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यूरेशियाई वृक्ष गौरैया, पास्सेर गौरैया परिवार का एक पासेराइन पक्षी है जिसके सिर का ऊपरी हिस्सा और गर्दन का पिछला हिस्सा लाल-भूरे रंग का होता है और प्रत्येक पूर्णतः सफेद गाल पर एक काला धब्बा होता है। इस प्रजाति के दोनों ही लिंगों मे एक समान पंख होते हैं और युवा पक्षी वयस्क पक्षियों के ही एक छोटे रूप जैसे दिखते हैं। गौरैया पक्षी अधिकांश समशीतोष्ण यूरेशिया और दक्षिणपूर्व एशिया में प्रजनन करती हैं जहां यह वृक्ष गौरैया के नाम से जानी जाती हैं और इन्हें संयुक्त राज्य अमेरिका सहित अन्य क्षेत्रों में भी भेजा गया है, जहां इन्हें यहां की मूलनिवासी और इनसे असम्बद्ध अमेरिकी वृक्ष गौरैया से विभेदित करने के लिए यूरेशियाई वृक्ष गौरैया या जर्मन गौरैया के नाम से जाना जाता है। हालांकि इनकी अनेकों उप-प्रजातियों की पहचान हो चुकी है, लेकिन अपनी व्यापक उप-प्रजातियों के बीच भी इस पक्षी का रूप-रंग बहुत अधिक नहीं बदलता है।
Eurasian tree sparrow | |
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Adult of subspecies P. m. saturatus in Japan Original image reversed | |
वैज्ञानिक वर्गीकरण | |
जगत: | Animalia |
संघ: | Chordata |
वर्ग: | Aves |
गण: | Passeriformes |
कुल: | Passeridae |
वंश: | Passer |
जाति: | P. montanus |
द्विपद नाम | |
Passer montanus (Linnaeus, 1758) | |
Afro-Eurasian distribution
प्रजनक ग्रीष्म प्रवासी | |
पर्यायवाची | |
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यूरेशियाई वृक्ष गौरैया का गन्दा घोंसला किसी भी प्राकृतिक कोटर में बना होता है, जो कि किसी ईमारत में बना छेद या मैग्पाई (मुटरी) अथवा सारस पक्षी का बड़ा घोंसला हो सकता है। आदर्शतः ये एक समुच्चय (clutch) में 5 से 6 अंडे देती हैं जो दो सप्ताह में परिपक्व हो जाते हैं। यह गौरैया अपने भोजन के लिए मुख्यतः बीजों पर निर्भर करती है लेकिन ये अकशेरुकी प्राणियों को भी अपना भोजन बनाती हैं, मुख्यतः प्रजनन काल के दौरान. जैसा अन्य छोटे पक्षियों के साथ होता है, उसी प्रकार इन्हें भी परजीवियों से संक्रमण और बिमारियों तथा शिकारी पक्षियों द्वारा परभक्षण का खतरा रहता है, आम तौर पर इनका जीवनकाल 2 वर्ष का होता है।
पूर्वी एशिया के शहरों और कस्बों में यूरेशियाई वृक्ष गौरैया काफी अधिक पायी जाती है लेकिन यूरोप में यह पक्षी खुले ग्रामीण मध्यम वन्य क्षेत्रों में ही पाए जाते हैं, जबकि घरेलू गौरैया (House Sparrow) अधिकतर शहरी क्षेत्रों में पायी जाती है। यूरेशियाई वृक्ष गौरैया की व्यापक श्रंखला और विशाल आबादी के कारण यह वैश्विक स्तर पर लुप्तप्राय पक्षियों की श्रेणी में नहीं आती, लेकिन पश्चिमी यूरोप में इनकी आबादी में काफी गिरावट आई है, कुछ हद तक यह कृषि पद्धति में आये बदलावों के कारण हुआ है जिसके अंतर्गत वनस्पति नाशक रसायनों का प्रयोग बढ़ता जा रहा है और ठूंठ युक्त शीत कृषि भूमि में कमी आती जा रही है। पूर्वी एशिया और पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में, कुछ स्थानों पर यह प्रजाति हानिकारक जीव के रूप में देखी जाती है, हालांकि पूर्वी कला में इसका व्यापक महत्व है।
