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सैन्य विज्ञान (Military Science) के अन्तर्गत युद्ध एवं सशस्त्र संघर्ष से सम्बन्धित तकनीकों, मनोविज्ञान एवं कार्य-विधि (practice) आदि का अध्ययन किया जाता है। भारत सहित दुनिया के कई प्रमुख देश जैसे अमेरिका, इजराइल, जर्मनी, पाकिस्तान, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैण्ड, रूस , इंगलैंड , चीन , फ्रांस, कनाडा , जापान , सिंगापुर , मलेशिया में सैन्य विज्ञान विषय को सुरक्षा अध्ययन (Security Studies) , रक्षा एवं सुरक्षा अध्ययन (Defence and Security Studies) , रक्षा एवं स्त्रातेजिक अध्ययन (Defence and Strategic studies) , सुरक्षा एवं युद्ध अध्ययन नाम से भी अध्ययन-अध्यापन किया जाता है। सैन्य विज्ञान ज्ञान की वह शाखा है जिसमें सैनिक विचारधारा, संगठन सामग्री और कौशल का सामाजिक संदर्भ में अध्ययन किया जाता है। आदिकाल से ही युद्ध की परम्परा चली आ रही है। मानव जाति का इतिहास युद्ध के अध्ययन के बिना अधूरा है और युद्ध का इतिहास उतना ही पुराना है जितनी मानव जाति की कहानी। युद्ध मानव सभ्यता के विकास के प्रमुख कारणों में से एक हैं। अनेक सभ्यताओं का अभ्युदय एवं विनाश हुआ, परन्तु युद्ध कभी भी समाप्त नहीं हुआ। जैसे-जैसे सभ्यता का विकास हुआ वैसे-वैसे नवीन हथियारों के निर्माण के फलस्वरूप युद्ध के स्वरूप में परिवर्तन अवश्य आया है। सैन्य विज्ञान के अन्तर्गत युद्ध एवं सशस्त्र संघर्ष से सम्बन्धित तकनीकों, मनोविज्ञान एवं कार्य-विधि आदि का अध्ययन किया जाता है।[1]
सैन्य विज्ञान के निम्नलिखित छः मुख्य शाखायें हैं:
प्राचीन भारत में राज्य एवं ज्ञान के एक आश्यवक अंग के रूप में सैन्य विज्ञान (सेना) का अध्ययन-अध्यापन किया जाता था। मौर्यकाल के बाद धीरे-धीरे राज्य की सुरक्षा की जिम्मेदारी पूरी तरह से सैनिकों पर अवलम्बित हो गई, सामान्य नागरिक युद्ध को मूक दर्शक की तरह देखता रहा और उसके लिए रक्षा विज्ञान मात्र कौतूहल का विषय बन कर रह गई। परिणामतः भारत सदियों तक आक्रमणकारियों एवं विदेशियों का गुलाम रहा।
द्वितीय विश्वयुद्ध (1939-45) के दौरान भारतीय सेना ब्रिटेन की तरफ से दुनिया के कई हिस्सों में संग्राम में भाग लिया। युद्ध की बढ़ती मांग एवं सतत् आपूर्ति के उद्देश्य से ही उस दौरान भारत में कई रक्षा कारखानें, सैन्य भर्ती में बढ़ोतरी के अलावा भारतीयों को सेना में उच्च कमीशन भी दिया गया। साथ ही नागरिकों में सेना एवं युद्ध के प्रति जागरुकता एवं अभिरुचि पैदा करने के उद्देश्य से पचास के दशक में भारत के कुछ विश्वविद्यालयों में सैन्य विज्ञान या युद्ध अध्ययन के नाम से इस विषय का अध्ययन-अध्यापन प्रारम्भ की गई। हालांकि इससे पूर्व लगभग 2500 वर्ष पहले भारत स्थित विश्व प्रसिद्ध शिक्षा के केन्द्र रहे तक्षशिला में युद्धकला, सैन्य संगठन एवं शस्त्रास्त्रों के प्रशिक्षण की विधिवत अध्ययन-अध्यापन किया जाता था। विद्यार्थी का अध्ययन सुरक्षा अध्ययन के बिना पूर्ण नहीं होता था। कौटिल्य के अर्थशास्त्र में युद्ध और उसके संचालन के सम्बन्ध में जितना व्यापक वर्णन किया गया है वह स्वयं इस तथ्य को सिद्ध करता है।