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शाहगढ़ (Shahgarh) भारत के मध्य प्रदेश राज्य के सागर ज़िले में स्थित एक नगर है। यह इसी नाम की तहसील का मुख्यालय है।[1][2]
शाहगढ़ Shahgarh | |
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बुंदेलखंड के राजा छत्रसाल | |
निर्देशांक: 24.318°N 79.119°E | |
देश | भारत |
प्रान्त | मध्य प्रदेश |
ज़िला | सागर ज़िला |
जनसंख्या (2011) | |
• कुल | 16,300 |
भाषाएँ | |
• प्रचलित | हिन्दी |
समय मण्डल | भारतीय मानक समय (यूटीसी+5:30) |
शाहगढ़ का बुंदेलखंड के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान है और यह कई बुंदेला शासकों की कर्मस्थली रहा है। सागर जिले के उत्तर पूर्व में सागर-कानपुर मार्ग पर करीब ७० किमी की दूरी पर स्थित यह कस्बा कई ऐतिहासिक घटनाओं का साक्षी है। वनाच्छादित उत्तुंग शैलमाला की तराई में लांच नदी के दक्षिणी किनारे पर बसे शाहगढ़ का इतिहास बुंदेलों की वीरता का महत्वपूर्ण साक्ष्य है।
१५वीं शताब्दी में यह गांव गौंड़ शासकों के अधीन था। तब यह गढ़ करीब ७५० गांवों का था। गौंड़ शासकों के बाद यह छत्रसाल बुंदेला के अधिकार में आया जिसने यहां एक किलेदार तैनात किया था। छत्रसाल ने इसे अपने पुत्र हिरदेशाह के नाम वसीयत कर दिया था। हिरदेशाह की सन् १७३९ में मृत्यु हो गई। हिरदे शाह की मौत के बाद उसके कनिष्ठ पुत्र पृथ्वीराज ने बाजीराव पेशवा की सहायता से इसे अपने अधिकार में ले लिया।
कहा जाता है कि सन् १७५९ में जब अहमदशाह अब्दाली ने भारत पर आक्रमण किया था तो आक्रांताओं के विरुद्ध मराठाओं ने संघर्ष किया। उनके इस संघर्ष में सहायता के लिए शाहगढ़ से ५००० सैनिकों की एक सेना भेजी गई थी। सन् १८३५ में यहां अंग्रेज स्लीमैन आया था। उसने अपनी पुस्तक “रैंबल्स एंड डिक्लेक्शंस” में शाहगढ़ और उसके शासकों के बारे में विस्तार से लिखा है।
बखत बली अर्जुनसिंह का भतीजा था। उसके पास १५० घुड़सवार और करीब ८०० पैदल सैनिकों की सेना थी। वह सन् १८५७ की क्रांति में शामिल हो गया था। उसने चरखारी पर आक्रमण के समय तात्या टोपे की सहायता की थी। बाद में नाना साहिब द्वारा ग्वालियर में स्थापित शासन में उसे भी सम्मिलित होने को आमंत्रित किया गया था।
सितंबर १८५८ में बखत बली को ग्वालियर जाते समय अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर लिया था। उसे राजबंदी के रूप में लाहौर भेज दिया गया। वहां उसे मारी दरवाजा में हाकिम राय की हवेली नामक स्थान पर रखा गया। बखतबली के राज्य को अंग्रेजों ने जब्त कर लिया। वह राज्य कितना विस्तृत था इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उसके कई भाग अब सागर, दमोह और झांसी जिलों में शामिल हैं। २९ सिंतंबर १८७३ को राजा बखत बली की मृत्यु वृंदावन में हुई थी।
अंग्रेजों ने शाहगढ़ को इसी नाम के परगने का मुख्यालय बनाया था। इसमें करीब ५०० वर्ग किमी में करीब सवा सौ गांव थे। शाहगढ़ में कुछ ऐतिहासिक अवशेष अभी भी हैं। यहां राजा अर्जुनसिंह द्वारा बनवाए गए दो मंदिर हैं। बड़े मंदिर में भित्ति चित्रणों की सजावट है। इसके अतिरिक्त यहां चार समाधियां और राज-परिवार की एक विशाल समाधि भी है।
एक समय शाहगढ़ व आसपास के इलाके में कच्चे लोहे की खदानें थीं। इन खदानों से निकाला गया लोहा स्थानीय पद्धति से गलाया जाता था हालांकि अब इसका कोई विशेष महत्व नहीं है। एक समय यहां एक अच्छा नरम पत्थर मिलता था जिसके कप और गरल बनाए जाते थे। पुराने समय में शाहगढ़ के बने मिट्टी के बर्तन काफी मशहूर थे। इसी कारण वहां एक मिट्टी के बर्तन बनाने का प्रशिक्षण केंद्र भी खोला गया था।
शाहगढ़ में शिवरात्रि के अवसर पर एक मेला लगता है जिसमें आसपास के इलाकों से बड़ी संख्या में लोग आते हैं। साप्ताहिक हाट की परंपरा आज भी जारी है और शनिवार को कस्बे में हाट बाजार भरता है। इनका एक तालाब भी था ओर रानी कभी क़िले से बाहर नई निकलती थी।
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