यूरेशियाई वृक्ष गौरैया 12.5-14 सेमी (5–5½ इंच) तक लम्बी होती है,[2] उसके पंख का फैलाव लगभग 21 सेमी (8.25 इंच) होता है और वज़न 24 ग्राम (0.86 आउंस) होता है,[3] जो इसे घरेलू गौरैया से लगभग 10 प्रतिशत छोटा बना देता है।[4] वयस्क पक्षी के सिर का ऊपरी हिस्सा और गर्दन का पिछला हिस्सा गहरे भूरे रंग का होता है और दोनों पूरी तरह से सफ़ेद गालों पर गुर्दे के आकार का काला धब्बा होता है; ठुड्डी, गर्दन और गर्दन तथा चोंच के बीच का हिस्सा भी काले रंग का होता है। ऊपरी हिस्से हलके भूरे रंग के होते हैं और उनपर काली धारियां होती हैं, तथा इनके भूरे पंखों पर दो पतली व स्पष्ट सफ़ेद पट्टियां होती हैं। इनके पैर फीके भूरे रंग के होते हैं और गर्मियों में इनकी चोंच का रंग नीले सीसे जैसा हो जाता है, जो जाड़ों में लगभग पूर्णतया काला हो जाता है।[5]
अपनी प्रजाति के अन्दर भी गौरैया भिन्न होती है क्योंकि इसमें नर और मादा के बीच पंखों में कोई अंतर नहीं होता; युवा पक्षी भी वयस्क पक्षी के समान ही दिखते हैं, हालांकि उनका रंग कुछ फीका होता है।[6] इसके चहरे का असादृश्यतापूर्ण स्वरूप इस प्रजाति को अन्य प्रजातियों के मध्य सरलता से पहचानने योग्य बना देता है;[4] घरेलू नर गौरैया और इनके बीच अन्य अंतर, इनकी छोटी आकृति और भूरा रंग, ना कि ग्रे और सिर का ऊपरी हिस्सा है।[2] वयस्क और युवा यूरेशियाई वृक्ष गौरैया शरद ऋतु में धीमी गति से होने वाली निर्मोचन प्रक्रिया से गुजरती हैं और संचित वसा में कमी होने के बावजूद भी शारीरिक वज़न में वृद्धि प्रदर्शित करती हैं। उनके वज़न में यह परिवर्तन सक्रिय पंख के विकास में सहायता करने के लिए रक्त की बढ़ी हुई मात्रा और सामान्यतया शरीर में जलीय अंश की अधिकता के कारण होता है।[7]
यूरेशियाई वृक्ष गौरैया का अपना कोई विशेष गीत नहीं होता, लेकिन इसके स्वरोच्चारणों में ट्स्चिप के स्वर के उत्तेजनात्मक प्रकार सम्मिलित होते हैं, यह स्वर जोड़े से रहित या प्रणयरत नर पक्षी द्वारा किया जाता है। अन्य एकाक्षरी स्वरों का प्रयोग इनके द्वारा सामाजिक संपर्क के दौरान किया जाता है और इनके उड़ान भरने के दौरान कठोर टेक का स्वर होता है।[4] परिचित मिसौरी आबादी और जर्मनी के पक्षियों के मध्य किये गए एक स्वरोच्चारणों के तुलनात्मक अध्ययन में यह प्रकट हुआ कि संयुक्त राज्य अमेरिका के पक्षियों के मध्य बोले जाने वाले उभयनिष्ठ स्वरों (मेमेस) की संख्या कम थी और यूरोपीय गौरैया की तुलना में उनकी आबादी के अन्दर स्वर संरचना का आधिक्य था। यह मूल उत्तर अमेरिकी आबादी की छोटी आकृति और आनुवांशिक विविधता की कमी के परिणामस्वरूप हो सकता है।[8]
पुराने समय की गौरैया की प्रजाति पास्सेर छोटी पासेराइन पक्षियों का एक समूह था जिसके उद्गम की मान्यता अफ्रीका से है और जो प्रमाण के आधार पर 15-25 प्रजातियों में पायी जाती है।[10] आदर्श रूप से इसके सदस्य खुले, हल्के वन्य क्षेत्रों, प्राकृतिकवासों में पाए जाते हैं, हालांकि कई प्रजातियां, मुख्यतः घरेलू गौरैया (पी. डोमेस्टिकस) मानव निवास स्थासनों में रहने के अनुकूल हो चुकी हैं। आदर्श रूप से इसकी अधिकांश प्रजातियां 10-20 सेमी (4-8 इंच) लम्बी होती हैं, ये मुख्यतः भूरी या ग्रे रंग के पक्षी होते हैं जिनकी पूंछ छोटी व चौकोर होती हैं और इनकी चोंच छोटी तथा शंक्वाकार होती है। ये प्रधानतः भू वासी और बीज खाने वाले होते हैं, हालांकि यह अकशेरुकी प्राणियों को भी अपना भोजन बनाते हैं, मुख्यतः प्रजनन काल के दौरान।[11] आनुवांशिक अध्ययनों से यह पता चलता है कि यूरेशियाई वृक्ष गौरैया अपनी प्रजाति के अन्य यूरेशियाई सदस्यों से अपेक्षाकृत ज़ल्दी अलग हो गयी, हाउस, पेगू और स्पैनिश गौरैया की वंशावली विभाजन से भी पूर्व।[12] यूरेशियाई प्रजातियां अमेरिकी वृक्ष गौरैया (स्पिज़ेला आर्बोरिया), जो कि एक अमेरिकी गौरैया है, से बहुत निकटतापूर्वक सम्बद्ध नहीं हैं।[13]
