पूर्वी चम्पारण जिला
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पूर्वी चंपारण बिहार के तिरहुत प्रमंडल का एक जिला है। चंपारण को विभाजित कर 1971 में बनाए गए पूर्वी चंपारण का मुख्यालय मोतिहारी है। चंपारण का नाम चंपा + अरण्य से बना है जिसका अर्थ होता है- चम्पा के पेड़ों से आच्छादित जंगल। पूर्वी चम्पारण के उत्तर में एक ओर जहाँ नेपाल तथा दक्षिण में मुजफ्फरपुर स्थित है, वहीं दूसरी ओर इसके पूर्व में शिवहर और सीतामढ़ी तथा पश्चिम में पश्चिमी चम्पारण जिला है।
पूर्वी चंपारण | |||||||
— जिला — | |||||||
समय मंडल: आईएसटी (यूटीसी+५:३०) | |||||||
देश | भारत | ||||||
राज्य | बिहार | ||||||
सांसद | राधामोहन सिंह | ||||||
जनसंख्या • घनत्व |
50,99,371 (2011 के अनुसार [update]) • 1,285 | ||||||
क्षेत्रफल | 3,968 km² (1,532 sq mi) | ||||||
विभिन्न कोड
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आधिकारिक जालस्थल: eastchamparan.bih.nic.in |
महाकाव्य काल से लेकर आज तक चंपारण का इतिहास गौरवपूर्ण एवं महत्वपूर्ण रहा है। पुराण में वर्णित है कि यहाँ के राजा उत्तानपाद के पुत्र भक्त ध्रुव ने यहाँ के तपोवन नामक स्थान पर ज्ञान प्राप्ति के लिए घोर तपस्या की थी।[1] एक ओर चंपारण की भूमि देवी सीता की शरणस्थली होने से पवित्र है वहीं दूसरी ओर आधुनिक भारत में गाँधीजी का चंपारण सत्याग्रह भारतीय स्वतंत्रता के इतिहास का अमूल्य पन्ना है। राजा जनक के समय यह मिथिला (तिरहुत) प्रदेश का अंग था। लोगों का ऐसा विश्वास है कि जानकीगढ, जिसे चानकीगढ भी कहा जाता है, राजा जनक के मिथिला प्रदेश की राजधानी थी। जो बाद में छठी सदी ईसापूर्व में वज्जी के साम्राज्य का हिस्सा बन गया। भगवान बुद्ध ने यहाँ अपना उपदेश दिया था जिसकी याद में तीसरी सदी ईसापूर्व में प्रियदर्शी अशोक ने स्तंभ लगवाए और स्तूप का निर्माण कराया। गुप्त वंश तथा पाल वंश के पतन के बाद चंपारण कर्नाट वंश के अधीन हो गया। मुसलमानों के अधीन होने तक तथा उसके बाद भी यहाँ स्थानीय क्षत्रपों का सीधा शासन रहा। भारत के स्वतंत्रता संग्राम के समय चंपारण के ही एक रैयत एवं स्वतंत्रता सेनानी राजकुमार शुक्ल के बुलावे पर महात्मा गाँधी अप्रैल १९१७ में मोतिहारी आए और नील की फसल के लागू तीनकठिया खेती के विरोध मेंसत्याग्रह का पहला सफल प्रयोग किया।[1] आजा़दी की लड़ाई में यह नए चरण की शुरूआत थी। बाद में भी बापू कई बार यहाँ आए। अंग्रेजों ने चंपारण को सन १८६६ में ही स्वतंत्र इकाई बनाया था लेकिन १९७१ में इसका विभाजन कर पूर्वी तथा पश्चिमी चंपारण बना दिया गया।[2]
पश्चिमोत्तर बिहार में स्थित 3,969 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल वाला पूर्वी चंपारण की सीमा नेपाल से मिलती है। गंडक, बागमती तथा इसकी अन्य सहायक नदियों के मैदान में होने से पूर्वी चम्पारण की उपजाऊ मिट्टी खेती के लिए उपयुक्त है। हिमालय के गिरिपाद क्षेत्र से रिसकर भूमिगत हुए जल के कारण तराई क्षेत्र को यथेष्ट आर्द्रता उपलब्ध है इसलिए यहाँ दलदली मिट्टी (चौर) का विस्तार