भारतीय उपमहाद्वीप की संस्कृति में ऐसा होता आया है कि अगर कोई शेर लोकप्रीय हो जाए तो वह लोक-संस्कृति में एक सूत्रवाक्य की तरह शामिल हो जाता है। उदाहरण के लिए:
- इब्तेदा-ए-इश्क़ है, रोता है क्या - इसकी दूसरी पंक्ति है, 'आगे-आगे देखिये होता है क्या'। यह अक्सर किसी मुश्किल काम (जिसमें प्रेम-प्रयास भी है) के करते समय कहा जाता है। इसका अर्थ है कि 'अभी तो मुश्किल काम शुरू हुआ है, अभी और कठिनाई आएगी, अभी से क्या रोना?'[2]
- ख़ुदी को कर बुलन्द इतना - यह इक़बाल का शेर है जिसके आगे का भाग है 'के हर तक़दीर से पहले, ख़ुदा बन्दे से ख़ुद पूछे, बता तेरी रज़ा क्या है'। इसका अर्थ है कि 'इतने लायक़ बनो कि जीवन के हर मोड़ पर भगवान तुम्हारा भाग्य लिखते हुए तुम्ही से तुम्हारी जो मर्ज़ी हो पूछ कर लिख दे'।
- ख़ाक़ हो जाएँगे हम तुम को ख़बर होने तक - इसका पहला जुमला है 'हमने माना के तग़ाफ़ुल न करोगे लेकिन'। इसमें प्रेमी अपनी प्रेमिका से कह रहा है कि वह जानता है कि उसकी व्याकुलता के बारे में सुनकर वो बिना विलम्ब (तग़ाफ़ुल) किये आ जाएगी; लेकिन डर यह है कि उसका दुःख इतना भारी है कि वह प्रेमिका को ख़बर मिलने से पहले ही मर जाएगा'। यह भारतीय संसद में एक सांसद ने भूतपूर्व प्रधान मंत्री नरसिंहराव से अपने क्षेत्र के लिए मदद मांगते हुए कहा था। नरसिंहराव का उत्तर था- " घबराइये नहीं! हम आपको ख़ाक़ नहीं होने देंगे।"
- और भी ग़म हैं ज़माने में - यह फैज़ अहमद फैज़ के एक शेर का हिस्सा है, पूरा शेर है: 'मुझ से पहली सी मुहब्बत मेरे महबूब न मांग और भी दुःख हैं ज़माने में मुहब्बत के सिवा'। इसका अर्थ है कि दुनिया में इतनी मुश्किलें-तकलीफ़ें हैं कि आदमी हर समय आनंद देने वाली चीज़ों पर ध्यान नहीं दे सकता।[3]
- तुम्हें याद हो के न याद हो - इसका पूरा शेर है 'वो जो हम में तुम में क़रार था, तुम्हें याद हो के न याद हो' और इसी ग़ज़ल का एक और अंश है 'मुझे सब है याद ज़रा-ज़रा, तुम्हें याद हो के न याद हो'। यह ऐसे दोस्तों-प्रेमियों को शर्मिंदा करने के लिए कहा जाता है जो किसी के साथ अपना पुराना सम्बन्ध भूल गए हों।[2]
शेर-ओ-शायरी के सम्बन्ध में कुछ शब्द भारतीय उपमहाद्वीप और ईरान में प्रचलित हैं[4], मसलन (उदाहरणार्थ):
- जुमला - यह 'पंक्ति' का एक अन्य नाम है, उदाहरण के लिए 'बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल है दुनिया मेरे आगे' एक जुमला है (अर्थ: 'मेरे लिए दुनिया एक बच्चों का खेल/बाज़ी है')
- मिसरा - शायरी की पंक्तियों/जुमलों के लिए यह भी एक नाम है
- शेर - यह दो जुमलों (पंक्तियों) से बना कविता का एक अंश होता है जो एक-साथ मिलकर को भाव या अर्थ देती हैं, उदाहरण के लिए 'बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल है दुनिया मेरे आगे, होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मेरे आगे' दो जुमलों का एक शेर है (अर्थ: 'दुनिया मेरे लिए बच्चों का खेल है, रात-दिन यही तमाशा देखता हूँ')