[2] आदिकाल से ही युद्ध की परम्परा चली आ रही है। मानव जाति का इतिहास युद्ध के अध्ययन के बिना अधूरा है और युद्ध का इतिहास उतना ही पुराना है जितनी मानव जाति की कहानी। युद्ध मानव सभ्यता के विकास के प्रमुख कारणों में से एक हैं। अनेक सभ्यताओं का अभ्युदय एवं विनाश हुआ, परन्तु युद्ध कभी भी समाप्त नहीं हुआ। जैसे-जैसे सभ्यता का विकास हुआ वैसे-वैसे नवीन हथियारों के निर्माण के फलस्वरूप युद्ध के स्वरूप में परिवर्तन अवश्य आया है।[3]
सैन्य विज्ञान जैसा कि नाम से ही प्रतीत होता है 'सेना' और 'विज्ञान' शब्दों से मिलकर बना है। सेना एक ऐसा सुसंगठित दल है जिसका कार्य लड़ाई करना है और विज्ञान से अभिप्राय किसी ज्ञान को इस प्रकार क्रमबद्ध कर लिया जाता है जिससे कि उसका विधिपूर्वक अध्ययन किया जा सके। इस प्रकार किसी राज्य अथवा सुसंगठित समाज द्वारा लड़ाई करने के लिए गठित दल का नाम सेना है और उस सेना से सम्बन्धित क्रमबद्ध ज्ञान का नाम सैन्य विज्ञान है। किसी भी विषय को परिभाषा के परकोटे में बांधना आसान नहीं है। सैन्य विज्ञान के व्यापक क्षेत्र एवं अन्तर्विषयी होने के कारण कोई निश्चित परिभाषा नहीं दी गई है। फिर भी कुछ मनीषीयों की सैन्य विज्ञान से सम्बन्धित निम्न परिभाषा है-
कैप्टन बी.एन. मालीवाल के अनुसार, ‘‘सैन्य विज्ञान ज्ञान की वह शाखा है जिसमें सैनिक विचारधारा, संगठन सामग्री और कौशल का सामाजिक संदर्भ में अध्ययन किया जाता है।’’[4]
प्रो॰ रामअवतार के अनुसार, ‘‘सैन्य विज्ञान विषय हमें युद्ध-शिल्प अर्थात् युद्ध के उपकरण तथा युद्ध शैली एवं उसका समाज पर और सामाजिक परिवर्तनों का युद्ध-शैली पर जो प्रभाव पड़ता है उनका ज्ञान कराता है।’’[5]
मेजर आर.सी. कुलश्रेष्ठ के अनुसार, ‘‘सैन्य विज्ञान मानव ज्ञान की वह शाखा है जो आदि काल से ही सामाजिक शान्ति स्थापना करने तथा बाह्य आक्रमण से निजी प्रभुसत्ता की रक्षा करने के लिए महत्वपूर्ण समझी जाती रही है, इसके अन्तर्गत शान्ति स्थापन साधनों, सेना के संगठन, शस्त्रास्त्रों के प्रयोग और विकास, युद्ध शैलियों का मानसिक, सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक दृष्टिकोण से अध्ययन किया जाता है।’’[6]
प्रो॰ एम. पी. समरे के अनुसार, ‘‘सैन्य विज्ञान युद्धनीति, समरतंत्र तथा प्रशासन विद्या का विज्ञान है।’’[7]
उपर्युक्त सभी परिभाषाएं हमें बोध कराती हैं कि सैन्य विज्ञान एक सामाजिक विषय है जो हमें समाज में होने वाले युद्धों के कारण, विधि, साधन की जानकारी देता है।
