Remove ads
विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
गढ़वाल - कुमाऊँ की संस्कृति यहाँ के मेलों में समाहित है। रंगीले कुमाऊँ के मेलों में ही यहाँ का सांस्कृतिक स्वरुप निखरता है। धर्म, संस्कृति और कला के व्यापक सामंजस्य के कारण इस अंचल में मनाये जाने वाले उत्सवों का स्वरुप बेहद कलात्मक होता है। छोटे-बड़े सभी पर्वों, आयोजनों और मेलों पर शिल्प की किसी न किसी विद्या का दर्शन अवश्य होता है। कुमाऊँनी भाषा में मेलों को कौतिक कहा जाता है। कुछ मेले देवताओं के सम्मान में आयोजित होते हैं तो कुछ व्यापारिक दृष्टि से अपना महत्त्व रखते हुए भी धार्मिक पक्ष को पुष्ट अवश्य करते हैं। पूरे अंचल में स्थान-स्थान पर पचास से अधिक मेले आयोजित होते हैं जिनमें यहाँ का लोक जीवन, लोक नृत्य, गीत एवं परम्पराओं की भागीदारी सुनिश्चित होती है। साथ ही यह धारणा भी पुष्टि होती है कि अन्य भागों में मेलों, उत्सवों का ताना बाना भले ही टूटा हो, यह अंचल तो आम जन की भागीदारी से मनाये जा रहे मेलों से निरन्तर समद्ध हो रहा है।
मेला चारे जिस स्थान पर भी आयोजित हो रहा हो, उसका परिवेश कैसा भी हो, उसका परिवेश कैसा भी हो, अवसर ऐतिहासिक हो, सांस्कृतिक हो, धार्मिक हो या फिर अन्य कोई उल्लास से चहकते ग्रामीणों को आज भी अपनी संस्कृति, अपने लोग, अपना रंग, अपनी उमंग, अपना परिवार इन्हीं मेलों में वापस मिलते हैं। सुदूर अंचलों में तो बरसों का बिछोह लिये लोग मिलन का अवसर मेलों में ही तलाशते हैं।
उत्तरायणी मेला उत्तरांचल राज्य के बागेश्वर शहर में आयोजित होता है। तहसील व जनपद बागेश्वर के अन्तर्गत सरयू गोमती व सुष्प्त भागीरथी नदियों के पावन सगंम पर उत्तरायणी मेला बागेश्वर का भव्य आयोजन किया जाता है। मान्यता है कि इस दिन सगंम में स्नान करने से पाप कट जाते हैं बागेश्वर दो पर्वत शिखरों की उपत्यका में स्थित है इसके एक ओर नीलेश्वर तथा दूसरी ओर भीलेश्वर शिखर विद्यमान हैं बागेश्वर समुद्र तट से लगभग 960 मीटर की ऊचांई पर स्थित है।
उत्तराखंड के गढ़वाल अंचल में श्रीनगर में बैकुंठ चतुर्दशी का मेला प्रतिवर्ष लगा करता है। विभिन्न पर्वों की भांति वैकुण्ठ चतुर्दशी वर्षभर में पड़ने वाला हिन्दू समाज का महत्वपूर्ण पर्व है। सामान्यतः दीपावली तिथि से 14 वे दिन बाद आने वाले साल का यह पर्व धार्मिक महत्त्व का है। इस अवसर पर विभिन्न शिवालयों में पूजा/अर्चना साधना का विशेष महत्त्व है। गढवाल जनपद के प्रसिद्ध शिवालयों श्रीनगर में कमलेश्वर तथा थलीसैण में बिन्सर शिवालय में इस पर्व पर अधिकाधिक संख्या में श्रृद्धालु दर्शन हेतु आते हैं तथा इस पर्व को आराधना व मनोकामना पूर्ति का मुख्य पर्व मानते हैं। श्रीनगर स्थित कमलेश्वर मन्दिर पौराणिक मन्दिरों में से है। इसकी अतिशय धार्मिक महत्ता है, किवदंती है कि यह स्थान देवताओं की नगरी भी रही है। इस शिवालय में भगवान विष्णु ने तपस्या कर सुदर्शन-चक्र प्राप्त किया तो श्री राम ने रावण वध के उपरान्त ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति हेतु कामना अर्पण कर शिव जी को प्रसन्न किया व पापमुक्त हुए।
भारत मेलों एवं सांस्कृतिक आयोजनों का देश रहा है। मेले किसी भी समाज के न सिर्फ लोगों के मिलन के अवसर होते हैं वरन संस्कृति, रोजमर्रे की आवश्यकता की पूर्ति के स्थल व विचारों और रचनाओं के भी साम्य स्थल होते हैं। पर्वतीय समाज के मेलों का स्वरूप भी अपने में एक आकर्षण का केन्द्र है। उत्तराखण्ड में मेले संस्कृति और विचारों के मिलन स्थल रहे हैं। यहां के प्रसिद्ध मेलों में से एक अनूठा मेला गौचर मेला है।