- मतला - किसी ग़ज़ल के पहले शेर को मतला कहते हैं।
- मक़ता - किसी ग़ज़ल के अंतिम शेर को मक़ता कहते हैं और शायर कोशिश करते हैं कि यह शेर सब से ज्यादा भावुक और प्रभावशाली हो, इसीलिए कोई ग़ज़ल अंत करते हुए शायर अक्सर कहते हैं 'मक़ता अर्ज़ है' (यानि, 'ध्यान दीजिये, ग़ज़ल का अंतिम और सबसे महत्वपूर्ण शेर पढ़ने वाला हूँ')
- बैतत - ग़ज़ल के शेर को अक्सर बैत भी कहते हैं और अक्सर यह शब्द किसी ग़ज़ल के पहले शेर के लिए प्रयोग होता है जिसमें दोनों जुमलों कि तुकबंदी होना अनिवार्य है, जैसे कि 'तुम भी ख़फ़ा हो लोग भी बरहम हैं दोस्तों, अब हो चला यक़ीन है बुरे हम हैं दोस्तों' ('बरहम' यानि 'परेशान')
- फ़र्द - ग़ज़ल के पहले शेर के बाद वाले शेर, जिनमें जुमलों में तुकबंदी करना आवश्यक नहीं है, जैसे कि 'अपने सिवा हमारे न होने का ग़म किसे, अपनी तलाश में तो हमीं-हम हैं दोस्तों'
- क़सीदा - किसी की प्रशंसा के लिए लिखी गई कविता को क़सीदा कहते हैं; पुराने ज़माने में कवियों का गुज़ारा किसी राजा-महाराजा के दरबार से जुड़े होने से चला करता था और उनके लिए उस राजा की प्रशंसा में क़सीदे लिखना ज़रूरी हुआ करता था।
- तख़ल्लुस या तकिया क़लाम - यह शायर का अपने लिए चुना हुआ नाम होता है जो अक्सर ग़ज़ल के अंतिम शेर (मक़ते) में शामिल कर लिया जाता है, ठीक वैसे जैसे कोई चित्रकार अपने बनाए चित्र पर अपना नाम दर्ज कर देता है; उदाहरण के लिए उत्तर प्रदेश के शहर बाराबंकी के मुहम्मद हैदर ख़ान के अपना तख़ल्लुस 'ख़ुमार बाराबंकवी' रखा हुआ था और यह उनकी ग़ज़लों के मक़तों में देखा जा सकता है, मसलन 'ख़ुमार-ए-बलानोश्त, तू और तौबा? तुझे ज़ाहिदों की नज़र लग गई है' (अर्थ: शराब पीने (नोश) करने वाले ख़ुमार, तूने शराब से तौबा कर ली? ज़रूर तुझे तेरी मस्ती से जलने वाले मौलवियों (ज़ाहिदों) की नज़र लग गई है')
कृपया कुछ ध्वनियों के उच्चारण पर ध्यान दीजिये:
- ख़ - नुक़्तेवाला ख, 'ख़' का उच्चारण 'ख' से भिन्न होता है और 'ख़्याल', 'ख़ून', 'आख़िर' और 'ख़बर' जैसे शब्दों में मिलता है।
- ग़ - नुक़्तेवाला ग, 'ग़' का उच्चारण 'ग' से भिन्न होता है और 'ग़म', 'ग़ैर', 'ग़लत' और 'ग़रीब' जैसे शब्दों में मिलता है।
- क़ - नुक़्तेवाला क, 'क़' का उच्चारण 'क' से मिलता-जुलता लेकिन ज़रा-सा भिन्न होता है और 'क़ीमत', 'क़ुरबानी' और 'क़त्ल' जैसे शब्दों में मिलता है।
- ज़ - 'ज़' का उच्चारण 'ज' से भिन्न होता है और 'ज़माना', 'ज़रुरत', 'ज़न' (अर्थ: औरत) और 'ज़िन्दगी' जैसे शब्दों में मिलता है।
Master couplets of Urdu poetry, K. C. Kanda, Institute of Southeast Asian Studies, 2002, ISBN 978-81-207-2356-6, ... Ibteda-e-ishq hai rota hai kya, Aage aage dekheye hota hai kya ... Woh jo hum mein tum mein qaraar tha tumhen yaad ho ke na yaad ho, Wohi waada yaani nibah ka, tumhen yaad ho ke na yaad ho ...