यूरेशियाई वृक्ष गौरैया का द्विपदीय नाम दो लैटिन शब्दों से लिया गया है: पास्सेर, "गौरैया" और मौन्टैनस, "पर्वतों की" (मॉन्स :माउन्टेन" से लिया गया)।[3] यूरेशियाई वृक्ष गौरैया के विषय में सबसे पहला वर्णन कार्ल लिनेयस द्वारा 1758 में सिस्टेमा नैचुरे एज़ फ्रिन्जिला मौन्टाना में किया गया था,[14] लेकिन घरेलू गौरैया के साथ साथ यह भी शीघ्र ही फिन्चेस परिवार से हटा दी गयी और नयी प्रजाति पास्सेर की सदस्य बन गयी जिसका निर्माण फ़्रांसिसी जंतु विज्ञानी मथुरिन जैक्स ब्रिस्सन ने 1760 में किया था।[15] यूरेशियाई वृक्ष गौरैया का सामान्य नाम इसके द्वारा घोंसले के रूप में वृक्षों को वरीयता दिये जाने के कारण रखा गया है। यह नाम और जंतु वैज्ञानिक नाम मौन्टेनस, दोनों ही इस प्रजाति की प्राकृतिकवास संबंधी वरीयता की व्याख्या विशिष्ट रूप से नहीं कर पाते: जर्मन नाम फेल्ड्सपर्लिंग ("फील्ड स्पैरो") फिर भी इसके कुछ समीप पहुंचता है।[16]
अपनी विस्तृत श्रृंखला में इस प्रजाति के पक्षियों के बीच कोई विशेष अंतर नहीं होता है और आठवीं प्रचलित उप-प्रजातियों के मध्य क्लीमेंट द्वारा पहचाने गए सभी अंतर भी बहुत सूक्ष्म हैं। कम से कम 15 और उप-प्रजातियों का प्रस्ताव लंबित है, लेकिन उन्हें सूचीबद्ध नस्लों का मध्यवर्ती माना जा रहा है।[5][17]
यूरेशियाई वृक्ष गौरैया का प्राकृतिक प्रजनन क्षेत्र 68° उत्तर के अक्षांश पर (इसके उत्तर में गर्मियों का मौसम भी बहुत ठंडा होता है और जुलाई माह का औसत तापमान 12° डिग्री सेंटीग्रेड होता है) अधिकांश समशीतोष्ण यूरोप और एशिया से तथा दक्षिणपूर्व एशिया से होते हुए जावा और बाली तक विस्तृत है। पूर्व में यह फारोस, माल्टा और गोज़ो में प्रजनन करती थी।[4][5] दक्षिण एशिया में यह मुख्यतः समशीतोष्ण क्षेत्रों में ही पायी जाती है।[18][19] इस विस्तृत श्रृंखला के अधिकांश पक्षी निष्क्रिय ही रहते हैं लेकिन सुदूर उत्तरी कोने की प्रजनन करने वाली आबादी ठण्ड के मौसम में दक्षिण में प्रवास हेतु चली जाती है,[20] और कुछ उत्तरी अफ्रीका और मध्य पूर्वी क्षेत्रों में जाने के लिए दक्षिणी यूरोप को छोड़ देते हैं।[4] पूर्वी उप-प्रजाति पी.एम डिदिल्युटस ठण्ड में तटीय पाकिस्तान में चली जाती है और इस नस्ल के हजारों पक्षी शरद ऋतु में पूर्वी चीन को चले जाते हैं।[5]
यूरेशियाई वृक्ष गौरैया को इसके मूलक्षेत्र के अतिरिक्त अन्य क्षेत्रों में भी समाविष्ट कराया गया है लेकिन यह सभी स्थानों पर अनुकूलता प्राप्त नहीं कर सकी, संभवतः घरेलू गौरैया से प्रतिस्पर्धा के कारण ऐसा हुआ। यह सार्डिनीया, पूर्वी इंडोनेशिया, फिलिपीन्स और माइक्रोनेसिया में सफलतापूर्वक समाविष्ट हो गयी है लेकिन न्यू ज़ीलैंड और बरमूडा में यह अपनी जड़ें नहीं जमा सकी. जहाज के द्वारा इन पक्षियों को ले जाकर बोर्नियो में बसाया गया। जिब्राल्टर, ट्यूनीसिया, अल्जीरिया, मिस्र, इजरायल और दुबई में यह पक्षी एक प्राकृतिक घुमक्कड़ पक्षी के रूप में पाए जाते हैं।[5]
उत्तरी अमेरिका में लगभग 15,000 पक्षियों की आबादी सेंट लुइस के आसपास और इलीनौयस तथा दक्षिण पूर्वीय इयोवा के पड़ोसी क्षेत्रों में आकर बस गयी हैं।[21] यह पक्षी जर्मनी से आयातित 12 पक्षियों के वंशज हैं और जिन्हें 1870 के अप्रैल माह के अंत में मूल उत्तरी अमेरिकी एवीफौना की संख्या बढ़ने की परियोजना के एक हिस्से के रूप में वहां पर छोड़ दिया गया था। अपनी सीमित संयुक्त अमेरिकी क्षेत्र में, युरेशियाई वृक्ष गौरैया को शहरी क्षेत्रों में घरेलू गौरैया के साथ संघर्ष करना पड़ता है और इसलिए यह मुख्यतः पार्कों, खेतों और ग्रामीण वनों में ही पायी जाती है।[8][22] इन पक्षियों की अमेरिका स्थित आबादी को कभी-कभी "जर्मन गौरैया" भी कहा जाता है, ऐसा इन्हें वहां की मूल अमेरिकी वृक्ष गौरैया और काफी प्रचलित "अंग्रेजी" घरेलू गौरैया से विभेदित करने के लिए किया जाता है[23]।
