मोहम्मद ग़ोरी

ग़ोरी साम्राज्य का शासक (1114- 1206 ईस्वी) विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश

मोहम्मद ग़ोरी

शहाब-उद-दीन मोहम्मद ग़ोरी (फ़ारसी: [معز الدین محمد بن سام] Error: {{Lang}}: text has italic markup (help)), (1144 – 15 मार्च 1206) १२वीं शताब्दी के अफ़ग़ान सेनापति थे जो १२०२ ई. में ग़ोरी साम्राज्य के शासक बने। उन्हें मुइज़ुद्दीन मुहम्मद ग़ौरी और मोहम्मद ग़ोरी के नाम से भी जाना जाता है। सेनापति की क्षमता में उन्होंने अपने भाई ग़ियास-उद-दीन ग़ोरी (जो उस समय सुल्तान थे) के लिए भारतीय उपमहाद्वीप पर ग़ोरी साम्राज्य का बहुत विस्तार किया और उनका पहला आक्रमण मुल्तान (११७५ ई.) पर था। पाटन (गुजरात) के शासक भीम द्वितीय पर मोहम्मद ग़ौरी ने ११७८ ई. में आक्रमण किया किन्तु मोहम्मद ग़ौरी बुरी तरह पराजित हुए।

सामान्य तथ्य मुइज़ुद्दीन मुहम्मद ग़ौरी, ग़ौरी साम्राज्य का सुल्तान ...
मुइज़ुद्दीन मुहम्मद ग़ौरी
मुहम्मद ग़ौरी
ग़ौरी साम्राज्य का सुल्तान
शासनावधि1173–1202 (अपने भाई ग़ियासुद्दीन मुहम्मद के साथ);
1202–1206 (बतौर एकल शासक)
पूर्ववर्तीग़ियासुद्दीन मुहम्मद
उत्तरवर्तीग़ौर: ग़ियासुद्दीन महमूद (बतौर ग़ौर का अमीर)
ग़ज़नी: ताजुद्दीन यल्दोज़ (बतौर ग़ज़नी का अमीर)
दिल्ली: क़ुतुबुद्दीन ऐबक (बतौर दिल्ली का सुल्तान)
बंगाल: बख़्तयार ख़िलजी (बतौर बंगाल का सुल्तान)
मुल्तान: नासिरुद्दीन क़ुबाचा (बतौर मुल्तान का सुल्तान)
जन्मशिहाबुद्दीन
1149
ग़ौर
निधन15 मार्च 1206
झेलम ज़िला
समाधि
शासनावधि नाम
सुल्तान मुहम्मद ग़ौरी
घरानाग़ौरी
पिताबहालुद्दीन साम प्रथम
बंद करें

मुहम्मद ग़ौरी और पृथ्वीराज चौहान के बीच तराईन के मैदान में दो युद्ध हुए। ११९१ ई. में हुए तराईन के प्रथम युद्ध में पृथ्वीराज चौहान की विजय हुई किन्तु अगले ही वर्ष ११९२ ई. में पृथ्वीराज चौहान को तराईन के द्वितीय युद्ध में मुहम्मद ग़ौरी ने छल से पराजित किया व अपने साथ ग़ज़नी ले गये । पर वर्ष १२०६ ई. में।

इतिहास में वर्णित है कि पृथ्वीराज के शब्द भेदी बाण से मोहम्मद गौरी की मृत्यु हुई थी।

जीवनी

सारांश
परिप्रेक्ष्य

ग़ोरी राजवंश की नीव अला-उद-दीन जहानसोज़ ने रखी और सन् ११६१ में उनके देहांत के बाद उनके पुत्र सैफ़-उद-दीन ग़ोरी सिंहासन पर बैठे। अपने मरने से पहले अला-उद-दीन जहानसोज़ ने अपने दो भतीजों - मुहम्मद ग़ोरी और ग़ियास-उद-दीन - को क़ैद कर रखा था लेकिन सैफ़-उद-दीन ने उन्हें रिहा कर दिया।[1] उस समय ग़ोरी वंश ग़ज़नवियों और सलजूक़ों की अधीनता से निकलने के प्रयास में था। उन्होंने ग़ज़नवियों को तो ११४८-११४९ में ही ख़त्म कर दिया था लेकिन सलजूक़ों का तब भी ज़ोर था और उन्होंने कुछ काल के लिए ग़ोर प्रान्त पर सीधा क़ब्ज़ा कर लिए था, हालांकि उसके बाद उसे ग़ोरियों को वापस कर दिया था।