है। लोगों के जीवन का मुख्य आधार कृषि और गृह उद्योग है। उत्तम कोटि के बासमती चावल तथा गन्ने के उत्पादन में जिले को ख्याति प्राप्त है। मृदु जलवायु तथा उपजाऊ भूप्रदेश के चलते यह बिहार के दूसरा सबसे ज्यादा जनसंख्या वाला जिला है। लेकिन स्त्री-पुरूष जनसंख्या का अनुपात असंतुलित (८९८ प्रति १०००) है। सालाना औसत वर्षा १२४२ मिलीमीटर होती है जो पश्चिम की ओर बढती जाती है। सिंचाई के लिए गंडक से निकाली गई त्रिवेणी, ढाका तथा सकरी नहरें बनी है।
तिरहुत का अंग होने पर भी अलग भाषा तथा भौगोलिक विशिष्टता के चलते चंपारण की संस्कृति बज्जिका भाषी क्षेत्रों से थोड़ा भिन्न है। जिले के सभी हिस्सों में भोजपुरी बोली जाती है लेकिन हिंदी और उर्दू शिक्षा का माध्यम है। शहरों में अंग्रेजी माध्यम से पढाने वाले स्कूल भी हैं। यद्यपि भोजपुरी संस्कृति यहाँ रची- बसी है किंतु लोगों में अपनी भाषा के लिए गौरव का अभाव है। उत्तर प्रदेश तथा बिहार के कई जिलों के करोड़ों लोगों सहित अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बोली जानेवाली भोजपुरी को लोग शिक्षा का माध्यम बनाने में लोग हिचकते हैं। शादी-विवाह या अन्य मांगलिक अवसरों पर भोजपुरी संगीत कार्यक्रम का अभिन्न हिस्सा होता है। कभी नील की खेती के लिए जाने जानावाला जिला अब अच्छी किस्म के चावल और गुड़ के लिए प्रसिद्ध है। अपरिचितों का स्वागत भी गुड़ और पानी से किया जाता है।
छठ पूजा को यहाँ लोग बड़ी श्रद्धा से मनाते है। इसके अतिरिक्त होली, दिवाली, दुर्गा पूजा, महाशिवरात्रि, रक्षाबंधन, गुरु-पूर्णिमा, सतुआनी, चकचंदा आदि हिंदुओं का प्रमुख त्योहार है। मुसलमान ईद, बकरीद या मुहरम मनाते हैं। दोनों समुदायों में हालांकि समरसता आम है लेकिन लोग जातीय भेदभाव के शिकार हैं। विवाह माता-पिता द्वारा अपनी जाति के समान आर्थिक और सामाजिक स्तर में ही तय किए जाते हैं।
मोतिहारी से ३५ किलोमीटर दूर साहेबगंज-चकिया मार्ग पर लाल छपरा चौक के पास अवस्थित है प्राचीन ऐतिहासिक स्थल केसरिया। यहाँ एक वृहद् बौद्धकालीन स्तूप है जिसे केसरिया स्तूप के नाम से जाना जाता है। 1998 में भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा उत्खनन के उपरांत इस जगह का पर्यटन और ऐतिहासिक रूप से महत्व बढ़ गया है। पुरातत्ववेत्ताओं के अनुसार यह बौद्ध स्तूप दुनिया की सबसे ऊँचा स्तूप है। यह स्थान राजधानी पटना से 120 किलोमीटर और वैशाली से 30 मील दूर है। मूल रूप में १५० फीट ऊँचे इस स्तूप की ऊँचाई सन 1934 में आए भयानक भूकंप से पहले 123 फीट थी। भारतीय पुरातत्वेत्ताओं के अनुसार जावा का बोराबुदूर स्तूप वर्तमान में जहाँ 103 फीट ऊँचा है वहीं केसरिया स्थित इस स्तूप की ऊंचाई 104 फीट है। विश्व धरोहर में शामिल सांची का स्तूप की ऊंचाई 77.50 फीट ही है। इसके ऐतिहासिक महत्व को देखते हुए बिहार सरकार केंद्र की मदद से इसे एक ऐतिहासिक पर्यटक स्थल के रूप में विकसित करने की योजना बना रही है। बिहार पर्यटन में केसरिया का महत्व बढ़ता ही जा रहा है।