किसी भी विषय के क्षेत्र का आभास उसकी परिभाषा से हो जाता है। सैन्य विज्ञान में युद्ध और सेना सम्बन्धी समस्त बातों का अध्ययन किया जाता है। समय और युग के परिवर्तन के साथ-साथ युद्ध की प्रक्रियाओं में परिवर्तन आता चला जाता है, इसी के साथ सैनिक संगठन, उसके प्रशिक्षण, शस्त्रास्त्रों में भी परिवर्तन आता चला गया, वैसे ही सैन्य विज्ञान के क्षेत्र में भी परिवर्तन आता गया। आधुनिक समय में वैज्ञानिक प्रगति और आविष्कारों ने युद्ध के क्षेत्र को और विस्तृत व व्यापक कर दिया है
According to Dr Kajal Mehta :- सैन्य विज्ञान के विकास की असीमित सीमाओं के माध्यम से राष्ट्र को ताकतवर और विकिसित किया जाना है। संभव है सैन्य विज्ञान से छात्र जीवन में ही अनुशासित नागरिक सशक्त राष्ट्र और विकसित राष्ट्र को मूर्त रूप
प्रदान कर सकते है। सैन्य विज्ञान विषय को राष्ट्र निर्माण हेतु अनिवार्य मानते के विचार को अतिश्योक्ति नही कहा जा सकता वर्तमान समय में सैन्य विज्ञान से देश भक्त newskilled नागरिक और सशक्त राष्ट्र की अवधारणा को बल प्रदान किया जा सकता है।
विज्ञान से अभिप्राय किसी भी विषय के नियमानुसार अध्ययन से है इस दृष्टि से सैन्य विज्ञान विषय को विज्ञान की कसौटी में कसा जाय तो पूरी तरह से खरा उतरता है, क्योंकि इसके अन्तर्गत सेना के संगठन, शस्त्रास्त्र, युद्धकला कूटयोजना, प्रबन्ध एवं समरतन्त्र आदि का क्रमिक अध्ययन किया जाता है। जिस प्रकार विज्ञान के कुछ सिद्धान्त एवं नियम होते हैं और उन्हीं के आधार पर कार्यवाही की जाय तो उद्देश्य की प्राप्ति उसी नियम के अनुरुप हो जाती है। इसी प्रकार से सैन्य विज्ञान के अन्तर्गत युद्ध के अनेक सिद्धान्त हैं जिनके पालन करने से उद्देश्य की प्राप्ति अवश्यंभावी होती है। अथवा विज्ञान उन विषयों को कहते हैं जिनके नियमों के सत्यता की जांच प्रयोगशालाओं में की जा सके और जो नियम शाश्वत और सत्य हों तथा कला उन विषयों को कहते हैं जिनके नियमों की सत्यता को निश्चितता की कसौटी पर नहीं कसा जा सकता। विज्ञान हमें किसी वस्तु के विषय में ज्ञान देता है और कला उस कार्य को करना सिखाती है।[8]
इस दृष्टि से युद्धकला, सेना, सैनिक संगठन, प्रशिक्षण, शस्त्रास्त्रों, युद्ध की चालों आदि के विषय में ज्ञान आवश्यक है, सैन्य विज्ञान, विज्ञान है तथा जहां तक सैनिक प्रशिक्षण एवं सैनिक अभ्यास का सम्बन्ध है, सैन्य विज्ञान कला भी है। Makers of Modern Strategy में लिखा है कि युद्ध का कोई विज्ञान नहीं होता न होगा ही। युद्ध का अनेक प्रकार के विज्ञानों से सम्बन्ध है, परन्तु युद्ध का अपना कोई विज्ञान नहीं है। यह तो व्यावहारिक कला और कौशल है।[9]
According to Dr Kajal Mehta :- मिलिट्री साइंस सिक्के के दो पहलू की तरह हैं क्योकि मिलिटी साइंस में प्रयोगो हेतु रास्ता हमेशा खुला रहता है और उन प्रयोगो को व्यवहार रूप में लाकर विजय प्राप्त करना जनरल की कला बन जाता है। कला मिलिट्री साइंस व्यवहारिक दृष्टिकोण से कला है परन्तु वास्तविकता में विज्ञान की प्रयोगशाला है। जैसे कम्प्यूटर का उपयोग आज साइबर युद्ध की विनाशलीला के रूप में किया जाये तो राष्ट्रो को बहुत बड़ी सीमा तक क्षति पहुंचाई जा सकती है।
