नासदीय सूक्त
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संशोघन-----
नासदीय सूक्त की व्याख्या पूर्वाग्रह से ग्रसित है! मूल ऋचा में कहीं भी ईश्वर की कल्पना तक नहीं की गई है! अध्यक्ष शब्द की निहितार्थ सोमरस पीने वाला इंद्र है! कहा गया कि *शायद वह भी नहीं जानता!*------
नासदीय सूक्त ऋग्वेद के 10 वें मण्डल का 129 वां सूक्त है। 'नासद्' (= न + असद् ) से आरम्भ होने के कारण इसे 'नासदीय सूक्त' कहा जाता है।इसका सम्बन्ध ब्रह्माण्ड विज्ञान और ब्रह्मांड की उत्पत्ति के साथ है।[1] विद्वानों का विचार है कि इस सूक्त में भारतीय तर्कशास्त्र के बीज छिपे हैं।
नासदीय सूक्त के रचयिता ऋषि प्रजापति परमेष्ठी हैं। इस सूक्त के देवता भाववृत्त है।