ग़ोर प्रान्त
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ग़ोर (पश्तो: غور, अंग्रेजी: Ghor) अफ़्ग़ानिस्तान का एक प्रांत है जो उस देश के मध्य भाग में स्थित है। इस प्रान्त का क्षेत्रफल ३६,४७९ वर्ग कि॰मी॰ है और इसकी आबादी सन् २००६ में लगभग ६.३ लाख अनुमानित की गई थी।[1] इस प्रान्त की राजधानी चग़चरान (چغچران) शहर है।
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ग़ोर क्षेत्र में बौद्ध धर्म और हिन्दु धर्म प्रचलित था। हरी रूद (हरी नदी) के किनारे पहाड़ी चट्टान में तराशकर बनाया गया एक बौद्ध मठ मिला है। सन् १०१० में महमूद ग़ज़नी ने ग़ोर पर आक्रमण किया और उस पर क़ब्ज़ा कर लिया। उसके बाद उसने यहाँ के निवासियों में इस्लामीकरण की नीति अपनाई। १३वीं शताब्दी तक ग़ज़नी की अधिकाँश जनता मुस्लिम बन चुकी थी, हालाँकि एक अल्पसंख्यक हिन्दु समुदाय यहाँ जारी रहा। १२वीं और १३वीं शताब्दी में ग़ोर पर केन्द्रित ग़ोरी राजवंश ने एक बड़ा साम्राज्य चलाया जो दिल्ली से लेकर पूर्वी ईरान तक विस्तृत था। विश्व-प्रसिद्ध जाम मीनार इसी राजवंश ने ग़ोर प्रान्त में बनवाई। बाद में दिल्ली का क़ुतब मीनार उसी मीनार से प्रेरित होकर बनाया गया था।[2]
'ग़ोर' शब्द का अर्थ 'पहाड़' होता है। क्योंकि पश्तो और संस्कृत दोनों हिन्दी-ईरानी भाषा-परिवार की बहने हैं, इसलिए इस से मिलता-जुलता संस्कृत का सजातीय शब्द 'गिरि' है। अवस्ताई भाषा (जो एक प्राचीन ईरानी भाषा थी) में भी इस से मिलता 'गैरी' शब्द था। सुग़्दाई भाषा में भी 'गोर' या 'गुर' शब्द था जो बैक्रियाई भाषा में 'ग्वाराओ' बना। ध्यान रहे कि मुहम्मद ग़ोरी का नाम ग़ोर क्षेत्र पर पड़ा है, न कि इस क्षेत्र का उस व्यक्ति के पीछे।
इब्ने होकल नामक भूगोलवेत्ता के अनुसार १०वीं सदी ई॰ में यह स्थान बड़ा ही आबाद एवं चाँदी तथा सोने की खानों के लिये प्रसिद्ध था। ११४८ तथा १२१५ ई॰ के मध्य, साम के वंशज गोरी सुल्तानों के कारण इस स्थान को बड़ी प्रसिद्धि प्राप्त हुई। ११४९ ई॰ में बहाउद्दीन साम ने गोर पर अधिकार जमा लिया और ज़कोह ने किले को पूरा करवा कर उसे सेना के रहने के योग्य बनाया। शीघ्र ही उसकी मृत्यु हो गई और उसके स्थान पर उसका भाई अलाउद्दीन सिंहासनारूढ़ हुआ। उसने गज़नी पर आक्रमण कर उसे नष्ट-भ्रष्ट कर दिया और गजनवी सुल्तानों की कब्रों से उनकी हड्डियाँ खोद-खोदकर जलवा डालीं। इसी कारण उसका नाम 'अलाउद्दीन जहाँसोज़' (संसार को जलाने वाला) पड़ गया। किंतु कुछ समय उपरांत सुल्तान सजर सलजूक ने उस पर आक्रमण कर उसे परजित कर दिया। अलाउद्दीन बंदी बना लिया गया किंतु संजर ने कुछ समय उपरांत उसे मुक्त कर गोर का राज्य उसे वापस कर दिया। उसने अपनी शक्ति उत्तर की ओर गरजिस्तान में बढ़ा ली और तूलक नामक किले को अपने अधिकार में