इस संदर्भ में प्रसिद्ध सैन्य विशेषज्ञ क्लाजविट्ज का यह कथन उल्लेखनीय है[10]
दोनों ही पक्षों के आधार पर कहा जा सकता है कि सैन्य विज्ञान, विज्ञान एवं कला दोनों के अन्तर्गत आता है, परन्तु अनुभव, अध्ययन की अपेक्षाकृत अधिक शक्तिशाली पक्ष प्रतीत होता है।
सैन्यविज्ञान ज्ञान की एक शाखा होने के कारण उसका अन्य शाखाओं से सम्बन्ध होना स्वाभाविक एंव अनिवार्य है।
भौगोलिक परिस्थितियों का प्रत्यक्ष प्रभाव सैनिक योजनाओं, शस्त्रास्त्रों, संक्रियाओं, साज-सज्जा एवं समरतान्त्रिक चालों पर पड़ता है। यही कारण है कि प्रत्येक राष्ट्र को अपनी भौगोलिक परिस्थितियों के अनुरुप ही सुरक्षा व्यवस्था अपनानी पड़ती है। इस संदर्भ में प्रसिद्ध ब्रिटिश जनरल वावेल का कहना है कि- किसी स्थान का भूगोल ही वहां होने वाली लड़ाइयों के स्वरूप को सुनिश्चित करता है।[11] भौगोलिक तथ्यों की उपेक्षा कर कोई भी सेना युद्ध में विजय प्राप्त नहीं कर सकती।
इतिहास से हमें मानव जाति की संस्कृति एवं सभ्यता से सम्बन्धित समस्त जानकारी मिलती है जिसके अभाव में युद्धों का अध्ययन अधूरा ही है। विगत युद्धों के जय-पराजय का विश्लेषण ही वर्तमान एवं भविष्य के युद्धों का आधार होता है। युद्ध के देवता के नाम से विख्यात प्रसिद्ध सेनापति नेपोलियन बोनापार्ट का कथन है कि- महान सेनानायकों के अभियानों का बार-बार अध्ययन एवं मनन करो, उन्हें अपना आदर्श बनाओ। युद्ध कला के भेदों को जानने तथा एक महान सेनानायक बनने का यही रहस्य है।[12]
धन के बिना सैन्य संगठन सम्भव नहीं है। आर्थिक दृष्टि से सबल राष्ट्र के लिए अपना सैनिक विकास करना भी दुष्कर होता है क्योंकि सेना की संख्या एवं सशस्त्र सेनाओं का प्रकार, उपयुक्त सैन्य योजना आदि का आधार पूर्णतः राष्ट्र विशेष के आर्थिक स्रोतों पर रहता है। कार्ल मार्क्स के अनुसार, ‘‘किसी युग के सम्पूर्ण सामाजिक जीवन के स्वरूप का निश्चय आर्थिक परिस्थितियां ही करती है।[13] आधुनिक युद्ध अत्यन्त खर्चीले होते हैं जिसकी यौद्धिक आवश्यकताओं की आपूर्ति करना बहुत कठिन है।
सुन्तजू ने लिखा है युद्ध राज्य का एक आवश्यक अंग है ओर शूमैन भी कहते हैं कि युद्ध राज्य शक्ति का अन्तिम हथियार है। इस संदर्भ में प्रसिद्ध जर्मन सैन्य विशेषज्ञ क्लाजविट्ज का यह कथन उल्लेखनीय है कि राज्य अपनी नीतियों को क्रियान्वित करने के लिए युद्ध का सहारा लेता है।[14] आज युद्ध की प्रकृति बदल गई है देश के प्रत्येक नागरिक को प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष ढंग से युद्ध में योगदान करना होता है।
