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करम पर्व भारतीय राज्यों झारखण्ड, पश्चिम बंगाल, बिहार, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, असम, ओडिशा और बांग्लादेश में मनाया जाने वाला एक फसल उत्सव है। यह शक्ति, यौवन और युवावस्था के देवता करम-देवता की पूजा के लिए समर्पित है। यह अच्छी फसल और स्वास्थ्य के लिए मनाया जाता है।
करम परब | |
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पश्चिम बंगाल में करम पूजा | |
अन्य नाम | करम पूजा |
उद्देश्य | फसलों का त्यौहार |
अनुष्ठान | झारखंड, असम, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, ओडिशा और बांग्लादेश के कुछ हिस्से |
तिथि | अगस्त - दिसंबर |
आवृत्ति | वार्षिक |
करम त्यवहार में एक विशेष नृत्य किया जाता है जिसे करम नाच कहते हैं। यह पर्व हिन्दू पंचांग के भादों मास की एकादशी को झारखण्ड, छत्तीसगढ़ सहित देश विदेश में पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस अवसर पर श्रद्धालु उपवास के पश्चात करम वृक्ष की शाखा को घर के आंगन में रोपित करते हैं तथा मिट्टी से हाथी और घोड़े की मुर्तियां बनाकर करम देवता की पूजा करते हैं। पूजा-अर्चना करने के पश्चात महिला-पुरुष नगाड़ा, मांदर और बांसुरी के साथ करम शाखा के चारों ओर करम नाच-गान करते हैं। दूसरे दिन कुल देवी-देवता को नवान्न (नया अन्न) देकर ही उसका उपभोग शुरू होता है। करम नृत्य को नई फ़सल आने की खुशी में लोग नाच-गाकर मनाया जाता है। करम पर्व विभिन्न आदिवासी और विभिन्न हिन्दु किसान समूहों द्वारा मनाया जाता है, जिनमें शामिल हैं: बैगा, भूमिज, उरांव, खड़िया,मुंडा, कुड़मी, कोरवा, भुईयां-घटवाल, बागाल, घटवार, बिंझवारी, करमाली, लोहरा, आदि।
भादो महीने (अगस्त-सितंबर) की पूर्णिमा को आमतौर पर करम उत्सव मनाया जाता है। करम वृक्ष, उत्सव की कार्यवाही का केंद्र है। करम उत्सव की तैयारी त्योहार से लगभग दस या बारह दिन पहले शुरू हो जाती है। नौ प्रकार के बीज जैसे चावल, गेहूँ, मक्का आदि टोकरी में लगाएं जाते हैं, जिसे जावा कहा जाता है। लड़कियां इन बीजों की 7-9 दिनों तक देखभाल करते हैं।
करम उत्सव की सुबह महिलाओं द्वारा चावल का आटा प्राप्त करने के लिए लकड़ी की यंत्र ढेकी में चावल कूटने के साथ शुरू होती है। इस चावल के आटे का उपयोग स्थानीय व्यंजन बनाने के लिए किया जाता है जो मीठा भी हो सकता है और नमकीन भी। इस व्यंजन को करम उत्सव की सुबह खाने के लिए पकाया जाता है, और पूरे मोहल्ले में बांटा जाता है।
अनुष्ठान में, लोग ढोल-नगाड़ों और मांदर वादकों के समूह के साथ जंगल में नाचते जाते हैं और पूजा करने के बाद करम के पेड़ की एक या एक से अधिक शाखाओं को काटते हैं। शाखाओं को आमतौर पर अविवाहित, युवा लड़कियों द्वारा गाँव में लाया जाता है और गांव के अखाड़ा (कभी-कभी मैदान में) के बीच में शाखा को लगाया जाता है। जिसे गाय के गोबर से लीपा जाता है और फूलों से सजाया जाता है। एक ग्राम पुजारी (क्षेत्र के अनुसार पाहन या देहुरी) धन और संतान देने वाले देवता (करम देवता) के लिए अंकुरित अनाज और हंड़िया को प्रसाद में चढ़ाता है। करम देवता की पूजा करने के पश्चात, करम देवता (प्रकृति देवता) की कथा सुनाई जाती है। फिर लोग अपने कान के पीछे पीले रंग के फूल के साथ अनुष्ठान नृत्य शुरू करते हैं। सभी पुरुष और महिलाएं चावल से बनी पेय-पदार्थ 'हंड़िया' पीते हैं और पूरी रात गायन और नृत्य में बिताते हैं; दोनों त्योहार के आवश्यक भाग हैं, जिसे करम नाच के नाम से जाना जाता है।
ढोल-नगाड़ों और मांदर की थाप और लोकगीतों पर महिलाएं एवं पुरुष नृत्य करती हैं। पूजा के बाद एक सामुदायिक दावत और हंड़िया पीने का आयोजन किया जाता है। अगले दिन करम की डाली नृत्य करते हुए नदी या तालाब में विसर्जित कर दिया जाता है। और इस तरह से करम नाचते गाते आता है और हमें खुशियां दे चला जाता है!