ऑस्ट्रेलिया में, यूरेशियाई वृक्ष गौरैया मेलबर्न, उत्तरी विक्टोरिया के कस्बों और न्यू साउथ वेल्स के रिवेरिना क्षेत्र के कुछ केन्द्रों में पाई जाती हैं। वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया में यह एक निषेधित प्रजाति है, जहां इसे प्रायः ही दक्षिणपूर्व एशिया से जहाजों द्वारा लाया जाता है।[24]
इसके जंतु वैज्ञानिक नाम, पास्सेर मौन्टेनस, के बावजूद भी यह आदर्शतः एक पर्वतीय प्रजाति नहीं है और स्विटज़रलैंड में मात्र 700 मीटर (2,300 फीट) की उंचाई तक पहुंच पाती है, हालांकि उत्तरी कॉकेशस में यह 1,700 मीटर (5,600 फीट) और नेपाल में 4,270 मीटर (14,000 फीट) की उंचाई तक भी पायी जाती है।[4][5] यूरोप में, इन्हें टीले युक्त तटों पर, खाली इमारतों में, धीमे जल स्रोत के निकट कटे हुए बेंत के पेड़ों में, या छोटे एकांत वन्य क्षेत्रों वाले खुले ग्रामीण इलाकों में पाया जा सकता है।[4] यूरेशियाई वृक्ष गौरैया आर्द्रभूमि के निकट अपना घोंसला बनाने को वरीयता देती है और गहन रूप से संसाधित कृषि भूमि पर प्रजनन करने से बचती है।[25]
जब यूरेशियाई वृक्ष गौरैया और इससे बड़ी घरेलू गौरैया एक ही क्षेत्र में निवास करती हैं तो, आमतौर पर घरेलू गौरैया शहरी क्षेत्रों में प्रजनन करती है जबकि छोटी, यूरेशियाई वृक्ष गौरैया ग्रामीण क्षेत्रों में अपना घोंसला बनाती है।[5] जहां पर पेड़ों की संख्या कम हो, जैसे कि मंगोलिया, ये दोनों ही प्रजातियां अपना घोंसला बनाने के लिए मानव-निर्मित स्थलों का प्रयोग भी कर सकती हैं।[26] यूरेशियाई वृक्ष गौरैया यूरोप में ग्रामीण पक्षी मानी जाती है, लेकिन पूर्वी एशिया में यह शहरी पक्षी है; दक्षिणी और केन्द्रीय एशिया में दोनों ही पास्सेर प्रजातियां कस्बों और ग्रामों के निकट पायी जा सकती हैं।[5] कुछ भूमध्यसागरीय हिस्सों में, जैसे इटली, वृक्ष गौरैया और इतालवी या स्पैनिश गौरैया बस्तियों में पायी जा सकती हैं।[27] ऑस्ट्रेलिया में, यूरेशियाई वृक्ष गौरैया अधिकांशतः एक शहरी पक्षी है और वहां पर घरेलू गौरैया आधिकांश प्राकृतिक वासों में पाई जाती है।[24]
यूरेशियाई वृक्ष गौरैया अंडे से परिपक्व होने के एक वर्ष के भीतर प्रजनन वयस्कता प्राप्त कर लेती है,[28] और आदर्शतः अपना घोंसला किसी प्राचीन वृक्ष या चट्टान की कोटर में बनाती है। कुछ घोंसले इस प्रकार की कोटरों में नहीं होते हैं, लेकिन वे भी कांटेदार झाड़ी या इसी प्रकार की अन्य किसी झाड़ी की बाहर लटकी जड़ों में बनाये जाते हैं।[29] घरों के छतों की कोटरों का भी प्रयोग इनके द्वारा अपना घोंसला बनाने के लिए किया जाता है,[29] और उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में, ताड़ वृक्षों के शीर्ष भाग या किसी बरामदे की छत में भी यह अपने घोंसला बना सकती हैं।[30] यह प्रजाति मैग्पाई (मुटरी) पक्षी के गुम्बदनुमा और उपयोगरहित घोंसले में भी प्रजनन कर सकती है,[29] या सफ़ेद सारस,[31] सफ़ेद-पूंछ वाले चील, मछली खाने वाले बाज़, काले चील या ग्रे रंग वाले बगुले जैसे किसी बड़े पक्षी के उपयोगयुक्त या उपयोगरहित डंडे के आकार के घोंसले का भी प्रयोग कर सकती है। यह कभी-कभी छेदों या समावृत स्थानों पर अंडे देने वाले अन्य पक्षियों, जैसे बार्न स्वैलो, हाउस मार्टिन, सैंड मार्टिन या यूरोपी बी-ईटर, के घोंसलों पर अधिकार करने के का भी प्रयास कर सकते हैं।[32]