सेना एक प्रकार का सामाजिक संगठन होता है जिसमें अनुशासन, मनोबल, नेतृत्व, साहस, भय, प्रचार, देशभक्ति की भावना, चिन्ता, मनोग्रस्तता जैसे मानसिक तत्वों का बहुत महत्त्व है। आज के युद्ध मनोवैज्ञानिक युद्ध होते है जिसमें वास्तविक लड़ाई के पहले ही शत्रु के यौद्धिक मानसिकता का विघटन करना होता है। हिटलर का कथन सैन्य विज्ञान एवं मनोविज्ञान के गहरे सम्बन्ध को दर्शाता है कि वास्तविक लड़ाई एक गोली चलने के पहले ही लड़ा जाता है। इस सम्बन्ध में कौटिल्य ने कहा है कि, ‘‘एक धनुषधारी के धनुष से छोड़ा हुआ बाण सम्भव है किसी एक भी सैनिक को न मारे, परन्तु बुद्धिमान व्यक्ति के द्वारा किया गया बुद्धि का प्रयोग गर्भ स्थित प्राणियों को भी नष्ट कर देता है।[15]
According to Dr Kajal Mehta:- सैन्य विज्ञान में मनोविज्ञान को युद्ध के रूप मे प्रयुक्त करके सेना के साथ ही नागरिको के मनोबल को तोड़कर किसी भी राष्ट्र द्वारा किसी भी राष्ट्र को मनोवैज्ञानिक
युद्ध द्वारा पराजित करने की तकनीकियों को प्रस्तुत करते हैं।
सैनिकों के मनोबल को अनेक कारणों के द्वारा कमजोर करने की स्ट्राटेजी प्रयोग करके तकनीकियों का संपूर्ण उपयोग युद्ध में मनोवैज्ञानिक तकनीकियों का किया जाने से विजय शीघ्रता से प्राप्त होती हैं।
विज्ञान एवं तकनीक का प्रभाव यदि जीवन के किसी एक क्षेत्र में सबसे ज्यादा पड़ता है तो वह है सैन्य क्षेत्र। मानव सभ्यता के विकास में पचास प्रतिशत से अधिक खोजों का उद्देश्य सैनिक आवश्यकता रही है। अपरम्परागत तथा सम्पूर्ण युद्ध की अवधारणा के पीछे आधुनिक वैज्ञानिक एवं तकनीकि विकास है। आणविक शस्त्रास्त्रों एवं प्रक्षेपास्त्रों के संहारक क्षमता के संदर्भ में प्रसिद्ध वैज्ञानिक आइंस्टीन ने लिखा है कि, ‘‘मैं नहीं जानता कि तृतीय विश्वयुद्ध में किन-किन हथियारों का इस्तेमाल होगा? किन्तु मैं निश्चित रूप से यह बता सकता हूं कि चतुर्थ विश्व युद्ध में किन हथियार का इस्तेमाल होगा, अर्थात् पत्थर।[16] यह कथन आधुनिक प्रौद्योगिकी के सैन्य प्रयोग से मानव अस्तित्व पर बने संकट को दर्शाता है।
युद्ध में सफलता प्राप्त करने के लिए विषैले रसायनों का प्रयोग प्राचीन काल से ही होता आ रहा है। अथर्ववेद, मार्कण्डेय पुराण, विष्णुधर्मोत्तर पुराण, [[कामन्दकीय नीतिसार], शुक्रनीति शास्त्र, पंचतंत्र, कौटिल्य अर्थशास्त्र, मनुस्मृति तथा वृहत् संहिता आदि ग्रंथों में ऐसे अनेक प्रकार के हथियारों का उल्लेख है जिनके द्वारा रणक्षेत्र में आग लगाना, घनघोर वर्षा करना, बादलों की गरज, चारों ओर से अन्धकार पैदा करना आदि किया जाता था।[17] आधुनिक युद्ध में धुंआ फैलाने वाली, दम घोटने वाली, आंखों में जलन पैदा करने वाली, त्वचा को जलाने वाली जैसे कई प्रकार के विषैले रसायनों का प्रयोग किया जाता है। जिसके कारण ही रसायनिक युद्धकला का जन्म हुआ है।
जैविक कारकों के द्वारा शत्रु के भोजन, पानी एवं खाद्य सामग्री को विषाक्त करके उसके स्वास्थ्य को कमजोर कर उसके युद्ध करने की मानसिक शक्ति का विघटन करने की हर सम्भव कोशिश की जाती है। विभिन्न प्रकार के बीमारियों के जीवाणुओं को विभिन्न साधनों से शत्रु तक पहुंचाया जाता है। विषैले जीवाणुओं से उत्पन्न रोग से केवल सैनिक ही प्रभावित नहीं होते अपितु नागरिकों पर भी इसका बराबर असर होने के कारण शत्रु का मनोबल गिर जाता है जिससे उसकी सैनिक सामर्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।