कर लिया। ११५६ ई॰ में उसकी मृत्यु हो गई और उसके स्थान पर उसका पुत्र सैफुद्दीन मुहम्मद फीरोजकोह सिंहासनारूढ़ हुआ। उसने साम के दोनों पुत्रों गयासुद्दीन तथा मुईजुद्दीन को मुक्त कर दिया और मलाहिदा अथवा इस्माइलियों की शक्ति को भी नष्ट करने का प्रयत्न किया किंतु ११६२ ई॰ में वह गुज़ तुर्कों से युद्ध करता हुआ मर्व के समीप मारा गया। सेना गयासुद्दीन बिन साम के साथ फीरोजकोह लौट आई और उसे वहाँ सिंहासनारूढ़ कर दिया। उसका भाई मुईनुद्दीन उसका मुख्य सहायक बन गया।
११७३ ई॰ में मुईजुद्दीन ने गजनवियों के पूरे राज्य को अपने अधिकार में कर लिया। गयासुद्दीन ने हिरात पर भी आक्रमण किए जो उस समय सुल्तान संजर के तुर्क दास तुगरिल के अधीन था और ११७५ ई॰ में उसपर अधिकार जमा लिया। किंतु तुगरिल निरंतर अपने राज्य के लिये संघर्ष करता रहा। मुईजुद्दीन ने गजनी में अपनी सत्ता बढ़ाकर हिंदुस्तान पर आक्रमण करने प्रारंभ कर दिए। उस समय लाहौर में गजनवियों का अंतिम बादशाह खुसरो मलिक राज्य करता था और मुल्तान करामतियों के अधिकार में था। मुईजुद्दीन ने ११७४ ई॰ में मुल्तान और उसके उपरांत उच्च पर अधिकार कर लिया। उच्च उस समय भट्टी वंश के राजा के अधीन था। ११७८ ई॰ में अन्हिलवाड़ा (गुजरात) के राजा भीमदेव पर आक्रमण कर दिया किंतु-सुल्तान को वापस होना पड़ा। ११७९ ई॰ में उसने पेशावर पर अधिकार किया। ११८२ ई॰ में उसने सिंध के समुद्री तट पर स्थित देवल को जीता। ११८६ अथवा ११८७ ई॰ में उसने खुसरो मलिक को पराजित कर लाहौर पर कब्जा कर लिया। ११९१ ई॰ में भटिंडा के दृढ़ किले पर अधिकार कर उसने पृथ्वीराज चौहान पर चढ़ाई की। तलवड़ी (तरायन) के युद्ध में पृथ्वीराज ने मुईजुद्दीन को बुरी तरह पराजित कर दिया और सुल्तान स्वयं बड़ी कठिनाई से रणक्षेत्र से भाग सका। पृथ्वीराज भटिंडा तक बढ़ता चला गया किंतु ११९२ ई॰ में सुल्तान ने पुन: पृथ्वीराज पर आक्रमण किया और तलवड़ी (तरायन) के युद्ध में उसे पराजित कर दिया। सुल्तान गजनी वापस चला गया। ११९३ ई॰ में उसने कन्नौज पर आक्रमण किया। इटावा के समीप चंदवार में घोर युद्ध हुआ। जयचंद मारा गया। दूसरे वर्ष उसने थनकिर (ब्याना) तथा ग्वालियर पर भी अधिकार कर लिया। १२०४ ई॰ में उसने ख्वारिज्म पर पुन: आक्रमण किया किंतु उसे पराजित होकर गजनी वापस आना पड़ा। इसी बीच में पंजाब के कबीलों, विशेषकर खोखरों ने लाहौर के समीप विद्रोह कर दिया। सुल्तान उन्हें दंड देने के लिये पुन: हिंदुस्तान पहुँचा किंतु वापस होते समय सिंध नदी पर स्थित दमियक नामक स्थान पर मुलहिदों ने १२०६ में उसकी हत्या कर दी। उसकी मृत्यु के उपरांत गोर वंश की भी शक्ति छिन्न-भिन्न हो गई और १२१५ ई॰ में ख्वरिज्मशाहियों ने उनका पूर्णत: अंत कर दिया।
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