माघ मेला उत्तरकाशी इस जनपद का काफी पुराना धार्मिक/सांस्कृति तथा व्यावसायिक मेले के रूप में प्रसिद्ध है। इस मेले का प्रतिवर्ष मकर संक्राति के दिन पाटा-संग्राली गांवों से कंडार देवता के साथ -साथ अन्य देवी देवताओं की डोलियों का उत्तरकाशी पहुंचने पर शुभारम्भ होता है। यह मेला 14 जनवरी मकर संक्राति से प्रारम्भ हो 21 जनवरी तक चलता है। इस मेले में जनपद के दूर दराज से धार्मिक प्रवृत्ति के लोग जहाँ गंगा स्नान के लिये आते है। वहीं सुदूर गांव के ग्रामवासी अपने-अपने क्षेत्र के ऊन एवं अन्य हस्तनिर्मित उत्पादों को बेचने के लिये भी इस मेले में आते है। इसके अतिरिक्त प्राचीन समय में यहाँ के लोग स्थानीय जडी-बूटियों को भी उपचार के लिये लाते थे किन्तु वर्तमान समय में इस पर प्रतिबन्ध लगने के कारण अब मात्र ऊन आदि के उत्पादों का ही यहाँ पर विक्रय होता है।
बसन्त पंचमी हिन्दू समाज का प्रमुख पर्व है, परिवर्तन व आशा-उमंग के इस पर्व का विभिन्न धार्मिक स्थलों पर उत्साह पूर्वक मनाया जाता है। जनपद पौडी में कोटद्वार के समीप (कोटद्वार से 14 कि.मी.) कण्वाश्रम ऐतिहासिक, सांस्कृतिक महत्त्व का स्थल है। यहाँ पर प्रति वर्ष बसन्त पंचमी पर्व पर दो दिवसीय सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है। जिसमें हजारों की संख्या में दर्शक मौजूद रहते हैं।
उत्तरांचल राज्य के चम्पावत जनपद का प्रवेश द्वार टनकपुर प्राचीन मानसरोवर यात्रा, तथा कालिदास वर्णित अलकापुरी है। इसी क्षेत्र में मॉ पूर्णगिरि पीठ सर्वोपरि महत्त्व रखता है। पौराणिक साहित्य वास्तव में श्रुति एवं स्मृति का इतिहास है। यह एक प्रसंग है जो कि ऋषि-मुनियों द्वारा कण्ठस्थ कर अग्रसारित किया जाता है।
माँ बाराही धाम, लोहाघाट लोहाघाट-हल्द्वानी मार्ग पर लोहाघाट से लगभग 45 कि0मी की दूरी पर स्थित है। यह स्थान सुमद्रतल से लगभग 6500 फिट की ऊँचाई पर स्थित है। महाभारत में पाण्डवों के अज्ञातवास से लेकर अनेक पौराणिक धार्मिक एवं ऐतिहासिक घटनाओं से जुडा हुआ है। यही प्रसिद्ध देवीधूरा मेला आयोजित हुआ करता है।
समूचे पर्वतीय क्षेत्र में हिमालय की पुत्री नंदा का बड़ा सम्मान है। उत्तराखंड में भी नंदादेवी के अनेकानेक मंदिर हैं। यहाँ की अनेक नदियाँ, पर्वत श्रंखलायें, पहाड़ और नगर नंदा के नाम पर है। नंदादेवी, नंदाकोट, नंदाभनार, नंदाघूँघट, नंदाघुँटी, नंदाकिनी और नंदप्रयाग जैसे अनेक पर्वत चोटियाँ, नदियाँ तथा स्थल नंदा को प्राप्त धार्मिक महत्त्व को दर्शाते हैं। नंदा के सम्मान में कुमाऊँ और गढ़वाल में अनेक स्थानों पर मेले लगते हैं। भारत के सर्वोच्य शिखरों में भी नंदादेवी की शिखर श्रंखला अग्रणीय है लेकिन कुमाऊँ और गढ़वाल वासियों के लिए नंदादेवी शिखर केवल पहाड़ न होकर एक जीवन्त रिश्ता है। इस पर्वत की वासी देवी नंदा को क्षेत्र के लोग बहिन-बेटी मानते आये हैं। शायद ही किसी पहाड़ से किसी देश के वासियों का इतना जीवन्त रिश्ता हो जितना नंदादेवी से इस क्षेत्र के लोगों का है।