उपरोक्त वर्णित विषयों के अलावा अन्य विषय जैसे कम्प्यूटर विज्ञान, सामाजिक विज्ञान इत्यादि से भी सैन्य विज्ञान का गहरा सम्बन्ध है।
According to Dr Kajal Mehta:- मिलिट्टी साइंस में बायलोजी कल विषाणुओं का उपयोग करके भयानक युद्ध की परिकल्पना को साकार करना और सबसे कम लागत का युद्ध किसी भी राष्ट्र द्वारा संभव है विषाणु जनित युद्ध का प्रत्यक्ष उदाहरण कोरोना युद्ध है जिसने मानव जाति के लिये एक प्रत्यक्ष जैविक युद्ध का प्रभाव प्रस्तुत करके अपार जन हानि की और राष्ट्रो को बहुत आर्थिक क्षति पहुंचाई ।
प्राचीन युद्ध सीमित होते थे जिनका सम्बन्ध केवल सेनाओं एवं सेनापतियों तक होता था, आम जनता की युद्धों के प्रति कोई विशेष रुचि नहीं होती थी। जैसे-जैसे सभ्यता का विकास होता गया युद्धों के स्वरूपों में भी परिवर्तन आया और आज युद्ध सम्पूर्ण युद्ध का स्वरूप धारण कर चुका है। आधुनिक युद्ध सम्पूर्ण राष्ट्र की परीक्षा है।[18]
सैन्य विज्ञान विषय की उपयोगिता को निम्नानुसार रेखांकित किया जा सकता है-
==भारत में सैन्य विज्ञान सैन्य विज्ञान विषय को सुरक्षा अध्ययन, रक्षा एवं सुरक्षा अध्ययन, रक्षा एवं स्त्रातेजिक अध्ययन, सुरक्षा एवं युद्ध अध्ययन नाम से भी अध्ययन-अध्यापन किया जाता है। गौरतलब है कि डिफेंस स्टडीज, वार स्टडीज, मिलिट्री साइंस और स्ट्रेटेजिक स्टडीज नाम से रक्षा मामलों की पढ़ाई भारत में होती है।
इस विषय के महत्त्व का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि दुनिया के कई प्रमुख देशों में डिफेंस स्टडीज की पढ़ाई स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालय स्तरों पर होती है। इससे संबंधित कोर्स करने के बाद नौकरी के लिए तमाम विकल्प सामने आ रहे हैं। डिफेंस व स्ट्रैटजिक स्टडीज को मिलिट्री/डिफेंस स्टडीज, मिलिट्री साइंस, वॉर एंड नेशनल सिक्योरिटी स्टडीज, वॉर एंड स्ट्रैटजिक स्टडीज के नाम से भी जाना जाता है। इसके महत्त्व को देखकर पूर्व प्रधान मंत्री डॉ॰ मनमोहन सिंह ने 23 मई 2013 को बिनोला, गुड़गांव, हरियाणा में भारतीय राष्ट्रीय रक्षा विश्विद्यालय की आधारशिला रखी। प्रस्तावित भारतीय राष्ट्रीय रक्षा विश्विद्यालय 200 एकड़ से अधिक भूमि पर स्थित होगा। यह 2018 में पूरी तरह से कार्य करना शुरू करेगा। नक्सलवाद, आतंकवाद, उग्रवाद, भाषावाद, साम्प्रदायिकता, प्रादेशिकता, जन-जातिय विद्रोह जैसे समस्याओं का हल सैनिक माध्यम से नहीं निकाला जा सकता न ही इससे ये सभी समस्यायें समाप्त होने वाली हैं और न ही शान्ति एवं सुरक्षा की स्थापना की जा सकती है।
