत्रों में सैनिकों को क़ानूनी कार्यवाही के ख़िलाफ़ प्रतिरक्षा प्रदान करता है जब तक कि भारत सरकार स्वयं अभियोजन के लिए पूर्व स्वीकृति नहीं देती। सरकार का कहना है कि AFSPA कश्मीर और मणिपुर जैसे क्षेत्रों में व्यवस्था बहाल करने के लिए आवश्यक है। [1]