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जयचन्द

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जयचंद्र (21 जून 1170 – 1194 ई) उत्तर भारत के गाहड़वाल वंश के राजा थे। उन्होंने गंगा नदी के पास में बसे कान्यकुब्ज और वाराणसी सहित अंटारवेदी देश पर शासन किया। आज के उत्तर प्रदेश और बिहार के कुछ भागों पर राज किया था गाहड़वाल वंश के अंतिम शक्तिशाली राजा थे।

सामान्य तथ्य जयचंद्र गाहड़वाल, शासनावधि ...
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विद्यापति के पुरुष-परीक्षा और पृथ्वीराज रासो जैसे हिन्दू स्रोतों के अनुसार ,जयचंद्र ने ग़ोरी को कई बार हराया। जयचंद्र कोई गद्दार नहीं थें, वह अपनी अंतिम साॅंस तक मोहम्मद ग़ोरी के कुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा नेतृत्व सेना के खिलाफ लड़ते रहे लेकिन आखिरकार वह 1194 ई मे चंदावर की लड़ाई मे पराजित हो गए, लेकिन उनके हार के बाद भी उनके बेटे हरिश्चंद्र ने मोहम्मद ग़ोरी को हराया और वाराणसी में मुसलमानों ने जितने भी घाट और मंदिर तोड़े थे वह सब वापस बनवाया।

ऐसे कोई प्रमाण नहीं हैं जिससे पता लगे कि जयचन्द ने ग़ोरी की सहायता की थी। ग़ोरी को बुलाने वाले देश द्रोही तो दूसरे ही थे, जिनके नाम पृथ्वीराज रासो में अंकित हैं। इसी प्रकार समकालीन फारसी ग्रन्थों में भी इस बात का संकेत तक नहीं है कि जयचन्द ने गो़री को आमन्त्रित किया था। यह एक सुनी-सुनाई बात है जो एक रूढी़ बन गई है। पृथ्वीराज तथा संयोगिता विवाह को इतिहासकार सत्य नही मानते।[1]

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प्रारंभिक जीवन

जयचंद्र गाहड़वाल राजपूत राजा विजयचंद्र के पुत्र थे। एक कमौली शिलालेख के अनुसार, उन्हें 21 जून 1170 ईस्वी को राजमुकुट पहनाया गया था।[2] जयचंद्र को अपने दादा गोविंदचंद्र के शाही खिताब विरासत में मिले:[2] अश्वपति नरपति गजपति राजत्रयाधिपति[3]) तथा विदेह-विद्या-विचारा-वाचस्पति[4]).

सैन्य वृत्ति

सारांश
परिप्रेक्ष्य

जयचंद्र के शिलालेख पारंपरिक भव्यता का उपयोग करते हुए उनकी प्रशंसा करते हैं, लेकिन राजा की किसी भी ठोस उपलब्धि का उल्लेख नहीं करते हैं। उनके पड़ोसी राजपूत राजाओं के रिकॉर्ड में उनके साथ किसी भी संघर्ष का उल्लेख नहीं है।[5] माना जाता है कि सेन राजा लक्ष्मण सेन ने गाहड़वाल क्षेत्र पर आक्रमण किया था, लेकिन यह आक्रमण जयचंद्र की मृत्यु के बाद हुआ होगा।[6]

गोरी का आक्रमण

1193 ईस्वी में मुस्लिम मोहम्मद ग़ोरी ने जयचंद्र के राज्य पर आक्रमण किया। समकालीन मुस्लिम सूत्रों के अनुसार, जयचंद्र "जयचंद्र भारत के सबसे महान राजा और उनके पास भारत में सबसे बडे क्षेत्र पर राज किया था"।[6] इन स्रोतो ने उन्हें बनारस का राय बताया [7] अली इब्न अल-अथिर के अनुसार, उसकी सेना में दस लाख सैनिक थे और 700 हाथी थे।[8] जब जयचंद्र की सेना चलती थी, तो ऐसा प्रतीत होता था है कि एक पूरा शहर चल रहा है ना कि कोई सेना

विद्यापति के पुरुष-परीक्षा और पृथ्वीराज रासो जैसे हिन्दू स्रोतों के अनुसार ,जयचंद्र ने ग़ोरी को कई बार हराया।

घुरिद शासक मुहम्मद ने 1192 ई, में चौहान वंश के राजा पृथ्वीराज चौहान को हराया था। हसन निज़ामी के १३ वीं शताब्दी के पाठ-ताज-उल-मासिर ’’ के अनुसार, उन्होंने अजमेर, दिल्ली पर नियंत्रण करने के बाद गाहड़वाल वंश के राज्य पर हमला करने का फैसला किया। उन्होंने कुतुब उद-दीन ऐबक द्वारा संचालित 50,000-मजबूत सेना को भेजा। निज़ामी ने कहा कि इस सेना ने "धर्म के दुश्मनों की सेना" (इस्लाम) को हराया। ऐसा प्रतीत होता है कि पराजित सेना जयचंद्र की मुख्य सेना नहीं थी, बल्कि उनके सीमावर्ती पहरेदारों की एक छोटी संस्था थी।[9]

तब जयचंद्र ने 1194 ईस्वी में कुतुब उद-दीन ऐबक के खिलाफ एक बड़ी सेना का नेतृत्व किया। 16 वीं शताब्दी के इतिहासकार फरिश्ता के अनुसार, जयचंद्र एक हाथी पर बैठे हुए थे, जब कुतुब उद-दीन ने उसे एक तीर से मार दिया था। ग़ोरी की सेनाओं ने 300 हाथियों को जिंदा पकड़ लिया, और असनी किले में गाहड़वाल खजाने को लूट लिया।[10] [11]) इसके बाद, ग़ोरी की सेनाओं ने वाराणसी के लिए आगे बढ़े, जहाॅं हसन निजामी के अनुसार, "लगभग 1000 मंदिरों को नष्ट कर दिया गया था और मस्जिदों को उनकी नींव पर खड़ा किया गया था"। ग़ोरी के प्रति अपनी निष्ठा की पेशकश करने के लिए कई स्थानीय सामंती प्रमुख सामने आए।[10]

जय चंद्र की मौत के बाद उनके पुत्र हरिश्चंद्र गाहड़वाल ने ग़ोरी की सेना को हराया, और वाराणसी को वापस अपने राज्य में ले लिया, और जितने भी मंदिर और घाट जो मुसलमानों ने तोड़े थे उन सब को वापस बनाया और जितने भी मस्जिद थे सब को नष्ट कर दिया। पर वो इतिहास में गधार माने जाते हैं

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सन्दर्भ

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