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बौद्ध तीर्थ और प्राचीन पुरातात्विक मंडला स्तूप स्थल, मूल रूप में सम्राट अशोक द्वारा बनाया गया, पू विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
केसरिया चंपारण से ३५ किलोमीटर दूर दक्षिण साहेबगंज-चकिया मार्ग पर लाल छपरा चौक के पास अवस्थित है। यह पुरातात्विक महत्व का प्राचीन ऐतिहासिक स्थल है। यहाँ एक वृहद् बौद्धकालीन स्तूप है जिसे केसरिया स्तूप के नाम से जाना जाता है।
इस लेख में सन्दर्भ या स्रोत नहीं दिया गया है। कृपया विश्वसनीय सन्दर्भ या स्रोत जोड़कर इस लेख में सुधार करें। स्रोतहीन सामग्री ज्ञानकोश के लिए उपयुक्त नहीं है। इसे हटाया जा सकता है। (सितंबर 2014) स्रोत खोजें: "केसरिया" – समाचार · अखबार पुरालेख · किताबें · विद्वान · जेस्टोर (JSTOR) |
केसरिया एक महत्वपूर्ण बौद्ध स्थल है। यह चंपारण में स्थित एक छोटा सा शहर है जो गंडक नदी के किनारे बसा हुआ है। इसका इतिहास काफी पुराना व समृद्ध है। बौद्ध तीर्थस्थलों में इसका महत्वपूर्ण स्थान है। बुद्ध ने वैशाली से कुशीनगर जाते हुए एक रात केसरिया में बिताई थी तथा लिच्छवियों को अपना भिक्षा-पात्र प्रदान किया था। कहा जाता है कि जब भगवान बुद्ध यहां से जाने लगे तो लिच्छवियों ने उन्हें रोकने का काफी प्रयास किया। लेकिन जब लिच्छवि नहीं माने तो भगवान बुद्ध ने उन्हें रोकने के लिए नदी में कृत्रिम बाढ़ उत्पन्न की। इसके पश्चात् ही भगवान बुद्ध यहां से जा पाने में सफल हो सके थे। सम्राट अशोक ने यहां एक स्तूप का निर्माण करवाया था। इसे विश्व का सबसे बड़ा स्तूप माना जाता है।
भगवान बुद्ध जब महापरिनिर्वाण ग्रहण करने कुशीनगर जा रहे थे तो वह एक दिन के लिए केसरिया में ठहरें थे। जिस स्थान पर पर वह ठहरें थे उसी जगह पर कुछ समय बाद सम्राट अशोक ने स्मरण के रूप में स्तूप का निर्माण करवाया था। इसे विश्व का सबसे बड़ा स्तूप माना जाता है। वर्तमान में यह स्तूप 1400 फीट के क्षेत्र में फैला हुआ है और इसकी ऊंचाई 104 फीट है। अलेक्जेंडर कनिंघम के अनुसार मूल स्तूप 70 फीट ऊंचा था।
यह स्तूप आठ मंजिलो मे विभक्त है,जो अपने आप मे अपनी भव्यता को प्रदर्शित करती हैं।पहली मंजिल से लेकर सातवीं मंजिल तक एक क्रम में ब्रैकेटनुमा छोटा छोटा कमरा बना हुआ हैं,जिसमें महात्मा बुद्ध की कुछ मुर्तियो के अवशेष आज भी सुरक्षित हैं। जिन्हें देखकर यह सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि यह कितना भव्य रहा होगा।इस इक्यावन फुट ऊँचे स्तूप में तकरीबन २०० के करीब में मूर्तियाँ रही होगी, जो आज लगभग अप्राप्य हैं।इसकी केवल अनुमान ही लगायी जा सकती है।
यह केसरिया से दो मील दक्षिण में स्थित है। देवरा ही केसरिया के समृद्ध इतिहास का सबसे चमकता सितारा था। वर्तमान में यहां पर ईटों का एक विशाल टीला है। इस जगह का भगवान बुद्ध के जीवन में महत्वपूर्ण स्थान था।
यह लिंगम भगवान केसरनाथ मंदिर में स्थापित है। इस लिंगम को केसरिया की सबसे अमूल्य निधि माना जाता है। यह लिंगम 1969 ई॰ में एक नहर की खुदाई के दौरान मिला था। स्थानीय लोगों का मानना है कि यह लिंगम ठीक उसी प्रकार का है जिस प्रकार का जिक्र अग्नि पुराण में मिलता है। इसी कारण स्थानीय लोगों का मानना है कि यह लिंगम बहुत प्राचीन है। श्रावण मास के प्रत्येक सोमवार और शुक्रवार को यहां भक्तों की काफी भीड़ होती है।
केसरिया प्राचीन काल में सांस्कृतिक दृष्िट से एक महत्वपूर्ण स्थान था। केसरिया की यह सांस्कृतिक समृद्धता धक्कान्हा मठ के माध्यम से प्रतिबिंबित होती है। इस मठ का इतिहास दो सौ वर्ष पुराना है। यह मठ जिला मुख्यालय से 7 किलोमीटर दक्षिण में धक्कान्हा गांव में स्थित है।
यह एक समृद्ध पुस्तकालय है। इस पुस्तकालय में बहुत सी अमूल्य पुस्तके हैं। यहां गांधी जी से संबंधित अनेकों पुस्तके हैं। जैसा कि हम सभी लोग जानते है कि गांधी जी 1917 ई॰ में नील की खेती के विरोध में सत्याग्रह करने के लिए चंपारण आए थे। उस समय वे केसरिया भी आए थे। उस सत्याग्रह का केसरिया पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा था।
यहां का सबसे नजदीकी हवाई अड्डा वैशाली में है। किन्तु आजकल वैशाली के लिये कोई उडान उपलब्ध नहीं है। वायुयान से पटना तक आकर वहाँ से केसरिया जाया जा सकता है।
केसरिया के सबसे निकट का रेलवे स्टेशन चकिया और मोतिहारी में है।
यह बिहार के सभी शहरो से सड़क मार्ग से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है।
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