इसके लिए जरूरी है एक विश्वास का वातावरण पैदा करने की। उपर्युक्त समस्याओं की तह तक जाकर मूल कारणों के तार्किक एवं व्यावहारिक उपाय ढूंढने से होगा। सैन्य विज्ञान आन्तरिक व बाह्य सुरक्षा समस्याओं के कारण, प्रभाव एवं उपाय पर विस्तृत प्रकाश डालता है। जिसके वर्तमान संदर्भ में अध्ययन की नितान्त आवश्यकता है। प्रसिद्ध सैन्य विचारक लिडिल हार्ट ने कहा है कि- यदि शान्ति चाहते हो तो युद्ध को समझो। विश्व में युद्ध के रोकथाम के लिए सबसे आवश्यक है युद्ध के कारण, प्रभाव एवं परिणाम पर गहन चिन्तन, मनन एवं चर्चा करने की। इस विषय के अध्ययन से विश्व विनाश को रोकने में भी सक्रिय सहयोग मिलता है। आज विश्व के पास इतने घातक एवं विनाशक हथियार हैं कि समस्त पृथ्वी को हजारो बार नष्ट किया जा सकता है। आधुनिक युद्ध सम्पूर्ण युद्ध होते हैं एवं जिसमें अपरम्परागत युद्ध शैली के अस्त्र-शस्त्रों का प्रयोग किया जा सकता है तथा युद्ध के केन्द्र सैन्य एवं नागरिक ठिकानें दोनों हो सकते है। रणक्षेत्र में मोर्चा सम्हाल रहे सैनिकों के लिए सम्भव नहीं कि इतनी बड़ी आबादी की हर जगह मदद की जा सके।
अतः नागरिक सुरक्षा के उपायों की विस्तृत जानकारी सैन्य विज्ञान के माध्यम से लिया जा सकता है। किसी भी राज्य के लिए युद्ध की वित्तीय आवश्यकताओं की पूर्ति करना बेहद कठिन कार्य है। इसलिए सरकार युद्धकाल में दान या चंदे, ऋण जैसी सहायता जनता से लेती है। सैन्य विज्ञान युद्ध पर सम्पूर्ण प्रकाश डालता है एवं विद्यार्थी को इसकी गहरी समझ प्रदान कर जिम्मेदार नागरिक बना सकता हैं।[20]
सैन्य विज्ञान के द्वारा देश के प्रति हमारे क्या कर्त्तव्य हैं तथा समाज में रहकर मातृभूमि की रक्षा किस प्रकार करनी चाहिए तथा स्वयं को एक आदर्श सैनिक के रूप में प्रस्तुत करने का अवसर प्राप्त करते हैं। आज का विद्यार्थी कल का जिम्मेदार नागरिक अथवा सैनिक बनकर सुरक्षा हित के मुद्दों को गहराई से समझ सकता है। इस क्षेत्र में करियर की ढेर सारी संभावनाएं हैं। यह आपको एक देश से दूसरे देश के साथ वैश्विक मामले संबंध आदि की जानकारी देता है। इस फील्ड में कोर्स करने के बाद आप सोशियो-इकोनॉमिक स्पेशलिस्ट, इंटरनेशनल फील्ड में रिसर्चर बन सकते हैं।
इसके साथ ही आप इंडियन नेवी, एयर फोर्स, डिफेंस जर्नलिज्म में इंडियन आर्मी ऑफिसर, इंडियन डिफेंस ऑफिसर, ग्राउंड ड्यूटी ऑफिसर, रिसर्च ऑफिसर, मिलिट्री ऑफिसर बन सकते हैं। डिफेंस एंड स्ट्रैटजिक स्टडीज में बैचलर्स या मास्टर्स डिग्री लेने वाले उम्मीदवार लेक्चरर, कॉलेज के प्राध्यापक, विश्वविद्यालय में प्रोफेसर का जॉब कर सकते हैं या अंतर्राष्ट्रीय संबंध, युद्ध के भूगर्भ संबंधी मामलों, भू राजनीतिक मामलों, सामाजिक-आर्थिक व सामरिक क्षेत्रों में रिसर्च कर सकते हैं। इसके अलावा रोजगार के अवसर मुख्य तौर पर भारतीय सेना, वायु सेना, नौसेना, एजुकेशन कॉर्पोरेशन्स, डिफेंस जर्नलिज्म में मौजूद हैं।
