कुशीनगर जिला
उत्तर प्रदेश का जिला / From Wikipedia, the free encyclopedia
यह लेख 'कुशीनगर जिला' के बारे में है। कुशीनगर कस्बे के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कुशीनगर देखें।
उत्तर प्रदेश में कुशीनगर जिला ज़िले की अवस्थिति | |
राज्य |
उत्तर प्रदेश भारत |
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प्रभाग | गोरखपुर |
मुख्यालय | पडरौना |
क्षेत्रफल | 2,873.5 कि॰मी2 (1,109.5 वर्ग मील) |
जनसंख्या | 3,560,830 (2011) |
जनघनत्व | 1,228/किमी2 (3,180/मील2) |
शहरी जनसंख्या | 4.87 प्रतिशत |
साक्षरता | 68.00 प्रतिशत |
लिंगानुपात | 960 |
लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र | कुशीनगर |
आधिकारिक जालस्थल |
कुशीनगर जिला भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश के गोरखपुर मंडल के अन्तर्गत एक जिला है। इस जनपद का मुख्यालय कुशीनगर से कोई १५ किमी दूर पडरौना में स्थित है। कुशीनगर जिला पहले देवरिया जिले का भाग था। कुशीनगर जिले के पूर्व में बिहार राज्य, दक्षिण-पश्चिम में देवरिया जिला, पश्चिम में गोरखपुर जिला, उत्तर-पश्चिम में महराजगंज जिला स्थित हैं। कुशीनगर जिला का मुख्यालय पडरौना कस्बे के पास ही स्थित रवीन्द्र नगर धूस है।
जिले का क्षेत्रफल 2,873.5 वर्ग कि॰मी है तो जनसंख्या 3,560,830 (2011)। साक्षरता दर 67.66 प्रतिशत और लिंगानुपात 955 है। इस जिले में एक लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र (कुशीनगर लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र) है और सात विधानसभा क्षेत्र- फाजिलनगर, खड्डा, रामकोला, हाटा, कसया, पडरौना, तमकुही राज हैं। जिले में 6 तहसीलें हैं - पडरौना, कुशीनगर, हाटा, तमकुहीराज , खड्डा, कप्तानगंज और 14 विकासखण्ड (block) हैं - पडरौना, बिशुनपुरा, कुशीनगर, हाटा, मोतीचक, सेवरही, नेबुआ नौरंगिया, खड्डा, दुदही, फाजिल नगर, सुकरौली, कप्तानगंज, रामकोला और तमकुहीराज। जिले में ग्रामों की संख्या 1447 हैं। कुशीनगर के हाटा तहसील में एक सरकारी पॉलीटेक्निक कॉलेज है जो कि मुजहना ग्राम में पड़ता है।जिले में तीन नगरपालिका क्रमशः पडरौना, हाटा एवम् कुशीनगर तथा दस नगर पंचायत हैं जिनमें सुकरौली, मथौली, कप्तानगंज, रामकोला, खड्डा, छितौनी, दुदही, फाजिलनगर, तमकुही व सेवरही हैं। नगरपालिका हाटा के ढाढ़ा ((राजमार्ग के निकट) में एक राजकीय महाविद्यालय भी है।और ढाढ़ा बुजुर्ग में एक उन्नत तकनीकी से स्थापित आधुनिक गन्ना मिल भी है।यहाँ गन्ने की खेती बहुतायत होती है। हाटा के दक्षिण में दो किलोमीटर दूरी पर प्रसिद्ध करमहां मठ है जो कि सिद्ध स्थान है।यहाँ पुरा काल में सिद्ध संत रहते थे।आज भी मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की पञ्चमी तिथि को सीता स्वयंवर और श्रीराम विवाह की प्रस्तुति कलाकारों द्वारा जनसहयोग से की जाती है।दूर दूर से लोग यहाँ आते हैं।यहाँ के प्राचीन धार्मिक स्थलों में कुबेर स्थान के निकट खन्हवार देवी स्थान, कसया के निकट मैनपुर देवी एवम् कसया से दक्षिण पूर्व में कुलकुला देवी का सिद्ध स्थान स्थापित है।