इनके जोड़े एकांत में या निर्जन बस्तियों में अंडे दे सकते हैं,[33] और ये तत्परता के साथ अंडे देने के लिए लगाये गए बॉक्सों का भी प्रयोग करते हैं। एक स्पैनिश अध्ययन में, लकड़ी और कंक्रीट के मिश्रण (वुड्क्रीट) से बनाये गए बॉक्स में इनके द्वारा अंडे दिए जाने की दर लकड़ी के बॉक्सों में अंडे दिए जाने की तुलना में काफी अधिक थी (76.5 प्रतिशत के मुकाबले 33.5 प्रतिशत) और वुड्क्रीट बॉक्सों में प्रजनन करने वाले पक्षियों के अंडे ज़ल्दी होते थे, उनके सेने का समय भी कम होता था और प्रति प्रजनन ऋतु के अनुसार उनके प्रजनन की संख्या भी अधिक होती थी। बॉक्सों में अंडे देने से एक बार में दिए गए अण्डों की संख्या और चूजों की अवस्था पर कोई अंतर नहीं पड़ता था, लेकिन वुड्क्रीट के बॉक्सों में अंडे देने वाले पक्षियों में प्रजनन की सफलता दर अधिक थी, ऐसा संभवत इसलिए था क्योंकि सिंथेटिक घोंसले लकड़ी के घोंसलों की तुलना में 1.5 डिग्री अधिक गर्म रहते थे।[34]
गर्मियों के मौसम में नर पक्षी घोंसले के निकट से आवाज़ करता है, इसके द्वारा वह घोंसले का स्वामित्व प्रकट करता है और अपने लिए जोड़े को आकर्षित करता है। वह घोंसले की सामग्री को घोंसले के छेद तक भी ले जा सकता है।[5] उनका यह प्रदर्शन और घोंसले बनाने की क्रिया शरद ऋतु में फिर से दोहरायी जाती है। शरद ऋतु में इसके लिए ये पक्षी पुराने यूरेशियाई वृक्ष गौरैया के घोंसलों को वरीयता देते हैं, विशेषतः उन घोंसलों को जहां अंडे से परिपक्व होकर चूजे निकल चुके हैं। खाली अंडे देने वाले बॉक्स और घरेलू गौरैया या छेद में अंडा देने वाले अन्य पक्षियों जैसे टिट्स, चितकबरे फ्लाईकैचर्स या साधारण रेड्स्टार्ट द्वारा प्रयोगित स्थानों का प्रयोग शरद ऋतु के प्रदर्शन के लिए बहुत ही कम किया जाता है।[35]
इनका गन्दा अव्यवस्थित घोंसला फूस, घास, ऊन या अन्य सामग्री द्वारा बना होता है और पंखों से ढका होता है,[29] जो कि तापीय रोधन को बढ़ाते हैं।[36] एक पूर्ण घोंसला तीन परतों से बना होता है; आधार, पंखों की पर्त और गुम्बद।[35] ये साधारणतया एक बार में 5 से 6 अंडे देती हैं (मलेशिया में कभी कभार 4 से अधिक),[30] ये सफ़ेद से लेकर फीके ग्रे रंग के होते हैं और इन पर धब्बे, छोटे दाने या चित्तियां होती हैं;[37] यह आकार में 20 x 14 मिमी (0.8 x 0.6 इंच) तथा वज़न में 2.1 आउंस होते हैं, इनके वज़न का 7 प्रतिशत तो इनके कवच का भार होता है।[3] इनके अंडे माता-पिता दोनों ही नीडपोषी, नग्न चूजों के अंडे से बाहर आने से पूर्व 12-13 दिनों तक सेते हैं और इसके बाद भी इनके उड़ने योग्य होने में 15-18 दिन और व्यतीत हो जाते हैं। प्रतिवर्ष दो या तीन बच्चे पाले जा सकते हैं,[3] बस्तियों में प्रजनन करने वाले पक्षी एकांकी जोड़ों की तुलना में अपने पहले प्रजनन के दौरान अधिक अंडे देते हैं लेकिन इनके दूसरे और तीसरे प्रजनन के लिए इसका ठीक विपरीत सत्य होता है।[38] मादा पक्षी जो अधिक सयुग्मन करती हैं वे प्रायः ही अधिक संख्या में अंडे देती हैं और उनके अंडे सेने का समय भी अपेक्षाकृत कम होता है, इसलिए जोड़े के साथ सयुग्मन उस जोड़े की प्रजनन क्षमता का संकेतक होता है।[39] इनमे स्वच्छंद सम्भोग भी काफी होता है, हंगरी में किये गए एक अध्ययन के अनुसार 9 प्रतिशत से भी अधिक चूजों में पिता एक अतिरिक्त नर-जोड़ा था और 20 प्रतिशत चूजों में कम से कम एक अतिरिक्त-जोड़ा युवा पक्षी होता था।[40]
