1948 अरब-इजरायल युद्ध
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1948 - अरब-इज़राइल युद्ध 1948 अरब-इज़राइल युद्ध 1947-49 फिलिस्तीन युद्ध का दूसरा और अंतिम चरण था। यह औपचारिक रूप से 14 मई 1948 की आधी रात को फिलिस्तीन के लिए ब्रिटिश जनादेश के अंत के बाद शुरू हुआ; इज़राइल की स्वतंत्रता की घोषणा उस दिन पहले से ही जारी कर दी गई थी, और 15 मई की सुबह से अरब राज्यों के एक सैन्य गठबंधन ने ब्रिटिश फिलिस्तीन के क्षेत्र में प्रवेश करना शरू कर दिया था।
1948 अरब-आन्तकवादी इजरायल युद्ध | |||||||||
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1947-1949 फिलिस्तीन युद्ध का भाग | |||||||||
Raising the Ink Flag at Umm Rashrash (Eilat).jpg Captain Avraham "Bren" Adan raising the Ink Flag at Umm Rashrash (a site now in Eilat), marking the end of the war | |||||||||
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योद्धा | |||||||||
इज़राइल
26 मई 1948 से पहले: अर्धसैनिक समूह : 26 मई 1948 के बाद: विदेशी स्वयंसेवक: |
अरब लीग:
Irregulars: | ||||||||
सेनानायक | |||||||||
डेविड बेन-गुरियन यिसरेल गैलीली योंगोव डोरी यिगेल याडिन मिकी मार्कस † यिगाल अलोन यित्जाक राबिन डेविड शाल्टिल मोशे ददन शिमोन एविडान मोशे कार्मेल यित्ज़ाक सदेह |
अज़्ज़म पाशा King Farouk I Ahmed Ali al-Mwawi Muhammad Naguib King Abdallah I John Bagot Glubb Habis Majali Muzahim al-Pachachi Husni al-Za'im Haj Amin al-Husseini Hasan Salama † Fawzi al-Qawuqji | ||||||||
शक्ति/क्षमता | |||||||||
Israel: 29,677 (initially) 117,500 (finally)[Note 1] |
Egypt: 10,000 initially, rising to 20,000[उद्धरण चाहिए]
Transjordan: 7,500–10,000[9][10] Iraq: 2,000 initially,[9] rising to 15,000–18,000[उद्धरण चाहिए] Syria: 2,500[उद्धरण चाहिए] –5,000[9] Lebanon: 436[11] Saudi Arabia: 800–1,200 (Egyptian command) Yemen: 300[उद्धरण चाहिए] Arab Liberation Army: 3,500–6,000. Total: 13,000 (initial) 51,100 (minimum) 63,500 (maximum)[Note 2] | ||||||||
मृत्यु एवं हानि | |||||||||
6,373 killed (about 4,000 fighters and 2,400 civilians)[12] | Arab armies: 3,700–7,000 killed Palestinian Arabs: 3,000–13,000 killed (both fighters and civilians)[13][14] |
1947-49 फिलिस्तीन युद्ध की पहली मौत 30 नवंबर 1947 को यहूदियों को ले जा रही दो बसों की घात लगाकर आक्रमण के दौरान हुई थी। [15] 1917 के बालफोर घोषणा और 1920 के फिलिस्तीन के ब्रिटिश जनादेश के निर्माण के बाद से अरब और यहूदियों के बीच और उन दोनों और ब्रिटिश सेना के बीच तनाव और संघर्ष होता रहता था। ब्रिटिश नीतियों के कारण अरब और यहूदियों दोनों असंतुष्ट थे। फिलिस्तीन में अरब का विरोध 1936 से 1939 में विकसित हुआ, जबकि यहूदी प्रतिरोध फिलिस्तीन में यहूदी विद्रोह 1944 से 1947 में विकसित हुआ। 1947 से चल रहे यह तनाव 29 नवंबर 1947 को गृह युद्ध में बदल गए जो को संयुक्त राष्ट्र द्वारा फिलिस्तीन के विभाजन योजना को अपनाने के बाद शरू हो गए, जिसमें फिलिस्तीन को एक अरब राज्य, एक यहूदी राज्य और विशेष अंतर्राष्ट्रीय शासन व्यवस्था में विभाजित करने की योजना बनाई गई थी, जिसमें जेरूसलम और बेथलहम शहरों को शामिल किया गया था। ।
15 मई 1948 को, यह गृह युद्ध इज़राइल और अरब राज्यों के बीच संघर्ष में तब्दील हो गया, जो की पिछले दिन इजरायल की स्वतंत्रता की घोषणा के बाद शरू हुआ। मिस्र, ट्रांसजॉर्डन, सीरिया और इराक से अभियान बल फिलिस्तीन में प्रवेश करने लगे। [16] इन हमलावर सेनाओं ने अरब क्षेत्रों पर अपना नियंत्रण कर लिया और तुरंत इजरायली सेना और कई यहूदी बस्तियों पर भी हमला कर दिया। [17][18][19] 10 महीने की ये लड़ाई ज्यादातर ब्रिटिश जनादेश क्षेत्र में, सिनाई के प्रायद्वीप और दक्षिणी लेबनान में हुए, इस अवधि में कई दर्दनाक घटनाए घटी। [20]
युद्ध के परिणामस्वरूप, इज़राइल राज्य ने उस क्षेत्र को नियंत्रित किया जिसे संयुक्त राष्ट्र महासभा प्रस्ताव 181 ने प्रस्तावित यहूदी राज्य के लिए घोषित किया था, और साथ ही 1947 के विभाजन योजना द्वारा प्रस्तावित अरब राज्य के क्षेत्र का लगभग 60 प्रतिशत। ] जिसमें जाफ़ा, लिडा, और रामले के क्षेत्र, गैलील, नेगेव के कुछ हिस्सों सहित, तेल अवीव-यरुशलम सड़क, पश्चिम यरुशलम की एक विस्तृत पट्टी, और वेस्ट बैंक के कुछ क्षेत्र शामिल थे। ट्रांसजार्डन ने पूर्व ब्रिटिश शासनादेश के शेष हिस्से पर नियंत्रण कर लिया, जिसे उसने हड़प लिया था और मिस्र की सेना ने गाजा पट्टी पर नियंत्रण कर लिया। 1 दिसंबर 1948 को जेरिको सम्मेलन में, 2,000 फिलिस्तीनी प्रतिनिधियों ने फिलिस्तीन और ट्रांसजॉर्डन के एकीकरण की आवाज उठाई जो की पूर्ण अरब एकता की दिशा में एक कदम बताया गया। [21] इस संघर्ष ने पूरे मध्य पूर्व में महत्वपूर्ण जनसांख्यिकीय परिवर्तन शुरू कर दिया। लगभग 700,000 फिलिस्तीनी अरब लोग इज़राइल बनने वाले क्षेत्र से अपने घरों से बाहर निकाल दिए गए या भाग गए, जो की फिलिस्तीनी शरणार्थी बन गए [22] जिसे वे अल-नकबा ("तबाही") के रूप में संदर्भित करते हैं। युद्ध के बाद के तीन वर्षों में, लगभग 700,000 यहूदियों ने इज़राइल में प्रवास किया, जिनमें से कई को मध्य पूर्व में अपने पिछले घर से निकाल दिया गया था। [23]