अरेराज अनुमंडल के लौरिया गांव में स्थित अशोक स्तंभ की ऊंचाई 36.5 फीट है। इस स्तंभ (बलुआ पत्थर से निर्मित) का निर्माण 249 ईसा पूर्व सम्राट अशोक के द्वारा किया गया था। इसपर प्रियदर्शी अशोक लिखा हुआ है। इसके आधार का व्यास 41.8 इंच तथा शिखर का व्यास 37.6 इंच है। इस स्तंभ को स्तंभ धर्मलेख' के नाम से भी जाना जाता है। सम्राट अशोक ने इसमें अपने 6 आदेशों के संबंध में लिखा है। स्तंभ का वजन (जमीन से ऊपर का हिस्सा) 34 टन के आसपास है। अनुमान के अनुसार इस स्तंभ का कुल वजन 40 टन है। कहा जाता है कि इस स्तंभ के ऊपर जानवर की मूर्ति थी जिसको कोलकाता संग्रहालय भेज दिया गया है। इस स्तंभ पर लिखा हुआ आदेश 18 लाइनों में है।
चम्पारण की शान का प्रतीक गांधी मेमोरियल स्तंभ का शिलान्यास 10 जून 1972 को तत्कालीन राज्यपाल डी.के. बरूच के द्वारा किया गया था। 18 अप्रैल 1978 को वरिष्ठ गांधीवादी विद्याकर कवि ने इस स्तंभ को राष्ट्र को समर्पित किया। इस स्तंभ का निर्माण महात्मा गांधी के चंपारण सत्याग्रह की याद में शांति निकेतन के मशहूर कलाकार नन्द लाल बोस के द्वारा किया गया। चुनार पत्थर से निर्मित इस स्तंभ की लंबाई 48 फीट है। स्मारक का निर्माण ठीक उसी जगह किया गया है जहां गाँधीजी को 18 अप्रैल 1917 में धारा 144 का उल्लंघन करने के जुर्म में अनुमंडलाधिकारी की अदालत में पेश किया गया था।
अंग्रेजी साहित्य के महान लेखक जॉर्ज ऑरवेल का जन्म २५ जून १९०३ को मोतिहारी में हुआ था। उस समय उनके पिता रिचर्ड वेल्मेज्ली ब्लेयर चंपारण के अफीम विभाग में सिविल अधिकारी थे। जन्म के कुछ दिनों के बाद ऑरवेल अपनी माँ और बहन के साथ इंगलैंड चले गए जहाँ उन्होंने विद्यार्थी जीवन से ही लेखन आरंभ किया। उनकी लिखी Animal Farm, Burmese Days, A Hanging जैसी कुछ पुस्तकें अंग्रेजी साहित्य की महान कृति है। वर्ष २००४ में रोटरी क्लब मोतिहारी तथा जिला प्रशासन के प्रयास से उनके जन्म स्थल की दशा सुधार कर वहाँ एक फलक लगाया गया जिसपर उनका संक्षिप्त जीवन चरित लिखा है।
विश्व कबीर शांति स्तंभ, बेलवातिया: जिला मुख्यालय से दस किलो मीटर पर पीपराकोठी प्रखंड के बेलवातिया गांव में पूरे भारत का आठवां एवं बिहार का अब तक इकलौता विश्व कबीर शांति स्तंभ स्थापित है इस स्तंभ का निर्माण तत्कालीन महंत स्व० रामस्नेही दास ने २००२ में किया जबकि यह आश्रम १८७५ ई० में तत्कालीन महंत स्व० केशव साहेब ने स्थापित किया इस स्तंभ के अलावा अन्य सभी स्तंभ मध्य प्रदेश शासन के द्वारा बनाये गए है इस आश्रम पर प्रति वर्ष अनंत चतुर्दशी को त्रिदिवाशिये संत सम्मेलन का आयोजन किया जाता है जिसमे देश विदेश के संत महात्मा भक्त का समागम होता है यह आश्रम धार्मिक समाजिक राजनैतिक व अध्यात्मिक साधना का केंद्र रहा है वर्तमान महंथ डॉ त्रिपुरारी दास के नेतृत्व में इस आश्रम का संचालन किया जा रहा है जिनके द्वारा देश विदेश में इस आश्रम के विकास के लिये प्रयास किया जा रहा है इस ऐतिहासिक स्थल के बारे में गौर करें तो आश्रम की स्थापना करने वाले महंथ स्व० केशव साहब ने १८७५ ई० में की और वे १८९५ तक महंथ रहे उसके बाद स्व० श्याम बिहारी दास साहब सन १८९५ से १९०१ ई०, महंथ स्व० रिशाल साहब १९०१ से १९२९ तक, महंथ स्व० ब्रह्मदेव साहब सन १९२९ से १९५४ ई० तक , उसके बाद महंथ स्व० कमल साहेब सन १९५४ से १९७५ तक रहे एव उन्होंने आश्रम के १०० वे स्थापना दिवस पर अपने जीवन काल में ही रामस्नेही दास को महंथ की गदी पर आशिन करते हुए उन्हें महंथ बनाया और महंथ रामस्नेही दास ने अपने काल में ही विश्व कबीर शांति स्तंभ की स्थापना किया तथा वे भी अपने जीवन काल में ही १५ सितम्बर १९९७ को अपना कार्य भार रामरूप दास को सौपा तथा वे सन ३१ मई २००२ को गुजर गए फ़िलहाल के महंथ डॉ० त्रिपुरारी दास को ०७ सितम्बर २०१४ को बनाया गया और तब से उन्ही के नेतृत्व में आश्रम का संचालन हो रहा है
रामगढ़वा उच्च विद्यालय:
तारकेश्वर नाथ तिवारी़ द्वारा बनवाया गया हाई स्कूल पूर्वी चम्पारण के रामगढ़वा में है। इस स्कूल ने ग्रामीण इलाके में शिक्षा का सूत्रपात किया। कई आएएस, आईपीएस, डॉक्टर, अभियंता बने यहां के छात्र आज भी यहां आते हैं और तारकेश्वर नाथ तिवारी को याद करते हैं।
शहर से 48 किमी पूरब में यह स्थित चकिया-मेहसी शिल्प-बटन उघोग के लिए पूरे भारत में ही नहीं वरन् विश्व स्तर पर प्रसिद्ध हो चुका है। इस उघोग की शुरुआत करने का श्रेय यहां के स्थानीय निवासी भुवन लाल को जाता है। समय के साथ बटन निर्माण की प्रक्रिया ने एक उघोग का रूप अपना लिया और उस समय लगभग 160 बटन फैक्ट्री मेहसी प्रखंड के 13 पंचायतों चल रहा था। लेकिन वर्तमान में यह उधोग सरकार से सहयोग नहीं मिल पाने के कारण बेहतर स्िथति में नहीं है
पूर्वी चम्पारण जिले में राष्ट्रीय राजमार्ग 28 तथा 28A तथा 98 लंबा राजकीय राजमार्ग संख्या 54 जिले की महत्वपूर्ण सड़क है। जिला मुख्यालय मोतिहारी से राजधानी पटना की दूरी लगभग 150 किलोमीटर है, जहां बस से पहुंचने में 3-4 घंटे लग जाते हैं। मोतिहारी बिहार के अन्य शहरों से सड़क के माध्यम से जुड़ा हुआ है। उत्तर बिहार का दूसरा प्रमुख शहर तथा तिरहुत प्रमंडल का मुख्यालय मुजफ्फरपुर मोतिहारी से ८० किलोमीटर दूर है। यहां से भी बिहार के विभिन्न क्षेत्रों में जाने के लिए बस लिया जा सकता है।
मोतिहारी भारतीय रेल के पूर्वमध्य रेलवे क्षेत्र में पड़ता है। पूर्वी चंपारण से गुजरनेवाली मुख्य रेलमार्ग गोरखपुर-मुजफ्फरपुर रेलखंड का हिस्सा है। सीतामढी से नरकटियागंज को जोडनेवाली एक अन्य रेलमार्ग है , पर्यटन के लिए महत्वपूर्ण बुद्ध रेल परिपथ को बढावा देने हेतु हाजीपुर, वैशाली होते हुए एक अन्य नई रेल लाईन का काम प्रस्तावित है, जिसका काम चल रहा हैं जो आने वाले कुछ सालों में पूर्ण रूप से सेवा में आ जाएगाा। यहाँ से राजधानी पटना के लिए कोई सीधी ट्रेन सेवा नहीं है लेकिन देश के अन्य भागों के लिए यहाँ से नियमित ट्रेनें हैं।
जिला मुख्यालय मोतिहारी का निकटतम हवाई अडडा १४९ किलोमीटर दूर पटना में है। मोतिहारी से ७० किमी तथा सीमा से सटे रक्सौल से मात्र २० किलोमीटर की दूरी पर सेमरबासा में नेपाल का विमानपत्तन है जहाँ से काठमांडू आसानी से पहुँचा जा सकता है।
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