अगर आपने इस फील्ड में मास्टर डिग्री हासिल कर ली तो न्यूजपेपर, मैगजीन आदि में राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर आलेख लिख सकते हैं। युद्ध संचालन की पद्धति और प्रक्रिया अब राजनीतिज्ञों का मुख्य विषय बन गया है, क्योंकि सबसे बड़े अस्त्र अर्थात् आणविक हथियारों का नियन्त्रण एवं प्रयोग राजनीतिज्ञों के हाथ में है न कि सेनानायकों के। सैन्य विज्ञान का विद्यार्थी को सैनिक मामलों में पूर्व से पर्याप्त ज्ञान होने के कारण एक कुशल नेतृत्व क्षमता का परिचय दे सकता है। क्योंकि आज कि सबसे बड़ी विडम्बना राजनीतिज्ञों का सैन्य ज्ञान की समझ का अभाव है।
रक्षा अनुसंधान और विश्लेषण, रक्षा नीति बनाने, टैक्टिकल सर्विसेज, राष्ट्रीय सुरक्षा योजना एवं क्रियान्वयन और सिविल डिफेंस, प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए, सशस्त्र सेना, राष्ट्रीय सुरक्षा संगठन, रक्षा पत्रकारिता, अकादमिक रिसर्च, राजनयिक, विदेश नीति बनाने, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार, नीति बनाने सोचने वाले टैंकों में शामिल होना, सुरक्षा प्रदाता एजेंसियां, कॉलेज व यूनिवर्सिटी में शिक्षण, सरकार और यूजीसी के लिए पुस्तक लेखन व प्रकाशन। [21]
1. "जानिए सैन्य विज्ञान/ रक्षा एवं स्त्रातेजिक अध्ययन में कैसे बनाएं करियर" लेखक-आसिफ अहमद Saturday, August 26, 2017, Punjab kesri https://web.archive.org/web/20171204061338/http://www.punjabkesari.in/blogs/news/how-to-prepare-for-the-study-of-defense-and-scholarly-study-career-666553
2. जैन, श्रीमती पुष्पा -सम्पूर्ण सैन्य विज्ञान भाग-1, विश्वविद्यालय प्रकाशन, ग्वालियर, पृष्ठ-3
3. मिश्र, डॉ॰ सुरेन्द्र कुमार -भारतीय सैन्य संगठन, संस्करण-2007, माडर्न पब्लिशर्ज, जालन्धर, पृष्ठ-1
4. कपूर, आर.के. -सैन्य विज्ञान, संस्करण-1979, अजन्ता प्रकाशन, मेरठ, पृष्ठ-1
5. गुप्ता, मेजर धनपाल -सरल सैन्य विज्ञान, संस्करण-1976-77, रस्तोगी पब्लिकेशन्स, मेरठ, पृष्ठ-3
6. पाण्डेय, डॉ॰बाबूराम -सैन्य अध्ययन, संस्करण-1993, प्रकाश बुक डिपो, बरेली, पृष्ठ-4
7. भटनागर, डॉ॰ अनिल -सैन्य विज्ञान, आनन्द पब्लिशर्स, ग्वालियर, पृष्ठ-4
8. पूर्वोक्त संदर्भ सं. 4, पृष्ठ-5
9. पूर्वोक्त संदर्भ सं. 3, पृष्ठ-4
10. पूर्वोक्त संदर्भ सं. 3, पृष्ठ-5
11. पूर्वोक्त संदर्भ सं. 3, पृष्ठ-6
12. पूर्वोक्त संदर्भ सं. 3, पृष्ठ-6
13. पूर्वोक्त संदर्भ सं. 7, पृष्ठ-10
14. पूर्वोक्त संदर्भ सं. 5, पृष्ठ-7
15. पूर्वोक्त संदर्भ सं. 7, पृष्ठ-12
16. पूर्वोक्त संदर्भ सं. 2, पृष्ठ-10
17. पूर्वोक्त संदर्भ सं. 6, पृष्ठ-31
18. पूर्वोक्त संदर्भ सं. 3, पृष्ठ-9
19. पूर्वोक्त संदर्भ सं. 3, पृष्ठ-10
20. "जानिए सैन्य विज्ञान/ रक्षा एवं स्त्रातेजिक अध्ययन में कैसे बनाएं करियर" लेखक-आसिफ अहमद Saturday, August 26, 2017, Punjab kesri
21. पूर्वोक्त संदर्भ सं.20 https://web.archive.org/web/20171204061338/http://www.punjabkesari.in/blogs/news/how-to-prepare-for-the-study-of-defense-and-scholarly-study-career-666553
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