गजपति राजवंश
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गजपति राजवंश, मध्यकालीन भारत का एक हिन्दू राजवंश था जिसका उदय कलिंग क्षेत्र (वर्तमान उड़ीसा) तथा वर्तमान आन्ध्र प्रदेश के उत्तरी समुद्रतटीय क्षेत्र में हुआ था। कपिलेन्द्रदेव द्वारा स्थापित यह राजवंश 1434 ई से 1541 ई तक प्रभावी रहा। कपिलेन्द्रदेव के ही अधीन यह साम्राज्य का रूप धारण कर लिया जिसका विस्तार उत्तर में गंगा के निचले प्रदेशों से लेकर दक्षिण में कावेरी तक था। [2]
सामान्य तथ्य
गजपति राजवंश गजपति राजवंश | |||||
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राजधानी | कटक | ||||
भाषाएँ | Odia[1] | ||||
धार्मिक समूह | हिन्दू | ||||
शासन | राजतन्त्र | ||||
श्री श्री गजपति गौडेश्वर नवकोटि कर्नत उत्कल कलवर्गेश्वर | |||||
- | 1434–66 | कपिलेन्द्र देव | |||
- | 1466–97 | पुरुषोत्तम देव | |||
- | 1497–1540 | प्रतापरुद्र देव | |||
- | 1540–1541 | कलुआ देव | |||
- | 1541 | कखरुआ देव | |||
ऐतिहासिक युग | मध्यकालीन भारत | ||||
- | स्थापित | 1434 | |||
- | अंत | 1541 | |||
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इस राजवंश की स्थापना सम्राट कपिलेन्द्र देव ने 1434 ई में की थी। पुरुषोत्तम देव (1466–1497) और प्रतापरुद्र देव (1497–1540) इस वंश के अन्य प्रमुख शासक हुए। कखरुआ देव इस वंश के अन्तिम शासक थे जिनको गोविन्द विद्याधर ने १५४१ ई में मारकर भोई राजवंश की स्थापना की।