यूरेशियाई वृक्ष गौरैया और घरेलू गौरैया के मध्य संकरण विश्व के कई हिस्सों में दर्ज किया गया है, इनमे नर संकर यूरेशियाई वृक्ष गौरैया से मेल करते हैं जबकि मादा पक्षी घरेलू गौरैया से अधिक मेल करती हैं।[41] भारत के पूर्वी घाटों में एक प्रजनन करने वाली पक्षियों की आबादी,[42] जिसे समाविष्ट कराया गया है,[5] घरेलू गौरैया के साथ भी संकरण कर सकती है।[19] कम से कम एक ऐसे अवसर के दौरान एक मिश्रित जोड़े ने एक जननक्षम युवा को जन्म दिया।[43][44][45] स्पैनिश गौरैया, पी. हिस्पानियोलेंसिस के साथ एक जंगली संकरण की घटना माल्टा में 1975 में दर्ज की गयी थी।[5]
वृक्ष गौरैया मुख्यतः बीज और अन्न खाने वाली पक्षी है जो भूमि पर समूह के रूप में खाती है, प्रायः घरेलू गौरैया, छोटी गानेवाली चिड़िया या पथाचिरटों के साथ. यह घासों के बीज, जैसे चिकवीड (एक प्रकार का पौधा), बथुआ और छिटके हुए अन्न के दाने खाती है,[5] यह खासतौर पर मूंगफलियों के लिए खाद्य पदार्थ मिलने वाले स्थानों तक भी जा सकती है। यह अकशेरुकी प्राणियों को भी खाती है, विशेषतः प्रजनन काल के दौरान जब युवा पक्षी शावक अपने भोजन के लिए मुख्यतः जंतुओं पर ही निर्भर होते हैं, यह कीड़ों, दीमक, कनखजूरों, गोजरों, मकड़ों और हार्वेस्टमेन को खाती हैं।[46]
अपने चूजों को खिलने के लिए अकशेरुकी जीवों की तलाश में वयस्क भिन्न प्रकार की आर्द्र भूमि तक तक जाते हैं और अकशेरुकी जीवों की विविधता और उपलब्धता में जलदार स्थान मुख्य भूमिका निभाते हैं जिसके फलस्वरूप इस एकाधिक अंडे देने वाली प्रजाति के संपूर्ण लम्बे प्रजनन काल के दौरान चूजों का सफलतापूर्वक पालन-पोषण होता है। पूर्व खेतों के विशाल क्षेत्र अब गहन कृषि के कारण इन्हें अकशेरुकी जीव उपलब्ध नहीं करते और घोंसले के स्थान से 1 किलोमीटर की दूरी के अन्दर किसी पूरक बीज भोजन की उपलब्धता से घोंसला बनाने के स्थान के चयन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता, या इससे चूजों की संख्या पर भी कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।[25]
जाड़ों में, बीजों के स्रोत ही इनकी गतिविधि को सीमित करने का मुख्य कारण होते हैं।[25] वर्ष के इस काल के दौरान, प्रत्येक व्यक्तिगत पक्षी एक समूह में रेखीय प्रभुत्व अनुक्रम बना लेता है, लेकिन इनमे गर्दन के धब्बे के आकार और इस प्रभुत्व अनुक्रम में स्थान के बीच कोई सशक्त सम्बन्ध नहीं होता है। यह घरेलू गौरैया से ठीक विपरीत है; उनकी प्रजातियों में, गर्दनके धब्बे के प्रदर्शन द्वारा प्रभुत्व स्थापित करने का संघर्ष कम हो जाता है, गर्दन के इस धब्बे का आकार ही इनमें योग्यता के लिए संकेतक "चिन्ह" का कार्य करता है।[47]
परभक्षण का खतरा इनकी आहार योजनाओं को प्रभावित करता है। एक अध्ययन के अनुसार, आश्रय स्थल और भोजन के स्रोत के बीच की अधिक दूरी का अर्थ होता है कि पक्षी छोटे समूहों में पोषक तक जाते हैं, इस पर कम समय व्यतीत करते हैं और आश्रय से दूर होने पर अधिक चौकन्ने रहते हैं। गौरैया "उत्पादक" के रूप में, सीधे भोजन की खोज करते हुए भोजन ले सकती हैं या "तलाशकर्ता" के रूप में अन्य किसी समूह के सदस्यों के साथ जा सकती है जिन्होंने पहले ही भोजन का कोई स्रोत तलाश कर लिया है। सर्वप्रचलित भोजन स्थलों पर तलाशकर्ता रूप में भोजन प्राप्त करने की सम्भावना अधिक रहती है, हालांकि यह परभक्षण-विरोधी सतर्कता के बढ़ने के कारण नहीं है। इसका एक संभावित स्पष्टीकरण यह है कि भोजन की तलाश में जोखिम भरे स्थानों पर मात्र वे ही पक्षी जायेंगे जिनका वसा संचय का स्तर कम होगा।[48]