करमा पर्व आदिवासी समुदाय में मनाया जाने वाला महत्वपूर्ण पर्व है।
करम पूजा की उत्पत्ति के पीछे की कहानी के कई संस्करण हैं। मानवशास्त्री हरि मोहन लिखते हैं कि संस्कार समाप्त होने के बाद लड़के और लड़कियों को करम की कहानी सुनाई जाती है। उनके अनुसार त्योहार के पीछे की कहानी यह है:
एक बार की बात है, सात भाई थे जो कृषि कार्य में कड़ी मेहनत करते थे। उनके पास दोपहर के भोजन के लिए भी समय नहीं था; इसलिए, उनकी पत्नियां उनके लिए भोजन रोजाना खेतों में ले जाती थीं। एक बार ऐसा हुआ कि उनकी पत्नियाँ उनके लिए दोपहर का भोजन नहीं लाईं, वे भूखे थे। शाम को वे घर लौटे और देखा कि उनकी पत्नियाँ आंगन में करम के पेड़ की एक शाखा के पास नाच-गा रही थीं। इससे वे क्रोधित हो गए और उनमें से एक भाई आपा खो बैठा। उसने करम की शाखा उखाड़ ली और उसे नदी में फेंक दिया। करम देवता का अपमान किया गया; परिणामस्वरूप, उनके परिवार की आर्थिक स्थिति लगातार बिगड़ती चली गई और वे भुखमरी की स्थिति में आ गए। एक दिन एक पुजारी उनके पास आया और सातों भाइयों ने उसे पूरी कहानी सुनाई। फिर सातों भाई 'करम राजा' की तलाश में गांव से निकल गए। वे एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमते रहे और एक दिन उन्हें करम का पेड़ मिल गया। इसके बाद, उन्होंने इसकी पूजा की और उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार होने लगा।
भूमिज और उरांव लोगों के बीच दो प्रमुख किंवदंती है, पहली कथा के अनुसार, सात भाई एक साथ रहते थे। जिनमें छह बड़े भाई खेतों में काम करते थे और सबसे छोटा भाई घर पर ही रहता था। वह अपनी छह भाभियों के साथ आंगन में एक करम के पेड़ के चारों ओर नृत्य और गीत गाया करता था। एक दिन वे नाच-गाने में इतने मशगूल थे कि बड़े भाइयों का खाना उनकी पत्नियाँ खेत तक नहीं ले गईं। जब भाई घर पहुंचे तो वे आगबबूला हो गए और करम के पेड़ को नदी में फेंक दिया। सबसे छोटा भाई गुस्से में घर छोड़कर चला गया। फिर बाकी भाइयों पर बुरे दिन आ गए। उनके घर क्षतिग्रस्त हो गए, फसलें खराब हो गईं और वे लगभग भूखमरी की स्थिति में आ गए। जंगल -पहाड़ों में घूमते-घूमते सबसे छोटे भाई को एक दिन करम का पेड़ नदी में तैरता हुआ मिला। तब उसने करम देवता की पूजा कर उन्हें प्रसन्न किया, जिसने सब कुछ बहाल कर दिया। तत्पश्चात वह घर लौट आया और अपने भाइयों को बुलाकर उनसे कहा कि क्योंकि उन्होंने करम देवता का अपमान किया था, वे बुरे दिनों में गिर गए थे। तभी से करम देवता (करम वृक्ष) की पूजा की जाती है।
दूसरी कथा के अनुसार, करमु-धरमु (कर्मा-धर्मा) नामक दो भाई थे, जो काफी गरीब थे। उनकी एक बहन थी, जिनसे वे बहुत प्यार करते थे। उनकी बहन करम पौधे की पूजा किया करती थी और उसके चारों ओर नाचते-गाते रहते थी। एक बार कुछ दुश्मनों ने उस पर हमला कर दिया तो उसके दोनों भाईयों ने अपनी जान की बाजी लगाकर अपनी बहन को बचाया था।[1] तब से बहन ने करम पौधे से अपने भाईयों के लिए खुशी, सुख और समृद्धि मांगी तथा दोनों भाइयों के साथ करम देवता की पूजा हर्षोल्लास के साथ करती थी। तीनों का जीवन सुखमय था। एक बार बड़ा भाई करमु काम के सिलसिले में परदेश चला गया। वर्षों बाद, वह बहुत धनी होकर घर लौटा। उसका छोटा भाई धरमु तथा उनकी बहन करम वृक्ष के नीचे करम देवता की अराधना में लीन थे, तथा बड़े भाई करमू के स्वागत में नहीं गए। क्रोधित होकर करमू ने करम वृक्ष को उखाड़ कर नदी में फेंक दिया। उसके पश्चात करमू और धरमू का जीवन कठिनाइयों से गुजरने लगा और उनकी भूखमरी की स्थिति हो गई। तब उनकी बहन ने उन्हें बताया कि करम देवता के अपमान के कारण उनकी यह दशा हुई है। उसके बाद दोनों भाई जंगलों-पहाड़ों तथा देश-परदेशों में घूम-घूम कर करम वृक्ष की तलाश करने लगे। एक दिन उन्हें वह करम वक्ष नदी में तैरता हुआ मिला, जिसे वे वापस घर लाकर पूजा करने लगे। उनका जीवन दोबारा सुखमयी हो गया।[2]
करमा को लेकर कई लोक श्रुतियां और कई लोक कथाएं भी प्रचलित हैं, जिनके माध्यम से यह पता चलता है कि करमा का व्रत कुवारी लड़कियां अपने भाई की लंबी आयु के लिए करती हैं। यह व्रत भादो माह की एकादशी को किया जाता है और इसमें करम के वृक्ष की पूजा की जाती है। करम के वृक्ष की पूजा कर लड़कियां यह कामना करती हैं कि उनके भाई की आयु भी करम के वृक्ष की आयु की तरह अधिक हो और उनके परिवार के सभी सदस्य खुशहाली से अपना जीवन व्यतीत करें।[3]
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