यीशु
ईसाई धर्म के संस्थापक / From Wikipedia, the free encyclopedia
येशु या येशु मसीह[10] प्रथम शताब्दी के यहूदी उपदेशक और धार्मिक नेता थे। इनको ईसा भी कहा जाता है। विश्व के बृहत्तम धर्म यैशव धर्म के केन्द्रीय व्यक्ति हैं। अधिकांश यैशव मानते हैं कि वह पुत्रेश्वर के अवतार है और इब्रानी बाइबल में प्रतीक्षित मसीह की भविष्यद्वाणी की गई है।
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येशु | |
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Christ Pantocrator mosaic in Byzantine style, from the Cefalù Cathedral, Sicily, ल. 1130 | |
जन्म |
ल. 4 BC[lower-alpha 1] यहूदा, रोमन साम्राज्य[5] |
मौत |
ल. AD 30 / 33[lower-alpha 2] (aged 33–36) येरुशलम, यहूदा, रोमन साम्राज्य |
मौत की वजह | क्रूस पर चढ़ाया जाना [lower-alpha 3] |
गृह-नगर | में नासरत[9] |
माता-पिता |
शास्त्रीय प्राचीनकाल के लगभग सभी आधुनिक विद्वान येशु के ऐतिहासिक सत्यता पर सहमत हैं।[lower-alpha 5] येशु के जीवन के वृत्तान्त सुसमाचार में निहित हैं, विशेषतः नूतन नियम के चार विहित सुसमाचारों में। अकादमिक शोध से सुसमाचार की ऐतिहासिक विश्वसनीयता और येशु की घनिष्ठता से प्रतिबिम्ब पर विभिन्न विचार सामने आए हैं।[18][lower-alpha 6][21][22] आठ दिन की वयस में येशु का शिश्नाग्रचर्मच्छेदन किया गया था, एक युवा वयस्क के रूप में योह्या द्वारा बप्तिस्मा (दीक्षा) लिया गया था, और जंगल में 40 दिनों और रातों के उपवास के बाद, उन्होंने अपना परिचर्या शुरू किया। उन्हें अक्सर "रब्बी" बोला जाता था।[23] येशु अक्सर साथी यहूदियों के साथ इस बात पर वाद-विवाद करते थे कि ईश्वर का उत्कृष्ट अनुसरण कैसे किया जाए, उपचार में लगे रहे, दृष्टान्तों में शिक्षा दी, और अनुयायियों को एकत्र किया, जिनमें से उनके द्वादश प्राथमिक शिष्य थे। उन्हें यरूशलम में गिरफ्तार किया गया और यहूदी अधिकारियों[24] द्वारा मुकदमा चलाया गया, रोमन सरकार को सौंप दिया गया, और यहूदिया के रोमन प्रीफेक्ट पोन्तियुस पिलातुस के आदेश पर क्रूस पर चढ़ाया गया। उनकी मृत्यु के बाद, उनके अनुयायियों को विश्वास हो गया कि वह मृतकों में से पुनर्जीवित हो उठे हैं, और उनके स्वर्गारोहण के बाद, उन्होंने जो समुदाय बनाया वह अन्ततः प्रारंभिक यैशव/मसीही चर्च बन गया जो एक विश्वव्यापी आन्दोलन के रूप में विस्तृत हुआ।[25] उनकी शिक्षाओं और जीवन के वृत्तान्तों को शुरू में मौखिक प्रसारण द्वारा संरक्षित किया गया था, जो लिखित सुसमाचार का स्रोत था।[26]
यैशव धर्ममीमांसा में ऐसी मान्यताएँ शामिल हैं कि यीशु पवित्र आत्मा द्वारा गर्भ में आए थे, मरियम नामक एक कुमारी से जन्म हुए थे, उन्होंने चमत्कार किए, यैशव चर्च की स्थापना की, पापों का क्षतिपूर्ति हेतु बलिदान के रूप में क्रूस पर चढ़कर मरे, मृतकों में से उठे, और स्वर्ग में चढ़ गए जहाँ से वे लौटेंगे। आमतौर पर, यैशव मानते हैं कि येशु लोगों को ईश्वर से पनर्मिलन में सक्षम बनाते हैं। नाइसीन आह्वान का दावा है कि येशु जीवित और मृतकों का न्याय करेंगे, या तो उनके शारीरिक पुनरुत्थान से पूर्व या पश्चात्, यैशव युगान्तशास्त्र में येशु के दूसरे आगमन से जुड़ी एक घटना। अधिकांश यैशव येशु को ईश्वर पुत्र के अवतार के रूप में पूजते हैं, जो त्रित्व के तीन व्यक्तित्वों में से द्वितीय हैं। येशु का जन्म प्रतिवर्ष, साधारणतः 25 दिसम्बर को क्रिसमस के रूप में मनाया जाता है। गुड फ्राइडे पर उनके क्रूस पर चढ़ने और ईस्टर रविवार को उनके पुनरुत्थान का सम्मान किया जाता है। विश्व का सर्वव्यापक रूप से प्रयुक्त पंचांग पद्धति - जिसमें वर्तमान वर्ष 2024 ई. है - येशु की अनुमानित जन्मतिथि पर आधारित है।
येशु अन्य धर्मों में भी पूज्य हैं। इस्लाम में, येशु (अक्सर उनके क़ुरानीय नाम ईसा द्वारा जाने जाते हैं)[27][28][29][30] को ईश्वर और मसीह का अन्तिम पैगम्बर माना जाता है। मुसलमानों का मानना है कि येशु का जन्म कुमारी मरियम से हुआ था, किन्तु वह न तो ईश्वर थे और न ही ईश्वर का पुत्र थे;[31] क़ुरान कहता है कि येशु ने कभी भी दिव्य होने का दावा नहीं किया। अधिकांश मुस्लिम यह नहीं मानते कि उन्हें मार दिया गया या उन्हें सूली पर चढ़ा दिया गया, किन्तु यह कि ईश्वर ने उन्हें जीवित रहते हुए जन्नत में आरोहित किया। इसके विपरीत, यहूदी धर्म इस विश्वास को खारिज करता है कि येशु प्रतीक्षित मसीह थे, यह तर्क देते हुए कि उन्होंने मसीह की भविष्यद्वाणियों को पूरा नहीं किया, और न ही दिव्य थे और न ही पुनर्जीवित हुए।