एक भारतीय लेखक, पत्रकार, वक्ता, फिल्म निर्माता, आलोचक और कार्यकर्ता थे। विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
दण्डपाणि जयकान्तन (जन्म: २४ अप्रैल १९३४, कड्डलूर, तमिलनाडु) एक बहुमुखी तमिल लेखक हैं -- केवल लघु-कथाकार और उपन्यासकार ही नहीं (जिनके कारण उन्हें आज के सर्वश्रेष्ठ लेखकों में माना जाता है) परन्तु निबन्धकार, पत्रकार, निर्देशक और आलोचक भी हैं। विचित्र बात यह है कि उनकी स्कूल की पढ़ाई कुछ पाँच साल ही रही!
दण्डपाणि जयकान्तन | |
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![]() वर्ष 2012 में जयकान्तन | |
जन्म | 24 अप्रैल 1934 कुड्डलोर, कुड्डलोर, दक्षिण आरकोट जिला, मद्रास प्रैज़िडन्सी, ब्रितानी भारत |
मौत | 8 अप्रैल 2015 80 वर्ष) चेन्नई, भारत | (उम्र
पेशा | उपन्यासकार, लघुकथा लेखक, पटकथा लेखक, फ़िल्म निर्देशक |
भाषा | तमिल |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
विधा | उपन्यास |
विषय | शिल नेरंगळिल शिल मणितर्कळ |
खिताब | पद्म भूषण, ज्ञानपीठ पुरस्कार, साहित्य अकादमी पुरस्कार, ऑर्डर ऑफ़ फेलोशिप |
घर से भाग कर १२ साल के जयकान्तन अपने चाचा के यहाँ पहुँचे जिनसे उन्होंने कम्युनिज़्म (मार्कसीय समाजवाद) के बारे में सीखा। बाद में चेन्नई (जिसका नाम उस समय मद्रास था) आकर जयकान्तन भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) की पत्रिका जनशक्ति में काम करने लगे। दिन में प्रेस में काम करते और शाम को सड़कों पर पत्रिका बेचते।
१९५० के दशक की शुरुआत से ही वह लिखते आ रहे हैं और जल्दी ही तमिल के जाने-माने लेखकों में गिने जाने लगे। हालाँकि उनका नज़रिया वाम पक्षीय ही रहा। वह खुद पार्टी के सदस्य न रहे और काँग्रेस पार्टी में भर्ती हो गए।
४० उपन्यासों के अलावा उन्होंने कई-कई लघुकथाएँ, आत्मकथा (दो खंडों में) और रोमेन रोलांड द्वारा फ़्रेन्च में रची गयी गांधी जी की जीवनी का तमिल अनुवाद भी किया है।
इनके द्वारा रचित एक उपन्यास शिल नेरंगळिल शिल मणितर्कळ के लिये उन्हें सन् १९७२ में साहित्य अकादमी पुरस्कार (तमिल) से सम्मानित किया गया।[1]
जटिल मानव स्वभाव के गहरे और संवेदनशील समझ के हेतु, उनकी कृतियों को तमिल साहित्य की उच्च परम्पराओं की अभिवृद्दि के लिए २००२ में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उन्हें वर्ष २००९ में भारत सरकार द्वारा साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। ये तमिलनाडु राज्य से हैं।[2][3]
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