उत्तराखण्ड के चारों धामों, बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री एवं यमुनोत्री के लिये प्रवेश द्वार के रूप में प्रसिद्ध हरिद्वार ज्योतिष गणना के आधार पर ग्रह नक्षत्रों के विशेष स्थितियों में हर बारहवें वर्ष कुम्भ के मेले का आयोजन किया जाता है। मेष राशि में सूर्य और कुम्भ राशि में बृहस्पति होने से हरिद्वार में कुम्भ का योग बनता है।
उत्तर भारत की प्रख्यात पर्यटक नगरी नैनीताल में नगर पालिका परिषद नैनीताल के द्वारा वर्ष 1952 से माह अक्टूबर में शरदोत्सव का आयोजन प्रतिवर्ष किया गया। वर्ष 1970-71 से पर्यटन विभाग द्वारा इस आयोजन को अपनी ओर से आर्थिक सहायता प्रदान की गयी। तद्दोपरान्त यह आयोजन नगर पालिका परिषद नैनीताल एवं पर्यटन विभाग के संयुक्त तत्वाधान सेआयोजित किया जाता रहा है। जिसमें विभिन्न प्रकार के सांस्कृतिक कार्यक्रमों एवं क्रीड़ा कार्यक्रमों का आयोजन होता है। इस आयोजन से उत्तराखण्ड के पर्वतीय क्षेत्रों में ऑफ सीजन के दौरान भी पर्यटकों का गमनागमन बना रहता है।
उत्तराखण्ड की लोक संस्कृति, लोक कलाओं, वेशभूषा, व्यंजनों आदि के संबंध में देशी एंव विदेशी पर्यटकों को जानकारी प्रदान करने के उद्देश्य से गढ़वाल मण्डल के अन्तर्गत गढ़वाल महोत्सव तथा इसी प्रकार कुमायूँ मण्डल में कुमायूँ महोत्सव का आयोजन किया जाता है। इन दोनों ही महोत्सवों का आयोजन अधिकांशत: महा अक्टूबर से माह फरवरी के मध्य किया जाता है।
भारत के उत्तरांचल राज्य के रुड़की शहर में पिरान कलियर उर्स का आयोजन होता है। मेले का आयोजन रूडकी के समीप ऊपरी गंग नहर के किनारे जिला मुख्यालय से 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित पिरान कलियर गांव में होता है। इस स्थान पर हजरत मखदूम अलाउदीन अहमद ‘‘साबरी‘‘ की दरगाह है। यह स्थान हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच एकता का सूत्र है। यहां पर हिन्दू व मुसलमान मन्नते मांगते है व चादरे चढाते है। मेले स्थल पर दरगाह कमेटी द्वारा देश/विदेश से आने वाले जायरिनों/श्रद्वालुओं के लिये आवास की उचित व्यवस्था है। दरगाह के बाहर खाने पीने की अच्छी व्यवस्था उपलब्ध है।
भारत मेलों एवं सांस्कृतिक आयोजनों का देश रहा है। मेले किसी भी समाज के न सिर्फ लोगों के मिलन के अवसर होते हैं वरन संस्कृति, रोजमर्रे की आवश्यकता की पूर्ति के स्थल व विचारों और रचनाओं के भी साम्य स्थल होते हैं। पर्वतीय समाज के मेलों का स्वरूप भी अपने में एक आकर्षण का केन्द्र है। उत्तराखण्ड में मेले संस्कृति और विचारों के मिलन स्थल रहे हैं। बैसाखी मेला पारम्परिक रूप से हर साल दो दिवसीय १२, १३ या १३, १४ अप्रैल को मनाया जाता है। यहाँ पर प्रति वर्ष बैसाखी मेले में दो दिवसीय सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है। जिसमें हजारों की संख्या में दर्शक मौजूद रहते हैं। यहां के प्रसिद्ध मेलों में से एक धार्मिक मेला अगस्त्यमुनि बैसाखी मेला है।
यह मेला प्रतिवर्ष मार्गशीर्ष महीने की चतुर्दशी एवं पूर्णिमा को लगता है। यह एक पूर्णता धार्मिक मेला है। यह मेला चमोली के हैडक्वाटर गोपेश्वर से 13 किलोमीटर उत्तर की ओर मण्डल नामक स्थान पर लगता है जो कि बहुत ही भव्य होता है।
Seamless Wikipedia browsing. On steroids.
Every time you click a link to Wikipedia, Wiktionary or Wikiquote in your browser's search results, it will show the modern Wikiwand interface.
Wikiwand extension is a five stars, simple, with minimum permission required to keep your browsing private, safe and transparent.