सलजूक़ों ने जब इस क्षेत्र पर नियंत्रण किया था जो उन्होंने सैफ़-उद-दीन की पत्नी के ज़ेवर भी ले लिए थे। गद्दी ग्रहण करने के बाद एक दिन सैफ़-उद-दीन ने किसी स्थानीय सरदार को यह ज़ेवर पहने देख लिया और तैश में आकर उसे मार डाला। जब मृतक के भाई को कुछ महीनो बाद मौक़ा मिला तो उसने सैफ़-उद-दीन को बदले में भाला मरकर मार डाला। इस तरह सैफ़-उद-दीन का शासनकाल केवल एक वर्ष के आसपास ही रहा।[1] ग़ियास-उद-दीन नये शासक बने और उनके छोटे भाई मुहम्मद ग़ोरी ने उनका राज्य विस्तार करने में उनकी बहुत वफ़ादारी से मदद की। मुहम्मद ग़ोरी ने पहले ग़ज़ना पर क़ब्ज़ा किया, फिर ११७५ में मुल्तान और ऊच पर और फिर ११८६ में लाहौर पर। जब उनके भाई की १२०२ में मृत्यु हुई तो मुहम्मद ग़ोरी सुलतान बन गये।

इस भ्रम के लिए कि मुहम्मद गौरी का पृथ्वीराज चौहान से 16 बार युद्ध हुआ था। कृप्या महमूद ग़ज़नवी का लेख देखें।

हत्या

1205 ई० में मुहम्मद गौरी दुबारा भारत के अंदर आये। इस बार खोक्खर (जाट )नामक एक समुदाय के साथ संघर्ष हुआ। 15 मार्च, 1206 ई० को कुछ शिया विद्रोहियों और हिन्दू खोक्खरों ने सिंधु नदी के किनारे दमयक नामक स्थान में उनकी हत्या की। गौरी के शव को गजनी ले जाकर उनकी राजधानी में दफ़ना दिया गया।

मुहम्मद ग़ोरी का कोई बेटा नहीं था और उनकी मौत के बाद उनके साम्राज्य के भारतीय क्षेत्र पर उनके प्रिय ग़ुलाम क़ुतुब-उद-दीन ऐबक ने दिल्ली सल्तनत स्थापित करके उसका विस्तार करना शुरू कर दिया। उनके अफ़ग़ानिस्तान व अन्य इलाक़ों पर ग़ोरियों का नियंत्रण न बच सका और ख़्वारेज़्मी साम्राज्य ने उन पर क़ब्ज़ा कर लिया। ग़ज़ना और ग़ोर कम महत्वपूर्ण हो गए और दिल्ली अब क्षेत्रीय इस्लामी साम्राज्य का केंद्र बन गया। इतिहासकार सन् १२१५ के बाद ग़ोरी साम्राज्य को पूरी तरह विस्थापित मानते हैं।

मुहम्मद गौरी के सिक्के

सारांश
परिप्रेक्ष्य

मुहम्मद गौरी के कुछ सिक्के भी प्राप्त हुए हैं, जिसके एक तरफ शिव के बैल की आकृति व देवनागरी लिपि में 'पृथ्वीराज' लिखा है(वास्तव में यह हिंदू शासको के सिक्के थे), जबकि दूसरी तरफ घोड़े की आकृति है और 'मोहम्मद बिन साम' लिखा है। उनके कुछ सिक्कों पर लक्ष्मी की आकृति भी खुदी है। उन्होंने अपने सिक्कों पर संस्कृत भाषा में लेख भी लिखवाये। कन्नौज जीतने पर उन्होंने गहढ़वालों के सोने के सिक्कों के ढंग पर भारतीय चिन्ह लक्ष्मी तथा नागरी लिपि में अपने सिक्कों को अंकित करवाया।

इस प्रकार, महमूद गजनवी जहां विजय और धन संग्रह करने में लीन रहे, वहीं मुहम्मद गौरी ऐसा साम्राज्य स्थापित करने में सफल हुए, जो शताब्दियों तक स्थायी रहा। मुहम्मद गौरी, महमूद गजनवी की भांति कट्टर नहीं थे। साथ ही महमूद गजनवी से अधिक राजनीति-कुशल भी थे। उन्होंने भारत की राजनीतिक दशा से लाभ उठाकर मुस्लिम साम्राज्य स्थापित करने का निर्णय किया।

बख़्तियार ख़िलजी ने मोहम्मद गोरी के कहने पर नालन्दा विश्वविद्यालय मे आग लगा दी थी जो कि ६ माह तक आग लगती रही ।

ख़िलजी के ठीक होने की जो वजह बताई जाती है वो ये है कि वैद्यराज राहुल श्रीभद्र ने क़ुरआन के कुछ पन्नों के कोने पर एक दवा का अदृश्य लेप लगा दिया था। उन्होंने १०-२० पेज चाटे और वह ठीक हो गये। उन्होंने इस एहसान का बदला नालंदा विश्वविद्यालय को जलाकर दिया।

तुर्की आक्रमण: यह सर्वमान्य है कि मुहम्मद बिन बख़्तियार ख़िलजी नालंदा विश्वविद्यालय के विनाश के लिए ज़िम्मेदार थे। लेकिन दो कारण फुसफुसाए गए हैं। एक कारण यह था कि बख़्तियार ख़िलजी नालंदा विश्वविद्यालय के पुस्तकालय में क़ुरआन खोज रहे थे और उन्हें वह नहीं मिला।

Thumb
सोहावा झेलम, पाकिस्तान में मुहम्मद ग़ौरी का मक़बरा

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

Loading related searches...

Wikiwand - on

Seamless Wikipedia browsing. On steroids.