गृहस्थ आश्रम
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गृहस्थ का सामान्य अर्थ "परिवार क साथ घर में घर के लिए रहना" अथवा "घरवाला" होता है।[1] हिन्दू आश्रम पद्धति आधारित आयु आधारित चार आश्रमों में यह दूसरा आश्रम होता है। [2] यह अविवाहित जीवन के अन्त और वैवाहिक जीवन की शुरुआत से होता है जिसमें घर की जिम्मेदारियाँ, परिवार का उत्थान, बच्चों की शिक्षा और धार्मिक सामाजिक जीवन एवं परिवार केन्द्रित कार्य शामिल होते हैं। "अंतरराष्ट्रीय जगतगुरू दशनाम गुसाईं गोस्वामी एकता अखाड़ा परिषद" गृहस्थों का मुख्य रूप से, सुव्यवस्थित प्रमुख अखाड़ा के रूप में अधिमान्य है जिसके अधिपति (प्रमुख) स्वामी श्री वीरेंद्र अयोध्या पुरी श्री जी महाराज जी हैं
सामान्य तथ्य आस्थादर्शन, ग्रन्थशास्त्र ...
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इस आश्रम के बाद वानप्रस्थाश्रम आता है जिसका सामान्य अर्थ वन गमन, सेवा निवृत्ति[6]) और संन्यास होता है।[3]