==धार्मिक व ऐतिहासिक परिचय हिमालय की तराई वाले क्षेत्र में स्थित कुशीनगर का इतिहास अत्यन्त ही प्राचीन व गौरवशाली है। वर्ष 1876 ई0 में अंग्रेज पुरातत्वविद ए कनिंघम ने यहाँ पुरातात्विक खुदाई करायी थी और उसके बाद सी एल कार्लाइल ने भी खुदाई करायी जिसमें यहाँ का मुख्य स्तूप (रामाभार स्तूप) और 6.10 मीटर लम्बी भगवान बुद्ध की लेटी हुई प्रतिमा मिली थी। इन खोजों के परिणामस्वरूप कुशीनगर का गौरव पुनर्स्थापित हुआ। जे पीएच वोगेल ( J. Ph. Vogel) के देखरेख में पुनः 1904-5, 1905-6 एवं 1906-7 में खुदाई हुई जिससे बुद्ध धर्म से सम्बन्धित अनेकों वस्तुएँ प्राप्त हुईं।
वाल्मीकि रामायण के अनुसार यह स्थान त्रेता युग में भी आबाद था और यह मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के पुत्र कुश की राजधानी थी जिसके चलते इसे 'कुशावती' के नाम से जाना गया। पालि साहित्य के ग्रन्थ त्रिपिटक के अनुसार बौद्ध काल में यह स्थान षोड्श महाजनपदों में से एक था और मल्ल राजाओं की राजधानी। तब इसे 'कुशीनारा' के नाम से जाना जाता था। ईसापूर्व छठी शताब्दी के अन्त या ईसापूर्व पांचवी शताब्दी के आरम्भ में यहां भगवान बुद्ध का आगमन हुआ था। कुशीनगर में ही उन्होंने अपना अन्तिम उपदेश देने के बाद महापरिनिर्वाण को प्राप्त किया था।
कुशीनगर से 16 किलोमीटर दक्षिण- पूर्व में मल्लों का एक और गणराज्य पावा था। यहाँ बौद्ध धर्म के समानान्तर ही जैन धर्म का प्रभाव था। माना जाता है कि जैन धर्म के २४वें तीर्थंकर महावीर स्वामी (जो बुद्ध के समकालीन थे) ने पावानगर (वर्तमान में फाजिलनगर) में ही परिनिर्वाण प्राप्त किया था। इन दो धर्मों के अलावा प्राचीन काल से ही यह स्थल सनातन हिन्दू धर्मावलंम्बियों के लिए भी काफी महत्वपूर्ण माना जाता है।
गुप्तकाल के तमाम भग्नावशेष आज भी जिले में बिखरे पड़े हैं। इनमें लगभग डेढ़ दर्जन प्राचीन टीले हैं जिसे पुरातात्विक महत्व का मानते हुए पुरातत्व विभाग ने संरक्षित घोषित कर रखा है। उत्तर भारत का एकमात्र सूर्य मंदिर भी इसी जिले के तुर्कपट्टी में स्थित है। भगवान सूर्य की प्रतिमा यहां खुदाई के दौरान ही मिली थी जो गुप्तकालीन मानी जाती है। इसके अलावा भी जनपद के विभिन्न भागों में अक्सर ही जमीन के नीचे से पुरातन निर्माण व अन्य अवशेष मिलते ही रहते हैं।
कुशीनगर जनपद का जिला मुख्यालय पडरौना है जिसके नामकरण के सम्बन्ध में यह कहा जाता है कि भगवान राम विवाह के उपरान्त पत्नी सीता व अन्य सगे-संबंधियों के साथ इसी रास्ते जनकपुर से अयोध्या लौटे थे। उनके पैरों से रमित धरती पहले 'पदरामा' और बाद में पडरौना के नाम से जानी गई। जनकपुर से अयोध्या लौटने के लिए भगवान राम और उनके साथियों ने पडरौना से 10 किलोमीटर पूरब से होकर बह रही बांसी नदी को पार किया था। आज भी बांसी नदी के इस स्थान को 'रामघाट' के नाम से जाना जाता है। हर वर्ष यहां भव्य मेला लगता है जहाँ उत्तर प्रदेश और बिहार के लाखों श्रद्धालु आते हैं। बांसी नदी के इस घाट को स्थानीय लोग इतना महत्व देते हैं कि 'सौ काशी न एक बांसी' की कहावत ही बन गई है। मुगल काल में भी यह जनपद अपनी खास पहचान रखता था।