वृक्ष गौरैया का परभक्षण करने वालों में कई प्रकार के बाज़, शिकारा और उल्लू शामिल हैं, जैसे यूरेशियाई गौरैयाबाज़,[46] साधारण खेरमुतिया,[49] छोटे उल्लू,[50][51] और कभी-कभी लम्बे कानों वाले उल्लू और सफ़ेद सारस आते हैं।[52][53] अपने शरदकालीन निर्मोचन के दौरान यह यह उड़ने वाले पंखों की कम संख्या के बावजूद भी परभक्षण के बढे हुए खतरे से ग्रस्त प्रतीत नहीं होता।[54] यूरेशियाई मैग्पाई, जेस, लीस्ट वीसल्स, चूहों, बिल्लियों और संकुचित सांपों, जैसे हॉर्सशू व्हिप स्नेक, द्वारा इनके घोंसले पर हमला किया जा सकता है।[55][56][57]
इन पक्षियों पर और इनके घोंसलों में अनेकों प्रकार के चिड़ियों के कीड़े पलते हैं,[58][59] और नेमिडोकोप्टेस प्रजाति की कुटकी भी आबादी को पीड़ा पहुंचाने के लिए जानी जाती है, जिसके फलस्वरूप इनके पैरों और अंगूठे में घाव हो जाते हैं।[60] प्रोटोकैलिफोरा नामक ब्लो-फ्लाई लार्वा द्वारा पक्षियों की परजीविता नवजातों की मृत्यु दर का एक महत्त्वपूर्ण तथ्य है।[61] अंडे का आकार नवजात की मृत्यु-दर को प्रभावित नहीं करता है लेकिन बड़े अण्डों से पैदा होने वाले चूजे जल्दी विकास करते हैं।[62]
वृक्ष गौरैया को बैक्टीरिया जनित और विषाणु जनित संक्रमण भी हो जाते हैं। अण्डों के परिपक्व नहीं हो पाने में और नवजातों की मृत्यु-दर के सम्बन्ध में बैक्टीरिया महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए पाए गए हैं,[63] औंर सैल्मोनेला संक्रमण के कारण इनकी अधिक संख्या में मृत्यु हो जाती है, यह घटना जापान में दर्ज की गयी है।[64] एवियन मलेरिया परजीवी इन पक्षियों की कई आबादियों के शरीर में पाए गए हैं,[65] और चीन के पक्षियों में H5N1 के नमूने पाए गए जो चूजों के लिए अत्यधिक विषाक्त होते हैं।[66]
वृक्ष गौरैया की प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया घरेलू गौरैया की तुलना में कम सुदृढ़ है और इसे घरेलू गौरैया की अधिक आक्रामकता का एक कारण माना जाता है।[67] घरेलू गौरैया और वृक्ष गौरैया अक्सर ही केन्द्रीय, पूर्वी और दक्षिणी यूरोप में सड़क दुर्घटनाओं का शिकार हो जाती हैं।[68] इनकी अधिकाधिक दर्ज की गयी आयु सीमा 13.1 वर्ष है,[28] लेकिन इनका आदर्श जीवन काल 3 वर्षों का होता है।[3]
वृक्ष गौरैया की श्रृंखला अतिविस्तृत है जो वर्तमान में अपरिमाणित है; विश्व स्तर पर इसकी कुल आबादी भी अज्ञात है लेकिन अनुमानित आधार पर इसमें यूरोप के 52-96 मिलियन पक्षी सम्मिलित हैं। हालांकि इसकी आबादी की प्रवृत्ति का मूल्यांकन नहीं किया गया है, लेकिन यह माना जाता है कि इस प्रजाति की आबादी में आई गिरावट अभी उस सीमा रेखा पर नहीं पहुंची है कि इसे आईयूसीएन (IUCN) की रेडलिस्ट में शामिल किया जाये (अर्थात, 10 वर्षों या तीन पीढ़ियों में जनसंख्या में 30 प्रतिशत से अधिक गिरावट). इन्हीं कारणों से, इस प्रजाति की संरक्षण स्थिति को वैश्विक स्तर पर "सर्वाधिक कम चिंताजनक" के रूप में मूल्यांकित किया गया है।[1]
हालांकि वृक्ष गौरैया अपना क्षेत्र फेनोस्कैनडिया में और पूर्वी यूरोप में विस्तृत कर रही है,[4][70] लेकिन अधिकांश पश्चिमी यूरोप में इसकी आबादी में गिरावट आ रही है, यही प्रवृत्ति अन्य कृषिभूमि वाले पक्षियों में भी परिलक्षित है जैसे चातक पक्षी, कॉर्न बंटिंग और उत्तरी लैपविंग. 1980 से 2003 तक, साधारण कृषिभूमि वाले पक्षियों की कुल आबादी में 28 प्रतिशत की गिरावट आई है।[69] आबादी में यह गिरावट ग्रेट ब्रिटेन में अधिक गंभीर है, जहां 1970 से 1998 के बीच 95 प्रतिशत की गिरावट आई,[71] और आयरलैंड में भी यह गंभीर है क्योंकि वहां इनके मात्र 1,000-1,500 जोड़े शेष हैं।[4] ब्रिटिश टापूओं में, इस प्रकार की गिरावट प्राकृतिक उतार-चढ़ावों के कारण आ सकती है, जिसके प्रति वृक्ष गौरैया ज्ञात रूप से प्रवृत्त होती हैं।[27] आबादी घटने के साथ ही इनकी प्रजनन क्षमता में काफी सुधार हुआ है, जिससे यह संकेत मिलते हैं कि इनकी आबादी में गिरावट का कारण इनकी प्रजनन क्षमता में कमी नहीं है और इनका अस्तित्व में रहना ही चिंता का प्रमुख विषय है।[72] वृक्ष गौरैया की संख्या में आई बड़ी गिरावट संभवतः गहन कृषि और कृषि क्षेत्र में विशेषज्ञता के कारण है, विशेषरूप से लघु वनस्पति नाशक रसायन का प्रयोग और शरद ऋतु में फसलों के बोये जाने का चलन (गर्मियों में बोये जाने वाली उन फसलों की कीमत पर किया जाता है जो जाड़ों में हल्की घासयुक्त कृषिभूमि प्रदान करते हैं). मिश्रित से लेकर विशेषज्ञता कृषि के परिवर्तन के कारण और कीटनाशकों के बढ़ते हुए प्रयोग के कारण नवजात पक्षियों के लिए छोटे कीड़ों के रूप में उपलब्ध भोजन में भी कमी आई है।[69]
कुछ क्षेत्रों में वृक्ष गौरैया को हानिकारक पक्षी के रूप में देखा जाता है। ऑस्ट्रेलिया में यह कई अनाजों और फलों की फसल को नष्ट कर देती है और अनाज की फसलों, पशुओं के चारे और संचित अन्न को अपने मलत्याग द्वारा ख़राब कर देती है। संगरोधन नियम पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में इस प्रजाति के निर्वासन को निषेधित करते हैं।[24]
अध्यक्ष माओ जिदौंग, जो चीन से हैं, ने 1958 में वृक्ष गौरैया द्वारा फसलों को नष्ट किये जाने की घटनाओं को कम करने का प्रयास किया, जो कि प्रतिवर्ष प्रत्येक पक्षी द्वारा 4.5 किलोग्राम (9.9 एलबी) के बराबर था, इसके लिए उन्होंने तीन मिलियन लोगों को स्थानांतरित किया और काक-भगौड़े लगाये जो पक्षियों को मृत्यु की सीमा तक थका दें. हालांकि शुरुआत में सफल रहे, द "ग्रेट स्पैरो कैम्पेन" ने बाद में पक्षियों द्वारा भोजन के रूप में खाए जाने वाले टिड्डियों और अन्य हानिकारक कीटों की संख्या को नज़रंदाज़ कर दिया और इससे फसलों का उत्पादन गिर गया, इसने अकाल की स्थिति को बढ़ावा दिया जिससे 1959 और 1961 के बीच 30 मिलियन लोगों की मृत्यु हो गयी।[21][73] वृक्ष गौरैया द्वारा कीटों को भोजन केव रूप में खाने से इसका प्रयोग कृषि में फल के पेड़ों के कीटों को नियंत्रित करने के लिए और साधारण शतावरी भौरों, क्रियोसेरिस एस्पर्गी को नियंत्रित करने में किया जाने लगा।[74]
चीन और जापान की कला में वृक्ष गौरैया का चित्रण काफी प्राचीन समय से हो रहा है, प्रायः एक पौधे के फुहारों के रूप में या उड़ते हुए समूह के रूप में,[73] पूर्वी कलाकारों द्वारा किये गए इसके चित्रण में हिरोशिगे द्वारा किया गया चित्रण शामिल है जिसमे इसे एंटीगुआ और बर्बुडा, केन्द्रीय अफ्रीकी गणराज्य, चीन और द जाम्बिया के डाक टिकट में स्थान दिया गया है। इसका और भी सुस्पष्ट वर्णन बेलारूस, बेल्जियम, कम्बोडिया, एस्टोनिया और ताइवान के डाक टिकटों में किया गया है।[75] इस पक्षी के द्वारा पंखों के फड़फड़ाये जाने के फलस्वरूप एक पारंपरिक जापानी नृत्य का जन्म हुआ, द सुज़ुम ओडोरी, जिसका चित्रण कलाकार होकुसाई द्वारा किया गया था।[76]
फिलिपीन्स में, जहां इसे माया के नाम से जाना जाता है, वृक्ष गौरैया शहरों में सर्वाधिक प्रचलित पक्षी है और अनेक शहरी फिलिपीन्सवासी इसे राष्ट्रीय पक्षी मानते हैं। फिलिपीन्स की पूर्व राष्ट्रीय पक्षी (जो 1995 से फिलिपीन्स की चील है)[77] काले सिर वाली मुनिया है, यह माया के नाम से जानी जाने वाली एक अन्य प्रजाति है।[78]
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